एक उपन्यास से, कैसा लगा बताएं।।comment 👇
कैलाश की बर्फीली ऊँचाइयों पर रात गहराई हुई थी। सर्द हवा में एक अजीब सी खामोशी थी, मानो प्रकृति किसी भीषण तूफान से पहले का संकेत दे रही हो। शिव अपने दिव्य ध्यान में लीन थे। उनकी जटाओं से बहती गंगा की कल-कल धारा भी थम सी गई थी।
तभी...
एक भयावह गर्जना ने इस शांति को चीर दिया। कैलाश की घाटियों में कंपन हुआ। देवताओं और ऋषियों ने एक-दूसरे को चौंककर देखा। धुंध के बीच से घुटनों के बल झुके असुरों का एक समूह उभर आया। उनकी आँखें रक्तिम और शरीर थरथराते हुए, वे शिव के ज्योतिर्लिंग के सामने जा गिरे।
असुरों की चीखों ने माहौल को और भयावह बना दिया।
"महाकाल की जय हो!" उनके काँपते स्वर गूँजे। "हे भोलेनाथ, हमसे भूल हो गई। इस अंधकार का भार अब हमारे बस से बाहर है। हमें क्षमा करें! इस विनाश से हमें बचा लें।"
उनकी आँखों से आँसू बर्फ पर गिरे और पल भर में भाप बनकर उड़ गए। एक असुर ने अपने नुकीले पंजों से बर्फ कुरेदते हुए कहा, "हमने जो आग भड़काई थी, वह अब हमारे ही घरों को जला रही है। आप ही इस संसार को बचा सकते हैं।"
इंद्र ने आगे बढ़कर उन्हें अविश्वास भरी नजरों से देखा।
"यह क्या मज़ाक है?" उनका स्वर गूँजा।
यह छल है! ये असुर हमारी करुणा का लाभ उठाने आए हैं।"
भगवान शिव ने अपनी आँख धीरे-धीरे खोली।
उनकी दृष्टि असुरों पर पड़ी, और एक गहरा मौन छा गया। कैलाश की हवा भारी हो गई, जैसे समय खुद थम गया हो। शिव के स्वर में गहरी गंभीरता और अटल न्याय था।
"जब अधर्म अपनी सीमा पार कर जाता है," उन्होंने कहा, "तो प्रकृति खुद न्याय का मार्ग ढूँढ़ लेती है। यह विनाश तुम्हारे ही कर्मों का परिणाम है।
असुरों ने गिड़गिड़ाते हुए कहा:
"महादेव, हमें अवसर दें। हम अपने कर्म सुधारने को तैयार हैं। हमें बस इस भयावह अंत से बचा लें।"
शिव ने आकाश की ओर देखा। उनके चारों ओर बिजली की रेखाएँ नाच उठीं। "यदि तुम्हें अवसर दिया गया, तो यह भी संसार के हित में होगा। परंतु याद रखना, यह अंतिम बार है।"
एक क्षण के लिए पूरा कैलाश प्रकाश से भर गया।
असुरों ने राहत की साँस ली। देवताओं ने शिव की महिमा का गुणगान किया।
परंतु शिव की चेतावनी गूँजती रही:
"अधर्म को मिटाने की शक्ति हमेशा समय के पास होती है। और समय को मैं नियंत्रित करता हूँ।"
कैलाश की बर्फीली ऊँचाइयों पर रात गहराई हुई थी। सर्द हवा में एक अजीब सी खामोशी थी, मानो प्रकृति किसी भीषण तूफान से पहले का संकेत दे रही हो। शिव अपने दिव्य ध्यान में लीन थे। उनकी जटाओं से बहती गंगा की कल-कल धारा भी थम सी गई थी।
तभी...
एक भयावह गर्जना ने इस शांति को चीर दिया। कैलाश की घाटियों में कंपन हुआ। देवताओं और ऋषियों ने एक-दूसरे को चौंककर देखा। धुंध के बीच से घुटनों के बल झुके असुरों का एक समूह उभर आया। उनकी आँखें रक्तिम और शरीर थरथराते हुए, वे शिव के ज्योतिर्लिंग के सामने जा गिरे।
असुरों की चीखों ने माहौल को और भयावह बना दिया।
"महाकाल की जय हो!" उनके काँपते स्वर गूँजे। "हे भोलेनाथ, हमसे भूल हो गई। इस अंधकार का भार अब हमारे बस से बाहर है। हमें क्षमा करें! इस विनाश से हमें बचा लें।"
उनकी आँखों से आँसू बर्फ पर गिरे और पल भर में भाप बनकर उड़ गए। एक असुर ने अपने नुकीले पंजों से बर्फ कुरेदते हुए कहा, "हमने जो आग भड़काई थी, वह अब हमारे ही घरों को जला रही है। आप ही इस संसार को बचा सकते हैं।"
इंद्र ने आगे बढ़कर उन्हें अविश्वास भरी नजरों से देखा।
"यह क्या मज़ाक है?" उनका स्वर गूँजा।
यह छल है! ये असुर हमारी करुणा का लाभ उठाने आए हैं।"
भगवान शिव ने अपनी आँख धीरे-धीरे खोली।
उनकी दृष्टि असुरों पर पड़ी, और एक गहरा मौन छा गया। कैलाश की हवा भारी हो गई, जैसे समय खुद थम गया हो। शिव के स्वर में गहरी गंभीरता और अटल न्याय था।
"जब अधर्म अपनी सीमा पार कर जाता है," उन्होंने कहा, "तो प्रकृति खुद न्याय का मार्ग ढूँढ़ लेती है। यह विनाश तुम्हारे ही कर्मों का परिणाम है।
असुरों ने गिड़गिड़ाते हुए कहा:
"महादेव, हमें अवसर दें। हम अपने कर्म सुधारने को तैयार हैं। हमें बस इस भयावह अंत से बचा लें।"
शिव ने आकाश की ओर देखा। उनके चारों ओर बिजली की रेखाएँ नाच उठीं। "यदि तुम्हें अवसर दिया गया, तो यह भी संसार के हित में होगा। परंतु याद रखना, यह अंतिम बार है।"
एक क्षण के लिए पूरा कैलाश प्रकाश से भर गया।
असुरों ने राहत की साँस ली। देवताओं ने शिव की महिमा का गुणगान किया।
परंतु शिव की चेतावनी गूँजती रही:
"अधर्म को मिटाने की शक्ति हमेशा समय के पास होती है। और समय को मैं नियंत्रित करता हूँ।"