जानिए इलेक्ट्रॉनिक शिक्षा : विशेषताएँ और चुनौतियाँ :::
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दोस्तों, पिछले तीन दशकों में जीवन के हर क्षेत्र में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी सेवाओं का काफी विस्तार हुआ है। शिक्षा क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं है। प्राचीन गुरुकुल तथा आश्रम की वाचिक परंपरा से होते हुए शिक्षा ने अनेक सोपान तय किये हैं। पिछली सदी के कमोबेश पारंपरिक श्यामपट तथा खड़िया मिट्टी (चाॅक) के दौर से गुजरते हुए इक्कीसवीं सदी के इस दूसरे दशक में पठन-पाठन का समूचा परिदृश्य बहुत बदल चुका है। आज की स्कूली शिक्षा नवयुगीन साधनों तथा युक्तियों से सुसज्जित होती जा रही है। साधारण ब्लैकबोर्ड की जगह स्मार्टबोर्ड ने ले ली है तथा विविध प्रकार के मार्कर पेन ने खड़िया मिट्टी (चाॅक) का स्थान ले लिया है। इंगित करने के लिये इस्तेमाल होने वाली स्टिक का स्थान लेज़र पॉइंटर ने ले लिया है। स्लाइड प्रोजेक्टर तथा एलसीडी प्रोजेक्टर अब हर कक्षा की अनिवार्य आवश्यकता बनते जा रहे हैं।
शिक्षा में दृश्यश्रव्य प्रणाली का प्रचलन उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। सुगम तथा बेहतर प्रस्तुतिकरण के लिये टच स्क्रीन वाले बोर्ड अब स्कूलों में इस्तेमाल किये जा रहे हैं। शिक्षण प्रणाली के तौर-तरीकों में बहुत तेज़ी से बदलाव हो रहा है। COVID-19 महामारी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन के कारण स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है। परिणामस्वरूप शिक्षा अब तेज़ी से ई-शिक्षा की ओर अग्रसर हो रही है।
इस आलेख में ई-शिक्षा की बढ़ती भूमिका, उसकी विशेषताएँ तथा इस क्षेत्र में मौजूद चुनौतियों पर विमर्श किया गया है।
ई-शिक्षा से क्या तात्पर्य है...?
ई-शिक्षा से तात्पर्य अपने स्थान पर ही इंटरनेट व अन्य संचार उपकरणों की सहायता से प्राप्त की जाने वाली शिक्षा से है।
ई-शिक्षा के विभिन्न रूप हैं, जिसमें वेब आधारित लर्निंग, मोबाइल आधारित लर्निंग या कंप्यूटर आधारित लर्निंग और वर्चुअल क्लासरूम इत्यादि शामिल हैं। आज से जब कई वर्ष पहले ई-शिक्षा की अवधारणा आई थी, तो दुनिया इसके प्रति उतनी सहज नहीं थी, परंतु समय के साथ ही ई-शिक्षा ने संपूर्ण शैक्षिक व्यवस्था में अपना स्थान बना लिया है।
ई-शिक्षा के प्रकार ::: ई-शिक्षा को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है - सिंक्रोनस (Synchronous) तथा असिंक्रोनस (Asynchronous) ::::
1) सिंक्रोनस शैक्षिक व्यवस्था - इस शैक्षिक व्यवस्था से तात्पर्य है कि ‘एक ही समय में’ अर्थात विद्यार्थी और शिक्षक अलग-अलग स्थानों से एक दूसरे से शैक्षिक संवाद करते हैं। इस तरह से किसी विषय को सीखने पर विद्यार्थी अपने प्रश्नों का तत्काल उत्तर जान पाते हैं, जिससे उनके उस विषय से संबंधित संदेह भी दूर हो जाते हैं। इसी कारण से इसे रियल टाइम लर्निंग भी कहा जाता है। इस प्रकार की ई-लर्निंग व्यवस्था में कई ऑनलाइन उपकरण की मदद से छात्रों को स्टडी मटीरियल उपलब्ध कराया जाता है। सिंक्रोनस ई-शैक्षिक व्यवस्था के कुछ उदाहरणों में ऑडियो और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, लाइव चैट तथा वर्चुअल क्लासरूम आदि शामिल हैं। ये तरीके बीते कुछ वर्षो में अधिक लोकप्रिय हो गए हैं।
2) असिंक्रोनस शैक्षिक व्यवस्था - इस शैक्षिक व्यवस्था से तात्पर्य है कि ‘एक समय में नहीं’ अर्थात यहाँ विद्यार्थी और शिक्षक के बीच वास्तविक समय में शैक्षिक संवाद करने का कोई विकल्प नहीं है। इस व्यवस्था में पाठ्क्रम से संबंधित जानकरी पहले ही उपलब्ध होती है। उदाहरण के लिये वेब आधारित अध्ययन, जिसमें विद्यार्थी किसी ऑनलाइन कोर्स, ब्लॉग, वेबसाइट, वीडियो ट्युटोरिअल्स, ई-बुक्स इत्यादि की मदद से शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस तरह की ई-शैक्षिक व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभ यह है कि विद्यार्थी किसी भी समय, जब चाहे तब शैक्षिक पाठ्यक्रमों तक पहुँच सकते हैं। यही कारण है कि छात्रों का एक बड़ा वर्ग असिंक्रोनस शैक्षिक व्यवस्था के माध्यम से अपनी पढ़ाई करना पसंद करता है।
