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❤️⚘️नवदुर्गा ● शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
❤️⚘️नवग्रह ● सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
❤️⚘️नवरत्न ● हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
❤️⚘️नवनिधि ● पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।


❤️⚘️दस महाविद्या ● काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
❤️⚘️दस दिशाएँ ● पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
❤️⚘️दस दिक्पाल ● इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
❤️⚘️दस अवतार (विष्णुजी) ● मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
❤️⚘️दस सती ● सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।


🚨🚨🚨नोट : कृपया उपर्युक्त पोस्ट को बच्चो को कण्ठस्थ करा दे। इससे घर में भारतीय संस्कृति जीवित रहेगी।


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👑⚔️🚩 सनातन धर्म पर अद्भुत जानकारी ● यह जानकारी आपको कहीं नहीं मिलेगी और न कोई बताएगा 🙏🙏🙏

❤️⚘️दो लिंग ● नर और नारी ।
❤️⚘️दो पक्ष ● शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
❤️⚘️दो पूजा ● वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
❤️⚘️दो अयन ● उत्तरायन और दक्षिणायन।


❤️⚘️तीन देव ● ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
❤️⚘️तीन देवियाँ ● महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
❤️⚘️तीन लोक ● पृथ्वी, आकाश, पाताल।
❤️⚘️तीन गुण ● सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
❤️⚘️तीन स्थिति ● ठोस, द्रव, गेस।
❤️⚘️तीन स्तर ● प्रारंभ, मध्य, अंत।
❤️⚘️तीन पड़ाव ● बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
❤️⚘️तीन रचनाएँ ● देव, दानव, मानव।
❤️⚘️तीन अवस्था ● जागृत, मृत, बेहोशी।
❤️⚘️तीन काल ● भूत, भविष्य, वर्तमान।
❤️⚘️तीन नाड़ी ● इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
❤️⚘️तीन संध्या ● प्रात:, मध्याह्न, सायं।
❤️⚘️तीन शक्ति ● इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।


❤️⚘️चार धाम ● बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
❤️⚘️चार मुनि ● सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
❤️⚘️चार वर्ण ● ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
❤️⚘️चार निति ● साम, दाम, दंड, भेद।
❤️⚘️चार वेद ● सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
❤️⚘️चार स्त्री ● माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
❤️⚘️चार युग ● सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
❤️⚘️चार समय ● सुबह,दोपहर, शाम, रात।
❤️⚘️चार अप्सरा ● उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
❤️⚘️चार गुरु ● माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
❤️⚘️चार प्राणी ● जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
❤️⚘️चार जीव ● अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
❤️⚘️चार वाणी ● ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
❤️⚘️चार आश्रम ● ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
❤️⚘️चार भोज्य ● खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
❤️⚘️चार पुरुषार्थ ● धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
❤️⚘️चार वाद्य ● तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।


❤️⚘️पाँच तत्व ● पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
❤️⚘️पाँच देवता ● गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
❤️⚘️पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ ● आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
❤️⚘️पाँच कर्म ● रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
❤️⚘️पाँच उंगलियां ● अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
❤️⚘️पाँच पूजा उपचार ● गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य।
❤️⚘️पाँच अमृत ● दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
❤️⚘️पाँच प्रेत ● भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
❤️⚘️पाँच स्वाद ● मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
❤️⚘️पाँच वायु ● प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
❤️⚘️पाँच इन्द्रियाँ ● आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
❤️⚘️पाँच वटवृक्ष ● सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
❤️⚘️पाँच पत्ते ● आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
❤️⚘️पाँच कन्या ● अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।


❤️⚘️छ: ॠतु ● शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
❤️⚘️छ: ज्ञान के अंग ● शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
❤️⚘️छ: कर्म ● देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
❤️⚘️छ: दोष ● काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।


❤️⚘️सात छंद ● गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
❤️⚘️सात स्वर ● सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
❤️⚘️सात सुर ● षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
❤️⚘️सात चक्र ● सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मूलाधार।
❤️⚘️सात वार ● रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
❤️⚘️सात मिट्टी ● गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
❤️⚘️सात महाद्वीप ● जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
❤️⚘️सात ॠषि ● वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
❤️⚘️सात ॠषि ● वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
❤️⚘️सात धातु (शारीरिक) ● रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
❤️⚘️सात रंग ● बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
❤️⚘️सात पाताल ● अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
❤️⚘️सात पुरी ● मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
❤️⚘️सात धान्य ● गेहूँ, चना, चांवल, जौ मूँग,उड़द, बाजरा।


