ब्रह्मचर्य


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ब्रह्मचर्य ही जीवन है 🙏🏻
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[सतीत्व की रक्षा के साधन]:-

स्त्री लोगों के छः दूषण हैं। उनको स्त्री लोग छोड़ दें -

पानं दुर्जनसंसर्गः पत्या च विरहोऽटनम् स्वप्नोऽन्यगेहवासश्च नारीसंदूषणानि षट्।।
मनु० ९|१३


यह भगवान मनु का श्लोक है। इसका यह अभिप्राय है कि (पानं) मद्य और भंगादि का नशा करना, (दुर्जनसंसर्गः) दुष्ट पुरुषों का संग होना, (पत्या विरह) पति और स्त्री का वियोग, अर्थात् स्त्री अन्य देश में और पुरुष अन्य देश में रहे, (अटन) पति को छोड़कर जहाॅं-तहाॅं स्त्री भ्रमण करे ,जैसे कि नाना प्रकार के मन्दिरों में तथा तीर्थों में स्नान के वास्ते और बहुत से पाखण्डियों के दर्शन के वास्ते स्त्री का भ्रमण करना, (स्वप्नोऽन्यगेहवासश्च) अत्यन्त निद्रा, अन्य के घर में स्त्री का सोना, अन्य के घर में पति के बिना वास करे और अन्य पुरुषों के संग का होना यह अत्यन्त दूषण स्त्रियों के भ्रष्ट होने के कारण हैं, इन छः कर्मों ही से स्त्री अवश्य भ्रष्ट हो जाएगी इसमें कुछ सन्देह नहीं।

और पुरुषों के वास्ते भी ऐसे बहुत दूषण हैं:-

मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत्।
बलवानिन्द्रियग्रामों विद्वांसमपि कर्षति।।
मनु० २|२१५


माता, (स्वसा) भगिनी और (दुहिता) कन्या, इनके साथ भी एकान्त में निवास कभी न करे और अत्यन्त संभाषण भी न करे और नेत्र से उनका स्वरूप और चेष्टा न देखे; जो कुछ उनसे कहना वा सुनना होय सो नीचे दृष्टि करके कहे वा सुने। इससे क्या आया कि जितनी व्यभिचारिणी स्त्री वा वेश्या और जितने वेश्यागामी और परस्त्रीगामी पुरुष हैं उनमें प्रीति वा संभाषण अथवा उनका संग कभी न करे। इस प्रकार के दूषणों से ही पुरुष भ्रष्ट हो जाता है क्योंकि ये जो इन्द्रियग्राम अर्थात् मन और इन्द्रियाॅं हैं ये बड़े प्रबल हैं। जो कोई विद्वान् अथवा जितेन्द्रिय वा योगी हैं वे भी इस प्रकार के संगों से भ्रष्ट हो जाते हैं, तो साधारण जो गृहस्थ हैं वे तो अवश्य ही भ्रष्ट हो जाऍंगे।
इस वास्ते स्त्री व पुरुष सदा इन दुष्ट संगों से बचे रहें।




सबसे बड़ा पुण्य - अच्छे कर्म करना
सबसे बड़ी बाधा - अधिक बोलना
सबसे बड़ी भूल - समय बरबाद करना

810 0 20 1 46


933 0 11 1 34

मरणं बिन्दोपातेन जीवनं बिन्दुधारणात्

" वीर्यनाश ही मृत्यु है और वीर्यरक्षण ही जीवन है "

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जो व्यक्ति वीर्यनाश करता रहता है, उसकी क्या गति होगी, इसका भी ‘अथर्ववेद’ में उल्लेख आता है :

रुजन् परिरुजन् मृणन् परिमृणन् |
म्रोको मनोहा खनो निर्दाह आत्मदूषिस्तनूदूषिः ||


यह काम रोगी बनाने वाला है, बहुत बुरी तरह रोगी करने वाला है | मृणन् यानी मार देने वाला है | परिमृणन् यानी बहुत बुरी तरह मारने वाला है |यह टेढ़ी चाल चलता है, मानसिक शक्तियों को नष्ट कर देता है | शरीर में से स्वास्थ्य, बल, आरोग्यता आदि को खोद-खोदकर बाहर फेंक देता है | शरीर की सब धातुओं को जला देता है | आत्मा को मलिन कर देता है | शरीर के वात, पित्त, कफ को दूषित करके उसे तेजोहीन बना देता है |




