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👑⚘️दुर्गा क्षमा-प्रार्थना मंत्र*


🌹🔅अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥ 1॥


🌹🔅आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥
2॥


🌹🔅मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥
3॥


🌹🔅अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत्।
यां गतिं समवाण्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः॥ 4॥


🌹🔅सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ॥
5॥


🌹🔅अज्ञानाद्विस्मृतेभ्र्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥
6॥


🌹🔅कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥
7॥


🌹🔅गुह्यातिगुह्यगोप्नी त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥
8॥


♥️⚘️क्षमा प्रार्थना मंत्र हिंदी अनुवाद


🌹🔅1. हे परमेश्वरी मेरे द्वारा रात-दिन बहुत से अपराध होते रहते है। मुझे अपना दास समझकर मेरे उन अपराधों को आप कृपा पूर्वक क्षमा करिये।


🌹🔅2. परमेश्वरी मैं आवाहन करना नहीं जानता, विसर्जन करना नहीं जानता तथा पूजा करने का ढंग भी नहीं जानता। हे माँ मुझे क्षमा करिए।


🌹🔅3. देवि सुरेश्वरि मैने जो मन्त्रहीन (ना मंत्रो को जानता हूँ), कियाहीन (ना क्रियाओ को जानता हूँ), और भक्तिहीन (ना भक्ति के प्रकार जानता हूँ) पूजन किया है, वह सब आपकी कृपा से पूरे हों ।


🌹🔅4. सैकड़ों अपराध करने के बाद भी जो आपके शरण में आ के जगदम्बा कहकर पुकारता है, उसे वह गति प्राप्त होती है, जो ब्रम्हादि देवताओं के लिये भी पाना आसान नहीं है।


🌹🔅5. जगदम्बिके ! मैं अपराधी हूँ, किंतु आपकी शरण में आया हूँ। इस समय दया का पात्र हूँ। आप जैसा चाहे, वैसा करे।


🌹🔅6. हे देवी परमेश्वरी अज्ञान वस, भूल से या बुद्धि भ्रष्ट होने के कारण मैं ने जो भी न्यूनता या अधिकता कर दी हो, वह सब क्षमा करें और प्रसन्न हों ।


🌹🔅7. सच्चिदानन्दस्वरूपा परमेश्वरि! जगतमाता कामेश्वरि ! आप प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करें और मुझ पर प्रसन्न रहें ।


🌹🔅8. देवि! सुरेश्वरि! आप गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करने वाली हैं। मेरे निवेदन किये हुए इस जपको ग्रहण करिये। आपकी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो।

इस प्रकार क्षमा प्रार्थना मंत्र के पाठ से दुर्गा माता आप के जाने अनजाने में हुए सारे अपराधों को क्षमा करेंगी और उनकी कृपा सदैव आपके ऊपर बनी रहेगी ।



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🌹🔅दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥


🌹🔅विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥


🌹🔅पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥


🌹🔅कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥


🌹🔅तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥


🌹🔅अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥


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👑🚩 महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् - अयि गिरिनन्दिनि


🌹🔅अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥


🌹🔅सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥


🌹🔅अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥


🌹🔅अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥


🌹🔅अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥


🌹🔅अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥


🌹🔅अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥


🌹🔅धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥


🌹🔅सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥


🌹🔅जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥


🌹🔅अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥


🌹🔅सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥


🌹🔅अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥


🌹🔅कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥


🌹🔅करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥


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🔱🌿 श्री शिव बिल्वाष्टकम् 🌿🔱


🌹🌿 त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनॆत्रं च त्रियायुधं ।
त्रिजन्म पापसंहारम् ऎकबिल्वं शिवार्पणं ॥१॥


मैं शिव को बिल्व पत्र अर्पित करता हूं। यह पत्ता सत्व, रज और तम तीन गुणों का प्रतीक है।
इस पत्ते की तीन आँखे सूर्य, चंद्रमा और अग्नि के समान है। यह तीन शस्त्रों की तरह है।
वह पिछले तीन जन्मों के पापों का नाश करने वाला है। मैं बिल्व पत्र से शिव की पूजा करता हूं।


