Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)


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श्रीमद भगवद गीता

पहला अध्याय श्लोक ३

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्‌ ।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥ (३)

भावार्थ : हे आचार्य! पाण्डु पुत्रों की इस विशाल सेना को देखिए, जिसे आपके बुद्धिमान्‌ शिष्य द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न ने इतने कौशल से व्यूह के आकार में सजाया है। (३)

व्याख्या:

इस श्लोक में दुर्योधन की चिंता और पांडवों की सेना के प्रति उसकी गंभीरता स्पष्ट होती है। वह अपने गुरु द्रोणाचार्य का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता है कि पांडवों की सेना को एक सक्षम और बुद्धिमान योद्धा द्वारा व्यवस्थित किया गया है। यहाँ द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न का उल्लेख महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह द्रोणाचार्य का शिष्य होने के बावजूद पांडवों की ओर से युद्ध में भाग ले रहा है। यह दुर्योधन के मन में असुरक्षा और संदेह उत्पन्न करता है, क्योंकि उसे अपने ही गुरु के शिष्य द्वारा सजाई गई सेना का सामना करना है।

दुर्योधन की यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि युद्ध की स्थिति ने उसके मन में बेचैनी और भविष्य की अनिश्चितता को जन्म दिया है। वह जानता है कि पांडवों की सेना में न केवल संख्या में बल है, बल्कि उसकी संरचना और नेतृत्व में भी सामर्थ्य है। इस प्रकार, यह श्लोक महाभारत युद्ध के प्रारंभिक मनोवैज्ञानिक तनाव को दर्शाता है, जहाँ दुर्योधन की चिंता और सावधानी स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आती है।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506


🕉️हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
जय जय श्री राधे कृष्ण

क्या भगवान का अस्तित्व है? जब कोई भगवान को ढूंढता है या उनको जानना चाहता है और यह जानने की कोशिश करता है कि भगवान का अस्तित्व है तो कैसा है या है भी कि नहीं। कभी-कभी लोग यह भी कहते हैं कि भगवान तो है हीं नही!
फिर
यदि भगवान हैं, तो उनका स्वरूप क्या है? उनका आकार क्या है? क्या वे एक व्यक्ति हैं या वे अव्यक्त हैं? मनुष्य के मन में अनेक प्रकार के प्रश्न और शंकाएं उभरती रहती हैं।
इन सभी प्रश्नों का समाधान करने के लिए, स्वयं भगवान इस भौतिक धरातल पर अवतरित होते हैं और अपने बारे में सब जानकारी देते हैं।

और यह बात; भगवान के गीत या भगवद गीता के रूप में प्रस्तुत की गई है। भगवान अपने बारे में व्यक्तिगत रूप से बता रहे हैं और व्यक्तिगत रूप से कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि पर अर्जुन के साथ खड़े हैं।

और हाँ, आप भगवान को जान सकते हैं, आप उन्हें देख सकते हैं, उन्हें क्या पसंद है, वे कार्य कैसे करते हैं इत्यादि इत्यादि, यह सब भी जान सकते हैं। हमारे सभी संदेहों को दूर करने के लिए, भगवान हमें भगवत गीता के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान व निर्देश दे रहे हैं।

भगवद गीता एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है जैसा कि कई लोग समझते हैं, लेकिन यह मानव जाति के लिए एक निर्देश देने वाला ग्रंथ है, जिस तरह हर गैजेट के साथ एक ऑपरेटिंग मैन्यूल आता है, उसी तरह से भगवद गीता हमें सिखाती है कि हम कैसे संतोष व शांतिपूर्ण जीवन जी सकते हैं।

इसलिए गरूजन सारी मानव जाति से अनुरोध करते हैं कि सभी महानुभावों को भगवान के साथ अपने शाश्वत संबंध को जानने के लिए भगवद गीता पढ़ें, समझें और गीता के निर्देशों का पालन करें।


हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
जय जय श्री राधे कृष्ण

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506


कभी भी उन चीज़ों के बारे में न सोचें
जो ईश्वर से प्रार्थना करने के बाद भी
हमें नहीं मिला
बल्कि उन अनगिनत चीज़ों को देखें
जो बिना प्रार्थना के
ईश्वर ने हमें प्रदान किया है


