सर्वेषामपि मन्त्राणां देवतास्तत्फलप्रदाः । आवयोरंशसम्भूताः समुद्दिष्टाः शुचिस्मिते ॥ १३ ॥
उन सभी मन्त्रों के देवता हम दोनों के अंशों से सम्भूत हैं और हे देवि वे निर्दिष्ट फलों को देते हैं ।। १३ ।।
सर्वमन्त्रानहं वेद्मि नान्यो जानाति कश्चन । मत्प्रसादेन यः कश्चिद्वेत्ति मानवकोटिषु ॥ १४ ॥
सभी मन्त्रों को केवल मैं जानता हूँ, अन्य कोई नहीं जानता । मेरी कृपा से ही करोड़ों मनुष्यों में से कोई एक कुछ मन्त्रों को जान पाता है!
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उन सभी मन्त्रों के देवता हम दोनों के अंशों से सम्भूत हैं और हे देवि वे निर्दिष्ट फलों को देते हैं ।। १३ ।।
सर्वमन्त्रानहं वेद्मि नान्यो जानाति कश्चन । मत्प्रसादेन यः कश्चिद्वेत्ति मानवकोटिषु ॥ १४ ॥
सभी मन्त्रों को केवल मैं जानता हूँ, अन्य कोई नहीं जानता । मेरी कृपा से ही करोड़ों मनुष्यों में से कोई एक कुछ मन्त्रों को जान पाता है!
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