🌹🌿 अखण्ड बिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे ।
शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२॥


मैं शिव को बिल्व पत्र अर्पित करता हूं।
मैंने नंदिकेश्वर के लिए बिल्व पत्र के साथ पूजा पूरी की,
और इस प्रकार पाप से मुक्त हो जाऊंगा।


🌹🌿 शालिग्राम शिलामेकां विप्राणां जातु चार्पयेत् ।
सोमयज्ञ महापुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ३॥


मैं शिव को बिल्व पत्र अर्पित करता हूं। इसकी पत्तियां कोमल और निर्दोष है। यह अपने आप में पूर्ण है। यह तीन शाखाओं की तरह है। मैं बिल्व पत्र से शिव की पूजा करता हूं।


🌹🌿दन्तिकोटि सहस्राणी वाजपेय शतानि च ।
कोटिकन्या महादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ४॥


शिव को एक बिल्व पत्र अर्पण करना यज्ञ और तपस्या से अधिक फल देने वाला है।


🌹🌿लक्ष्म्यास्तनुत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम् ।
बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ५॥


बिल्व पत्र माता लक्ष्मी द्वारा उत्पन्न किया गया है एवं, देवाधिदेव महादेव का अत्यंत प्रिय है,
अतः मैं बिल्व पत्र से शिव की पूजा करता हूं।


🌹🌿 दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम् ।
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवर्पणम् ॥ ६॥


बिल्व पत्र के वृक्ष के दर्शन एवं स्पर्श मात्र से पापों का नाश हो जाता है,
ऐसे पापनाशक बिल्व पत्र से मैं शिव जी की पूजा करता हूँ।


🌹🌿 काशीक्षेत्रनिवासं च कालभैरवदर्शनम् ।
प्रयाघमाधवं दृष्ट्वा ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ७॥


काशी नगरी में रहने, काल भैरव और माधव के मंदिर के दर्शन करने के बाद
मैं शिव को बिल्व का एक पत्र चढ़ाता हूं।


🌹🌿 मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे ।
अग्रतः शिवरूपाय ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ८॥


बिल्व पत्र के मूल अर्थात जड़ में ब्रह्मा का वास है,
मध्य भाग में विष्णु विराजमान है
एवं अग्रभाग में स्वयं शिव जी विराजित है
ऐसे बिलपत्र से मैं शिव जी की पूजा करता हूँ।


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🔱🌿 लिङ्गाष्टकम् हिंदी अर्थ सहित 🌿🔱


॥ लिङ्गाष्टकम् ॥

🌹🌿 ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥1॥

अर्थ – जो लिंग ( स्वरूप ) ब्रह्मा, विष्णु एवं समस्त देवगणों द्वारा पूजित तथा निर्मल कान्ति से सुशोभित है और जो लिंग जन्मजन्य दुःख का विनाशक अर्थात मोक्ष प्रदायक है, उस सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ ॥1॥


🌹🌿 देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥2॥


अर्थ – जो शिवलिंग श्रेष्ठ देवगण एवं ऋषियों द्वारा पूजित, कामदेव को नष्ट करने वाला, करुणा की खान, रावण के घमंड को नष्ट करने वाला है, उस सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ ॥2॥


🌹🌿 सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥3॥


अर्थ – जो लिंग सभी दिव्य सुगन्धि ( अगर, तगर, चन्दन आदि ) से सुलेपित, बुद्धि की वृद्धि करने वाला, समस्त सिद्ध, देवता एवं असुरगणों से वन्दित है, उस सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ ॥3॥



🌹🌿कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥4॥


अर्थ – सदाशिव का लिंगरूप विग्रह सुवर्ण, माणिक्य आदि मणियों से विभूषित तथा नागराज द्वारा वेष्टित ( लिपटे ) होने से अत्यन्त सुशोभित है और अपने ससुर दक्ष के यज्ञ का विनाशक है, उस सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ ॥4॥