हमारे जीवन की सभी समस्याओं
की वजह सिर्फ दो ही शब्द हैं :
▪जल्दी
▪देर

हम सपने बहुत जल्दी देखते हैं,
और कार्य बहुत देरी से करते हैं।

हम भरोसा बहुत जल्दी करते हैं,
और माफ करने में बहुत देर करते हैं।

हम गुस्सा बहुत जल्दी करते हैं,
और माफी बहुत देर से माँगते हैं।

हम हार बहुत जल्दी मानते हैं और
शुरुआत करने मे बहुत देर करते हैं।

हम रोने मे बहुत जल्दी करते हैं,
और मुस्कुराने मे बहुत देर करते हैं।

"जल्दी" बदले वरना,
बहुत "देर" हो जाएगी।


One who entertains fear finds himself lonely (and helpless).

जो भय का विचार करता है वह खुद को अकेला (और असहाय) पाता है.


भोजन

जो लोग ईर्ष्या, भय और क्रोधसे युक्त हैं तथा लोभी हैं, और रोग तथा दीनतासे पीड़ित और द्वेषयुक्त हैं, वे जिस भोजनको करते हैं, वह अच्छी तरह पचता नहीं अर्थात् उससे अजीर्ण हो जाता है । इसलिये मनुष्यको चाहिये कि वह भोजन करते समय मनको शान्त तथा प्रसन्न रखे । मनमें काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि दोषोंकी वृत्तियोंको न आने दे । यदि कभी आ जायँ तो उस समय भोजन न करे; क्योंकि वृत्तियोंका असर भोजनपर पड़ता है और उसीके अनुसार अन्तःकरण बनता है। ऐसा भी सुननेमें आया है कि फौजी लोग जब गायको दुहते हैं, तब दुहनेसे पहले बछड़ा छोड़ते हैं और उस बछड़ेके पीछे कुत्ता छोड़ते हैं । अपने बछड़ेके पीछे कुत्तेको देखकर जब गाय गुस्सेमें आ जाती है, तब बछड़ेको लाकर बाँध देते हैं और फिर गायको दुहते हैं । वह दूध फौजियोंको पिलाते हैं, जिससे वे लोग खूँखार बनते हैं ।

ऐसे ही दूधका भी असर प्राणियोंपर पड़ता है । एक बार किसीने परीक्षाके लिये कुछ घोड़ोंको भैंसका दूध और कुछ घोड़ोंको गायका दूध पिलाकर उन्हें तैयार किया । एक दिन सभी घोड़े कहीं जा रहे थे । रास्तेमें नदीका जल था । भैंसका दूध पीनेवाले घोड़े उस जलमें बैठ गये और गायका दूध पीनेवाले घोड़े उस जलको पार कर गये । इसी प्रकार बैल और भैंसेका परस्पर युद्ध कराया जाय तो भैंसा बैलको मार देगा; परन्तु यदि दोनोंको गाड़ीमें जोता जाय तो भैंसा धूपमें जीभ निकाल देगा, जबकि बैल धूपमें भी चलता रहेगा । कारण कि भैंसके दूधमें सात्त्विक बल नहीं होता, जबकि गायके दूधमें सात्त्विक बल होता है ।

जय श्री कृष्ण


श्रीमद भगवद गीता

पहला अध्याय श्लोक २

संजय उवाच
दृष्टा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌ ॥ (2)

संजय बोले- उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की सेना को देखा और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा

व्याख्या:
इस श्लोक में महाभारत युद्ध के प्रारंभिक दृश्य का वर्णन किया गया है। जब कौरवों के सेनापति दुर्योधन ने पांडवों की सेना को युद्ध के लिए सुसज्जित और व्यवस्थित देखा, तो वह अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास गए।

दुर्योधन के इस कार्य से उसकी मानसिक स्थिति और भावनाओं का पता चलता है। वह पांडवों की सेना को देखकर चिंतित और थोड़ा भयभीत था, क्योंकि उसे समझ आ रहा था कि यह युद्ध इतना आसान नहीं होगा। उसे पांडवों की ताकत का आभास हो गया था, और इसलिए वह अपने गुरु के पास जाकर उन्हें सूचित करना चाहता था।

