🌹आश्रम स्वास्थ्य सेवा 🌹


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🚩☀️आश्रम स्वास्थ्य सेवा ☀️🚩
🚩☀️ दिनांक : 18/04/2024☀️🚩

💢🌀विटामिन B12 (प्रीबायोटिक टेबलेट)🌀💢

♦️जीवनीय तत्त्वों, अमीनो एसिड्स, खनिजों से भरपूर है।

♦️विटामिन B12 की कमी से उत्पन्न होनेवाली अनेकों गम्भीर समस्याओं से सुरक्षा देनेवाली है।

♦️भूख एवं पाचनशक्ति वर्धक हितकारी है।

♦️ प्रौढ़ावस्था व वार्धक्य में विशेष गुणकारी है।

♦️गुटखा, तम्बाकू आदि की लत छोड़ने के लिए इसे चूसकर लेना हितकर है।


🚩☀️सेवन विधि : २ से ४ गोलियाँ सुबह खाली पेट चबाकर खाये अथवा पानी से लें व शाम को भोजन से १-२ घंटे पूर्व फिर से लें । सामान्यतः १ व्यक्ति के लिए वर्षभर में १०० ग्राम (१ • डिब्बी) विटामिन B12 प्रीबायोटिक टेबलेट्स पर्याप्त है, मुखवास के शौक से १०-१५ डिब्बियाँ भी खा सकते हैं।


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🚩☀️आश्रम स्वास्थ्य सेवा ☀️🚩
🚩☀️ दिनांक : 17/04/2024☀️🚩

🚩☀️अनेक बीमारियो पे असरदार : संतकृपा चूर्ण☀️🚩

🌺🌿संतों की कृपा से बनाई गई एक चमत्कारिक औषधि है ।
🌺🌿बापूजी बताते हैं जहां पर दवाई काम नहीं करती वहां पर संतकृपा चूर्ण बहुत ही कारगर सिद्ध हुआ है ।

🚩☀️संतकृपा चूर्ण सामग्री [Ingredients]
• आँवला 
• तुलसी 
• हरड़
• काला नमक

🚩☀️संतकृपा चूर्ण फ़ायदे:

🌺🌿 संतकृपा चूर्ण संतों द्वारा अनुभूत, स्वास्थ्य व उर्जाप्रदायक, पाचक व रोगनाशक अद्भुत योग है ।

🌺🌿 यह भूख को बढ़ाने वाला, रुचिकर, भोजन पचाने में सहायक, कृमिनाशक एवं हृदय के लिए हितकर अनुभूत रामबाण योग है ।

🌺🌿 इसके नियमित सेवन से पाचनशक्ति सबल होकर शरीर स्वस्थ, मजबूत व उर्जावान बनता है ।

🌺🌿 चेहरे में निखार आता है । रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है ।

🌺🌿 थकान दूर होकर प्रसन्नता एवं स्फूर्ति बढ़ती है।

🌺🌿 रक्त की शुद्धि होने से त्वचा की कांति बढ़ाने में भी सहायक है ।

🌺🌿 मोटापा, मधुमेह, कैंसर, हृदय की रक्तवाहिनियों का अवरोध, उच्च रक्तचाप, रक्त में वसा का बढ़ना आदि बीमारियों में संतकृपा चूर्ण बहुत अधिक लाभदायी है ।

🌺🌿 यह जीर्ण कोशिकाओं को पुनः नवजीवन देता है । स्वस्थ्य व्यक्ति यदि इसका सेवन करता रहे तो निरोगी रहने में मदद मिलती है, उसकी रोगप्रतिकारक क्षमता पुष्ट होगी अतः इसे रसायन कहा जाता है । इसके सेवन से रक्तवाहिनियों की कार्यक्षमता बनी रहती है, जिससे वृद्धावस्था के लक्षण देरी से प्रकट होते हैं ।

🌺🌿 यह अमाशय, मष्तिस्क व हृदय को बल देता है । लीवर की क्रिया को व्यवस्थित करने वाला है ।

🌺🌿उल्टी ,जी मिचलाना, आफरा, कब्ज़, आदि पाचन सम्बंधित तकलीफ़ों में लाभदायी है ।

🌺🌿इसमें पाए जाने वाले घटक द्रव्यों के कैंसररोधक विशेष गुण है, जिसके कारण यह कैंसर से रक्षा करने में सहायक है ।

🌺🌿इसमें पाए जाने वाले एंटी हिस्टामिन के कारण यह एलर्जी के कारण होने वाले सर्दी-जुकाम, छींक आना आदि प्रतिक्रिया का शमन करता है ।

🚩☀️संतकृपा चूर्ण कैसे सेवन करे ☀️🚩

♦️1 चम्मच चूर्ण दिन में दो बार 1 गिलास गुनगुने पानी के साथ 
♦️अथवा 1 चम्मच चूर्ण + शहद + 10 मिली नींबू का रस । (खुराक व्यक्तियों की उम्र, वजन और बीमारी पर निर्भर करता है ) या चिकित्सक द्वारा निर्देशित ।

