आयुर्वेद लेख संग्रह


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Forward from: आयुर्वेद लेख संग्रह
विष्णु अंश अवतार श्री धन्वन्तरी जी को सादर नमन




लेख संग्रह @ayurved27 पर द्रव्यों के शमन, कोपन गुण विषय के  प्रथम भाग में दोषकर्मभेद से द्रव्य के प्रकार आदि पर चर्चा करते हैं क्योंकि अनेक बार हम इन द्रव्यों के प्रयोग द्वारा भी प्राथमिक स्वास्थ्य प्राप्त करने की दिशा में अच्छा प्रयास कर सकते हैं।

दोषकर्मभेद से द्रव्य तीन प्रकार के होते हैं- शमन, कोपन और स्वस्थहित । शमन द्रव्य उसे कहते है जो कुपित दोषों को शान्त करे। कोपन दव्य उसे कहते हैं जो दोषों को कुपित करे। स्वस्थहित द्रव्य वह है जो दोषों को समावस्था में बनाये रक्खे। ये द्रव्य तीनों दोषों पर प्रभाव डालते हैं और उन्हें प्रतिकूल नहीं होने देते। शमन और कोपन ये दोनों पुनः दोष के अनुसार तीन-तीन भागों में विभक्त हो जाते हैं यथा वातसंशमन, पित्तसंशमन और कफसंशमन; वातकोपन, पित्तकोपन और कफकोपन।


१. वातसंशमन

देवदारु, कुष्ठ, हरिद्रा, वरुण, मेषशृङ्गी, बला, अतिबला, आर्तगल, शल्लकी, वीरतरु, सहचर, अग्निमन्थ, गुडूची, एरण्ड, पाषाणभेद, अर्क, अलर्क, शतावरी, पुनर्नवा, भाङ्गीं, कार्पासी, वृश्चिकाली, बदर, यव, कोल, कुलत्थ आदि तथा विदारिगन्धादि और दशमूल गण।२ सामायन्तः स्निग्ध, गुरु, स्थूल, स्थिर, पिच्छिल और श्लक्ष्ण गुणवाले, मधुर, अम्ल, लवणरसयुक्त; मधुरविपाक तथा उष्णवीर्य द्रव्य वातसंशमन होते हैं।

२. पित्तसंशमन

चन्दन, रक्तचन्दन, हीबेर, उशीर, मञ्जिष्ठा, क्षीरविदारी, विदारी, शतावरी, गुन्द्रा, शैवाल, कहार, कुमुद, उत्पल, कन्दली, दूर्वा, मूर्वा आदि तथा काकोल्यादि, सारिवादि, अञ्जनादि, उत्पलादि, न्यग्रोधादि और तृणपञ्चमूल गण। सामान्यतः रूक्ष, मृदु, सान्द्र, स्थिर गुणों से युक्त, कषाय, मधुर और तिक्तरसयुक्त; मधुरविपाक तथा शीतवीर्य द्रव्य पितसंशमन होते हैं।

३. कफसंशमन

कालेयक, अगुरु, तिलपर्णी, कुष्ठ, हरिद्रा, कर्पूर, शतपुष्पा, सरल, रास्ना, करजञ्जद्वय, इङ्गुदी, जाती, काकादनी, लाङ्गली, हस्तिकर्ण आदि तथा कण्टकपञ्चमूल, पिप्पल्यादि, बृहत्यादि, मुष्ककादि, वचादि, सुरसादि और आरग्वधादि गण। सामान्यतः लघु, तीक्ष्ण, रूक्ष, सर, विशदगुणयुक्त; कटु, तिक्त, कषायरसयुक्त'; कटुविपाक; उष्णवीर्य द्रव्य कफसंशमन होते हैं।

... क्रमशः...

........ अनवरत, प्रामाणिक और अनुभूत लेखों.(@ayurved27) की इस श्रंखला मे द्रव्यों के शमन, कोपन गुण श्रंखला का प्रथम भाग पूर्ण हुआ। इसके द्वितीय भाग में बात पित्त और कफ कोपन द्रव्यों के विषय में बताने का प्रयास रहेगा...

....... प्रसन्न रहें , आनंदित रहें !  ............ ॐ


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ॐ 🚩


ब्रह्मचर्यहीन मनुष्य दुर्बलेन्द्रिय व निर्बुद्धि होता है, ऐसा मनुष्य गृहस्थाश्रम धारण करने के अयोग्य होता है...
.. ॐ 🚩


प्रश्न
राजीव जी: खाने के बाद सांस लेने में दिक्कत होती है।डॉक्टर ने लीवर में सूजन बताई है।कोई आयुर्वेद चिकित्सा बताए। रोगी का नाम अनीता बरेली उत्तर प्रदेश, उम्र 30 वर्ष पिछले एक महीने से समस्या है।एलोपैथी दवा ली है।

लक्षण:
ऐसी स्थिति में रोगी के लक्षण कुछ पेट तना हुआ रहता है थोड़े भोजन करने पर भी पेट भरा सा लगता है और पेट फूल जाता है हर समय वेदना रहती है मुख का स्वाद फीका , कब्ज, परिश्रम करने अथवा चलने फिरने से वेदना बढ़ती है शूल वामन शरीर का वर्णन श्वेत पीला होने लगता है। कभी-कभी रात्रि समय ज्वार भी आता है यकृत बढ़ने पर मूत्र का रंग पीला होने लगता है दाएं कंधे में वेदना तथा जिभ्या पर हरी पीली श्वेत रंग की पट्टी दिखाई देने लगती है।

