जिस गली में तुम्हारा उठना बैठना ना हो,
तुम ही बताओ उस गली में भला जाना क्या !!
चहचहाहट ना हो जिस ठिकाने पर तुम्हारी,
वहां मिल कर सबसे हमें करना क्या !!
दीदार ना हो जिस शीशे में तुम्हारा,
उस शीशे में खुद को फिर देखना क्या !!
जिक्र ना हो जिस नज़्म में तुम्हारा ,
फिर उस नज़्म को इतने चाव से लिखना क्या !!
मौजूदगी ना हो अगर जिंदगी में तुम्हारी,
फिर जिंदगी जीना क्या और मरना क्या !!
तुम ही बताओ उस गली में भला जाना क्या !!
चहचहाहट ना हो जिस ठिकाने पर तुम्हारी,
वहां मिल कर सबसे हमें करना क्या !!
दीदार ना हो जिस शीशे में तुम्हारा,
उस शीशे में खुद को फिर देखना क्या !!
जिक्र ना हो जिस नज़्म में तुम्हारा ,
फिर उस नज़्म को इतने चाव से लिखना क्या !!
मौजूदगी ना हो अगर जिंदगी में तुम्हारी,
फिर जिंदगी जीना क्या और मरना क्या !!