🚩☀️सावधानी : दवा लेने के 2 घंटे पहले और 2 घंटे बाद तक दूध का सेवन ना करें ।

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*🚩☀️आश्रम स्वास्थ्य सेवा ☀️🚩*
*🚩☀️ दिनांक : 16/04/2024☀️🚩*

*🍁अम्लपित्त(Acidity) के रोगः🍁*

*☘️🍁पहला प्रयोगः एक लीटर कुनकुने पानी में 8-10 ग्राम सेंधा नमक डालकर पंजे के बल बैठकर पी जायें। फिर मुँह में उँगली डालकर वमन कर दें। इस क्रिया को गजकरणी कहते हैं। सप्ताह में एक बार करने से अम्लपित्त सदा के मिट जाता है।*
*आश्रम से प्रकाशित 'योगासन' पुस्तक में गजकरणी की विधि दी गयी है।*

*☘️🍁दूसरा प्रयोगः आँवले का मुरब्बा खाने अथवा आँवले का शर्बत पीने से अथवा द्राक्ष (किसमिस), हरड़े और मिश्री के सेवन से अम्लपित्त में लाभ होता है।*

*☘️🍁तीसरा प्रयोगः 1-1 ग्राम नींबू के फूल एवं काला नमक को 10 ग्राम अदरक के रस में पीने से अथवा 'संतकृपा चूर्ण' को पानी या नींबू के शर्बत में लेने से लाभ होता है।*

*☘️🍁चौथा प्रयोगः सुबह 5 से 10 तुलसी के पत्ते एवं दोपहर को ककड़ी खाना तथा रात्रि में 2 से 5 ग्राम त्रिफला का सेवन करना एसिडिटी के मरीजों के लिए वरदान है।*

*☘️🍁पाँचवाँ प्रयोगः अम्लपित्त के प्रकोप से ज्वर होता है। इसमें एकाध उपवास रखकर पित्तपापड़ा, नागरमोथ,चंदन, खस, सोंठ डालकर उबालकर ठंडा किया गया पानी पीने से एवं पैरों के तलुओं में घी घिसने से लाभ होता है। ज्वर उतर जाने पर ऊपर की औषधियों में गुडुच, काली द्राक्ष एवं त्रिफला मिलाकर उसका काढ़ा बनाकर पीना चाहिए।*

*☘️🍁छठा प्रयोगः करेले के पत्तों के रस का सेवन करने से पित्तनाश होता है। वमन, विरेचन व पित्त के प्रकोप में इसके पत्तों के रस में सेंधा नमक मिलाकर देने से फायदा होता है।*

*☘️🍁सातवाँ प्रयोगः जिनको पित्त-विकार हो उन्हें महासुदर्शन चूर्ण, नीम पर चढी हुई गुडुच, नीम की अंतरछाल जैसी कड़वी एवं कसैली चीजों का सेवन करने से लाभ होता है। गुडुच का मिश्री के साथ सेवन करने से भी लाभ होता है।*

*☘️🍁आठवाँ प्रयोगः पित्त की उल्टी होने पर एक गिलास गन्ने के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। अजीर्ण में यह प्रयोग न करें।*

*☘️🍁नौवाँ प्रयोगः ताजे अनार के दानों का रस निकालकर उसमें मिश्री डालकर पीने से हर प्रकार का पित्तप्रकोप शांत होता है।*

*☘️🍁दसवाँ प्रयोगः खाली पेट ठण्डा दूध या अरण्डी का 2 से 10 मि.ली. तेल 100 से 200 मि.ली. गाय के दूध में मिलाकर या मीठी छाछ में मिश्री डालकर पीने से पित्तप्रकोप शांत होता है।*

*☘️🍁ग्यारहवाँ प्रयोगः नीम के पत्तों का 20 से 50 मि.ली. रस 5 से 20 ग्राम मिश्री मिलाकर सात दिन पीने से गर्मी मिटती है।*

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🚩☀️आश्रम स्वाथ्य सेवा
दिनांक: 15/04/2024☀️🚩

🩸🔸💧कब्जनाशक प्रयोग💧🔸🩸

🚩☀️कब्ज अनेक रोगों का गढ है । कब्ज दूर करने के लिए निम्न उपाय करें ।

🚩☀️रात को हरड़ पानी में भिगोकर रखें । सुबह थोड़ी सी हरड़ उसी पानी में रगड़ें और थोड़ा सा नमक मिलाकर पियें ।

🚩☀️सूर्योदय से पहले खाली पेट रात का रखा हुआ पानी आवश्यकतानुसार पियें (गुनगुना हो तो उत्तम) ।