विशिष्ट कारण
इसके विभिन्न कारण हो सकते हैं किंतु आधुनिक काल में टाइफाइड, मलेरिया अथवा किसी अन्य ज्वर के बाद दवाओं के दुष्प्रभाव, आहार विकृति के कारण भी यह दोष उत्पन्न होने लगता है। जांच कराने पर यकृत दोष होते हुए भी लक्षित न होना भी देखा जा सकता है।

फलतः ऊपर बताए लक्षणों के साथ वैद्यगणों को ध्यान रखकर उपचार करना उचित होता है।

सावधानी एवं उपचार
👉प्रातः भोजन के बाद कुमारी आसव और अमृतारिष्ट दो दो चम्मच मिलाकर उसमें तीन चम्मच पानी मिलकर सेवन करना चाहिए
👉 सायं भोजन के बाद लोहासव और पुनर्नवासव दो-दो चम्मच की मात्रा में बराबर पानी मिलाकर सेवन करना चाहिए।

👉 भोजन में पपीता मूली अंजीर अनार अंगूर सेब (छिलाहुआ) नाशपाती हरी सब्जियां ताजा फल मूंग की दाल खिचड़ी दलिया अरहर की दाल का सेवन करना चाहिए।

👉 गुड तेल आलू गरिष्ठ भोजन मांस अंडा मछली मधुर एवं स्निग्ध आहार उड़द अरबी कचालू भिंडी गरम मसाला लाल मिर्च बैंगन भैंस का (दूध दही मक्खन) , प्याज चाय कॉफी गर्म पानी अधिक ठंडा फ्रिज का पानी या भोजन नहीं लेना चाहिए।

👉 दिनचर्या पालन https://t.me/ayurved27/15 का प्रयास करें और 15 दिन बाद स्थिति बताएं ।

#विशेष... आधुनिक औषधियों के साथ 30 मिनट का अंतराल रखना चाहिए। वैद्यकीय देखरेख में ही प्रयोग करें अन्यथा नहीं।

प्रसन्न रहें.... स्वस्थ रहें.... ॐ


महा औषधि
नव वर्ष पर मंगल मुहूर्त में 7 नीम की पत्तियां, 5 तुलसी की पत्तियां और 4 कालीमिर्च धोकर चटनी की तरह पीसें और गोली बनाकर प्रातः खाली पेट सेवन करें। पूरे वर्ष आनंदित रहें।
https://www.instagram.com/reel/C5grIivopws/?igsh=cWIyb3RnZ252N253


यत्र ब्रह्म च क्षत्रं च
सम्यञ्चौ चरतः सह।
तल्लोकं पुण्यं प्रज्ञेषं
यत्र देवाः सहाग्निना।।
(यजुर्वेद - २०/२५)

अर्थात् - जहां ब्रह्म तेज और क्षात्र तेज सम्यक रूप से साथ रहते हैं, जहां देवगण अग्नि के साथ रहते हैं वही पुण्य प्रदेश है, ऐसा जानो।

वासंतिक नवरात्र और नव वर्ष की अनेकशः शुभकामनाएं व मंगलकामनाएं 🙏




प्रमुखतः हाइड्रोसील और वैरिकोसेले दोनों रोगों में पुरुष रोगी को अंडकोश की सूजन होती है, लेकिन मूल रूप से दोनों ही अलग अलग समस्याएं हैं। इसको समझें...

हाइड्रोसील - अंडकोष के आसपास के ऊतकों में और उसके नीचे पानी जैसा तरल पदार्थ जमा होने के कारण अंडकोश का आकार बढ़ जाता है और सूजन की स्थिति हो जाती है। एक एक सौम्य और अल्पकालिक स्थिति है। किंतु यह शैशवावस्था में अथवा वृद्ध पुरुषों में भी हो सकती है। सूजन या संक्रमण इसके प्रमुख कारण माने जाते हैं।

वैरिकोसेल - अंडकोश के भीतर बढ़ी हुई, वैरिकाज़ नसें (वैरिकाज़ नसों के समान जो कुछ वयस्कों के पैरों में विकसित पाई जाती हैं)। वैरिकोसेले के कारण प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो (कम हो) सकती है।

इनके प्रकार, लक्षण और कारणों पर तो जानकारी सार्वजनिक रूप से सामान्यतः उपलब्ध है आसानी से मिल जाती है। इसलिए परीक्षण और उपचार की बात करते हैं।

परीक्षण हेतु व्यक्ति को सीधे खड़ा करके अंडकोष को कुछ दबा कर देखना चाहिए क्योंकि लेटकर नसों का ठीक पता नहीं लगता है। साथ ही अल्ट्रासाउंड कराने से (स्कॉर्टम, पेल्विस) ठीक स्थिति का अनुमान हो जाता है। किंतु जब रोगी की प्रजनन स्वास्थ्य की स्थिति को समझना आवश्यक हो तो वीर्य और रक्त परीक्षण द्वारा गंभीरता का ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए।