🌹🌿 कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥5॥


अर्थ – सदाशिव का लिंगरूप विग्रह ( शरीर ) कुंकुम, चन्दन आदि से पुता हुआ, दिव्य कमल की माला से सुशोभित और अनेक जन्म-जन्मान्तर के संचित पाप को नष्ट करने वाला है, उस सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ ॥5॥


🌹🌿 देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥6॥


अर्थ – भाव भक्ति द्वारा समस्त देवगणों से पूजित एवं सेवित, करोड़ों सूर्यों की प्रखर कान्ति से युक्त उस भगवान सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ ॥6॥


🌹🌿अष्टदलोपरि वेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥7॥


अर्थ – अष्टदल कमल से वेष्टित सदाशिव का लिंगरूप विग्रह सभी चराचर की उत्पत्ति का कारणभूत एवं अष्ट दरिद्रों का विनाशक है, उस सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ ॥7॥


🌹🌿 सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥8॥


अर्थ – जो लिंग देवगुरु बृहस्पति एवं देवश्रेष्ठ इन्द्रादि के द्वारा पूजित, निरंतर नंदनवन के दिव्य पुष्पों द्वारा अर्चित, परात्पर एवं परमात्म स्वरुप है, उस सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ ॥8॥


🌹🌿 लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥9॥


अर्थ – जो साम्ब सदाशिव के समीप पुण्यकारी इस लिंगाष्टक का पाठ करता है, वह निश्चित ही शिवलोक ( कैलास ) में निवास करता है तथा शिव के साथ रहते हुए अत्यन्त प्रसन्न होता है ॥9॥


🌹🌿॥ लिङ्गाष्टकम् सम्पूर्ण ॥🌿🌹


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🔱🚩 शिव पंचाक्षर स्तोत्र और अर्थ


🌷 प्रसिद्ध शिव पंचाक्षर स्तोत्र शिव और पांच पवित्र अक्षरों की शक्ति, न-म-शि-वा-य की स्तुति करता हैं ।


🌷प्रसिद्ध शिव पंचाक्षर स्तोत्र शिव और पांच पवित्र अक्षरों की शक्ति, न-म-शि-वा-य की स्तुति करता हैं । साउंड्स ऑफ़ ईशा द्वारा गाए गए स्तोत्र को यहाँ प्रस्तुत किया गया है।


🌹शिव पंचाक्षर स्तोत्र लिरिक्स और अर्थसंस्कृत
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै नकाराय नमः शिवाय


🌹मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय
तस्मै मकाराय नमः शिवाय
शिवाय गौरीवदनाब्जबृंदा
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
तस्मै शिकाराय नमः शिवाय


🌹वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमूनीन्द्र देवार्चिता शेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय
तस्मै वकाराय नमः शिवाय
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै यकाराय नमः शिवाय


🌹पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ ।
शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते


🌹 अर्थ


🌷वे जिनके पास साँपों का राजा उनकी माला के रूप में है, और जिनकी तीन आँखें हैं,
जिनके शरीर पर पवित्र राख मली हुई है और जो महान प्रभु है,
वे जो शाश्वत है, जो पूर्ण पवित्र हैं और चारों दिशाओं को
जो अपने वस्त्रों के रूप में धारण करते हैं,
उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "न" द्वारा दर्शाया गया है


🌹वे जिनकी पूजा मंदाकिनी नदी के जल से होती है और चंदन का लेप लगाया जाता है,
वे जो नंदी के और भूतों-पिशाचों के स्वामी हैं, महान भगवान,
वे जो मंदार और कई अन्य फूलों के साथ पूजे जाते हैं,
उस शिव को प्रणाम, जिन्हें शब्दांश "म" द्वारा दर्शाया गया है


🌹 वे जो शुभ है और जो नए उगते सूरज की तरह है, जिनसे गौरी का चेहरा खिल उठता है,
वे जो दक्ष के यज्ञ के संहारक हैं,
वे जिनका कंठ नीला है, और जिनके प्रतीक के रूप में बैल है,
उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "शि" द्वारा दर्शाया गया है