🚩☀️मेथी के पत्तों की सब्जी खायें ।

🚩☀️धनिया, पुदीना, काला नमक व काली मिर्च की चटनी भोजन के साथ लें ।

🚩☀️श्वास बाहर निकालकर गुदाद्वार का संकोचन विस्तरण (अश्विनी मुद्रा) करने को थलबस्ती कहते हैं। यह प्रयोग रोज तीन-चार बार करने से भी कब्ज दूर होता है और वीर्यहानि, स्वप्नदोष एवं प्रदर रोग से रक्षा होती है । व्यक्तित्व विकसित होता है ।

🩸🔸💧📖 लोक कल्याण सेतु - फरवरी 2011💧🔸🩸


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*🌹आश्रम स्वास्थ्य सेवा 🌹*
*🚩☀️दिनांक : 14/04/2024☀️🚩*

*🚩☀️शीतला या चेचक (Chickenpox)के कारण लक्षण घरेलू उपचार☀️🚩*

*🚩🔹🔸रोग के परिचय🔹🔸🚩*

*🚩🔸चेचक के रोग में बुखार के बाद शरीर पर लाल दाने निकलते हैं । ये दाने 2 से 3 दिन के बाद फफोले का रूप ले लेते हैं । 4 से 5 दिन में इन दानों में से पपड़ी जमकर नीचे गिरने लगती है । चेचक में बुखार और प्रदाह (जलन) के कारण रोगी को काफी बैचेनी होती है । इस रोग को ठीक होने में कम से कम 7 से 10 दिन तक लग जाते हैं ।*

*🚩🔺🔸चिकनपॉक्स रोग के कारण🔸🔺*

*🚩🔹चिकनपॉक्‍स एक वायरल इंफेक्‍शन है । यह रोग हवा के माध्यम से या एक संक्रमित व्यक्ति के छाले से लार, बलगम या तरल पदार्थ के संपर्क में आने से फैल सकता है ।*

*🚩☀️चिकनपॉक्स के लक्षण☀️🚩*

*🚩🔹शरीर का तापमान बढ़ जाता है । यह बुखार 104 डिग्री फारेनहाइट हो जाता है। रोगी को बेचैनी होने लगती है । उसे बहुत ज्यादा प्यास लगती है और पूरे शरीर में दर्द होने लगता है । दिल की धड़कन तेज हो जाती है और साथ में जुकाम भी हो जाता है । 2-3 दिन के बाद बुखार तेज होने लगता है । शरीर पर लाल-लाल दाने निकलने लगते हैं । दानों में पानी जैसी मवाद पैदा हो जाती है और 7 दिनों में दाने पकने लगते हैं (साबधान उसे नाखून से फोड़े नही इसे बीमार फैलता है ) जो कि धीरे-धीरे सूख जाते हैं । दानों पर खुरण्ड (पपड़ी) सी जम जाती है । कुछ दिनों के बाद खुरण्ड (पपड़ी) तो निकल जाती है लेकिन उसके निशान रह जाते हैं ।*

*🚩☀️भोजन और परहेज☀️🚩*

*🚩🔹छोटे बच्चों को चेचक(chicken pox)होने पर दूध, मूंग की दाल, रोटी और हरी सब्जियां तथा मौसमी फल खिलाने चाहिए या उनका जूस पिलाना चाहिए ।*

*🚩🔹चेचक के रोग से ग्रस्त रोगी के घर वालों को खाना बनाते समय सब्जी में छोंका नहीं लगाना चाहिए ।*

*🚩🔹रोगी को तली हुई चीजें, मिर्चमसाले वाला भोजन और ज्यादा ठंड़ी या ज्यादा गर्म चीजें नहीं देनी चाहिए ।*

*🚩🔹दरवाजे पर नीम के पत्तों की टहनी लटका देनी चाहिए ।*

*🚩🔹चिकन पाक्स होने पर बाहर और भीड वाली जगह पर जाने से परहेज करें । हो सके तो इस दौरान लोगों से दूर रहें ।*

*🚩☀️आयुर्वेदिक उपचार☀️🚩*

*🚩🔹नीम की पत्तियों को पानी में उबाल उस पानी से नहाने से चर्म रोग दूर होते हैं और ये खासतौर से चेचक के उपचार में सहायक होता है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक होता है ।*

*🚩🔹एक मुट्ठी नीम की पत्तियां लेकर उनका पेस्‍ट बना लें । नीम के पानी से नहाने के बाद चिकनपॉक्‍स वाले हिस्‍से पर इस पेस्ट को लगा लें । हालांकि इससे त्वचा में खुजली हो सकती है, लेकिन त्वचा के इलाज के लिए बहुत अच्छा उपाय है ।*

*🚩🔹नीम के तेल में आक के पत्तों का रस मिलाकर चेचक (बड़ी माता) के दानों पर लगाने से लाभ होता है ।*