आधुनिक चिकित्सा पद्धति में शल्य क्रिया , लेप्रोस्कोपिक , माइक्रोस्कोपिक शल्य चिकित्सा आदि ही दोनों समस्याओं का उत्तम उपचार माना जाता है। वेरीकोसेल में कुछ संस्थान इसे एंबोलाइजेशन द्वारा भी उपचारित करते हैं। जो कि एक विशेष प्रकार की किन्तु शल्य चिकित्सक द्वारा की जाने वाली इनसे मिलती जुलती प्रक्रिया है।

वैसे तो अनेक उपचार होम्योपैथी, सुजोक और आयुर्वेद चिकित्सा में प्रभावी रूप से लाभकारी सिद्ध होते हैं। यहां 3 विधियां इस प्रकार से है...

👉जीरा और अजवायन बराबर मात्रा में पीस कर शहद में मिलाकर लेप करना, 15 20 मिनट बाद सामान्य जल से धो लें। प्रतिदिन एक बार करना।

👉नीला बैंगन भूनकर भर्ता बनाकर थोड़ी मात्रा में (5 ग्राम) पिसी हुई फिटकरी डालकर, गुनगुना ही हल्का बांध कर रातभर रखें।

👉 वृद्धिवादिका वटी और आरोग्यवर्धिनी वटी का सेवन 2 2 प्रातः सायं भोजन उपरांत सामान्य जल से करना।

पथ्यापथ्य
👉अधिक समय तक खड़े नही रहना, अधिक व्यायाम नहीं करना
👉सुपाच्य भोजन लेना और पैक्ड फूड शराब नमकीन चीनी दूध चावल गर्म पानी से बचना चाहिए।

👉पथ्य रूप से चुकंदर एवोकाडो पपीता आदि फलों का सेवन लाभकारी होता है।

ऐसा 3 दिन से अधिक स्वेच्छा से नहीं करें , वैद्यकीय देखरेख में ही करें।


........ अनवरत, प्रामाणिक और अनुभूत लेखों की इस श्रंखला मे **पानी भरना, अंडकोष वृद्धि, हाइड्रोसेल तथा वेरीकोसेल और उसके प्रमुख जानकारी, उपचार और पथ्यापथ्य विषय पर इतना ही ..... लेख संग्रह (@ayurved27 पर) अगले लेख मे किसी अन्य विषय पर पुनः .........

....... प्रसन्न रहें , आनंदित रहें ! ............ ॐ


तृणाग्निं भ्रष्टार्थ पक्वशमी धान्य होलक: (शब्द कल्पद्रुम कोष) अर्धपक्वशमी धान्यैस्तृण भ्रष्टैश्च होलक: होलकोऽल्पानिलो मेद: कफ दोष श्रमापह। ... भाव प्रकाश

अर्थात्―तिनके की अग्नि में भुने हुए (अधपके) शमो-धान्य (फली वाले अन्न) को होलक कहते हैं। यह होलक वात-पित्त-कफ तथा श्रम के दोषों का शमन करता है।


आर्युवेद लेख संग्रह (@ayurved27 ) और हमारे परिवार की ओर से वासन्ती नवसस्येष्ठि पर्व (होली ) की आप सभी भाईयों, बहनों,मित्रों को सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं .... ॐ

🌹🌺🌺🌼🌸💥🥀🌻☘🧘‍♂


घुटनों और जोड़ों की समस्याएं अनेक कारणों से होती हैं और प्रकार भी अलग अलग है। सामान्य रूप से इस समस्या पर यह जानकारी दी गई थी और अनेक सदस्यों द्वारा प्रयोग करके लाभ प्राप्त भी हुआ। इस उपचार के साथ कुछ सरल प्रक्रिया और भी की जा सकती है, जिसे बताने का प्रयास करते हैं।

विभिन्न वात (जैसे संधिवात आदि ) कारणों से होने वाली समस्या में https://t.me/ayurved27/61

वैसे घुटने में दर्द कई प्रकार से होता है जैसे उपर की कटोरी में दर्द,  घुटने के पीछे की नसों में दर्द, घुटने के साइड में दर्द आदि... इसके अतिरिक्त अलग अलग कारणों से यह दर्द हो सकते हैं।

दशांग लेप का बाह्य प्रयोग उपरोक्त सभी प्रकार के लिए उपयुक्त है। किंतु पूर्ण लाभ हेतु अन्य उपचार भी दर्द के प्रकार अनुसार अवश्य कर लेना चाहिए। जिसमें...

