आयुर्वेद की इस अनवरत, प्रामाणिक और अनुभूत लेखों की इस श्रंखला मे लेख संग्रह (
@ayurved27) पर आज के विषय ...
पुरुष बांझपन और उसके प्रमुख कारण, औषधियाँ, पथ्यापथ्य और योगयुक्त दिनचर्या ......
लेख संग्रह (
@ayurved27) के पूर्व लेख मे यौन विषय पर कुछ जानकारी
https://t.me/ayurved27/264) पर केवल कपिकच्छु औषधि का उल्लेख किया गया था। आज 26 जनवरी 2024 की पूर्व संध्या पर पुरुष बांझपन (अर्थात Male infertility) की बात करेंगे। शोधकर्ताओं के अनुसार, पुरुष बांझपन की दर लगभग 23% है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में पिछले कुछ वर्षों से पुरुष बांझपन कि समस्या बढ़ रही है। इसके अनेक कारणो जैसे अंग पर चोट लगाना, शुक्राणु के वितरण मार्ग में रुकावट, जननांग पथ (Genital Tract)की चोट या संक्रमण आदि के अतिरिक्त एक
प्रमुख कारण शुक्राणुओं की कमी, अयोग्य गुणवत्ता और उनके आकार आदि दोष हैं। धूम्रपान, अत्यधिक शराब का पीना, अयोग्य आहार का सेवन, कम व्यायाम, मोटापा, तनाव और कुछ रसायनों या कीटनाशकों के संपर्क में आना जहां प्रमुख बाहरी कारण हैं वहीं गंभीर रोग (बीमारियां), चोटें, पुरानी स्वास्थ्य समस्याएं और बदलती जीवनशैली पुरुष बांझपन की समस्याओं को बढ़ा सकती हैं।
इस समस्या की जांच के लिए आधुनिक चिकित्सा मे
हार्मोन टेस्ट व जेनेटिक टेस्ट आदि किए जाते है। हमारी जीवन शैली ने हार्मोन के स्तर पर शरीर में असंतुलन बना दिया है, और यह असंतुलन कई बार दवा और सहायक विधियो द्वारा पूरा किया जा सकता है। दूसरी ओर स्पर्म की कमी का एक कारणअनुवाँशिक भी कहा जाता है, अतः ये जांच जरूरी है कि सारे हार्मोन सही मात्रा में बन रहे हैं। जांच के नाम टेस्टिक्युलर बायोप्सी,अंडकोष का अल्ट्रासाउंड, ट्रांसरेक्टल अल्ट्रासाउंड टेस्ट,इजैक्युलेशन के बाद यूरिन की जांच, शुक्राणु रोधक एंटीबॉडी परीक्षण, शुक्राणु के विशेष कार्य का परीक्षण आदि आदि ...
आयुर्वेद में शुक्राणु अर्थात स्पर्म बढ़ाने वाली 27 औषधियों (जड़ी बूटी, रस, भस्म, मुरब्बे आदि) का विवरण अष्टांग हृदय और भेषज्य रत्नाकर ग्रंथों में मिलता है। जिनमे से अश्वगंधा (विथानिया सोमनीफेरा) , शिलाजीत , कपिकच्छू (मुकुना प्रुरिएन्स) , गोक्षुरा (ट्रिब्युलस टेरेस्ट्रिस) , सफ़ेद मूसली (क्लोरोफाइटम बोरिविलियनम), विदारी कांडा (पुएरिएरिया ट्यूबरोसा), यष्टिमधु (नद्यपान जड़), जीवंती (लेप्टाडेनिया रेटिकुलाटा), कोकिलाक्ष (हाइग्रोफिला ऑरिकुलता), सलाबमिश्री (ऑर्किस मस्कुला), बाला (सिडा कॉर्डिफोलिया), वृद्दारू (आर्गीरिया स्पीसीओसा), क्षीरा विदारी (पुएरिएरिया ट्यूबरोसा), शतावरी (शतावरी रेसमोसस), आमलकी, हरीतकी (टर्मिनलिया चेबुला), बिभीतकी (टर्मिनलिया बेलिरिका) आदि प्रमुख हैं। एकल औषधि के स्थान पर स्वर्ण माक्षिक भस्म, त्रिवनाग भस्म, अभ्रक शतपुटी, कुटकुटांतवाक भस्म, आंवला मुरब्बा, छुहारा, शिलाजीत, गुगल, सफेद मूसली और सहस्त्र वीर्या इत्यादी द्रव्यों से निर्मित योग का यदि 6 माह पथ्य पूर्वक , नियमित प्रयोग किया जाए तो शुक्राणु की मात्रा में उत्तम लाभकारी परिवर्तन हो जाता है।
शुक्राणु और उनकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पथ्य आहार अनाज: मक्का, बाजरा, पुराना चावल, गेहूं, रागी, जई,
दाल: सोयाबीन, मूंग, मसूर दाल, अरहर, उड़द, चना
फल एवं सब्जियां: लौकी, तोरई, परवल, करेला, कददू, गाजर, चकुंदर, ब्रोकली, पत्तागोभी, बादाम, खजूर, आम, अंगूर, अखरोट, कददू के बीज, अंजीर, करोंदा, अनार
अन्य: गोक्षुर, गिलोय, त्रिफला, अजवाइन, धनिया, हल्दी, नारियल, आंवला, यस्टिमधु, मूंगफली, मखाना, कस्तूरी, डार्क चॉकलेट, खजूर, किशमिश, मिश्री
शुक्राणु और उनकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अपथ्य आहार अनाज: नए चावल, मैदा, देर में चबने वाले पदार्थ
गरिष्ठ दाल: राजमा, छोले
पूर्ण निषेध: तैलीय मसालेदार भोजन, मांसहार और मांसाहार सूप, अचार, अधिक तेल, अधिक नमक, कोल्डड्रिंक्स, मैदे वाले पर्दाथ, शराब, फास्टफूड, सॉफ्टडिंक्स, जंक फ़ूड, बाजार के खाद्य पदार्थ, अन्य: ठण्डा व जलन पैदा करने वाला भोजन, देर से पचने वाला भोजन, दही, विरुद्ध आहार, तैलीय, अचार, तैल, घी, कोल्डड्रिंक, बेकरी प्रोडक्ट, डिब्बा बंद भोज्य पदार्थ, जंक फ़ूड
आदर्श दिनचर्या (
https://t.me/ayurved27/15) मे योग प्राणायाम एवं ध्यान, भस्त्रिका, कपालभांति, बाह्यप्राणायाम, अनुलोम विलोम, भ्रामरी, उदगीथ, उज्जायी, प्रनव जप तथा आसन गोमुखासन, बज्रासन, कन्धरासन, पश्चिमोत्तानासन, हलासन, सर्वांगासन भी जोड़ लेना चाहिए। साथ ही ध्यान रखें कि अति भोजन , अति व्यायाम और क्रोथ, भय, चिंता आदि निषेध है ।