*🚩🔹चेचक के रोगी का बिस्तर बिल्कुल साफ-सुथरा रखें और उसके बिस्तर पर नीम की पत्तियां रख दें । फिर नीम के मुलायम पत्तों को पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें । इस 1-1 गोली को सुबह और शाम दूध के साथ रोगी को खिलायें । गर्मी का मौसम हो तो नीम की टहनी से हवा करने से चेचक के दानों में मौजूद जीवाणु जल्द ही समाप्त हो जाते हैं । तवे पर मुनक्का को भूनकर रोगी को खिलाना चाहिए ।*

*🚩🔹यदि चेचक के रोगी को अधिक प्यास लगती हो तो 1 किलो पानी में 10 ग्राम कोमल पत्तियों को उबालकर जब आधा पानी शेष रह जायें, तब इसे छानकर रोगी को पिला दें। इस पानी को पीने से प्यास के साथ-साथ चेचक के दाने भी सूख जाते हैं ।*

*🚩🔹5 नीम की कोंपल (नई पत्तियां) 2 कालीमिर्च और थोड़ी सी मिश्री लेकर सुबह-सुबह चबाने से या पीसकर पानी के साथ खाने से चेचक के रोग में लाभ होता है ।*

*🚩🔹सुबह के समय रोगी को तुलसी के पत्तों का आधा चम्मच रस पिलाने से चेचक के रोग में लाभ होता है ।*

*🚩🔹बुखार को कम करने के लिये तुलसी के बीज और धुली हुई अजवाइन को पीसकर रोगी को पानी के साथ दें ।*


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🚩☀️आश्रम स्वास्थ्य सेवा ☀️
🚩☀️दिनांक: 13/04/2024☀️🚩

🌺🌿🌿नीम अर्क🌿🌿🌺

🌿🌿वसंत ऋतु में कड़वे नीम में नयी कोंपलें फूटती हैं।
🌿🌿नीम की 15-20 कोंपलें 2-3 काली मिर्च के साथ चबा-चबाकर खानी चाहिए ।
🌿🌿15-20 दिन यह प्रयोग करने से वर्षभर चर्मरोग, रक्तविकार और ज्वर आदि रोगों से रक्षा करने की प्रतिरोधक शक्ति पैदा होती है एवं आरोग्यता की रक्षा होती है।
🌿🌿इसके अलावा 7 से 15 दिन तक कड़वे नीम के फूलों का रस 10 - 15 मिली पीने से त्वचा के रोग एवं मलेरिया जैसे ज्वर से भी बचाव होता है।


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🚩☀️आश्रम स्वास्थ्य सेवा☀️🚩
🚩☀️दिनांक : 13/04/2024☀️🚩

🚩☀️नीम के औषधीय प्रयोग☀️🚩


🌺🌿नीम के वृक्ष के नीचे बैठना, नीम की दातुन करना, सुबह नीम के कोमल पत्तों का २५- ३० मि.ली. रस अथवा १५- २० मि.ली. नीम अर्क पीना, शरीर पर नीम का रस लगाना, प्रभावित अंगों पर नीम तेल लगाना, बिस्तर पर नीम की ताजी पत्तियाँ बिछाना तथा-नीम पत्र अथवा नीम रस मिश्रित जल से स्नान करना त्वचा-रोगों में हितकारी है।

🌺🌿वसंत ऋतु में चेचक का रोग होने की सम्भावना अधिक रहती है । अतः इन दिनों में मिष्ठान्न, तले हुए पदार्थ, गरिष्ठ एवं कफकारक आहार से परहेज रखना चाहिए । चेचक में नीम के सेवन से बुखार नहीं बढ़ता, प्यास कम लगती है, चेचक का विष गहराई तक नहीं जाता तथा रोग-शमन के पश्चात् रहनेवाली पित्त की अधिकता दूर होती है,दुर्बलता नहीं आती है ।

🌺🌿वसंत ऋतु में (होली के बाद) २०- २५ दिन नीम के २०-२५ कोमल पत्ते व १-२ काली मिर्च के साथ चबाकर खायें या नीम के फूलों के १०-१५ मि.ली. रस में १-२ काली मिर्च का चूर्ण डालकर पियें। इससे शरीर में ठंडक रहेगी और गर्मी झेलने की शक्ति आयेगी, पित्त-शमन होगा और व्यक्ति वर्षभर निरोग रहेगा ।

🌺🌿प्रसूता को नीम के पत्तों का साग बना के या उसका २०-२५ मि.ली. रस सेंधा नमक के साथ देना चाहिए और थोड़ा त्रिकटु (सोंठ, काली मिर्च व पीपर का समभाग चूर्ण) मिलाकर सेवन कराना चाहिए । इससे गर्भाशय का संकोचन होता है, उसके आसपास की सूजन दूर होती है, मल साफ होता है, भूख खुल कर लगती है व बुखार नहीं आता। माता के दूध की शुद्धि होती है तथा दूध के द्वारा नीम का कुछ अंश बच्चे को मिलते रहने से उसका स्वास्थ्य बढ़िया रहता है ।