कैल्शियम की कमी है तो पीपल वृक्ष की छाया में कुछ घंटे प्रतिदिन बैठ धूप सेकना चाहिए।

यूरिक एसिड बढ़ रहा है तो उसका उपचार (किडनी शोधन) पहले कर लेना चाहिए।

पेट साफ रखना आवश्यक है अन्यथा लाभ नहीं मिल पाता है।

इसके साथ साथ
👉मैथी सोंठ और नागरमोथा का समभाग, कपड़छन चूर्ण; 2 2चम्मच प्रातः सायं गौ दुग्ध के अनुपान से
👉 किसी भी दर्द निवारक मलहम का भी बाह्य प्रयोग करना चाहिए। कुछ न हो तो संबंधित पोस्ट में बताए अनुसार एरंड तेल का प्रयोग और सिकाई करके लाभ हो जाता है, अन्य उपचार के साथ कुछ समय तक करते रहें।

ध्यान रखें कि पेट साफ रखना चाहिए और जहां तक संभव हो दिनचर्या पालन https://t.me/ayurved27/15 करते रहें।

लेख संग्रह @ayurved27 के सदस्य व्यक्ति यदि मात्रा, विधि का ज्ञान और आयुर्वेद चिकित्सा के प्रयोग में उचित अनुभव नहीं रखते हैं वे किसी वैद्य के सानिध्य में ही प्रयोग करें अन्यथा नहीं

ॐ 🚩


कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन ।
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन ॥

शशि हिमकरो राजा द्विजराजो निशाकरः।
आत्रेय इन्दुः शीतांशुरोषधीशः कलानिधिः।।

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं 🚩


........ अनवरत, प्रामाणिक और अनुभूत लेखों की इस श्रंखला मे पुरुष बांझपन और उसके प्रमुख कारण, औषधियाँ, पथ्यापथ्य और योगयुक्त दिनचर्या विषय पर इतना ही ..... लेख संग्रह (@ayurved27 पर) अगले लेख मे किसी अन्य विषय पर पुनः .........

....... प्रसन्न रहें , आनंदित रहें ! ............ ॐ


आयुर्वेद की इस अनवरत, प्रामाणिक और अनुभूत लेखों की इस श्रंखला मे लेख संग्रह (@ayurved27) पर आज के विषय ... पुरुष बांझपन और उसके प्रमुख कारण, औषधियाँ, पथ्यापथ्य और योगयुक्त दिनचर्या ......

लेख संग्रह (@ayurved27) के पूर्व लेख मे यौन विषय पर कुछ जानकारी https://t.me/ayurved27/264) पर केवल कपिकच्छु औषधि का उल्लेख किया गया था। आज 26 जनवरी 2024 की पूर्व संध्या पर पुरुष बांझपन (अर्थात Male infertility) की बात करेंगे। शोधकर्ताओं के अनुसार, पुरुष बांझपन की दर लगभग 23% है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में पिछले कुछ वर्षों से पुरुष बांझपन कि समस्या बढ़ रही है। इसके अनेक कारणो जैसे अंग पर चोट लगाना, शुक्राणु के वितरण मार्ग में रुकावट, जननांग पथ (Genital Tract)की चोट या संक्रमण आदि के अतिरिक्त एक प्रमुख कारण शुक्राणुओं की कमी, अयोग्य गुणवत्ता और उनके आकार आदि दोष हैं। धूम्रपान, अत्यधिक शराब का पीना, अयोग्य आहार का सेवन, कम व्यायाम, मोटापा, तनाव और कुछ रसायनों या कीटनाशकों के संपर्क में आना जहां प्रमुख बाहरी कारण हैं वहीं गंभीर रोग (बीमारियां), चोटें, पुरानी स्वास्थ्य समस्याएं और बदलती जीवनशैली पुरुष बांझपन की समस्याओं को बढ़ा सकती हैं।

इस समस्या की जांच के लिए आधुनिक चिकित्सा मे हार्मोन टेस्ट व जेनेटिक टेस्ट आदि किए जाते है। हमारी जीवन शैली ने हार्मोन के स्तर पर शरीर में असंतुलन बना दिया है, और यह असंतुलन कई बार दवा और सहायक विधियो द्वारा पूरा किया जा सकता है। दूसरी ओर स्पर्म की कमी का एक कारणअनुवाँशिक भी कहा जाता है, अतः ये जांच जरूरी है कि सारे हार्मोन सही मात्रा में बन रहे हैं। जांच के नाम टेस्टिक्युलर बायोप्सी,अंडकोष का अल्ट्रासाउंड, ट्रांसरेक्टल अल्ट्रासाउंड टेस्ट,इजैक्युलेशन के बाद यूरिन की जांच, शुक्राणु रोधक एंटीबॉडी परीक्षण, शुक्राणु के विशेष कार्य का परीक्षण आदि आदि ...

आयुर्वेद में शुक्राणु अर्थात स्पर्म बढ़ाने वाली 27 औषधियों (जड़ी बूटी, रस, भस्म, मुरब्बे आदि) का विवरण अष्टांग हृदय और भेषज्य रत्नाकर ग्रंथों में मिलता है। जिनमे से अश्वगंधा (विथानिया सोमनीफेरा) , शिलाजीत , कपिकच्छू (मुकुना प्रुरिएन्स) , गोक्षुरा (ट्रिब्युलस टेरेस्ट्रिस) , सफ़ेद मूसली (क्लोरोफाइटम बोरिविलियनम), विदारी कांडा (पुएरिएरिया ट्यूबरोसा), यष्टिमधु (नद्यपान जड़), जीवंती (लेप्टाडेनिया रेटिकुलाटा), कोकिलाक्ष (हाइग्रोफिला ऑरिकुलता), सलाबमिश्री (ऑर्किस मस्कुला), बाला (सिडा कॉर्डिफोलिया), वृद्दारू (आर्गीरिया स्पीसीओसा), क्षीरा विदारी (पुएरिएरिया ट्यूबरोसा), शतावरी (शतावरी रेसमोसस), आमलकी, हरीतकी (टर्मिनलिया चेबुला), बिभीतकी (टर्मिनलिया बेलिरिका) आदि प्रमुख हैं। एकल औषधि के स्थान पर स्वर्ण माक्षिक भस्म, त्रिवनाग भस्म, अभ्रक शतपुटी, कुटकुटांतवाक भस्म, आंवला मुरब्बा, छुहारा, शिलाजीत, गुगल, सफेद मूसली और सहस्त्र वीर्या इत्यादी द्रव्यों से निर्मित योग का यदि 6 माह पथ्य पूर्वक , नियमित प्रयोग किया जाए तो शुक्राणु की मात्रा में उत्तम लाभकारी परिवर्तन हो जाता है।

