ROWLATT ACT (1919) जानिए APJSIR से ::::
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10 दिसम्बर 1917 को रॉलेट एक्ट की स्थापना हुई थी। इस समिति के द्वारा लगभग 4 महीनों तक “खोज” की गई और रॉलेट समिति की एक रिपोर्ट में भारत के जाबाज देशभक्तों द्वारा स्वतंत्रता के लिए किये गए बड़े-बड़े और छोटे आतंकपूर्ण कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर, बड़े उग्र रूप में प्रस्तुत किया गया था।
रॉलेट एक्ट के सभापति ने 15 अप्रैल, 1918 के दिन अपनी रिपोर्ट भारत मंत्री की सेवा में उपस्थित की और उसी दिन वह भारत में भी प्रकाशित की गई। वह रिपोर्ट “रॉलेट एक्ट की रिपोर्ट” कहलाई गयी।
रॉलेट एक्ट की स्थापना (Establishment of the Rowlatt Act) :::
मार्च 1919 में रॉलेट एक्ट में भारत में राज कर रही ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को ख़त्म करने के उद्देश्य से यह कानून बनाया गया था। यह कानून ‘सर सिडनी आर्थर टेलर रॉलेट’ की अध्यक्षता वाली समिति की शिफारिशों के आधार पर बनाया गया था।
इस एक्ट के आधार पर अंग्रेजी सरकार को कुछ ऐसे अधिकार प्राप्त हो गये थे कि वह कोई भी भारतीय व्यक्ति पर अदालत में बिना मुकदमा किये उस भारतीय को कारावास में बंद कर सकती थी।
इस क़ानून के आधार पर अपराध करने वाले को उसके खिलाफ मुकदमा करने वाले का नाम तक जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था। इस कानून का विरोध करते हुये देश में कई हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। गाँधीजी ने इन व्यापक हड़ताल का आह्वान भी किया।
रॉलेट एक्ट से उत्तेजित भारतीय जनता बहुत नाराज थी। परिषद के सभी गैर-सरकारी भारतीय सदस्य (यानी, जो औपनिवेशिक सरकार के अधिकारी नहीं थे उन्होंने कृत्यों के खिलाफ मतदान भी किया।
तब महात्मा गांधी ने एक विरोध आंदोलन का आयोजन किया जिसके फलस्वरूप अमृतसर के नरसंहार जलियांवाला बाग ,अप्रैल 1919 और उसके बाद उनके खिलाफत आंदोलन साल 1922 में हुआ। इन कृत्यों को वास्तव में कभी लागू नहीं किया गया था।
1919 में यह अधिकारिक तौर पर अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम के रूप में जाना जाता था। मार्च 1919 में यह शाही विधान परिषद द्वारा जारी हुआ। इस अधिनियम ने ब्रिटिश सरकार को आतंकवादी गतिविधियों के संदेह में किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार दे दिया।
इस एक्ट ने सरकार को इस तरह के लोगों को मुकदमे के बिना 2 साल तक गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत किया। इसने पुलिस को बिना वारंट के एक जगह खोजने की शक्ति दी। इसने प्रेस की स्वतंत्रता पर भी गंभीर प्रतिबंध लगाए। यह अधिनियम एक न्यायाधीश, सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली रॉलेट कमेटी की सिफारिशों के अनुसार पारित किया गया था।
इस अधिनियम को भारतीय नेताओं और जनता द्वारा व्यापक रूप से निंदा की गई थी। बिलों को ‘ब्लैक बिल’ के रूप में जाना जाने लगा। परिषद के भारतीय सदस्यों के सर्वसम्मति के विरोध के बावजूद यह अधिनियम पारित किया गया था, जिनमें से सभी ने विरोध में इस्तीफा दे दिया था। इनमें मोहम्मद अली जिन्ना, मदन मोहन मालवीय और मजहर उल हक शामिल थे।
इस अधिनियम के जवाब में, गांधी जी ने 24 फ़रवरी 1919 ई. को सत्याग्रह सभा की स्थापना की और 6 अप्रैल 1919 को राष्ट्रव्यापी सारी दुकानों को बंद कराया गया और बड़े रूप में प्रदर्शन किया। इसे रॉलेट सत्याग्रह कहा गया। जब कुछ प्रांतों में दंगों में कई लोगों को मार दिया था। गांधी जी ने आंदोलन को रद्द कर दिया था, खासकर पंजाब में जहां स्थिति गंभीर थी।
ब्रिटिश सरकार का प्राथमिक इरादा देश में बढ़ते राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाना था। सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलेव के दो लोकप्रिय कांग्रेस नेता गिरफ्तार किए गये थे। जब यह अधिनियम प्रभावी हुआ तब स्थिति से निपटने के लिए पंजाब में सेना को बुलाया गया तो विरोध और भी तीव्र हो गया था।