🌺🌿नीम की पत्तियों को पानी में डाल के उबाल लें और छान के पानी रख लें । इस पानी से सिर को धोते रहने से बाल सुदृढ़ होते हैं, उनका गिरना या झड़ना रुक जाता है तथा वे काले भी होने लगते हैं । सिर में होनेवाली फुंसियाँ आदि निकलनी बंद हो जाती हैं ।

🌺🌿नीम की जड़ को पानी डाल के घिसकर लगाने से मुँहासों में लाभ होता है । इस दौरान सात्त्विक सुपाच्य आहार लेना आवश्यक है ।

🌺🌿सुबह नीम के फूलों का २०-४० मि.ली. रस लेने से पित्तजन्य फोड़े-फुंसियों में शीघ्र लाभ होता है ।

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🚩☀️आश्रम स्वास्थ्य सेवा☀️🚩
🚩☀️दिनांक: 12/04/2024☀️

🩸🔸💧आयुर्वेदोक्त हृद्य-पदार्थ (Cardic Tonics)* 💧🔸🩸

🌷🍀जैसे – आम, अनार, कागजी व बिजौरा नींबू, कोकम, आँवला व देशी बेर रक्त का प्रसादन व मन को उल्लसित कर हृदय को सक्षम बनाते हैं।

🌷☘️गाय का घी, मक्खन व दूध ओज को बढ़ाकर हृदय का पोषण करते हैं।

🌷☘️गेहूँ, खजूर, कटहल, शतावरी, अश्वगंधा हृदय की मांसपेशियों को पुष्ट करते हैं।

🌷☘️अर्जुन वृक्ष की छाल व लिंडीपीपर हृदय की शिथिलता दूर करते हैं।

🌷🍀लहसुन व सोंठ वायु का शमन कर हृद्य कार्य करते हैं।

🌷☘️इसके अतिरिक्त गंगाजल, नारियल जल, चंदन, गुलाब केसर, नागरबेल के पत्ते, सेब, सुवर्ण आदि हृदय के लिए विशेष हितकर हैं।

🌷🍀गले में सोने की माला (चेन, लाकेट) व कनिष्ठिका (हाथ की सबसे छोटी उँगली) में सोने की अँगूठी पहनने से हृदय को बल मिलता है।

🌷☘️सुवर्ण-सिद्ध जल भी लाभदायी है। यह जल बनाने के लिए पानी में शुद्ध सोने के गहने डाल के उसे उबालकर लगभग आधा करें।

🌷🍀सुबह खुली हवा में पैदल चलने का व्यायाम हृदय को स्वस्थ रखता है।

🌷☘️भारत में विशेषतः पुरुष-वर्ग में हृदय रोगियों की संख्या सर्वाधिक है। भारतीय संस्कृति कि अवहेलना व पाश्चात्यों का अंधानुकरण इसका मुख्य कारण है।

🌷🍀शास्त्रनिर्दिष्ट प्राकृतिक जीवनशैली को अपनाना यह निरामय जीवन की गुरूचाबी है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2011, अंक 218, पृष्ठ संख्या 28,29


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*🚩☀️🌹आश्रम स्वास्थ्य सेवा🌹🔹*
*🚩☀️दिनांक : 11/04/2024🔹*

*♦️पौष्टिक व खनिज पदार्थों से भरपूर गोदुग्ध♦️*

*🚩☀️🔸हमारे भोजन को 2 श्रेणियों में बाँटा जा सकता है :*
*🚩☀️(1) वह जो शक्ति उत्पन्न करता है ।*
*🚩☀️(2) वह जो पोषक या आरोग्य का रक्षक है ।*
*🚩☀️इन दोनों श्रेणियों के पदार्थों की सूची में देशी गाय का दूध और उससे बनी चीजें सबसे पहले आती हैं । दूध में 101 से अधिक तत्त्व पाये जाते हैं पर उन सभीको लेकर कृत्रिमरूप से दूध का निर्माण नहीं किया जा सकता । इसी कारण प्रभावोत्पादकता की दृष्टि से अन्य कोई वस्तु दूध का स्थान नहीं ले सकती ।*

*🚩☀️🔹निम्न सभी पोषक तत्त्व देशी गाय के मात्र 1 गिलास (लगभग 250 मि.ली.) दूध से मिलते हैं :*
*🚩☀️(1) मध्यम आकार के डेढ़ अंडों जितना प्रोटीन*
*🚩☀️(2) 300 ग्राम कच्चे पालक जितना कैल्शियम*
*🚩☀️(3) 1 छोटे केले से मिले उतना पोटैशियम*
*🚩☀️(4) 45 ग्राम बादाम जितना विटामिन बी-2*
*🚩☀️(5) 120 ग्राम पत्तागोभी के समान विटामिन ए*
*🚩☀️(6) 120 ग्राम मांस के समान विटामिन बी-12*