दुर्योधन की इस मनोस्थिति से हमें यह समझ में आता है कि युद्ध के प्रारंभ में ही उसे अपनी सेना की शक्ति और पांडवों की शक्ति का आकलन करने की आवश्यकता महसूस हो रही थी। यह घटना दुर्योधन की चिंता, उसके अहंकार और उसकी राजसी प्रतिष्ठा के प्रति उसके लगाव को भी दर्शाती है।

इस प्रकार, यह श्लोक महाभारत के युद्ध के प्रारंभिक क्षणों में कौरवों की मानसिकता और दुर्योधन के भीतर चल रही भावनात्मक उथल-पुथल को उजागर करता है।

जय श्री कृष्ण


As a tortoise withdraws his limbs within his own body, even so does the valiant withdraw his mind within himself from all sins.

जैसे एक कछुआ अपने पैर शरीर के अन्दर वापस ले लेता है, उसी तरह एक वीर अपना मन सभी पापों से हटा स्वयं में लगा लेता है.


ना तुममें कोई योग्यता है। 
ना तुम्हारी कोई औकात है।
ना तुम इस लायक हो कि कोई तुम्हें पसंद करे

तुम सिर्फ दूसरों से प्यार और इज़्ज़त पाने के लिए गिड़गिड़ा रहे हो
दुनिया में मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। ⚡ 
अगर मेहनत और हौसला नहीं है, तो तुम्हें हमेशा नाकामी ही मिलेगी। पावरफुल बनो, वरना जलील होते रहो, सबसे दबते रहो।

जो लोग खुद की काबिलियत साबित नहीं कर पाते, वो दूसरों के रहम पर जीने को मजबूर हो जाते हैं। अपने अंदर ताकत पैदा करो, वरना ये दुनिया तुम्हें हमेशा कमजोर समझेगी।

898 0 11 8 31

भोजन

भोजनके पहले दोनों हाथ, दोनों पैर और मुख‒ये पाँचों शुद्ध, पवित्र जलसे धो ले । फिर पूर्व या उत्तरकी ओर मुख करके शुद्ध आसनपर बैठकर भोजनकी सब चीजोंको ‘पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्या प्रयच्छति । तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥’ (गीता ९ । २६)‒यह श्लोक पढ़कर भगवान्‌के अर्पण कर दे । अर्पणके बाद दायें हाथमें जल लेकर ‘ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् । ब्रह्मैव तेन गन्तव्य ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥’ (गीता ४ । २४)‒यह श्लोक पढ़कर आचमन करे और भोजनका पहला ग्रास भगवान्‌का नाम लेकर ही मुखमें डाले । प्रत्येक ग्रासको चबाते समय ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥’‒इस मन्त्रको मनसे दो बार पढ़ते हुए या अपने इष्टका नाम लेते हुए ग्रासको चबाये और निगले । इस मन्त्रमें कुल सोलह नाम हैं और दो बार मन्त्र पढ़नेसे बत्तीस नाम हो जाते हैं । हमारे मुखमें भी बत्तीस ही दाँत हैं । अतः (मन्त्रके प्रत्येक नामके साथ बत्तीस बार चबानेसे वह भोजन सुपाच्य और आरोग्यदायक होता है एवं थोड़े अन्नसे ही तृप्ति हो जाती है तथा उसका रस भी अच्छा बनता है और इसके साथ ही भोजन भी भजन बन जाता है ।

भोजन करते समय ग्रास-ग्रासमें भगवन्नाम-जप करते रहनेसे अन्नदोष भी दूर हो जाता है ।

@Sudhir_Mishra0506

@bhagwat_geetakrishn


कहावत है नया नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है

उसी तरह नया नया भक्ति करने वाले या हिंदुत्व की बात करने वाले कुछ लोग सोशल मीडिया में आ गए है जिनकी बात सुनकर आम आदमी पागल हो जाएगा।

आपको भक्ति करनी है कट्टर नहीं बनना है आपको अपने बच्चों को सही ज्ञान देना होगा तो परिस्थिति देखकर वो अपना निर्णय स्वयं ले लेंगे। अपने बच्चों को बेटियों को या बेटो को गलत सही का पहचान करवाना होगा पर प्यार से ना की नफरत से। अपने धर्म की बारीकियों को देवी देवताओं की विशेषता हर चीज अपने बच्चों को बताना होगा ताकि कोई उन्हें गुमराह ना कर सके कोई बहला फुसला ना सके।

