ब्रह्मचर्य ही जीवन (हरीॐ)


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ब्रम्हचर्य पालन करने वालो के लिये विश्व का सर्वोत्तम टेलिग्राम चॅनल,
यहा पर आपको ब्रम्हचर्य के बारे मैं सटीक और सही जानकारी मिलेगी लेख, pdf और पुस्तके |
इस भारतवर्ष मैं फिर से ब्रम्हचर्य की महिमा का परिचय सबको कराये यही हमारा उद्देश है|
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कर्म और विचार में पवित्रता की कमी लगभग सभी दुखों, जीवन में असंतोष, मानसिक बीमारी, युवावस्था में कम जीवनीशक्ति, सुस्त बुद्धि, कई घातक बीमारियों, और अनगिनत असामयिक मृत्यु का कारण बनती है।


श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति (भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति) को प्राप्त होते हैं।


चरित्रवान बनो , व्याभिचारी नहीं जिससे लोगों का भरोसा आप पर बना रहे ! चरित्रवान बनने के लिए ब्रम्हचर्य की भट्टी से गुजरना पड़ेगा !


जब कभी भी वी-र्य निकालने तलब मन में उठे। तो मात्र एक बार अपने आप से ये सवाल पूछ लेना कि क्या मैं अपना जीवन रोते- रोते जीना चाहता हूं? यदि उत्तर मिले हां तो बेसक वी-र्य निकाल फेंकना। लेकिन अगर जवाब आए नहीं .. तो वी-र्य हरगिज़ मत गिरने देना।


और “वीर्यनाश” करने वाला व्यक्ति उस मुरझाए हुए फूल के समान होता है, जो जहा कही भी जाता है, वहा अपनी दुर्गंध से उस जगह को मायूस कर देता है।


तकदीर बदलने की ताकत रखता है ब्रह्मचर्य । किस्मत में लिखा ना हो वो भी मिल सकता है ब्रह्मचर्य से ।। सारे सपने पूरे करने की ताकत रखता है ब्रह्मचर्य ।


हमें पवित्र क्यों बनना है ?

ब्रह्मचर्य का पालन करना क्यों जरूरी है ?

क्योंकि हम दुनिया को नहीं बना सकते हैं, दुनिया को नहीं चला सकते हैं, हमारे वश में पूरी दुनिया नहीं है, हम तो सिर्फ सहयोग दे सकते हैं। हम पवित्र बन जाएंगे, तो दुनिया कैसे चलेगी इसकी चिंता हमें नहीं करनी है क्योंकि दुनिया चलाने का कार्य परमात्मा का है परमात्मा की श्रीमत से ही हमें पवित्र बनना है। पवित्र क्यों बनाना है इसकी कुछ बातें:-

1. हमें स्वयं पवित्र बनकर पूरे भारत को, पूरे विश्व को पवित्र बनाने में परमात्मा की मदद करनी है इसलिए हमें पवित्र बनना है।

2. पवित्रता, सुख, शांति की जननी है, अगर हमें सुख और शांति चाहिए तो हमें पवित्र बनना है।

3. सतयुग, स्वर्ग में सुख, शांति, पवित्रता संपूर्ण होती है अगर हमें सतयुग, स्वर्ग में जाकर सुख, शांति, पवित्रता की अनुभूति करना है, चलना है तो हमें पवित्र बनना है।

4. पवित्रता सुख, शांति, खुशी का फाउंडेशन है अगर फाउंडेशन नहीं होगा तो सुख, शांति, खुशी मिल नहीं सकती।

5. जो ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बनते हैं, वह पवित्र ब्राह्मण ही परमात्मा के द्वारा रचे गए अविनाशी रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ की संभाल करते हैं जो पूरे कल्प में उन ब्राह्मणों का गायन है, बिना पवित्रता के यज्ञ की संभाल नहीं कर सकते इसलिए हमें पवित्र करना है।

6. जो आत्माएं पवित्र बनती है वह परमात्मा के दुआओं की अधिकारी बनती है, परमात्मा से दुआएं लेनी है, आशीर्वाद लेना है तो पवित्र बनना है इसलिए हमें पवित्र बनना है।

7. हमें सिर्फ ब्रह्मचर्य ही नहीं अपनाना है बल्कि मन, वचन, कर्म, संबंध संपर्क, संकल्प, स्वप्न में भी पवित्रता अपनानी है, नहीं तो कहीं से भी विकारों की प्रवेशिता होगी।

8. पवित्रता को अपनाने से जो भी व्यर्थ सोचना, देखना, बोलना और करने में हम फुल स्टाप लगाकर उसे परिवर्तन कर सकते हैं।

9. पवित्र बनने से हम त्रिकालदर्शी बन जाएंगे, तीनों कालों को देखने की हमारी पवित्र दृष्टि बन जाएगी, जिससे हम तुरंत निर्णय ले सकते हैं, हम कुछ भी देख सकते हैं इसलिए हमें पवित्र बनना है।