*🔸गोदुग्ध में विद्यमान तत्त्वों की विशेषताएँ*
*🚩☀️दूध के प्रोटीन बहुत ऊँचे दर्जे के होते हैं तथा ये अत्यंत सुगमता से पच जाते हैं । इसके पूर्ण प्रोटीन मांसपेशियों का निर्माण करते हैं, सामर्थ्य को बनाये रखते हैं और खोयी हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करने में सहायक होते हैं । अतः ये युवाओं के शारीरिक, बौद्धिक विकास व सभी उम्र के लोगों के स्वास्थ्य को बनाये रखने में सहायक हैं ।*

*🔹इसमें पाया जानेवाला स्ट्रॉन्शियम रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है व हानिकारक विकिरणों से रक्षा करता है । सेरिब्रोसाइड्स मस्तिष्क एवं ज्ञानतंतुओं को पोषित करते हैं । ओमेगा-3 नाड़ियों में जमे कोलेस्ट्रॉल की सफाई करता है ।*
*🚩☀️इसका वसा अत्यंत पाचक और ग्राह्य होता है ।*

*🔸इसके क्षार हड्डियों और दाँतों का निर्माण करते हैं व उन्हें मजबूत बनाये रखते हैं । ये अम्लपित्त (hyper-acidity) निवारक व मूत्रकारक होते हैं । इसमें पाये जानेवाले चूने के क्षार विशेष सुगम शोषणीय हैं ।*

*🔹इसमें पाये जानेवाले एन्जाइम्स विषों, रोगोत्पादक विषों तथा सड़न से उत्पन्न विषों का प्रतिरोध करते हैं । ये शरीर के ग्रंथिमंडलों (जिनके ऊपर मनुष्य की शक्ति, उत्साह और वर्ण अवलम्बित होते हैं) के लिए सहायक हैं ।*

*🔸ब्रिटिश मेडिकल रिसर्च काउंसिल ने घोषित किया है कि ‘गाय का शुद्ध और ताजा दूध अन्य सभी आहारों की अपेक्षा हितकर और विश्वस्त पोषक तत्त्वों से भरा होता है और उसमें लzभदायक जीवाणु तथा स्वास्थ्यप्रद तत्त्व होते हैं ।’*

*🔹भावप्रकाश निघंटु के अनुसार बाल्यावस्था में दुग्धपान शरीर की वृद्धि करनेवाला, क्षीणता की अवस्था में क्षीणता का निवारण करनेवाला तथा वृद्धावस्था में शुक्र की रक्षा करनेवालाz होता है ।*

*🔸दूध की उपयोगिता के बारे में जो कुछ कहा जाय वह कम ही होगा । कोई भी विज्ञान, कोई भी राष्ट्र अब तक ऐसा दूसरा नया आहार-तत्त्व नहीं तैयार कर पाया जो गोदुग्ध का स्थान ले सके ।*

*🚩☀️🔹उत्तम स्वास्थ्य के इच्छुक हर व्यक्ति को देशी गाय के दूध का सेवन अवश्य करना चाहिए तथा गौ रक्षण-संवर्धन हेतु अपना कर्तव्य अवश्य निभाना चाहिए ।*

*🚩☀️♦️ध्यान दें : होल्सटीन, जर्सी आदि विदेशी पशुओं के दूध को गोदुग्ध मान के भूलकर भी न पियें । भैंस का दूध हानि नहीं करता पर यह हानि भी करता है ।*


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*🚩☀️🌹आश्रम स्वास्थ्य सेवा🌹🔹*

*🚩☀️दिनांक: 10/04/2024🔹*

*🚩☀️🌸 गुणों से भरपूर व विविध रोगों में लाभकारी : अनार*

*🚩☀️🔰 ऋषि प्रसाद अंक 292*

*🚩☀️🌸 अनार के कुछ औषधीय प्रयोग:*

*🚩☀️🌸 ❤️हृदय लाभ*

*🚩☀️अनार के दानों के 100 मि.ली. रस में 10-15 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से हृदय को लाभ होता है तथा छाती का दर्द दूर होता है। पित्त- प्रकोप शांत होता है।*

*🚩☀️🌸 शरीर की कमजोरी होने पर*

*🚩☀️अनार का 100 मि.ली. रस प्रतिदिन लगातार दो-तीन महीने तक लेने से शरीर की कमजोरी, दुबलापन, खून की कमी, जलन, बेचैनी आदि शिकायतें दूर होती हैं व हृदय को बल मिलता है। इसमें चुकंदर का 100 मि.ली. रस मिलाने से विशेष लाभ होता है।*

*🚩☀️🌸 उल्टी की शिकायत:*

*🚩☀️होने पर अनार के दानों पर काला नमक छिड़क कर चूसने से राहत मिलती है तथा मुंह का जायका सुधर जाता है।*

*🚩☀️🌸 पेट दर्द :*

*🚩☀️अनार के दानों पर पिसी हुई कालीमिर्च और काला नमक डालकर चूसने से पेट दर्द में फायदा होता है। पाचनशक्ति बढ़ती है और भूख भी खुलकर लगती है।*
*🚩☀️🌸 अनार के छिलके में छिलके में छुपा है कई बीमारियों का इलाज*