वेदव्यास जी ने कहा है :-

ब्रह्मचर्यं गुप्तेन्द्रियस्योपस्थस्य संयमः


अर्थात् गुप्तेन्द्रिय-मूत्रेन्द्रिय का संयम रखना ब्रह्मचर्य है। कामवासना को उत्तेजित करने वाला कर्म, दर्शन, स्पर्शन, एकान्तसेवन, भाषण, विषय का ध्यान-कथा आदि कर्मों से बच कर ब्रह्मचारी को सदा जितेन्द्रिय होना चाहिए।


यह देखिए , Ad बंद करने के लिए चैनल को Level 50 करना होगा , जिसके लिए बहुत से लोग जिनके पास प्रीमियम हो उन्हें चैनल को बूस्ट करना होगा (https://t.me/Brahmacharyalife?boost अगर आपके पास टेलीग्राम प्रीमियम है तो आप बूस्ट कर सकते हैं )

और आप सभी कोई भी अनावश्यक Ad लिंक को कभी खोले नहीं , उन्हें अनदेखा करें l

हम आपके लिए ब्रह्मचर्य संबंधित अच्छी जानकारियां ऐसे ही भेजते रहेंगे, धन्यवाद् l


सभी को सादर नमस्ते जी 🙏🏻
पहले तो मै आप सबसे क्षमा चाहता हूं कि आपको इस प्रकार के Ad दिखते हैं चैनल में , लेकिन यह हम नहीं भेजते ये स्वयं से आता है और हम इसे हटा भी नहीं सकते (इसका प्रमाण नीचे भेजता हूं)

और आपको यह बता देता हूं इनसे मुझे अभी तक तो कोई धन मिला नहीं है , अगर भविष्य में मिलता है तो उसका प्रयोग मै कभी भी अपने लिए नहीं करूंगा , उसको दान दे दूंगा कहीं या धर्म प्रचार में लगाऊंगा 🙏🏻




न जात काम: कामनामुपभोगेन शाम्यति,
हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्ध्दते। ( मनु॰ २-९४)


अर्थात् - संसार के भोगों से मनुष्य की तृप्ति नहीं होती, ज्यों-ज्यों भोग भोगता है, तृष्णा अधिक बढ़ती है, जैसे कि अग्नि में धृत डालने से ज्वाला अधिक प्रचण्ड होती है। सो, जो केवल सन्तति के लिए स्त्री से सहवास करते हैं, और गर्भाधान हो जाने पर ब्रह्मचारी रहते हैं; एवं जो पालन-पोषण, शिक्षण कर सकने योग्य दो-चार सन्तानें हो जाने पर फिर ब्रह्मचारी ही रहते हैं, वे देव-तुल्य हैं, उनकी सन्तति भी देवतुल्य तथा आदरणीय होती हैं।
कर्मेन्द्रियों में गुप्तेन्द्रिय सबसे बलवान् है, इस पर विजय पाना अति कठिन है। इसी कारण 'गुप्तेन्द्रिय-संयम' को ब्रह्मचर्यव्रत पालन करने में मुख्यता दी गयी है।




भारतीय सभ्यता और संस्कृति में माता को इतना पवित्र स्थान दिया गया है कि यह मातृ भाव मनुष्य को पतित होते होते बचा लेता है

जब भी मन में काम आए तब मातृ भाव रखे इससे विकार के जाल से बच जाएंगे

पराई स्त्री को माता के समान और पराए धन को मिट्टी के ढेले के समान जानो ।

@Brahmacharyalife


जागो जागो जागो

@vaidic_bhajan


जैसा साहित्य हम पढ़ते है ,वैसे ही विचार मन के भीतर चलते रहते है और उन्हीं से हमारा सारा व्यवहार प्रभावित होता है,

जो लोग कुत्सित ,विकारी और कामोत्तेजक साहित्य पढ़ते हैं वे कभी उपर नहीं उठ सकते , वो वीर्य रक्षा करने में असमर्थ होते है l

@Brahmacharyalife


Forward from: प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान📚
प्र. १९९. क्या मांस या अण्डा खाने वाले को पाप लगेगा ?

उत्तर : हाँ, मांस हो या अण्डा हो, दोनों के खानेवाले को पाप लगेगा। क्योकि इससे प्राणियों की हिंसा होती है। शास्त्र में भी इसका निषेध किया है ।

@vaidic_gyan




Forward from: ब्रह्मचर्य
Sarir Ki vastvikta.pdf
2.8Mb
पुस्तक का नाम ➦ शरीर की वास्तविकता

संपादक का नाम ➛ स्वामी ध्रुवदेव परिव्राजक

पुस्तक की भाषा ➛हिन्दी, संस्कृत

पुस्तक में पृष्ठ ➛ 13

प्रकाशक➛दर्शन योग महाविद्यालय ट्रस्ट

Pdf size ➛2.8MB

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@brahmacharya1
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@brahmacharyalife

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