आरव ने जैसे ही ऑफिस से बाहर कदम रखा, उसका फोन बज उठा। स्क्रीन पर काव्या का नाम चमक रहा था। उसने कॉल उठाई—
काव्या: आरव, तुम कहाँ हो? मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी। आज तो हमें मूवी देखने जाना था, याद है ना?
आरव: काव्या, मैं ऑफिस के काम में इतना उलझ गया कि सब कुछ भूल ही गया। तुम कहाँ हो? मैं अभी तुम्हें पिक करता हूँ।
आरव ने जल्दी से गाड़ी में बैठकर बैग पीछे की सीट पर रखा और गाड़ी स्टार्ट की।
काव्या: रहने दो, अब मूड नहीं है। मैं पिछले दो घंटे से तैयार होकर तुम्हारा इंतजार कर रही थी। कभी तो मेरा ध्यान रखा करो।
आरव: देखो, काव्या, मैंने कहा ना भूल गया। अब इतनी सी बात पर मूड खराब मत करो। चलो, हम बाहर डिनर कर लेते हैं।
काव्या: नहीं, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगी, और खाना भी नहीं बनाउंगी। जो मंगाना हो, खुद मंगा लेना।
आरव को भी गुस्सा आ रहा था, लेकिन वह खुद को शांत रखते हुए बोला—
आरव: ठीक है, बताओ क्या ऑर्डर करना है?
काव्या: जो करना है, खुद कर लो। मुझसे पूछने की जरूरत नहीं।
कहकर काव्या ने फोन काट दिया। आरव को बहुत गुस्सा आ रहा था। पूरे दिन ऑफिस में बॉस की चिकचिक, और घर पहुंचते ही बीवी के नखरे।
आरव घर पहुंचा और काव्या को मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसने उसकी एक नहीं मानी। आखिरकार, आरव भी बिना खाना खाए सोने चला गया।
शादी की शुरुआत:
आरव और काव्या की शादी को अभी सिर्फ दो साल ही हुए थे। उनकी अरेंज मैरिज थी। शादी के पहले साल में दोनों बहुत खुश थे, लेकिन धीरे-धीरे हालात बदलने लगे। आरव को गुरुग्राम की एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई थी, और पैकेज भी अच्छा था।
शुरुआती छह महीने बहुत अच्छे से गुजरे। आरव ने मेहनत की और उसे प्रमोशन भी मिल गया। उसने एक अच्छा सा फ्लैट खरीद लिया, लेकिन फ्लैट की ईएमआई बहुत ज्यादा थी। वह सोचता था कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।
लेकिन जैसे-जैसे समय बीतने लगा, उसे महसूस हुआ कि इतनी महंगी ईएमआई चुकाने के लिए उसे दिन-रात काम करना पड़ता था। आरव ने एक बार अपने बॉस को नए फ्लैट की पार्टी में बुला लिया था। उसके बाद से बॉस ने उसे और ज्यादा काम देना शुरू कर दिया।
दूसरी तरफ, काव्या भी धीरे-धीरे गुरुग्राम के हाई-सोसायटी लाइफस्टाइल में ढलने लगी थी। वह अक्सर दोस्तों के साथ शॉपिंग, मूवी, और डिनर पर जाती थी। उसे यह नया जीवन बहुत पसंद आने लगा था।
तंगहाली और तनाव:
आरव की जिंदगी अब एक जाल बन चुकी थी—ऑफिस में बॉस का दबाव और घर में काव्या की ऊंची उम्मीदें। वह जितना कमाता, उससे ज्यादा खर्च हो जाता। हर महीने की सैलरी खत्म होने से पहले ही क्रेडिट कार्ड का सहारा लेना पड़ता था।
आरव ने कई बार काव्या से कहा कि खर्चे कम करने होंगे, लेकिन काव्या का जवाब हमेशा वही होता—
काव्या: बाकी लोग भी तो इसी सोसाइटी में रह रहे हैं। तुम ही क्यों पीछे रहना चाहते हो? बस सोच का फर्क है, तुम सोचो कि सब हो जाएगा, तो हो जाएगा।
आरव: लेकिन उनकी आमदनी हमसे बहुत ज्यादा है। हमें 20 साल तक ईएमआई चुकानी है। खर्चे कम करना जरूरी है।
काव्या: तो तुम दूसरी नौकरी क्यों नहीं ढूंढते? हो सकता है, कहीं और अच्छा पैकेज मिल जाए।
आरव ने थककर कहा—
आरव: नौकरी बदलने के लिए सेविंग होनी चाहिए। हम महीने के अंत तक कर्ज में डूबे रहते हैं। मेरी बात मानो, कुछ वक्त के लिए ये खर्चे बंद करो।
काव्या ने नाराजगी से कहा—
काव्या: तुमने ये सब बातें यहां आने से पहले क्यों नहीं सोची? मेरी कितनी बेज्जती होगी! मैंने सोसाइटी में तुम्हारी कितनी तारीफ की है, और अब तुम ये कह रहे हो कि कुछ भी मत करो?