🌹 वे जो श्रेष्ठ और सबसे सम्मानित संतों - वशिष्ट, अगस्त्य और गौतम, और देवताओं द्वारा भी पूजित है, और जो ब्रह्मांड का मुकुट हैं,
वे जिनकी चंद्रमा, सूर्य और अग्नि तीन आंखें हों,
उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "वा" द्वारा दर्शाया गया है


🌹 वे जो यज्ञ (बलिदान) का अवतार है और जिनकी जटाएँ हैं,

जिनके हाथ में त्रिशूल है और जो शाश्वत हैं,
वे जो दिव्य हैं, जो चमकीला हैं, और चारों दिशाएँ जिनके वस्त्र हैं,
उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "य" द्वारा दर्शाया गया है


🌹 जो शिव के समीप इस पंचाक्षर का पाठ करते हैं,
वे शिव के निवास को प्राप्त करेंगे और आनंद लेंगे।



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🌹प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्‌ ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥9॥



अर्थ – जिनका कंठ खिले हुए नील कमल समूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करने वाली है तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव ( संसार ), दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी संहार करने वाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।



🌹अखर्वसर्वमंगलाकलाकदम्बमञ्जरी-
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम्‌ ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥10॥



अर्थ – जो अभिमान रहित पार्वती जी के कलारूप कदम्ब मंजरी के मकरंद स्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करने वाले भँवरे हैं तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी अंत करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।



🌹जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥11॥



अर्थ – जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए साँपों के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है। धीमे धीमे बजते हुए मृदंग के गंभीर मंगल स्वर के साथ जिनका प्रचंड तांडव हो रहा है , उन भगवान शंकर की जय हो।



🌹दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥12॥



अर्थ – पत्थर और सुन्दर बिछौनों में, सांप और मोतियों की माला में, बहुमूल्य रत्न और मिटटी के ढेले में, मित्र या शत्रु पक्ष में, तिनका या कमल के समान आँखों वाली युवती में, प्रजा और पृथ्वी के राजाओं में समान भाव रखता हुआ मैं कब सदाशिव को भजूँगा ?



🌹कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्‌ ।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥



अर्थ – सुन्दर ललाट वाले भगवान चन्द्रशेखर में मन को एकाग्र करके अपने कुविचारों को त्यागकर गंगा जी के तटवर्ती वन के भीतर रहता हुआ सिर पर हाथ जोड़ डबडबाई हुई विह्वल आँखों से शिव मंत्र का उच्चारण करता हुआ मैं कब सुखी होऊंगा ?



🌹इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्‌ ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम् ॥14 ॥



अर्थ – जो मनुष्य इस उत्तमोत्तम स्तोत्र का नित्य पाठ, स्मरण और वर्णन करता है, वह सदा शुद्ध रहता है और शीघ्र ही भगवान शंकर की भक्ति प्राप्त कर लेता है। वह विरुद्ध गति को प्राप्त नहीं करता क्योंकि शिव जी का ध्यान चिंतन मोह का नाश करने वाला है।



🌹पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥15 ॥



अर्थ – सायंकाल में पूजा समाप्त होने पर जो रावण के गाये हुए इस शिव तांडव स्तोत्र ( Shiv Tandav Stotram ) का पाठ करता है, भगवान शंकर उस मनुष्य को रथ, हाथी, घोड़ों से युक्त सदा स्थिर रहने वाली संपत्ति प्रदान करते हैं।




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🔱🚩शिव तांडव स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित



🌼 अत्यंत प्रभावशाली शिव स्तोत्र है, जिसके नित्य पाठ से भगवान शिव की भक्ति और उनकी कृपा प्राप्त होती है। इस तांडव स्तोत्र की रचना लंकापति रावण के द्वारा की गयी थी। रावण परम विद्वान और महान शिवभक्त था। उसने भगवान शिव को अपनी कठोर तपस्या से प्रसन्न करके बहुत सारे वरदान प्राप्त किये थे।