किसी भाषा ने नफरत करके आप भक्ति नहीं कर सकते भगवान भाव के भूखे है ना कि भाषा के हा हमे अपनी भाषा आनी चाहिए पर दूसरे भाषा का भी हमें सम्मान करना होगा।

प्रेम से हम पूरी दुनिया जीत सकते है

हम अपनी बात पहुंचाने के लिए प्रेम का सहारा ले सकते है जबरदस्ती यदि हम किसी पर कोई चीज थोपते है तो सामने वाला दबाव में भले स्वीकार कर लेगा पर दिल से उसे स्वीकार नहीं कर पाएगा।

ईसाई प्रेम से लोगो को कन्वर्ट करते है हम प्रेम से उनकी घर वापसी करवा सकते है जबरदस्ती नहीं।

इसलिए किसी भाषा मजहब या संप्रदाय का विरोध करने से बेहतर होगा हम खुदको बेहतर बनाए ताकि वो हमारी तरफ आए नफरत से हम सिर्फ खाई बना सकते है जहां से किसी का लौट आना मुश्किल होगा।

खुदको इतना बेहतर बना दो की हर कोई तुमसा बनना चाहे


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@Sudhir_Mishra0506


इंसान जब अत्यधिक
लालच करता है और अपनी
इच्छाओं को पूरा करने के लिए
गलत रास्ता अपनाता है तो उसे सभी
गलत कामों का फल जरूर मिलता है।

हमेशा झूठ बोलकर,
षड्यंत्र करके सफलता
हासिल करने से बचना चाहिए।

अपनी मेहनत और
ईमानदारी से काम करेंगे तो
जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी।


अपनी ऊर्जा को खुश रहने
में ही खर्च कीजिए क्योंकि खुशी
से ही आपकी इम्यूनिटी बढ़ती है।


गलत व्यक्ति जितना भी मीठा बोले,
एक दिन आपके लिए बीमारी बन
जाएगा और सच्चा व्यक्ति कितना
भी कड़वा लगे, एक दिन औषधि
बनकर आपके काम आएगा।


श्रीमद भगवद गीता

धृतराष्ट्र उवाच

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥

धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?

यह श्लोक महाभारत के युद्ध के आरंभ में, धृतराष्ट्र द्वारा संजय से पूछा गया प्रश्न है। धृतराष्ट्र, जो कि कुरु वंश के राजा और कौरवों के पिता थे, ने संजय से पूछा कि कुरुक्षेत्र में एकत्र हुए उनके पुत्र (कौरव) और पांडवों ने क्या किया। यहाँ धृतराष्ट्र 'धर्मक्षेत्रे' और 'कुरुक्षेत्रे' शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं, जो कि युद्ध के मैदान का वर्णन करते हैं।

धर्मक्षेत्रे' का अर्थ है धर्म का क्षेत्र, जो यह संकेत करता है कि यह युद्ध केवल सत्ता के लिए नहीं बल्कि धर्म और अधर्म के बीच की लड़ाई भी है। 'कुरुक्षेत्रे' का अर्थ है कुरुओं का क्षेत्र, अर्थात् कौरवों का क्षेत्र।

धृतराष्ट्र की चिंता यह थी कि उनके पुत्र युद्ध में पांडवों के साथ क्या करेंगे, और उन्हें इस बात की उत्सुकता थी कि धर्म और अधर्म के इस महायुद्ध में उनके पुत्र कैसे व्यवहार करेंगे।

संजय, जो कि दिव्य दृष्टि से संपन्न थे, धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध के घटनाक्रम का वर्णन करते हैं। इस श्लोक के माध्यम से गीता का प्रारंभ होता है, जिसमें धर्म और अधर्म, न्याय और अन्याय के बीच संघर्ष की गूंज सुनाई देती है।

@bhagwat_geetakrishn


एक तोता बोलता तो बहुत हैं लेकीन ऊंचा नहीं
उड़ सकता लेकीन एक बाज हमेशा शांत रहता
हैं और आसमान को छूने की काबिलियत
रखता हैं इसलिए जीवन में बाज बनो तोता
नहीं !