10. पवित्रता में बल होता है पवित्रता को अपनाने से हम हलचल में नहीं आते हैं। जैसे मंदिर में मूर्तियां पवित्र होती हैं उनके आगे सभी सिर झुकाते हैं। पवित्र गुरु, संत, महात्माओं के आगे सिर झुकाते हैं।

11. पवित्रता मुझ आत्मा का स्वधर्म है इसलिए पवित्र रहकर हमें अपने धर्म में स्थित रहना है।

12. परमात्मा से सर्व प्राप्तियां करने के लिए हमें पवित्र रहना है।

13. पवित्र बनने से ही हम सभी को शुभ भावना, शुभकामना दे सकते हैं।

14. पवित्र बनने से हमें अतिंद्रीय सुख की अनुभूति होगी इसलिए हमें पवित्र बनना है।


ये मन, इन्द्रियाँ और बुद्धि,
सब तुम्हें गिराते हैं । ये सब नीचे की तरफ़ लगातार दौड़ते रहते हैं । सत्संग किया करो । ये ही इन सब की लग़ाम को कसता है । अन्यथा इस
कलयुग में बचना बहुत दुर्लभ है।


मनुष्य के शरीर में व्याप्त वीर्य इंसान को उत्साह प्रदान करता है । ऐसा व्यक्ति कार्य करते समय आनंदित रहता है.


गालों पर की पहली कि वह गुलाबी छटा नष्ट होकर गालों पर काले दाग पड़ने लगते हैं यह अत्यंत वीर्य नाश का निश्चित लक्षण है।


. अत्यधिक वीर्य- नाश के कारण चेहरा और शरीर पूरी तरह से खोखला हो जाता है, जवानी में ही बुढ़ापे वाली लक्षने दिखनी लग जाती है।


चरित्रवान बनो, संसार स्वयं तुम पर मुग्ध होगा.
फूल खिलने दोगे तो मधुमक्खियाँ स्वतः ही चली आयेंगी.


राकृष्ण परमहंस


प्रश्न:- बंधन में कौन है?
उत्तर:- जो लालची है

प्रश्न:- घोर नरक क्या है?
उत्तर:- अपना शरीर

प्रश्न:- शत्रु कौन हैं?
उत्तर:- अपनी इन्द्रियाँ; परन्तु जो जीती हुई हों तो वही मित्र हैं

प्रश्न:- गरीब कौन है?
उत्तर:- जिसे अभी और चाहिए

प्रश्न:- और धनवान् कौन है?
उत्तर:- जिसे संतोष है

प्रश्न:- वास्तव में फाँसी क्या है?
उत्तर:- जो ‘मैं’ और ‘मेरापन’ है

प्रश्न:- अन्धा कौन?
उत्तर:- जो वासना से व्याकुल है

प्रश्न:- जगत को किसने जीता?
उत्तर:- जिसने मन को जीता

प्रश्न:- वीरों में सबसे बड़ा वीर कौन है?
उत्तर:- जो कामबाणों से पीड़ित नहीं होता

प्रश्न:- सदा दु:खी कौन है?
उत्तर:- जो संसार के भोगों का लालच रखता है

प्रश्न:- पशु कौन है?
उत्तर:- जो सद्विद्या से रहित है

प्रश्न:- किसका जन्म सराहनीय है?
उत्तर:- जिसका फिर जन्म न हो

प्रश्न:- किसकी मृत्यु सराहनीय है?
उत्तर:- जिसकी फिर मृत्यु नहीं होती

प्रश्न:- गूंगा कौन है?
उत्तर:- जो समय पर उचित वचन कहने में समर्थ नहीं है

प्रश्न:- और बहिरा कौन है?
उत्तर:- जो यथार्थ और हितकर बात नहीं सुनता

प्रश्न:- बिजली की तरह क्षणिक क्या है?
उत्तर:- धन, यौवन और आयु

प्रश्न:- सबसे उतम दान कौन सा है?
उत्तर:- जो सुपात्र को दिया जाए


जिसका मन नित्य - निरंतर
सच्चिदानंद ब्रह्म में विचरण करता है,
वही पूर्ण ब्रह्मचारी है। इसमें प्रधानं आवश्यकता है - शरीर, इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि के बल की । यह बल प्राप्त होता है वीर्य की रक्षा से । इसलिए सब प्रकार से वीर्य की रक्षा करना ही ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना कहा जाता है ।


हनुमान जन्मोत्सव की सभी भारतवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं 🙏


अपने दिमाग में गहराई से ये बात
बैठा दें कि वीर्य संरक्षण करना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारा दिमाग
केवल वही कार्य करता है जो उसे
लगता है कि बहुत महत्वपूर्ण है।


ब्रह्मचर्य के अभाव से हम किसी अस्था में सुखी और उन्नत नहीं हो सकते।


वीर्य को नष्ट करने वाला पुरुष कभी बच नहीं सकता और वीर्य को धारण करने वाला कभी अकाल में भी मर नहीं सकता।

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