🌼 एक बार रावण अपनी शक्ति के मद में चूर होकर और भगवान के समक्ष अपनी भक्ति के प्रदर्शन के उद्देश्य से कैलाश पर्वत को अपनी भुजाओं में उठा लिया। अन्तर्यामी भगवान शिव रावण के मनोभाव को समझकर उसके अहंकार के नाश के लिए कैलाश पर्वत का भार बढ़ाने लगे जिसे रावण सहन नहीं कर सका।



🌼 तब उसे अपनी गलती का आभाष हुआ पर उसने धैर्य का परिचय देते हुए क्षणमात्र में ही शिव तांडव स्तोत्र ( Shiv Tandav Stotram ) रचकर भगवान शिव को गाकर सुनाया। जिसे सुनकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और रावण को मनोवांछित वर प्रदान किया।





🌹जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌ ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥




अर्थ – जिन्होंने जटारुपी अटवी ( वन ) से निकलती हुई गंगा जी के गिरते हुए प्रवाहों से पवित्र किये गए गले में सर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारण कर डमरू के डम डम शब्दों से मण्डित प्रचंड तांडव नृत्य किया, वे शिवजी हमारे कल्याण का विस्तार करें।



🌹जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्द्धनी ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥2॥




अर्थ – जिनका मस्तक जटारुपी कड़ाह में वेग से घूमती हुई गंगा की चंचल तरंगों से सुशोभित हो रहा है, ललाट की अग्नि धक् धक् जल रही है, सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं, उन भगवान शिव में मेरा निरंतर अनुराग हो।



🌹धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर-
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥





अर्थ – गिरिराज किशोरी पार्वती के शिरोभूषण से समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख जिनका मन आनंदित हो रहा है।जिनकी निरंतर कृपादृष्टि से कठिन से कठिन आपत्ति का भी निवारण हो जाता है, ऐसे किसी दिगंबर तत्व में मेरा मन आनंद प्राप्त करे।



🌹जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥




अर्थ – जिनकी जटाओं में रहने वाले सर्पों के फणों की मणियों का फैलता हुआ प्रभापुंज दिशा रुपी स्त्रियों के मुख पर कुंकुम का लेप कर रहा है। मतवाले हाथी के हिलते हुए चमड़े का वस्त्र धारण करने से स्निग्ध वर्ण हुए उन भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत आनंद करे।



🌹सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणीविधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥5॥




अर्थ – जिनकी चरण पादुकाएं इन्द्र आदि देवताओं के प्रणाम करने से उनके मस्तक पर विराजमान फूलों के कुसुम से धूसरित हो रही हैं। नागराज के हार से बंधी हुई जटा वाले वे भगवान चंद्रशेखर मुझे चिरस्थाई संपत्ति देनेवाले हों।



🌹ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्‌ ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु नः ॥6॥




अर्थ – जिन्होंने ललाट वेदी पर प्रज्वलित हुई अग्नि के तेज से कामदेव को नष्ट कर डाला था, जिनको इन्द्र नमस्कार किया करते हैं। सुधाकर ( चन्द्रमा ) की कला से सुशोभित मुकुट वाला वह उन्नत विशाल ललाट वाला जटिल मस्तक हमें संपत्ति प्रदान करने वाला हो।



🌹करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥




अर्थ – जिन्होंने अपने विकराल ललाट पर धक् धक् जलती हुई प्रचंड अग्नि में कामदेव को भस्म कर दिया था। गिरिराज किशोरी के स्तनों पर पत्रभंग रचना करने के एकमात्र कारीगर उन भगवान त्रिलोचन में मेरा मन लगा रहे।



🌹नवीनमेघमण्डलीनिरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहूनिशीथिनीतमःप्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ॥8॥




अर्थ – जिनके कंठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुए अंधकार के समान कालिमा अंकित है।

जो गजचर्म लपेटे हुए हैं, वे संसार भार को धारण करने वाले चन्द्रमा के समान मनोहर कांतिवाले भगवान गंगाधर मेरी संपत्ति का विस्तार करें।


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