❤️⚘️आठ मातृका ● ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
❤️⚘️आठ लक्ष्मी ● आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
❤️⚘️आठ वसु ● अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
❤️⚘️आठ सिद्धि ● अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
❤️⚘️आठ धातु ● सोना, चांदी, तांबा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।


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👑⚔️🚩शिव शक्ति ● शिव पशुपति जगत माँ  भवानी युग युग से निरोग योग  कहानी


🌹✨️मैं शक्ति तत्व तू शिव तत्व
अशक्ति तत्व बने शव तत्व

🌹✨️तुम अदि पुरुष मैं प्रकृति
एक बीज बने नई आकृति

🌹✨️तृत्य नेत्र खोले आत्मिक द्वार
बंधन मुक्त  हो तुम  कारागार

🌹✨️मैं योग,नियोग औ' सहयोग
चिर निद्रा से जगाये वियोग

🌹✨️पांच तत्व है हमारा मिश्रण
अलग विलग सहता घर्षण

🌹✨️एक  है शीतला दूजी ज्वाला
एक हाथ ढाल दूजे में भाला

🌹✨️सत्यम शिवम् सुंदरम श्रृंगार
जीवन  मृत्यु व्यापार उपहार

🌹✨️विष ही जाने अमृत का मोल
बोल बोल बम बम बम बोल

🌹✨️हर्ष औ उल्लास है श्रावन
शादी है नैसर्गिक आवरण

🌹✨️आजीवन भव्य तेजस्वी  प्राणी
नश्वर दुनिया है आनी जानी

🌹✨️शिव पशुपति जगत माँ  भवानी
युग युग से निरोग योग  कहानी


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👑⚔️🚩सनातन धर्म में ' धर्म '  शब्द का संपूर्ण परिचय


🌹✨️धारणाद्धर्ममित्याहुः धर्मो धारयते प्रजाः। यत्स्याद्धारणसंयुक्तं स धर्म इति निश्चयः॥


⚘️ धर्म शब्द संस्कृत की 'धृ' धातु से बना है, जिसका तात्पर्य है धारण करना, आलंबन देना, पालन करना। इस प्रकार धर्म का स्पष्ट शब्दों में अर्थ है ● धारण करने योग्य आचरण धर्म है। सही और गलत की पहचान कराकर प्राणिमात्र को सदमार्ग पर चलने के लिए अग्रसर करे, वह धर्म है। जो हमारे जीवन में अनुशासन लाये वह धर्म है।


⚘️आदर्श अनुशासन वह जिसमें व्यक्ति की विचारधारा और जीवनशैली सकारात्मक हो जाती है। जब तक किसी भी व्यक्ति की सोच सकारात्मक नहीं होगी, धर्म उसे प्राप्त नहीं हो सकता है।



🌹✨️मनुस्मृति के अनुसार धर्म के 10 लक्षण होते है जो कि निम्न प्रकार है-



⚘️धृतिः क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥


⚘️अर्थात ● धैर्य, क्षमा, संयम, अस्तेय, पवित्रता, इन्द्रिय निग्रह, धी या बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना- ये धर्म के दस लक्षण कहलाते है।


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♥️⚘️ हमीर सिंह जी को पहली बार सोमनाथ मंदिर पर संकट के बारे में पता चला। उन्होंने अपनी भाभी से पूछा कि ‘क्या सोमनाथ पर संकट है?’ तब उनकी भाभी ने बताया कि दिल्ली का सूबेदार जफर खान अपने दल के साथ हमले के लिए रास्ते में है। यह बात सुनकर हमीर सिंह जी बिना खाना खाए ही खड़े हो गए। वे अपने 200 साथियों को लेकर जफर खान से लड़ने के लिए तैयारी करने लगे।


♥️⚘️ कहा जाता है कि रास्ते में हमीर सिंह जी को अंधेरी रात में किसी महिला के शोक गीत गाते हुए आवाज सुनाई दी। एक झोंपड़ी में एक वृद्ध चारण यह शोक गीत गा रही थी। हमीर सिंह ने वहाँ जाकर पूछा तो महिला ने कहा कि वह अपने मृत पुत्र के लिए शोकगीत गा रही है। इसके बाद वीर हमीर सिंह ने लाखबाई चारण नाम की वृद्धा से अपने लिए भी शोकगीत गाने को कहा और बताया कि वह सोमनाथ के लिए साका करने जा रहे हैं।


♥️⚘️ तब महिला ने कहा, “बेटा हमीर तुम विवाहित हो?” तब हमीर सिंह ने कहा कि नहीं। तब वृद्ध चारण महिला ने कहा कि रास्ते में जो मिले उससे विवाह कर लेना, क्योंकि कुँवारों को युद्ध में वीरगति प्राप्त करने भी अप्सरा वरण नहीं करती हैं। रास्ते में उन्हें द्रोणगढा गाँव में भीलों के सरदार वेगड़ा मिल गए। दोनों मित्र थे। वेगड़ा ने अपनी युवा कन्या राजबाई थी, जिसका विवाह उन्होंने हमीर सिंह से कर दिया।