*🚩☀️🌸 खांसी, कृमि स्वप्नदोष आदि में*

*🚩☀️अनार के छिलकों को सुखाकर रख लें। खांसी में इसके छिलके को चूसने से राहत मिलती है तथा यह कृमि नाशक भी है। 2 ग्राम (आधा चम्मच चूर्ण) सुबह-शाम लेने से स्वप्नदोष तथा अधिक मासिक स्त्राव में लाभ होता है।*

*🚩☀️🌸 दस्त-पेचिश :*

*🚩☀️15 ग्राम अनार के छिलकों और दो लॉन्ग को थोड़ा कूट के एक गिलास पानी में धीमी आंच पर उबालें। चौथाई शेष रहने पर इसे छान के पिएं। यह प्रयोग दिन में दो-तीन बार करें इससे दस्त और पेचिश में आशातीत लाभ होता है।*

*🚩☀️🌸 मुंह की दुर्गंध :*

*🚩☀️15 ग्राम छिलकों को एक गिलास पानी में उबालकर उस पानी से दिन में एक-दो बार कुल्ला करें। इससे मुंह व श्वास की दुर्गंध दूर होती है।*

*🚩☀️🌸 श्वेतप्रदर :*

*🚩☀️चावल के मांड के साथ छिलकों के आधा चम्मच चूर्ण को दिन में दो बार लें।*
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*🚩☀️वैदिक शास्त्र का यह दिव्य उपहार पुण्य, लक्ष्मी, स्वास्थ्य, दीर्घायुष्य प्रदायक व मंगलकारक है ।*
*🚩☀️त्वचा मुलायम व निरोग रहती है ।*
*🚩☀️प्राकृतिक गुणों से परिपूर्ण ये अपने आप में एक औषधि है ।*
*🚩☀️केमीकल युक्त साबुन की तुलना में यह ज्यादा सुरक्षित है ।*
*🚩☀️सप्तधान्य उबटन त्वचा को भीतर से साफ़ करके डेड स्किन हटाता है । फेशियल हेयर भी कम होते हैं ।*
*🚩☀️ब्‍लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है, जिससे त्‍वचा का टेक्‍सचर बेहतर होता है ।*
*🚩☀️अगर आप अपनी त्वचा से टैन हटाना चाहते हैं तो सप्तधान्य उबटन पाउडर का इस्तेमाल किया जा सकता है ।*

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*🚩☀️♦️आश्रम स्वास्थ्य सेवा♦️🔹*
*🔹दिनांक : 09/04/2024🔹*

*🔹सप्तधान्य उबटन(Saptadhanya Ubtan)*

*🔹स्वास्थ्य व दीर्घायुष्य प्रदायक, त्वचा में लाये निखार , सप्तधान्य उबटन.*

*🔹मंगलकारक सत्पधान्य उबटन :*
*🔹गेहूँ, जौ, चावल, मूँग, चना, उड़द और तिल इन सप्तधान्यों के समभाग मिश्रण से बने , इस उबटन को लगाकर स्नान करने से पापनाशिनी ऊर्जा बनती है, जिससे तन में स्फूर्ति, मन में प्रसन्नता व विचारशक्ति में जागृति का अनुभव होता है ।*
*🔹आर्थिक व बौद्धिक दरिद्रता का नाश होकर सुख व सुसम्पन्नता की प्राप्ति होती है ।*
*🔹शरीर के अंगों में दृढ़ता व वर्ण में निखार आने से शरीर की शोभा बढ़ती है ।*
*🔹वैदिक शास्त्र का यह दिव्य उपहार पुण्य, लक्ष्मी, स्वास्थ्य, दीर्घायुष्य प्रदायक व मंगलकारक है ।*

*🔹प्रयोग-विधि:*
*🔹उबटन में पानी मिलाकर प्रथम सिर, ललाट, कंठ, छाती, नाभी, दोनों भुजाओं, जाँघों तथा पैरों पर क्रमशः लगायें ।*
*🔹फिर सम्पूर्ण शरीर पर मलकर स्नान करें ।*
*🔹(साबुन का उपयोग न करें । )*
*🔹स्वास्थ्य व दीर्घायुष्य प्रदायक, त्वचा में लाये निखार सप्तधान्य उबटन*


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♦️आश्रम स्वास्थ्य सेवा♦️
दिनांक : 08/04/2024


🌹गुलकंद (Achyutaya Gulkand)🌹

🌹गुलकंद के लाभः 

🌹गुलकंद मधुर व शीतल होने के कारण मन को आह्लाद, ह्रदय व मस्तिष्क को ठंडक पहुँचाता है।

🌹अम्लपित्त (एसिडिटी), आंतरिक गर्मी, प्यास की अधिकता, हाथ-पैर, तलवों व आँखों में जलन, घमौरियाँ, पेशाब में जलन, नाक व मल-मूत्र के मार्ग से होनेवाला रक्तस्राव, अधिक मासिक स्राव जैसी पित्तजनित व्याधियों में विशेष लाभदायी है।