भोजन करनेवाले और करानेवालेके भावका भोजनपर असर पड़ता है; जैसे‒(१) भोजन करनेवालेकी अपेक्षा भोजन करानेवालेकी जितनी अधिक प्रसन्नता होगी,वह भोजन उतने ही उत्तम दर्जेका माना जायगा । (२) भोजन करानेवाला तो बड़ी प्रसन्नतासे भोजन कराता है; परन्तु भोजन करनेवाला ‘मुफ्तमें भोजन मिल गया; अपने इतने पैसे बच गये; इससे मेरेमें बल आ जायगा’ आदि स्वार्थका भाव रख लेता है तो वह भोजन मध्यम दर्जेका हो जाता है और (३) भोजन करानेवालेका यह भाव है कि ‘यह घरपर आ गया तो खर्चा करना पड़ेगा, भोजन बनाना पड़ेगा, भोजन कराना ही पड़ेगा’ आदि और भोजन करनेवालेमें भी स्वार्थभाव है तो वह भोजन निकृष्ट दर्जेका हो जायगा ।

इस विषयमें गीताने सिद्धान्तरूपसे कह दिया है‒‘सर्वभूतहिते रताः’ तात्पर्य यह है किजिसका सम्पूर्ण प्राणियोंमें हितका भाव जितना अधिक होगा, उसके पदार्थ, क्रियाएँ आदि उतनी ही पवित्र हो जायँगी ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!!

@bhagwat_geetakrishn


रिश्तों की अहमियत

पढ़ाई पूरी करने के बाद एक छात्र किसी बड़ी कंपनी में नौकरी पाने की चाह में इंटरव्यू देने के लिए पहुंचा।छात्र ने बड़ी आसानी से पहला इंटरव्यू पास कर लिया।अब फाइनल इंटरव्यू कंपनी के डायरेक्टर को लेना था और डायरेक्टर को ही तय करना था कि उस छात्र को नौकरी पर रखा जाए या नहीं। डायरेक्टर ने छात्र का सीवी (curricular vitae) देखा और पाया कि पढ़ाई के साथ- साथ यह छात्र ईसी (extra curricular activities) में भी हमेशा अव्वल रहा
डायरेक्टर- "क्या तुम्हें पढ़ाई के दौरान कभी छात्रवृत्ति (scholarship) मिली...?"
छात्र- "जी नहीं..."
डायरेक्टर-"इसका मतलब स्कूल- कॉलेज की फीस तुम्हारे पिता अदा करते थे.."
छात्र- "जी हाँ , श्रीमान ।"
डायरेक्टर- "तुम्हारे पिताजी क्या काम करते है?"
छात्र- "जी वो लोगों के कपड़े धोते हैं..."
यह सुनकर कंपनी के डायरेक्टर ने कहा- "ज़रा अपने हाथ तो दिखाना"
छात्र के हाथ रेशम की तरह मुलायम और नाज़ुक थे...
डायरेक्टर- "क्या तुमने कभी कपड़े धोने में अपने पिताजी की मदद की...?"
छात्र- "जी नहीं, मेरे पिता हमेशा यही चाहते थे कि मैं पढ़ाई करूं और ज़्यादा से ज़्यादा किताबें
पढ़ूं...हां , एक बात और, मेरे पिता बड़ी तेजी से कपड़े धोते हैं..."
डायरेक्टर- "क्या मैं तुम्हें एक काम कह सकता हूं...?"
छात्र- "जी, आदेश कीजिए..."
डायरेक्टर- "आज घर वापस जाने के बाद अपने पिताजी के हाथ धोना...
फिर कल सुबह मुझसे आकर मिलना..."
छात्र यह सुनकर प्रसन्न हो गया...
उसे लगा कि अब नौकरी मिलना तो पक्का है,तभी तो डायरेक्टर ने कल फिर बुलाया है।छात्र ने घर आकर खुशी-खुशी अपने पिता को ये सारी बातें बताईं और अपने हाथ दिखाने को कहा।पिता को थोड़ी हैरानी हुई लेकिन फिर भी उसने बेटे की इच्छा का मान करते हुए अपने दोनों हाथ उसके हाथों में दे दिए। छात्र ने पिता के हाथों को धीरे-धीरे धोना शुरू किया। कुछ देर में ही हाथ धोने के साथ ही उसकी आंखों से आंसू भी झर-झर बहने लगे,पिता के हाथ रेगमाल (emery paper) की तरह सख्त और जगह-जगह से कटे हुए थे,यहां तक कि जब भी वह कटे के निशानों पर पानी डालता, चुभन का अहसास पिता के चेहरे पर साफ़ झलक जाता था।छात्र को ज़िंदगी में पहली बार एहसास हुआ कि ये वही हाथ हैं जो रोज़ लोगों के कपड़े धो- धोकर उसके लिए अच्छे खाने, कपड़ों और स्कूल की फीस का इंतज़ाम करते थे।पिता के हाथ का हर छाला सबूत था उसके एकेडैमिक कैरियर की एक-एक कामयाबी का।
पिता के हाथ धोने के बाद छात्र को पता ही नहीं चला कि उसने उस दिन के बचे हुए सारे कपड़े भी एक- एक कर धो डाले,उसके पिता रोकते ही रह गए , लेकिन छात्र अपनी धुन में कपड़े धोता चला गया।उस रात बाप-बेटे ने काफ़ी देर तक बातें कीं,
अगली सुबह छात्र फिर नौकरी के लिए कंपनी के डायरेक्टर के ऑफिस में था। डायरेक्टर का सामना करते हुए छात्र की आंखें गीली थीं।
डायरेक्टर- "हूं , तो फिर कैसा रहा कल घर पर ? क्या तुम अपना अनुभव मेरे साथ शेयर करना पसंद करोगे ?"
छात्र- " जी हाँ , श्रीमान कल मैंने जिंदगी का एक वास्तविक अनुभव सीखा...,नंबर एक मैंने सीखा कि सराहना क्या होती है,मेरे पिता न होते तो मैं पढ़ाई में इतनी आगे नहीं आ सकता था। नंबर दो पिता की मदद करने से मुझे पता चला कि किसी काम को करना कितना सख्त और मुश्किल होता है। नंबर तीन मैंने रिश्तों की अहमियत पहली बार
इतनी शिद्दत के साथ महसूस की"
डायरेक्टर- "यही सब है जो मैं अपने मैनेजर में देखना चाहता हूँ, मैं यह नौकरी केवल उसे देना चाहता हूं जो दूसरों की मदद की कद्र करे, ऐसा व्यक्ति जो काम किए जाने के दौरान दूसरों की तकलीफ भी महसूस करे,ऐसा शख्स जिसने सिर्फ पैसे को ही जीवन का ध्येय न बना रखा हो,
मुबारक हो, तुम इस नौकरी के पूरे हक़दार हो।"