♥️⚘️ वेगड़ा भी हमीर सिंह जी के साथ जफर खान के खिलाफ युद्ध के लिए अपनी 1200 सैनिकों को लेकर निकल गए। वे सोमनाथ मंदिर के प्रांगण में पहुँचकर जफर खान की सेना का इंतजार करने लगे। जफर खान अपनी सेना के साथ जैसे सोमनाथ मंदिर की ओर बढ़ा, दोनों ओर के सैनिकों में भीषण युद्ध हुआ। जफर खान के सैनिक गाजर-मूली की तरह काटे जाने लगे। आखिरकार जफर खान ने हाथियों पर लाए तोपों का इस्तेमाल शुरू कर दिया।


♥️⚘️ इससे हमीर सिंह जी की सेना को भारी नुकसान हुआ। वेगड़ा अपनी सेना के साथ बाहरी रक्षा कवच के रूप में जफर खान से लड़ रहे थे। वहीं, हमीर सिंह मंदिर और गर्भगृह को बचा रहे थे। इसी बीच जफर खान के एक महावत ने अपनी हाथी को इशारा करके वेगड़ा को रौंद दिया। हमीर सिंह के साथी वीर वेगड़ा वीरगति को प्राप्त हो गए। जफर खान ने मंदिर को तीन तरफ से घेर रखा था और चौथी तरफ समुद्र था।


♥️⚘️ जफर खान की विशाल सेना को 200 राजपूतों की सेना ने रात भर उलझा कर रखा। रात में निर्णय हुआ कि सुबह होते ही जफर खान की सेना पर हमला किया जाएगा। ऐसा ही हुआ। सिर पर केसरिया साफा बाँधे शौर्यवान राजपूतों की सेना ने जफर खान पर हमला कर दिया। दोनोें से तरफ से भीषण युद्ध हुआ था। जफर खान की विशाल सेना के बीच राजपूत वीरगति को प्राप्त होने लगे।


♥️⚘️ इसी बीच जफर खान ने भी हमीर सिंह जी पर पीछे से हमला कर दिया। उनका सिर कट कर धरती पर गिर गया, लेकिन धड़ युद्ध करता रहा। आखिरकार बेजान धड़ कब तक लड़ता? वीर हमीर सिंह गोहिल सोमनाथ को बचाते हुए भगवान शिव के धाम चले गए। अकेले 9 दिनों तक वे जफर खान को मंदिर में घुसने नहीं दिए। उधर वृद्धा चारण हमीर सिंह जी गोहिल के लिए शोकगीत गाती रहीं। ऐसा रहा है हमीरसिंह जी का स्वर्णिम इतिहास।


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👑⚔️🚩वीर हमीर सिंह गोहिल और सोमनाथ मंदिर ● लाखों की फौज लेकर सोमनाथ मंदिर तोड़ने आया जफर खान, ‘केसरी वीर’ ने 200 लोगों संग मिल 11 दिन किया युद्ध: कट गया सिर, फिर भी मलेच्छों से लड़ता रहा धड़ |



♥️⚘️भारत का कण-कण अपनी शूरवीरता कहानी कहती है। इसके पग-पग पर बलिदान की गाथा है। विदेशी आक्रांताओं से लड़ते हुए यहाँ से वीरों ने ना समय देखा और ना उम्र, ना परिवार और ना परिणाम, बस राष्ट्र और धर्म को बचाने के अपने सनातन कर्तव्यों के लिए खुद को बलि वेदी पर न्योछावर कर दिए। ऐसे लाखों शूरवीरों की कहानी भारत की इस पवित्र भूमि में समाहित है। ऐसे ही एक शूरवीर का नाम हमीर सिंहजी गोहिल है।


♥️⚘️ गहलोत राजवंश के क्षत्रिय कुल में जन्म लेने वाले महाप्रतापी हमीर सिंहजी गोहिल एक ऐसे शख्सियत हैं, जिन्होंने सनातन परंपरा के मान्य द्वादशलिंगों में से प्रथम लिंग सोमनाथ मंदिर को बचाने के लिए अपने प्राणों की चिंता नहीं की। अब हमीर सिंह गोहिल पर ‘केसरी वीर’ नाम से एक फिल्म आ रही है |


♥️⚘️अगर आप गुजरात के प्रभास पाटन में अरब सागर के किनारे स्थित महान सोमनाथ मंदिर देखने जा रहे हैं, तो हो सकता है कि आपको मंदिर के सामने घोड़े पर सवार एक व्यक्ति की मूर्ति नज़र आए या न आए। मंदिर परिसर के सामने गोल चक्कर पर खड़ी यह मूर्ति वीर हमीरजी गोहिल की है।