आरव चुप रह गया। वह अंदर ही अंदर घुट रहा था। शादी से पहले वह एक छोटे शहर में कंप्यूटर इंस्टीट्यूट चलाता था, और कितना सुखी था। वह सुबह काम करता, दोपहर को घर आता, और शाम को फिर आराम से काम पर जाता। तब जीवन आसान और सुकून भरा था।
तरक्की की चाह में उसने सब कुछ छोड़ दिया था—अपने माता-पिता, अपने छोटे भाई, यहां तक कि अपने पुराने जीवन की सादगी भी। अब उसे अहसास हो रहा था कि उसने क्या खोया था।
बड़ा फैसला:
एक दिन, जब आरव ऑफिस में था, उसे बॉस ने एक और टारगेट दिया, जो लगभग असंभव था। बॉस ने कहा—
बॉस: आरव, मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। तुम यह टारगेट जरूर पूरा कर लोगे।
आरव ने बिना सोचे अपना इस्तीफा टेबल पर रख दिया—
आरव: सर, ये रहा मेरा इस्तीफा। एक महीने का नोटिस पूरा करके मैं चला जाऊंगा।
बॉस: ये तुम क्या कर रहे हो? तुम्हारे घर की ईएमआई का क्या होगा?
आरव: सर, यही ईएमआई मेरी सारी परेशानियों की जड़ है। मैं फ्लैट बेच रहा हूँ, और अपनी पुरानी जिंदगी में वापस लौट रहा हूँ।
आरव ने ऑफिस से निकलकर फ्लैट बेचने के लिए प्रॉपर्टी डीलर से संपर्क किया।
काव्या का सामना:
शाम को जब आरव घर पहुंचा, तो काव्या ने उसे देखते ही कहा—
काव्या: आरव, हम कल कहीं घूमने चलें क्या? तुम एक दिन की छुट्टी ले लो।
काव्या: आरव, तुम कहाँ हो? मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी। आज तो हमें मूवी देखने जाना था, याद है ना?
आरव: काव्या, मैं ऑफिस के काम में इतना उलझ गया कि सब कुछ भूल ही गया। तुम कहाँ हो? मैं अभी तुम्हें पिक करता हूँ।
आरव ने जल्दी से गाड़ी में बैठकर बैग पीछे की सीट पर रखा और गाड़ी स्टार्ट की।
काव्या: रहने दो, अब मूड नहीं है। मैं पिछले दो घंटे से तैयार होकर तुम्हारा इंतजार कर रही थी। कभी तो मेरा ध्यान रखा करो।
आरव: देखो, काव्या, मैंने कहा ना भूल गया। अब इतनी सी बात पर मूड खराब मत करो। चलो, हम बाहर डिनर कर लेते हैं।
काव्या: नहीं, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगी, और खाना भी नहीं बनाउंगी। जो मंगाना हो, खुद मंगा लेना।
आरव को भी गुस्सा आ रहा था, लेकिन वह खुद को शांत रखते हुए बोला—
आरव: ठीक है, बताओ क्या ऑर्डर करना है?