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10 दिसम्बर 1917 को रॉलेट एक्ट की स्थापना हुई थी। इस समिति के द्वारा लगभग 4 महीनों तक “खोज” की गई और रॉलेट समिति की एक रिपोर्ट में भारत के जाबाज देशभक्तों द्वारा स्वतंत्रता के लिए किये गए बड़े-बड़े और छोटे आतंकपूर्ण कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर, बड़े उग्र रूप में प्रस्तुत किया गया था।
रॉलेट एक्ट के सभापति ने 15 अप्रैल, 1918 के दिन अपनी रिपोर्ट भारत मंत्री की सेवा में उपस्थित की और उसी दिन वह भारत में भी प्रकाशित की गई। वह रिपोर्ट “रॉलेट एक्ट की रिपोर्ट” कहलाई गयी।
रॉलेट एक्ट की स्थापना (Establishment of the Rowlatt Act) :::
मार्च 1919 में रॉलेट एक्ट में भारत में राज कर रही ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को ख़त्म करने के उद्देश्य से यह कानून बनाया गया था। यह कानून ‘सर सिडनी आर्थर टेलर रॉलेट’ की अध्यक्षता वाली समिति की शिफारिशों के आधार पर बनाया गया था।
इस एक्ट के आधार पर अंग्रेजी सरकार को कुछ ऐसे अधिकार प्राप्त हो गये थे कि वह कोई भी भारतीय व्यक्ति पर अदालत में बिना मुकदमा किये उस भारतीय को कारावास में बंद कर सकती थी।
इस क़ानून के आधार पर अपराध करने वाले को उसके खिलाफ मुकदमा करने वाले का नाम तक जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था। इस कानून का विरोध करते हुये देश में कई हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। गाँधीजी ने इन व्यापक हड़ताल का आह्वान भी किया।
रॉलेट एक्ट से उत्तेजित भारतीय जनता बहुत नाराज थी। परिषद के सभी गैर-सरकारी भारतीय सदस्य (यानी, जो औपनिवेशिक सरकार के अधिकारी नहीं थे उन्होंने कृत्यों के खिलाफ मतदान भी किया।
तब महात्मा गांधी ने एक विरोध आंदोलन का आयोजन किया जिसके फलस्वरूप अमृतसर के नरसंहार जलियांवाला बाग ,अप्रैल 1919 और उसके बाद उनके खिलाफत आंदोलन साल 1922 में हुआ। इन कृत्यों को वास्तव में कभी लागू नहीं किया गया था।
1919 में यह अधिकारिक तौर पर अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम के रूप में जाना जाता था। मार्च 1919 में यह शाही विधान परिषद द्वारा जारी हुआ। इस अधिनियम ने ब्रिटिश सरकार को आतंकवादी गतिविधियों के संदेह में किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार दे दिया।
इस एक्ट ने सरकार को इस तरह के लोगों को मुकदमे के बिना 2 साल तक गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत किया। इसने पुलिस को बिना वारंट के एक जगह खोजने की शक्ति दी। इसने प्रेस की स्वतंत्रता पर भी गंभीर प्रतिबंध लगाए। यह अधिनियम एक न्यायाधीश, सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली रॉलेट कमेटी की सिफारिशों के अनुसार पारित किया गया था।
इस अधिनियम को भारतीय नेताओं और जनता द्वारा व्यापक रूप से निंदा की गई थी। बिलों को ‘ब्लैक बिल’ के रूप में जाना जाने लगा। परिषद के भारतीय सदस्यों के सर्वसम्मति के विरोध के बावजूद यह अधिनियम पारित किया गया था, जिनमें से सभी ने विरोध में इस्तीफा दे दिया था। इनमें मोहम्मद अली जिन्ना, मदन मोहन मालवीय और मजहर उल हक शामिल थे।
इस अधिनियम के जवाब में, गांधी जी ने 24 फ़रवरी 1919 ई. को सत्याग्रह सभा की स्थापना की और 6 अप्रैल 1919 को राष्ट्रव्यापी सारी दुकानों को बंद कराया गया और बड़े रूप में प्रदर्शन किया। इसे रॉलेट सत्याग्रह कहा गया। जब कुछ प्रांतों में दंगों में कई लोगों को मार दिया था। गांधी जी ने आंदोलन को रद्द कर दिया था, खासकर पंजाब में जहां स्थिति गंभीर थी।
ब्रिटिश सरकार का प्राथमिक इरादा देश में बढ़ते राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाना था। सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलेव के दो लोकप्रिय कांग्रेस नेता गिरफ्तार किए गये थे। जब यह अधिनियम प्रभावी हुआ तब स्थिति से निपटने के लिए पंजाब में सेना को बुलाया गया तो विरोध और भी तीव्र हो गया था।
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