♥️⚘️ वीर हमीरजी गोहिल द्वारा 1299 में अलाउद्दीन खिलजी की सेनाओं के खिलाफ सोमनाथ मंदिर की रक्षा करने का उल्लेख है, अन्य संस्करणों में उन्हें गुजरात सल्तनत के महमूद बेगड़ा की सेनाओं के सामने खड़े होने के रूप में दिखाया गया है, जिन्होंने 15वीं शताब्दी के दौरान शासन किया था।


♥️⚘️ बात 13वीं शताब्दी की है। गुजरात के अमरेली जिले के अर्थिला के राजा थे भीमजी सिंह गोहिल। उनके तीन बेटे थे। दुदाजी, अर्जुनजी और हमीरजी। एक बार अपने मझले भाई अर्जुन जी के साथ लड़ाई के चक्कर में दोनों भाई के बीच विवाद हो गया और अर्जुन जी ने उन्हें सौराष्ट्र छोड़कर जाने का आदेश दे दिया। वे 200 क्षत्रियों को लेकर मारवाड़ की ओर चले गए।


♥️⚘️ कुछ समय के बाद अर्जुन जी अपनी गलती का अहसास हुआ और अपने छोटे भाई हमीर जी बुलवा भेजा। वे आपस आ गए। घर पहुँचकर वे अपने भाइयों और भाभी से मिले। इस तरह पूरी प्रजा हमीर जी के वापस आने पर खुश थी। तीनों भाई जंगलों में जाकर शिकार खेलने और युद्ध का लगातार अभ्यास करते। उनकी उम्र 16 साल थी, लेकिन अभी शादी नहीं हुई थी।


♥️⚘️ उधर, गुजरात के हालात बदल रहे थे। दिल्ली का सुल्तान मोहम्मद तुगलक द्वितीय जूनागढ़ में अपने गवर्नर शम्ससुद्दीन को हटाकर जफर खान को गवर्नर नियुक्त किया था। जफर खान बेहद ही क्रूर और धर्मांध था। वह गुजरात में हिंदुओं पर तरह-तरह से अत्याचार करता था और मंदिरों को ध्वस्त करता। जफर खान का अगला निशाना हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल सोमेश्वर धाम यानी सोमनाथ मंदिर था।


♥️⚘️ उसने सोमनाथ में रसूल खान को थानेदार नियुक्त किया और आदेश दिया को मंदिर में हिंदुओं को इकट्ठा ना होने दे। कहा जाता है कि उस दिन महाशिवरात्रि था और हर कोई भगवान शिव का अभिषेक करना चाहता था। रसूल खान ने उन्हें रोकने के लिए श्रद्धालुओें के साथ मारपीट शुरू कर दी। इसे आक्रोशित हिंदू श्रद्धालुओं ने रसूल खान को मार डाला। इससे जफर खान को सोमनाथ मंदिर पर हमला करने का मौका मिल गया।


♥️⚘️ उधर, भीमजी सिंह गोहिल और उनके दोनों बेटे बदले हालात के लिए तैयार हो रहे थे, जबकि हमीर सिंह जी को इसके बारे में जानकारी नहीं थी। एक दिन वे दरबारगढ़ आए और अपने सबसे बड़े भाई दूदाजी की पत्नी खाना माँगा। तब उनकी बड़ी भाभी ने कहा, “क्यों देवर जी, इतनी जल्दी क्या है? खाना खाकर सोमनाथ मंदिर की रक्षा के लिए साका करने जाना है?”


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👑⚔️🚩𝐊𝐄𝐒𝐀𝐑𝐈 𝐕𝐄𝐄𝐑 𝐇𝐀𝐌𝐈𝐑𝐉𝐈 𝐆𝐎𝐇𝐈𝐋 𝐀𝐍𝐃 𝐒𝐎𝐌𝐍𝐀𝐓𝐇 𝐓𝐄𝐌𝐏𝐋𝐄.


♥️⚘️In 1299 A.D., Veer Hamirji Gohil, a 16-year-old Rajput warrior chieftain from Lathi, Gujarat, who had just been married, sacrificed himself in defending the Somnath temple against the incursion of was a general of the Delhi Sultanate ruler Alauddin Khilji.


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♥️⚘️In 1299 A.D., Veer Hamirji Gohil, a 16-year-old Rajput warrior chieftain from Lathi, Gujarat, who had just been married, sacrificed himself in defending the Somnath temple against the incursion of was a general of the Delhi Sultanate ruler Alauddin Khilji.


