यौन विषय पर कुछ जानकारी...
धात रोग एक ऐसी स्थिति है जिसमें मैथुन ना करने पर भी अनैच्छिक वीर्यस्खलन होता है। ये दिन में जागते या रात में सोते समय हो सकता है।
लक्षण: यदि किसी पुरुष को सप्ताह में तीन बार या अधिक शुक्रपात (वीर्यस्खलन) के साथ-साथ चक्कर आना, अनिद्रा, कमर और पैरों में कमजोरी या ऊर्जा में कमी अनुभव होती है तो इस समस्या को रोग के रूप में जाना जाता है।
कारण: बहुत अधिक मैथुन, हस्तमैथुन, भावनात्मक रूप से असंतुलन और शराब, धूम्रपान , नशा आदि के कारण से धातु सम्बन्धी रोग हो सकता है। ग्रंथों में धात रोग को धात सिंड्रोम आदि बताया गया है जिसमें वीर्य की हानि होने लगती है।
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार पुरुषों के शरीर में वीर्य एक महत्वपूर्ण तत्व होता है और इसका शरीर से अधिक निकलना वीर्य दोष जनित हानियों को दर्शाता है। धात रोग जैसे प्रजनन प्रणाली से संबंधित रोगों के उपचार के लिए खानपान में बदलाव और हर्बल उपचार की सलाह दी जाती है। आयुर्वेद के अनुसार शुक्र पुरुषों में पाया जाने वाला एक सफेद, चिकना, गाढ़ा और मीठा पदार्थ है जो कि गर्भोत्पादन (प्रजनन) का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त यह पुरुषों के आकर्षण, शारीरिक मजबूती, बुद्धि, विवेक, ज्ञान और कौशल में सुधार लाने में अत्याधिक सहायता करता है। इस कारण से वीर्य के नुकसान का संबंध पुरुषों की यौन शक्ति में कमी के साथ-साथ मेमोरी कम होने और मानसिक असंतुष्टि से होता है।
चरक संहिता में वीर्य के श्राव को या वीर्य के जैसे पदार्थ को शुक्लमेह (पेशाब में सफेद पदार्थ), शुक्रमेह (वीर्य का अपने आप निकलना) और सीतमेह (मीठा और ठंडा पेशाब) के रूप में उल्लिखित किया गया है। शादी से पहले यौन संबंध बनाने, कम व्यायाम करने, बहुत ज्यादा मैथुन या यौन इच्छा रखने, कम पानी पीने, अंग में चोट लगने, वसंत ऋतु में यौन क्रिया करने, डर या दुख, दिन के समय संभोग करने और गंदा भोजन करने से शुक्र धातु खराब होकर धात सिंड्रोम का रूप ले सकता है। बढ़ती आयु और अन्य रोगों के कारण धातु के खराब होने से भी धात रोग हो सकता है। धात सिंड्रोम से ग्रस्त पुरुषों को एनर्जी में कमी, लिंग का आकार घटने, पेशाब के समय जलन, प्रोत्साहन में कमी, मानसिक रोग, डिप्रेशन और शरीर में खनिज पदार्थों (मिनरल्स) की कमी अनुभव होती है।
शमन (शांत करना) और शोधन (शुद्धिकरण) थेरेपी से शुक्र धातु को वापिस से संतुलन में लाया जाता है। आयुर्वेदिक उपचार के साथ-साथ पुरुषों के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए थेरेपी दी जाती है। इसके अलावा आराम, अत्यधिक वीर्यस्खलन करने वाले कारणों को दूर कर के एवं व्यायाम की सहायता से धात रोग को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। ब्रह्मचर्य या अविवाहित जीवन की मदद से वीर्य पर पूरा नियंत्रण पाया जा सकता है एवं यौन रोगों को रोका जा सकता है।
गुडूची में मौजूद रसायन (ऊर्जादायक) गुणों की वजह से इसे धात रोग के इलाज में उपयोगी माना जाता है।
@ayurved27 पर एक अंतरलेख के अंतर्गत
अगले भाग में पुरुषों के लिए अश्वगंधा, बाला, गौक्षुरु और कपिकच्छु तथा महिलाओं के लिए शतावरी पर कुछ महत्वपूर्ण अंश ..