शुक्राणु और उनकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पथ्य आहार
अनाज: मक्का, बाजरा, पुराना चावल, गेहूं, रागी, जई,
दाल: सोयाबीन, मूंग, मसूर दाल, अरहर, उड़द, चना
फल एवं सब्जियां: लौकी, तोरई, परवल, करेला, कददू, गाजर, चकुंदर, ब्रोकली, पत्तागोभी, बादाम, खजूर, आम, अंगूर, अखरोट, कददू के बीज, अंजीर, करोंदा, अनार
अन्य: गोक्षुर, गिलोय, त्रिफला, अजवाइन, धनिया, हल्दी, नारियल, आंवला, यस्टिमधु, मूंगफली, मखाना, कस्तूरी, डार्क चॉकलेट, खजूर, किशमिश, मिश्री

शुक्राणु और उनकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अपथ्य आहार
अनाज: नए चावल, मैदा, देर में चबने वाले पदार्थ
गरिष्ठ दाल: राजमा, छोले
पूर्ण निषेध: तैलीय मसालेदार भोजन, मांसहार और मांसाहार सूप, अचार, अधिक तेल, अधिक नमक, कोल्डड्रिंक्स, मैदे वाले पर्दाथ, शराब, फास्टफूड, सॉफ्टडिंक्स, जंक फ़ूड, बाजार के खाद्य पदार्थ, अन्य: ठण्डा व जलन पैदा करने वाला भोजन, देर से पचने वाला भोजन, दही, विरुद्ध आहार, तैलीय, अचार, तैल, घी, कोल्डड्रिंक, बेकरी प्रोडक्ट, डिब्बा बंद भोज्य पदार्थ, जंक फ़ूड

आदर्श दिनचर्या (https://t.me/ayurved27/15) मे योग प्राणायाम एवं ध्यान, भस्त्रिका, कपालभांति, बाह्यप्राणायाम, अनुलोम विलोम, भ्रामरी, उदगीथ, उज्जायी, प्रनव जप तथा आसन गोमुखासन, बज्रासन, कन्धरासन, पश्चिमोत्तानासन, हलासन, सर्वांगासन भी जोड़ लेना चाहिए। साथ ही ध्यान रखें कि अति भोजन , अति व्यायाम और क्रोथ, भय, चिंता आदि निषेध है ।


आभार प्रकट करने का दिन
पंजाब, बिहार व तमिलनाडु में यह समय फ़सल काटने का होता है। कृषक मकर संक्रान्ति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। पके हुए गेहूँ और धान को स्वर्णिम आभा उनके अथक मेहनत और प्रयास का ही फल होती है और यह सम्भव होता है, भगवान व प्रकृति के आशीर्वाद से। विभिन्न परम्पराओं व रीति–रिवाज़ों के अनुरूप पंजाब एवं जम्मू–कश्मीर में"लोहड़ी" नाम से "मकर संक्रान्ति" पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज एक दिन पूर्व ही मकर संक्रान्ति को "लाल लोही" के रूप में मनाता है। तमिलनाडु में मकर संक्रान्ति पोंगल के नाम से मनाया जाता है, तो उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी के नाम से मकर संक्रान्ति मनाया जाता है। इस दिन कहीं खिचड़ी तो कहीं चूड़ादही का भोजन किया जाता है तथा तिल के लड्डु बनाये जाते हैं। ये लड्डू मित्र व सगे सम्बन्धियों में बाँटें भी जाते हैं।

खिचड़ी संक्रान्ति
चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है।

पंजाब में लो़ढ़ी
मकर संक्रान्ति भारत के अन्य क्षेत्रों में भी धार्मिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पंजाब में इसे लो़ढ़ी कहते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में नई फ़सल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ गाँव के चौक पर उत्सवाग्नि के चारों ओर परम्परागत वेशभूषा में लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा का प्रदर्शन करते हैं। स्त्रियाँ इस अवसर पर अपनी हथेलियों और पाँवों पर आकर्षक आकृतियों में मेहन्दी रचती हैं।

बंगाल में मकर-सक्रांति
पश्चिम बंगाल में मकर सक्रांति के दिन देश भर के तीर्थयात्री गंगासागर द्वीप पर एकत्र होते हैं , जहाँ गंगा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। एक धार्मिक मेला, जिसे गंगासागर मेला कहते हैं, इस समारोह की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस संगम पर डुबकी लगाने से सारा पाप धुल जाता है।