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♥️⚘️In 1299 A.D., Veer Hamirji Gohil, a 16-year-old Rajput warrior chieftain from Lathi, Gujarat, who had just been married, sacrificed himself in defending the Somnath temple against the incursion of was a general of the Delhi Sultanate ruler Alauddin Khilji.


♥️⚘️ The youthful lion who had just achieved teenage, extremely valiant, sacrificed himself to shield the Somnath Temple. The venerated Somnath temple still has Hamirji Gohil’s memorial stone at its front gate.


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NOTE ● RANKING HAD BEEN SHOWN ACC. TO GREATNESS & CONTRIBUTIONS MADE BY THE KINGS IN THE BATTLE LIST | BAPPA RAWAL WAS KNOWN AS ' FATHER OF HINDUSTAN' BY HISTORIANS  DUE TO HIS MAJESTIC VICTORIES OVER ARAB INVADERS AND CASTED A POWERFUL EMPIRE EXTENDING TILL IRAN IRAN AT THAT TIME  | HE WON 70 BATTLES IN 16 CAMPAIGNS AGAINST ARABS ( ISLAMIC INVADERS ) & PROTECTED BHARATVARSHA FOR THE NEXT 400+ YEARS FROM ISLAMIC ATTACK .



JAI SHRI RAM ⚔️🚩🚩🚩


Репост из: 𝗦𝗔𝗡𝗔𝗧𝗔𝗡 𝗗𝗛𝗔𝗥𝗠𝗔
RAJPUT_EMPIRE_MAP_MAJOR_BATTLES_WON_BY_RAJPUTS_RAJPUTS_INSIGNIA.pdf
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RAJPUT EMPIRE MAP - MAJOR BATTLES WON BY RAJPUTS - RAJPUTS INSIGNIA.pdf


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■ रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना -
भले ही वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में श्री राम के द्वारा शंकर की पूजा करने के लिए रामेश्वरम में ज्योतिर्लिंग की स्थापना का वर्णन नहीं है, लेकिन कंबन रचित तमिल रामायण, अद्भुत रामायण और स्कंदपुराण में भगवान श्री राम के द्वारा रामेश्वरम में भगवान शंकर के ज्योतिर्लिंग की स्थापना की कहानी जरुर है। भगवान शंकरऔर श्री राम के बीच कौन किसका भक्त है ये कहना कठिन है। भगवान शिव श्री राम की भक्ति करते रामचरितमानस में नज़र आते हैं तो कई अन्य ग्रंथों में श्री राम भी भगवान शंकर के महान भक्त के रुप में देखे जाते हैं, हालांकि उत्तर भारत में यह जनमान्यता है कि श्री राम ने ही रामेश्वरम में भगवान शंकर के ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी, लेकिन वाल्मिकि रामायण और रामचरितमानस में भगवान श्री राम के द्वारा किसी भी शिव लिंग की स्थापना की कोई कथा नहीं है।


■ श्री राम का पुरोहित रावण -इसको लेकर इन ग्रंथों में दो कथाएं मिलती हैं। पहली कथा ये है कि श्री राम को जब ये लगने लगा कि रावण को भगवान शिव के आशीर्वाद के बिना हराना असंभव है तो उन्होंने रामेश्वरम में भगवान शिव के लिंग की स्थापना की। भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग की प्राण प्रतिष्ठा के लिए श्री राम के पुरोहित के रुप में स्वयं रावण आया ।


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🔱🚩 101. श्री राम और रावण ● भगवान शिव के दो महान भक्त

■ शिव क्यों हैं सबके ईश्वर - भगवान शिव वैरागी हैं। न उन्हें किसी विशेष पक्ष का समर्थन करते दिखाया गया है और न ही वो किसी के शत्रु रहे हैं। वो हमेशा सम पर स्थित रहे हैं। जहां भगवान विष्णु धर्म के अनुसार चलने वालों के पक्ष में ही खड़े दिखते हैं वहीं महादेव की शरण में अधर्मी तक को सुरक्षा प्राप्त है । जहां भगवान विष्णु को रीति रिवाजों का पालन करने वाले देवता, मनुष्य और कुछ एक महान धर्माचारी असुरों और दैत्यों की ही भक्ति प्राप्त रही वहीं भगवान शिव के यहां देवता, मनुष्य के अलावा भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस, सहित सभी प्राणियों को सुरक्षा और भक्ति प्राप्त हुई है ।

