ज़मीन पर चुनाव
सफ़ेद कुर्ते में जा रहे थे डकैत दिन में
किया लपककर प्रणाम सब ने,
वहीं बगल में एक साधु को चोर कहकर
मारा बहुत लोगों जी भर के..(१)
निकल पड़े हैं आवारे गुंडे
गिरेंगे पैरों में आकर के सबके,
कहेंगे बदलाव होगा तभी जब
गिरोह को सत्ता में लाएंगे अबके..(२)
ग़रीबों को दारू मिलेगी विदेशी
मिलेगी निठल्लों को मुर्गी की दावत,
जो पढ़ के हैं बैठे मिलेगा भरोसा
की नौकर बनाएंगे रोटी की बाबत..(३)
दाढ़ी और धोती में कौन बड़ा है
बहस का यही होगा मुद्दा अकेला,
जो हम कह रहे हैं वही सत्य शाश्वत,
जो कुछ कहा तो होगा झमेला..(४)
सड़कों को नाला स्कूलों को अड्डा,
हर एक मोड़ पर नया ठेका खुलाएंगे,
चोरी छिनौती का पुण्य कहेंगे,
औरत को बाजार बेचा करेंगे,
पत्रकारों को बढ़िया पदवी दिलवाएंगे,
फोकट में सारी दुनियां घुमाएंगे,
सरकारी परीक्षा को महंगे में बेचेंगे,
छात्र कहेगा तो डंडा बरसाएंगे,
थाने कचहरी में व्यापार होगा,
अमीरी की क़िस्मत का व्यवहार होगा,
धड़ल्ले बिकेगा तमंचा और गांजा,
लेकिन फसल का ना बाज़ार होगा,
दूध दही फल पर टैक्स लगाएंगे,
फिल्मों को हां टैक्स फ्री कर दिखाएंगे,
शहीदों की शहादत पर सियासत करवाएंगे,
लेकिन व्यवस्था ना एक बढ़ाएंगे,
बड़े कर्ज़ों को माफ़ी का हक़ होगा,
चवन्नी अठन्नी में कुड़की कराएंगे,
दुश्मन को अपनें खेमें में घुसाएंगे,
बाक़ी जो होगा ख़रीद ले आएंगे,
कहना तो चाहते थे यही लेकिन साहेब,
इसके उलट बाण बौछार होगा
गांव को अपनें अमरीका बनाएंगे,
भाषण यूं ऐसा धुंआधार होगा..(५)