कर्नाटक में मकर-सक्रांति
कर्नाटक में भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाता है। बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। नये परिधान में सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल और भुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पंतगबाज़ी इस अवसर का लोकप्रिय परम्परागत खेल है।

गुजरात में मकर-सक्रांति
गुजरात का क्षितिज भी संक्रान्ति के अवसर पर रंगबिरंगी पंतगों से भर जाता है। गुजराती लोग संक्रान्ति को एक शुभ दिवस मानते हैं और इस अवसर पर छात्रों को छात्रवृतियाँ और पुरस्कार बाँटते हैं।

केरल में मकर-सक्रांति
केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा ‘मकर ज्योति’ दिखाई पड़ती है।
✍🏻साभार


आभार प्रकट करने का दिन
पंजाब, बिहार व तमिलनाडु में यह समय फ़सल काटने का होता है। कृषक मकर संक्रान्ति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। पके हुए गेहूँ और धान को स्वर्णिम आभा उनके अथक मेहनत और प्रयास का ही फल होती है और यह सम्भव होता है, भगवान व प्रकृति के आशीर्वाद से। विभिन्न परम्पराओं व रीति–रिवाज़ों के अनुरूप पंजाब एवं जम्मू–कश्मीर मेंअभी मकर रेखा पर यानी ऑस्ट्रेलिया और आर्जेंटीना आदि में भगवान भास्कर एकदम बीचोबीच आकाश में सिर के ऊपर चमक रहे होंगे । मकर संक्रांति के बाद धीरे धीरे सूर्योदय उत्तर की ओर खिसकेगा और वहाँ आदमी की परछाईं तिरछी होती जायेगी । सूर्य की सीधी खड़ी किरणें अपने साथ गर्मी का मौसम लेकर चलती हैं । अब मकर रेखा से सूर्य की यात्रा उत्तर में अर्थात् भारत में कर्क रेखा की ओर चल पड़ी है ।
भारत के लिये सूर्य का उत्तरायण में आना बहुत ही महत्वपूर्ण घटना होती है । भारतीय प्रायद्वीप की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण सूर्य की यात्रा जब कर्क रेखा के आस पास पहुँच कर अपनी सीधी किरणों से पूरे प्रायद्वीप को तप्त कर देती है तब हिंद महासागर से तेज़ हवायें अपने साथ वर्षाजल से भरे मेघों को लेकर भारतभूमि को तृप्त करने निकल पड़ती हैं । इस दक्षिण पश्चिमी मानसून का एक भाग पश्चिमी घाट के सहारे केरल से गुजरात तक पश्चिम भारत को भिगोता है तो दूसरा भाग बंगाल खाड़ी पार करता हुआ हिमालय के दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग को जीवन प्रदान करता है ।

हिमालय के बर्फ से भरे हुये हिमनद , उत्तर भारत की सदानीरा नदियाँ और प्रायद्वीप का फसल चक्र सब सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते हैं और इन्हीं सब पर भारतीय सभ्यता टिकी है । इसीलिये प्राचीन काल से ही मकर संक्राति का भारत में अत्यधिक महत्व रहा है । उत्तराखंड में तो उत्तरायणी एक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है । देश भर में कहीं पोंगल कहीं बिहू कहीं लोहड़ी कहीं खिचड़ी के रूप में इस संक्रांति का जोर शोर से स्वागत होता है । भारत में सूर्य की गति का इतना महत्व होने के कारण ही सौर वर्ष के आधार पर पंचांग और संवत्सर आदि विकसित हुए । यूँ तो मॉनसूनी वर्षा पश्चिम अफ्रीका, मेक्सिको और दक्षिण पूर्व एशिया में भी होती है लेकिन भारत में मॉनसून और हिमालय मिल कर एक विशेष जलवायु को जन्म देते हैं । और यह सब संभव होता है खरमास की शीतलता से निकल कर सूर्य के पुन: देदीप्यमान हो कर कर्क राशि को संचरण के कारण ।

ॐ विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परासुव ।
यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥

मकर संक्रांति की आप सभी को ढेरों शुभकामनायें

✍🏻राजकमल गोस्वामी

संस्कृत प्रार्थना के अनुसार "हे सूर्यदेव, आपका दण्डवत प्रणाम, आप ही इस जगत की आँखें हो। आप सारे संसार के आरम्भ का मूल हो, उसके जीवन व नाश का कारण भी आप ही हो।" सूर्य का प्रकाश जीवन का प्रतीक है। चन्द्रमा भी सूर्य के प्रकाश से आलोकित है। वैदिक युग में सूर्योपासना दिन में तीन बार की जाती थी। पितामह भीष्म ने भी सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपना प्राणत्याग किया था। हमारे मनीषी इस समय को बहुत ही श्रेष्ठ मानते हैं। इस अवसर पर लोग पवित्र नदियों एवं तीर्थस्थलों पर स्नान कर आदिदेव भगवान सूर्य से जीवन में सुख व समृद्धि हेतु प्रार्थना व याचना करते हैं।
रंग-बिरंगा त्योहार मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष जनवरी महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परम्परा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी खाई जाती है। गुड़–तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है।

माघ मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को 'मकर संक्रान्ति' पर्व मनाया जाता है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को "सौर वर्ष" कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना "क्रान्तिचक्र" कहलाता है। इस "परिधि चक्र" को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना "संक्रान्ति" कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकरसंक्रान्ति" कहते हैं।
सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था । इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्रायः 14 जनवरी को पड़ती है।


वर्ष में 12 संक्रांतियां पड़ती हैं किंतु मकर संक्रांति का इतना महत्व क्यों है?