काव्या: जो करना है, खुद कर लो। मुझसे पूछने की जरूरत नहीं।
कहकर काव्या ने फोन काट दिया। आरव को बहुत गुस्सा आ रहा था। पूरे दिन ऑफिस में बॉस की चिकचिक, और घर पहुंचते ही बीवी के नखरे।
आरव घर पहुंचा और काव्या को मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसने उसकी एक नहीं मानी। आखिरकार, आरव भी बिना खाना खाए सोने चला गया।
शादी की शुरुआत:
आरव और काव्या की शादी को अभी सिर्फ दो साल ही हुए थे। उनकी अरेंज मैरिज थी। शादी के पहले साल में दोनों बहुत खुश थे, लेकिन धीरे-धीरे हालात बदलने लगे। आरव को गुरुग्राम की एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई थी, और पैकेज भी अच्छा था।
शुरुआती छह महीने बहुत अच्छे से गुजरे। आरव ने मेहनत की और उसे प्रमोशन भी मिल गया। उसने एक अच्छा सा फ्लैट खरीद लिया, लेकिन फ्लैट की ईएमआई बहुत ज्यादा थी। वह सोचता था कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।
लेकिन जैसे-जैसे समय बीतने लगा, उसे महसूस हुआ कि इतनी महंगी ईएमआई चुकाने के लिए उसे दिन-रात काम करना पड़ता था। आरव ने एक बार अपने बॉस को नए फ्लैट की पार्टी में बुला लिया था। उसके बाद से बॉस ने उसे और ज्यादा काम देना शुरू कर दिया।
दूसरी तरफ, काव्या भी धीरे-धीरे गुरुग्राम के हाई-सोसायटी लाइफस्टाइल में ढलने लगी थी। वह अक्सर दोस्तों के साथ शॉपिंग, मूवी, और डिनर पर जाती थी। उसे यह नया जीवन बहुत पसंद आने लगा था।
तंगहाली और तनाव:
आरव की जिंदगी अब एक जाल बन चुकी थी—ऑफिस में बॉस का दबाव और घर में काव्या की ऊंची उम्मीदें। वह जितना कमाता, उससे ज्यादा खर्च हो जाता। हर महीने की सैलरी खत्म होने से पहले ही क्रेडिट कार्ड का सहारा लेना पड़ता था।
आरव ने कई बार काव्या से कहा कि खर्चे कम करने होंगे, लेकिन काव्या का जवाब हमेशा वही होता—
काव्या: बाकी लोग भी तो इसी सोसाइटी में रह रहे हैं। तुम ही क्यों पीछे रहना चाहते हो? बस सोच का फर्क है, तुम सोचो कि सब हो जाएगा, तो हो जाएगा।
आरव: लेकिन उनकी आमदनी हमसे बहुत ज्यादा है। हमें 20 साल तक ईएमआई चुकानी है। खर्चे कम करना जरूरी है।
काव्या: तो तुम दूसरी नौकरी क्यों नहीं ढूंढते? हो सकता है, कहीं और अच्छा पैकेज मिल जाए।
आरव ने थककर कहा—
आरव: नौकरी बदलने के लिए सेविंग होनी चाहिए। हम महीने के अंत तक कर्ज में डूबे रहते हैं। मेरी बात मानो, कुछ वक्त के लिए ये खर्चे बंद करो।
काव्या ने नाराजगी से कहा—
काव्या: तुमने ये सब बातें यहां आने से पहले क्यों नहीं सोची? मेरी कितनी बेज्जती होगी! मैंने सोसाइटी में तुम्हारी कितनी तारीफ की है, और अब तुम ये कह रहे हो कि कुछ भी मत करो?
आरव चुप रह गया। वह अंदर ही अंदर घुट रहा था। शादी से पहले वह एक छोटे शहर में कंप्यूटर इंस्टीट्यूट चलाता था, और कितना सुखी था। वह सुबह काम करता, दोपहर को घर आता, और शाम को फिर आराम से काम पर जाता। तब जीवन आसान और सुकून भरा था।
तरक्की की चाह में उसने सब कुछ छोड़ दिया था—अपने माता-पिता, अपने छोटे भाई, यहां तक कि अपने पुराने जीवन की सादगी भी। अब उसे अहसास हो रहा था कि उसने क्या खोया था।
बड़ा फैसला:
एक दिन, जब आरव ऑफिस में था, उसे बॉस ने एक और टारगेट दिया, जो लगभग असंभव था। बॉस ने कहा—
बॉस: आरव, मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। तुम यह टारगेट जरूर पूरा कर लोगे।
आरव ने बिना सोचे अपना इस्तीफा टेबल पर रख दिया—
आरव: सर, ये रहा मेरा इस्तीफा। एक महीने का नोटिस पूरा करके मैं चला जाऊंगा।
बॉस: ये तुम क्या कर रहे हो? तुम्हारे घर की ईएमआई का क्या होगा?
आरव: सर, यही ईएमआई मेरी सारी परेशानियों की जड़ है। मैं फ्लैट बेच रहा हूँ, और अपनी पुरानी जिंदगी में वापस लौट रहा हूँ।
आरव ने ऑफिस से निकलकर फ्लैट बेचने के लिए प्रॉपर्टी डीलर से संपर्क किया।
काव्या का सामना:
शाम को जब आरव घर पहुंचा, तो काव्या ने उसे देखते ही कहा—
काव्या: आरव, हम कल कहीं घूमने चलें क्या? तुम एक दिन की छुट्टी ले लो।