🌹खून की कमी, कब्ज आदि विकारों में भी इसका सेवन अत्यंत लाभकारी है।
यह अल्सर व आँतो की सूजन को भी दूर करने में मदद करता है।

🌹गुलकंद खाने से पित्ताशामक शक्ति पैदा होती है।

🌸मात्रा: सुबह या शाम अथवा दिन में कभी भी 1 से 2 चम्मच। जिनको कब्ज की तकलीफ रहती है वह रात को 1ग्लास दूध में 1-2 चम्मच गुलकंद मिलाकर पियें तो उन्हें शीघ्र लाभ होता है।

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*♦️आश्रम स्वास्थ्य सेवा♦️*
*दिनांक : 07/04/2024*


"*🍁""ग्रीष्म ऋतु विशेष”🍁*"

*🌞ग्रीष्म ऋतु में बढ़ती गर्मी, रुक्षता, और दुर्बलता को दूर करने के लिए कुछ सरल और प्रभावी प्रयोग हैं:*

*☀️गर्मीशामक शरबत:*
*जीरा, सौंफ, धनिया, काली द्राक्ष, या किशमिश को बराबरी भागों में कूटकर मिला लें। एक चमच मिश्रण को एक ग्लास ठंडे पानी में भिगो दें। 2 घंटे बाद हाथ से मसलकर, छानकर पीने से शीतलता, स्फूर्ति और ताजगी मिलेगी।*

*☀️गर्मी से होने वाली तकलीफों के लिए:*
*दूध में समान प्रमाण में पानी मिलाकर एक चमच घी और मिश्री मिला लें। चुस्की लेकर पीने से शरीर में बल और स्निग्धता बढ़ेगी।गर्मी और पित्तजन्य तकलीफों के लिए: रात को दूध में एक चमच त्रिफला घृत मिलाकर पीने से आराम मिलेगा। दोपहर को एक चमच गुलकंद धीरे-धीरे चूसने से भी लाभ होता है।*

*☀️लू से बचने के लिए:*
*गुड़ को पानी में भिगोकर रखें। एक-दो घंटे बाद छानकर पीने से लू से रक्षा होती है।ग्रीष्म में शक्तिवर्धक: ठंडे पानी में जौ या चने का सत्तू, मिश्री और घी मिलाकर पीने से शक्ति बनी रहेगी।*

*☀️मुँह के छाले और आँखों की जलन के लिए:*
*त्रिफला चूर्ण को पानी में भिगोकर रात को पीने से लाभ होगा।*

*☀️घमौरियाँ दूर करने के लिए:*
*नीम के फूल और मिश्री का पानी में मिश्रण पीने से घमौरियाँ दूर हो जाती हैं।*

*☀️ग्रीष्म ऋतु में विहार:*
*सुबह 3 से 4 शीतली और चंद्रभेदी प्राणायाम करें। ब्राह्ममुहूर्त में उठकर शीतल हवा में घूमने जाएं। बगीचे की घास पर नंगे पैर घूमने से भी लाभ होता है। व्यायाम और परिश्रम कम करें। ग्रीष्म में सर्वाधिक बलक्षय होता है, इसलिए पति-पत्नी सहवास से बचें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।*

*☀️गर्मियों में वरदानस्वरूप हरड़ रसायन योग: लाभ:*
*यह सरल योग ग्रीष्म ऋतु में स्वास्थ्य-रक्षा हेतु परम लाभदायी है। यह त्रिदोषशामक और शरीर को शुद्ध करने वाला उत्तम रसायन योग है। इसके सेवन से अजीर्ण, अम्लपित्त , संग्रहणी, उदरशूल, अफरा, कब्ज आदि पेट के विकार दूर होते हैं। छाती और पेट में संचित कफ नष्ट होता है, जिससे श्वास, खाँसी और गले के रोगों में भी लाभ होता है। इसके नियमित सेवन से बवासीर, आमवात, वातरक्त, कमरदर्द, जीर्णज्वर, किडनी (गुर्दे) के रोग, पाण्डुरोग (पीलिया, रक्त की कमी) और यकृत के विकारों में लाभ होता है।*

*☀️यह हृदय के लिए बलदायक और श्रमहर है।विधि:*
"*100 ग्राम गुड़ में थोड़ा-सा पानी मिलाकर गाढ़ी चाशनी बना लें। इसमें 100 ग्राम बड़ी हरड़ का चूर्ण मिलाकर 1-1 ग्राम की गोलियाँ बना लें। प्रतिदिन 1 गोली चूसकर या पानी से लें। यदि शरीर मोटा है तो 1 से 4 ग्राम दिनभर में चूस सकते हैं। (यह रसायन सभी संत श्री आशारामजी आश्रम और समितियों के सेवाकेन्द्र पर उपलब्ध है।)""*"

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