अभी मकर रेखा पर अर्थात् ऑस्ट्रेलिया और आर्जेंटीना आदि में भगवान भास्कर एकदम बीचोबीच आकाश में सिर के ऊपर चमक रहे होंगे । मकर संक्रांति के बाद धीरे धीरे सूर्योदय उत्तर की ओर खिसकेगा और वहाँ आदमी की परछाईं तिरछी होती जायेगी । सूर्य की सीधी खड़ी किरणें अपने साथ गर्मी का मौसम लेकर चलती हैं । अब मकर रेखा से सूर्य की यात्रा उत्तर में अर्थात् भारत में कर्क रेखा की ओर चल पड़ी है ।
भारत के लिये सूर्य का उत्तरायण में आना बहुत ही महत्वपूर्ण घटना होती है । भारतीय प्रायद्वीप की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण सूर्य की यात्रा जब कर्क रेखा के आस पास पहुँच कर अपनी सीधी किरणों से पूरे प्रायद्वीप को तप्त कर देती है तब हिंद महासागर से तेज़ हवायें अपने साथ वर्षाजल से भरे मेघों को लेकर भारतभूमि को तृप्त करने निकल पड़ती हैं । इस दक्षिण पश्चिमी मानसून का एक भाग पश्चिमी घाट के सहारे केरल से गुजरात तक पश्चिम भारत को भिगोता है तो दूसरा भाग बंगाल खाड़ी पार करता हुआ हिमालय के दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग को जीवन प्रदान करता है ।

हिमालय के बर्फ से भरे हुये हिमनद , उत्तर भारत की सदानीरा नदियाँ और प्रायद्वीप का फसल चक्र सब सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते हैं और इन्हीं सब पर भारतीय सभ्यता टिकी है । इसीलिये प्राचीन काल से ही मकर संक्राति का भारत में अत्यधिक महत्व रहा है । उत्तराखंड में तो उत्तरायणी एक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है । देश भर में कहीं पोंगल कहीं बिहू कहीं लोहड़ी कहीं खिचड़ी के रूप में इस संक्रांति का जोर शोर से स्वागत होता है । भारत में सूर्य की गति का इतना महत्व होने के कारण ही सौर वर्ष के आधार पर पंचांग और संवत्सर आदि विकसित हुए । यूँ तो मॉनसूनी वर्षा पश्चिम अफ्रीका, मेक्सिको और दक्षिण पूर्व एशिया में भी होती है लेकिन भारत में मॉनसून और हिमालय मिल कर एक विशेष जलवायु को जन्म देते हैं । और यह सब संभव होता है खरमास की शीतलता से निकल कर सूर्य के पुन: देदीप्यमान हो कर कर्क राशि को संचरण के कारण ।

ॐ विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परासुव ।
यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥
मकर संक्रांति की आप सभी को ढेरों शुभकामनायें। ✍🏻राजकमल गोस्वामी

संस्कृत प्रार्थना के अनुसार "हे सूर्यदेव, आपका दण्डवत प्रणाम, आप ही इस जगत की आँखें हो। आप सारे संसार के आरम्भ का मूल हो, उसके जीवन व नाश का कारण भी आप ही हो।" सूर्य का प्रकाश जीवन का प्रतीक है। चन्द्रमा भी सूर्य के प्रकाश से आलोकित है। वैदिक युग में सूर्योपासना दिन में तीन बार की जाती थी। पितामह भीष्म ने भी सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपना प्राणत्याग किया था। हमारे मनीषी इस समय को बहुत ही श्रेष्ठ मानते हैं। इस अवसर पर लोग पवित्र नदियों एवं तीर्थस्थलों पर स्नान कर आदिदेव भगवान सूर्य से जीवन में सुख व समृद्धि हेतु प्रार्थना व याचना करते हैं।
रंग-बिरंगा त्योहार मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष जनवरी महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परम्परा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी खाई जाती है। गुड़–तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है।

माघ मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को 'मकर संक्रान्ति' पर्व मनाया जाता है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को "सौर वर्ष" कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना "क्रान्तिचक्र" कहलाता है। इस "परिधि चक्र" को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना "संक्रान्ति" कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकरसंक्रान्ति" कहते हैं।
सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था । इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्रायः 14 जनवरी को पड़ती है।