■ शिव - रावण को शास्त्रों का महान ज्ञाता माना जाता है । रावण को महादेव का अनन्य भक्त भी माना जाता है। कहा जाता है कि महादेव को प्रसन्न करने के लिए ही रावण ने शिव तांडव स्त्रोत की रचना की थी। कहा जाता है कि रावण ने ही झारखंड स्थित वैद्यनाथ धाम में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। ऐसी ही कथा रावण के द्वारा हिमाचल प्रदेश स्थित बैजनाथ धाम में भी भगवान शिव के लिंग की स्थापना के बारे में है। हालांकि वाल्मिकि रामायण औऱ तुलसी रचित रामचरितमानस में रावण को महादेव के महान भक्त के रुप में तो दिखाया गया है लेकिन रावण द्वारा स्थापित ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की कहानी अन्य ग्रंथों में ही पाई जाती है।

■ रावण को प्राप्त थी सुरक्षा - उत्तर वाल्मीकि रामायण और कई अन्य ग्रंथों में एक कथा मिलती हैं। इस कथा के अनुसार ब्रम्हा ने भूमिगत जल और संसार के प्राणियों की रक्षा के लिए राक्षसों का सृजन किया था। ब्रम्हा के द्वारा हेति और प्रहेति नामक दो राक्षसों का सृजन किया था। इन राक्षसों में प्रहेति ने संन्यास ले लिया । लेकिन हेति ने विवाह कर लिया ।

■ हेति ने काल की पुत्री भया से विवाह किया। भया और हेति का पुत्र विद्य़ुतकेशी हुआ। विद्युतकेशी की पत्नी ने अपने बच्चे को जन्म के साथ ही त्याग दिया था। इस त्यागे हुए बच्चे को भगवान शिव और माता पार्वती ने अपना दत्तक पुत्र बना लिया था । इस पुत्र का नाम भगवान शंकर ने सुकेश रखा । भगवान शिव ने अपने पुत्र सुकेश को वरदान दिया कि वो कभी भी राक्षसों का वध नहीं करेंगे और हमेशा उनकी रक्षा करेंगे । इसके बाद से राक्षसों ने भगवान विष्णु से डरना छोड़ दिया और भगवान शंकर की भक्ति करने लगे। रावण सुकेश के ही पुत्र सुमाली का नाती या दौहित्र था ।


■ शिव के दो महान भक्त में रावण को अपने माता की तरफ से राक्षस कुल प्राप्त हुआ था इस वजह से भगवान शंकर का उसे संरक्षण भी प्राप्त हुआ। दूसरे वो भगवान शंकरका महान भक्त भी था। रावण की महान शिवभक्ति ऐसी थी कि उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने दसों सिरों का बलिदान कर दिया था। रावण की ऐसी भक्ति देख कर भगवान शंकर ने उसे चंद्रहास खड़ग भी प्रदान किया था।


🔱🚩99.शिव और आयुर्वेद में संबंध

■ आयुर्वेद के अनुसार शरीर तीन जैवीय उर्जाओं या त्रिदोष से बना है, जो वात, पित्त और कफ हैं। भगवान ब्रह्मा के साथ वात की समानता है क्योंकि उनके पास कोई आकार या रूप नहीं है, लेकिन सभी रोगों की उत्पत्ति या सृजन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है। पित्त एक उग्र तत्व है जिसकी तुलना भगवान शिव से की जाती है, जो पाचन, शीर की ऊष्मा को बनाये रखना और दृष्टि आदि जैसे कार्यों के लिए जिम्मेदार है, वहीं कफ को भगवान विष्णु से जोड़कर देखा जाता है, जो पोषण और शक्ति प्रदान करते हैं। एक बहुत ही प्रसिद्ध पौराणिक कथा है, जिसमे बताया गया है कि जब देवता और असुर मिलकर अमृत के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे तब इस मंथन से हलाहल नाम का विष निकला,जिसकी वजह से पूरी सृष्टि में तबाही मचने लगी। इस तबाही को रोकने के लिए शिव ने वह विष स्वयं अपने गले में धारण किया और पूरी सृष्टि की रक्षा की इसी वजह से शिव का एक नाम नीलकंठ भी है। इसी मंथन से अमृत का घट लिए आयुर्वेद के प्रवर्तक देवता धन्वन्तरी की भी उत्पत्ति मानी गई है। इससे स्पष्ट है कि शिव और आयुर्वेद के बीच एक सीधा संबंध शुरू से ही रहा है।