शिक्षा

आप अपने बच्चों को बड़ा मकान दें, बढ़िया खाना दें,बड़ा टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ दें लेकिन साथ ही अपने बच्चों को यह अनुभव भी हासिल करने दें कि उन्हें पता चले कि घास काटते हुए कैसा लगता है ?
उन्हें भी अपने हाथों से ये काम करने दें।खाने के बाद कभी बर्तनों को धोने का अनुभव भी अपने साथ घर के सब बच्चों को मिलकर करने दें,ऐसा इसलिए नहीं कि आप मेड पर पैसा खर्च नहीं कर सकते,बल्कि इसलिए कि आप अपने बच्चों से सही प्यार करते हैं।आप उन्हें समझाते हैं कि पिता कितने भी अमीर क्यों न हो, एक दिन उनके बाल सफेद होने ही हैं,सबसे अहम हैं आप के बच्चे किसी काम को करने
की कोशिश की कद्र करना सीखें, एक दूसरे का हाथ बंटाते हुए काम करने का जज्ब़ा अपने अंदर लाएं।
यही है सबसे बड़ी सीख।

सीताराम

@bhagwat_geetakrishn


एक मिनट में ज़िंदगी तो नहीं बदल सकती, पर किसी मिनट, जल्दी में लिया गया फैसला,
ज़िंदगी में सब कुछ बदल सकता है. इसलिए सारे फैसले ठंडे दिमाग से लो, जल्दबाज़ी में नहीं.
जीवन एक संघर्ष है और संघर्ष एक जीवन तो बिना डरे इस संघर्ष को जी लीजिए आगे मंजिल बहुत ही खूबसूरत होगी।

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