कोरोना महामारी के समय भारत वर्ष में फैली दुखद स्थिति में यह चैनल प्रारंभ करने का उद्देश्य आयुर्वेद चिकित्सा संबंधी जानकारी और विस्तृत, सटीक विश्लेषण के साथ लोगों में जीवन आशा और विश्वास को जाग्रत रखने का एक गिलहरी प्रयास मात्र था जिसे महामारी के बाद बंद करने का विचार था। किन्तु 200 लोगों से प्रारंभ हुए इस चैनल को आपने जो सम्मान, हार्दिक सहयोग और समर्थन प्रदान किया है इसके लिए आप सभी का सपरिवार, सहृदय आभार। आपके द्वारा अन्य लोगों को जोड़ते रहने और उत्साह वर्धन करके हमें बार बार प्रेरित किया जिसके फलस्वरूप आज लेख संग्रह @ayurved27 में सामान्य
कब्ज गैस एसिडिटी https://t.me/ayurved27/92

से लेकर

स्त्रीरोग https://t.me/ayurved27/303

पुरुष रोग https://t.me/ayurved27/97

विष चिकित्सा https://t.me/ayurved27/360


आदि अनेक विषयों पर लेख उपलब्ध हैं जिसमें
मधुमेह पर तो पुनः पुनः 3 चरणों में मधुमेही की विशेष दिनचर्या भोजन आदि विषय पर भी विस्तृत वर्णन प्रेषित हुआ है।

आशा है भविष्य में भी आप इसी प्रकार इस चैनल के माध्यम से लाभान्वित होंगे और इसका प्रचार प्रसार समाज हित में स्वेच्छा से करते रहेंगे।

शुभ रात्रि एवं पाश्चात्य नव वर्ष की मंगलकामनाओं के साथ

...ॐ

https://t.me/ayurved27?boost


आज पाश्चात्य नव वर्ष 2024 से पूर्व कान के रोग विषय पर कुछ जानकारी...

कान का दर्द:- लहसुन की दो कली लेकर उनका छिलका और झिल्ली निकाल दें। दो चम्मच सरसों के तेल में इन्हें डालकर गरम करें। जब लहसुन की कली काली पड़ने लगे तो तेल को आँच पर से उतार कपड़े में छान लें। इस गुनगुने तेल को ड्रापर की सहायता से या रूई की सहायता से कान में दो-चार बूँद डालें। कान का दर्द दूर हो जाता है।

यदि कान में कीड़ा चला गया हो तो वह इस गुनगुने तेल से मर जाता है अथवा/और बाहर निकल जाता है।

कान का बहना:- सरसों के तेल में दो कली लहसुन की और दस-पन्द्रह पत्ती नीम की लेकर गरम करें। तेल को छानकर गुनगुना करके ड्रापर से दो-चार बूँद कान में डाल दें। यह क्रिया एक सप्ताह तक करें। कान का बहना या कान का जख्म ठीक हो जाता है।

इसके अतिरिक्त प्याज के रस को थोड़ा सा गरम करके कान में डालने से कान का दर्द तेजी से आराम हो जाता है।

विशेषः-कान में शायं-शायं की आवाज या भिनभिनाहट या कान से ऊँचा सुनने की स्थिति में भी उपरोक्त तेल को डालने से लाभ होता है।

अन्य कोई विकल्प उपलब्ध नहीं हो तो दर्द के स्थान पर कान के ऊपर से ही केवल गर्म और ठंडी सिकाई करते रहना चाहिए।

....ॐ


राहुल आर्य जी का प्रश्न...

ॐ नमस्ते वैद्य जी,
मैं ये पूछना चाहता हु की क्या दवाओं के सेवन से जैसे (अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावर, कुंज बीज) वीर्य गाढ़ा होता है या जब तक दवा लेता हु, तब तक तो सही रहता है। लेकिन छोड़ने के बाद क्या फिर से वीर्य पहले जैसा हो जाता है।
कृपया बताए 🙏🙏

समाधान:
लक्षणों के उपचार का लाभ सेवन पर्यन्त ही रहता है (कुछ माह अधिक तक) बेटा, पूर्ण लाभ हेतु मूल रोग का उपचार(यौन उत्तेजना नियंत्रण, संभोग कला का ज्ञान, उत्तम औषधियों का पथ्य/अपथ्य के साथ सेवन और दिनचर्या पालन) आवश्यक है।


इस जिज्ञासा के संदर्भ में कुछ विचार साझा करते हैं। बहुतायत रोगों की उपचार पद्धति को 3 प्रकार से वर्गीकृत किए जा सकते हैं।

👉 आसुरी: शल्य चिकित्सा, त्वरित लाभ/ हानि , सामान्यतः रोग समूल नष्ट होना संभव नहीं होता है।
👉 मानवी: काष्ठ औषधियां, पथ्यापथ्य , सामायिक लाभ / अलाभ, रोग सामान्यतः पूर्ण नष्ट हो जाता है।
👉 दैवीय: भस्म औषधियां, त्वरित सामायिक लाभ/ हानि, रोग समूल नष्ट हो जाता है।

अनुभवी वैद्य/डॉक्टर, औषधियों की शुद्धता और उपलब्धता के साथ रोगी का तन मन धन से समर्पण भाव आवश्यक है। विशेषतः दैवीय चिकित्सा के लिए।

उपरोक्त तीनों की जानकारी संक्षिप्त रूप में है आशा है कि अनुभवी वैद्य @ayurved27 पर समझ जायेंगे।

... ॐ

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