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दोस्तों, पिछले तीन दशकों में जीवन के हर क्षेत्र में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी सेवाओं का काफी विस्तार हुआ है। शिक्षा क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं है। प्राचीन गुरुकुल तथा आश्रम की वाचिक परंपरा से होते हुए शिक्षा ने अनेक सोपान तय किये हैं। पिछली सदी के कमोबेश पारंपरिक श्यामपट तथा खड़िया मिट्टी (चाॅक) के दौर से गुजरते हुए इक्कीसवीं सदी के इस दूसरे दशक में पठन-पाठन का समूचा परिदृश्य बहुत बदल चुका है। आज की स्कूली शिक्षा नवयुगीन साधनों तथा युक्तियों से सुसज्जित होती जा रही है। साधारण ब्लैकबोर्ड की जगह स्मार्टबोर्ड ने ले ली है तथा विविध प्रकार के मार्कर पेन ने खड़िया मिट्टी (चाॅक) का स्थान ले लिया है। इंगित करने के लिये इस्तेमाल होने वाली स्टिक का स्थान लेज़र पॉइंटर ने ले लिया है। स्लाइड प्रोजेक्टर तथा एलसीडी प्रोजेक्टर अब हर कक्षा की अनिवार्य आवश्यकता बनते जा रहे हैं।
शिक्षा में दृश्यश्रव्य प्रणाली का प्रचलन उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। सुगम तथा बेहतर प्रस्तुतिकरण के लिये टच स्क्रीन वाले बोर्ड अब स्कूलों में इस्तेमाल किये जा रहे हैं। शिक्षण प्रणाली के तौर-तरीकों में बहुत तेज़ी से बदलाव हो रहा है। COVID-19 महामारी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन के कारण स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है। परिणामस्वरूप शिक्षा अब तेज़ी से ई-शिक्षा की ओर अग्रसर हो रही है।
इस आलेख में ई-शिक्षा की बढ़ती भूमिका, उसकी विशेषताएँ तथा इस क्षेत्र में मौजूद चुनौतियों पर विमर्श किया गया है।
ई-शिक्षा से क्या तात्पर्य है...?
ई-शिक्षा से तात्पर्य अपने स्थान पर ही इंटरनेट व अन्य संचार उपकरणों की सहायता से प्राप्त की जाने वाली शिक्षा से है।
ई-शिक्षा के विभिन्न रूप हैं, जिसमें वेब आधारित लर्निंग, मोबाइल आधारित लर्निंग या कंप्यूटर आधारित लर्निंग और वर्चुअल क्लासरूम इत्यादि शामिल हैं। आज से जब कई वर्ष पहले ई-शिक्षा की अवधारणा आई थी, तो दुनिया इसके प्रति उतनी सहज नहीं थी, परंतु समय के साथ ही ई-शिक्षा ने संपूर्ण शैक्षिक व्यवस्था में अपना स्थान बना लिया है।
ई-शिक्षा के प्रकार ::: ई-शिक्षा को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है - सिंक्रोनस (Synchronous) तथा असिंक्रोनस (Asynchronous) ::::
1) सिंक्रोनस शैक्षिक व्यवस्था - इस शैक्षिक व्यवस्था से तात्पर्य है कि ‘एक ही समय में’ अर्थात विद्यार्थी और शिक्षक अलग-अलग स्थानों से एक दूसरे से शैक्षिक संवाद करते हैं। इस तरह से किसी विषय को सीखने पर विद्यार्थी अपने प्रश्नों का तत्काल उत्तर जान पाते हैं, जिससे उनके उस विषय से संबंधित संदेह भी दूर हो जाते हैं। इसी कारण से इसे रियल टाइम लर्निंग भी कहा जाता है। इस प्रकार की ई-लर्निंग व्यवस्था में कई ऑनलाइन उपकरण की मदद से छात्रों को स्टडी मटीरियल उपलब्ध कराया जाता है। सिंक्रोनस ई-शैक्षिक व्यवस्था के कुछ उदाहरणों में ऑडियो और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, लाइव चैट तथा वर्चुअल क्लासरूम आदि शामिल हैं। ये तरीके बीते कुछ वर्षो में अधिक लोकप्रिय हो गए हैं।
2) असिंक्रोनस शैक्षिक व्यवस्था - इस शैक्षिक व्यवस्था से तात्पर्य है कि ‘एक समय में नहीं’ अर्थात यहाँ विद्यार्थी और शिक्षक के बीच वास्तविक समय में शैक्षिक संवाद करने का कोई विकल्प नहीं है। इस व्यवस्था में पाठ्क्रम से संबंधित जानकरी पहले ही उपलब्ध होती है। उदाहरण के लिये वेब आधारित अध्ययन, जिसमें विद्यार्थी किसी ऑनलाइन कोर्स, ब्लॉग, वेबसाइट, वीडियो ट्युटोरिअल्स, ई-बुक्स इत्यादि की मदद से शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस तरह की ई-शैक्षिक व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभ यह है कि विद्यार्थी किसी भी समय, जब चाहे तब शैक्षिक पाठ्यक्रमों तक पहुँच सकते हैं। यही कारण है कि छात्रों का एक बड़ा वर्ग असिंक्रोनस शैक्षिक व्यवस्था के माध्यम से अपनी पढ़ाई करना पसंद करता है।
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