[सतीत्व की रक्षा के साधन]:-स्त्री लोगों के छः दूषण हैं। उनको स्त्री लोग छोड़ दें -
पानं दुर्जनसंसर्गः पत्या च विरहोऽटनम् स्वप्नोऽन्यगेहवासश्च नारीसंदूषणानि षट्।।
मनु० ९|१३
यह भगवान मनु का श्लोक है। इसका यह अभिप्राय है कि (पानं) मद्य और भंगादि का नशा करना, (दुर्जनसंसर्गः) दुष्ट पुरुषों का संग होना, (पत्या विरह) पति और स्त्री का वियोग, अर्थात् स्त्री अन्य देश में और पुरुष अन्य देश में रहे, (अटन) पति को छोड़कर जहाॅं-तहाॅं स्त्री भ्रमण करे ,जैसे कि नाना प्रकार के मन्दिरों में तथा तीर्थों में स्नान के वास्ते और बहुत से पाखण्डियों के दर्शन के वास्ते स्त्री का भ्रमण करना, (स्वप्नोऽन्यगेहवासश्च) अत्यन्त निद्रा, अन्य के घर में स्त्री का सोना, अन्य के घर में पति के बिना वास करे और अन्य पुरुषों के संग का होना यह अत्यन्त दूषण स्त्रियों के भ्रष्ट होने के कारण हैं, इन छः कर्मों ही से स्त्री अवश्य भ्रष्ट हो जाएगी इसमें कुछ सन्देह नहीं।
और पुरुषों के वास्ते भी ऐसे बहुत दूषण हैं:-
मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत्।
बलवानिन्द्रियग्रामों विद्वांसमपि कर्षति।।
मनु० २|२१५
माता, (स्वसा) भगिनी और (दुहिता) कन्या, इनके साथ भी एकान्त में निवास कभी न करे और अत्यन्त संभाषण भी न करे और नेत्र से उनका स्वरूप और चेष्टा न देखे; जो कुछ उनसे कहना वा सुनना होय सो नीचे दृष्टि करके कहे वा सुने। इससे क्या आया कि जितनी व्यभिचारिणी स्त्री वा वेश्या और जितने वेश्यागामी और परस्त्रीगामी पुरुष हैं उनमें प्रीति वा संभाषण अथवा उनका संग कभी न करे। इस प्रकार के दूषणों से ही पुरुष भ्रष्ट हो जाता है क्योंकि ये जो इन्द्रियग्राम अर्थात् मन और इन्द्रियाॅं हैं ये बड़े प्रबल हैं। जो कोई विद्वान् अथवा जितेन्द्रिय वा योगी हैं वे भी इस प्रकार के संगों से भ्रष्ट हो जाते हैं, तो साधारण जो गृहस्थ हैं वे तो अवश्य ही भ्रष्ट हो जाऍंगे।
इस वास्ते स्त्री व पुरुष सदा इन दुष्ट संगों से बचे रहें।