🔱🚩 100.आदि योगी शिव


■ योग के बिना आयुर्वेद की कल्पना भी नहीं की जा सकती, और धर्म ग्रंथों में शिव को ही “आदियोगी” यानि सबसे पहला योगी बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले शिव ने अपनी पत्नी देवी पार्वती को योग की शिक्षा दी थी। इसके बाद भगवान शिव योग के आदि गुरु बन गए। उन्होंने पार्वती को योग के 84 आसन सिखाए जो वैदिक परम्परा से संबंधित हैं, ये 84 आसन व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ परिणाम देने की शक्ति रखते हैं, योग आसन व्यक्ति के जीवन में दोषों को मिटाते हैं और शुभ परिणामों को प्रदान करते हैं। यह व्यक्ति को स्वस्थ, धनी, खुश और सफल रहने में सक्षम बनाते है। जिस रात शिव ने योग का यह ज्ञान पार्वती को दिया उसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस रात को उत्तरी गोलार्ध में ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है कि ऊर्जाओं का एक प्राकृतिक प्रवाह होता है। पार्वती के लिए शिव का प्रेम इतना दृढ़ था कि वह कभी भी इन योग के इन रहस्यों को उनके अलावा किसी और के साथ साझा नहीं करना चाहते थे। हालांकि, देवी पार्वती लोगों को पीड़ित नहीं देख सकती थीं और इस चमत्कारिक रहस्य को उनके साथ साझा करना चाहती थीं। उनका मानना ​​था कि वैदिक योग की सही तरीके से शुरुआत करने से दुनिया के कई दुखों को दूर किया जा सकता है।

■ कथाओं के अनुसार भगवान शिव इस ज्ञान को फ़ैलाने को लेकर काफी अनिच्छुक थे। उसने सोचा कि मानव जाति के पास इन ब्रह्मांडीय शक्तियों का सम्मान करने के लिए समझ नहीं है। लेकिन, अपने प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण के साथ, पार्वती ने भगवान को उसी के लिए राजी कर लिया।

■ भगवान् शिव ने ये ज्ञान सप्त ऋषियों के साथ साझा किया और ऋषियों ने 18 सिद्धों को यह ज्ञान दिया। इन 18 सिद्धों ने हमें पृथ्वी पर दिव्य ज्ञान प्रदान किया। ऐसा माना जाता है कि 7 ऋषियों का यह उपदेश केदारनाथ के पास कांति सरोवर के तट पर हुआ था।


🔱🚩 97 .शिव ही नहीं श्रीकृष्‍ण को भी कहते हैं नटराज

■ क्‍या आप जानते हैं एक बार शक्‍ति रूपा देवी महाकाली बनीं श्रीकृष्‍ण और भोलेनाथ बने राधा और दोनों ने किया अदभुद रास और इसी के चलते कृष्‍ण कहलाये नटराज।

■ हमारी पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार अपने ताण्‍डव से सृष्‍टि का संहार करने वाले शिव शंकर को नटराज कहा जाता है क्‍योंकि नृत्‍य कला के पारंगत देव हैं। इसके बावजूद भगवान श्री कृष्‍ण को भी नटराज कहा जाता है। क्‍या कभी आपने सोचा है कि इन दोनों ही को एक समान उपाधि क्‍यों दी गयी है। आइये आज आपको सुनाते हैं भगवान श्री कृष्‍ण के नटराज बनने की कहानी। 

■ कहते हैं एक बार समस्‍त देवी देवताओं के सम्‍मुख कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर ने मंत्रमुग्‍ध करने वाला तांडव नृत्‍य किया। इस अलौकिक नृत्‍य को देख कर सभी देवगण प्रफुल्‍लित हो गए। इस नृत्‍य सभा की अध्‍यक्षता माता गौरी कर रही थीं। इस नृत्‍य से प्रभावित हो कर भगवती महाकाली ने शिव को एक वर मागने के लिए कहा और उन्‍होंने कहा कि वे अब ताण्‍डव नहीं रास करना चाहते हैं। साथ ही उन्‍होंने कहा कि उनके भक्‍तों को भी उनके नृत्‍य का आनंद मिले ऐसी उनकी इच्‍छा है। तब शिव का वरदान पूरा करने के लिए भगवती महाकाली ने ब्रज में श्रीकृष्‍ण के रूप में और शिव ने राधा के रूप में अवतरित हो कर रास किया। इसी अदभुद रास के नृत्‍य के चलते श्री कृष्‍ण को नटराज कहा जाने लगा।    



