मेरे कृष्ण के तो अवतार ही निराले हैं
पैरों में पायल, हाथों में बंसी,
मोर पंख संग बाल घुंघराले हैं
बचपन में यशोदा मैया को,
शरारतों से बहुत सताया था
जवानी में गोपिकाऔं को,
विरह की पीड़ा से रुलाया था
दो युगौं ने कृष्ण से प्रेम किया,
एक राधा थी, तो कलयुग में मीरा थी
पर दोनों ही प्रेमिकाओं ने,
एक दूसरे से ईर्ष्या ना की
मेरे कृष्ण के हाथों में सुदर्शन चक्र था,
तो मुख में गीता का ज्ञान
जिसे सुनने वाला अर्जुन जैसा योद्धा था,
और कहने वाला विष्णु जैसा भगवान।
आज भी किसी न किसी रूप में,
मेरा कान्हा मेरे संग है।
मेरी मां हो, मेरे बाबा हो,
हर रूप में कान्हा के रंग हैं।
राधेकृष्णा
पैरों में पायल, हाथों में बंसी,
मोर पंख संग बाल घुंघराले हैं
बचपन में यशोदा मैया को,
शरारतों से बहुत सताया था
जवानी में गोपिकाऔं को,
विरह की पीड़ा से रुलाया था
दो युगौं ने कृष्ण से प्रेम किया,
एक राधा थी, तो कलयुग में मीरा थी
पर दोनों ही प्रेमिकाओं ने,
एक दूसरे से ईर्ष्या ना की
मेरे कृष्ण के हाथों में सुदर्शन चक्र था,
तो मुख में गीता का ज्ञान
जिसे सुनने वाला अर्जुन जैसा योद्धा था,
और कहने वाला विष्णु जैसा भगवान।
आज भी किसी न किसी रूप में,
मेरा कान्हा मेरे संग है।
मेरी मां हो, मेरे बाबा हो,
हर रूप में कान्हा के रंग हैं।
राधेकृष्णा