🔱🚩 98. श्रीकृष्ण द्वारा शिव की महिमा का वर्णन

समस्त जगत्के रक्षक,विभिन्न प्राणियोंकी सृष्टि करने वाले और श्रेष्ठ हैं, वे सम्पूर्ण देवता भगवान शिवसे ही प्रकट हुए है।। ऋषि-मुनि तपस्याद्वारा जिसका अन्वेषण करते हैं, उस सदा स्थिर रहने वाले अनिर्वचनीय परम सूक्ष्म तत्त्वस्वरूप सदा शिव को मैं जीवन-रक्षा के लिये नमस्कार करता हूँ। जिन अविनाशी प्रभु की मेरे द्वारा सदा ही स्तुति की गयी है, वे महादेव यहाँ मुझे अभीष्ट वरदान दें। जो पुरुष इन्द्रियों को वश में करके पवित्र होकर इस स्तोत्र का पाठ करेगा और नियमपूर्वक एक मास तक अखण्डरूप से इस पाठ को चलाता रहेगा, वह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त कर लेगा। कुन्तीनन्दन! इसके पाठ से सम्पूर्ण वेदों के स्वाध्याप का फल पाता है। क्षत्रिय समस्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर लेता है। वैश्य व्यापार कुशलता एवं महान लाभ का भागी होता है और शुद्र इहलोक में सुख तथा परलोक में सद्गति पाता है। जो लोग सम्पूर्ण दोषों का नाश करने वाले इस पुण्यजनक पवित्र स्तवराज का पाठ करके भगवान रुद्र के चिन्तन में मन लगाते हैं, वे यशस्वी होते हैं। भरतनन्दन! मनुष्य के शरीर मे जितने रोमकूप होते हैं, इस स्तोत्र का पाठ करने वाला मनुष्य उतने ही हजार वर्षो तक स्वर्ग में निवास करता


🔱🚩 96. भगवान शिव के महान भक्त श्री कृष्ण – अर्जुन


■ महाभारत में शिव की स्तुति - महाभारत में वैसे तो कई स्थानों पर देवाधिदेव महादेव की स्तुति की गई है लेकि वन पर्व और द्रोण पर्व में भगवान शिव की स्तुति विशेषकर की गई है । वन पर्व में जब अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव भील का वेष धारण करके आते हैं और अर्जुन से उनका युद्ध होता है तो अर्जुन के पराक्रम से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपने मूल स्वरुप में दर्शन देते हैं । अर्जुन भगवान शिव की स्तुति करते हैं और भगवान शिव प्रसन्न होकर उन्हें पशुपातास्त्र देने का वचन देते हैं।

■ अभिमन्यु का वध - महाभारत के द्रोण पर्व में जब अभिमन्यु का वध हो जाता है और उसके वध का मूल कारण जयद्रध को बताया जाता है तब अर्जुन दूसरे ही दिन जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा ले लेते हैं। जयद्रथ को भगवान शिव ने यह वरदान दिया था कि वो महाभारत के युद्ध में अर्जुन को छोड़कर सभी शेष पांडवो को हरा सकता है । ऐसे में जब अर्जुन त्रिगर्त नरेश की ललकार पर युद्ध भूमि से दूर चले गए थे तब द्रोण ने चक्रव्यूह की रचना की । अभिमन्यु को युधिष्ठिर और भीम यह आश्वासन देते हैं कि वो व्यूह तोड़ने के बाद उसके पीछे उसकी सहायता के लिए आएंगे, लेकिन जयद्रथ युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव को चक्रव्यूह के द्वार पर ही रोक देता है और बिना किसी की सहायता की वजह से अभिमन्यु युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं ।

■ अर्जुन की प्रतिज्ञा - अर्जुन को जब यह समाचार मिलता है तब वो इस सारे षड़यंत्र के लिए जयद्रथ को जिम्मेवार मानते हैं और बना कृष्ण से सलाह किये बिना अगले दिन सूर्यास्त से पहले जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा कर लेते हैं । अर्जुन यह प्रतिज्ञा करते हैं कि अगर कल सूर्यास्त से पहले वो जयद्रथ का वध नहीं करेंगे तो वो आत्मदाह कर लेंगे

■ कृष्ण की चिंता - जब कृष्ण अर्जुन को प्रतिज्ञा लेते देखते हैं तो वो चिंतित हो जाते हैं। उन्हें पता था कि द्रोण और कर्ण मिलकर जयद्रथ को बचा सकते हैं और अर्जुन को दिन पर युद्ध में रोक सकते है । हो सकता है कि अर्जुन की प्रतिज्ञा भंग हो जाए और उन्हे आत्मदाह करना पड़े। श्रीकृष्ण अर्जुन से सबसे ज्यादा स्नेह करते थे। वो इतने चिंतित हो जाते हैं कि वो भी युद्ध में अपने शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा को तोड़ कर अर्जुन की सहायता के लिए तैयार हो जाते हैं । लेकिन फिर श्रीकृष्ण को यह अहसास हो जाता है कि भगवान शिव अर्जुन की इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में सहयोग दे सकते हैं ।

■ श्री कृष्ण का अर्जुन को स्वप्न में कैलाश ले जाना - श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा कर एक बिस्तर पर सुला देते हैं और स्वप्न में गरुड़ पर सवार होकर अर्जुन के स्वप्न में आते हैं। अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण कैलाश पर ले जाते हैं जहां भगवान शिव निवास करते हैं। वहां अर्जुन और श्री कृष्ण को भगवान शिव दर्शन देते हैं और उनके आगमन का कारण पूछते हैं ।

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