क्रमशः.......
धात रोग एक ऐसी स्थिति है जिसमें मैथुन ना करने पर भी अनैच्छिक वीर्यस्खलन होता है। ये दिन में जागते या रात में सोते समय हो सकता है।
लक्षण: यदि किसी पुरुष को सप्ताह में तीन बार या अधिक शुक्रपात (वीर्यस्खलन) के साथ-साथ चक्कर आना, अनिद्रा, कमर और पैरों में कमजोरी या ऊर्जा में कमी अनुभव होती है तो इस समस्या को रोग के रूप में जाना जाता है।
कारण: बहुत अधिक मैथुन, हस्तमैथुन, भावनात्मक रूप से असंतुलन और शराब, धूम्रपान , नशा आदि के कारण से धातु सम्बन्धी रोग हो सकता है। ग्रंथों में धात रोग को धात सिंड्रोम आदि बताया गया है जिसमें वीर्य की हानि होने लगती है।
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार पुरुषों के शरीर में वीर्य एक महत्वपूर्ण तत्व होता है और इसका शरीर से अधिक निकलना वीर्य दोष जनित हानियों को दर्शाता है। धात रोग जैसे प्रजनन प्रणाली से संबंधित रोगों के उपचार के लिए खानपान में बदलाव और हर्बल उपचार की सलाह दी जाती है। आयुर्वेद के अनुसार शुक्र पुरुषों में पाया जाने वाला एक सफेद, चिकना, गाढ़ा और मीठा पदार्थ है जो कि गर्भोत्पादन (प्रजनन) का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त यह पुरुषों के आकर्षण, शारीरिक मजबूती, बुद्धि, विवेक, ज्ञान और कौशल में सुधार लाने में अत्याधिक सहायता करता है। इस कारण से वीर्य के नुकसान का संबंध पुरुषों की यौन शक्ति में कमी के साथ-साथ मेमोरी कम होने और मानसिक असंतुष्टि से होता है।
चरक संहिता में वीर्य के श्राव को या वीर्य के जैसे पदार्थ को शुक्लमेह (पेशाब में सफेद पदार्थ), शुक्रमेह (वीर्य का अपने आप निकलना) और सीतमेह (मीठा और ठंडा पेशाब) के रूप में उल्लिखित किया गया है। शादी से पहले यौन संबंध बनाने, कम व्यायाम करने, बहुत ज्यादा मैथुन या यौन इच्छा रखने, कम पानी पीने, अंग में चोट लगने, वसंत ऋतु में यौन क्रिया करने, डर या दुख, दिन के समय संभोग करने और गंदा भोजन करने से शुक्र धातु खराब होकर धात सिंड्रोम का रूप ले सकता है। बढ़ती आयु और अन्य रोगों के कारण धातु के खराब होने से भी धात रोग हो सकता है। धात सिंड्रोम से ग्रस्त पुरुषों को एनर्जी में कमी, लिंग का आकार घटने, पेशाब के समय जलन, प्रोत्साहन में कमी, मानसिक रोग, डिप्रेशन और शरीर में खनिज पदार्थों (मिनरल्स) की कमी अनुभव होती है।
शमन (शांत करना) और शोधन (शुद्धिकरण) थेरेपी से शुक्र धातु को वापिस से संतुलन में लाया जाता है। आयुर्वेदिक उपचार के साथ-साथ पुरुषों के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए थेरेपी दी जाती है। इसके अलावा आराम, अत्यधिक वीर्यस्खलन करने वाले कारणों को दूर कर के एवं व्यायाम की सहायता से धात रोग को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। ब्रह्मचर्य या अविवाहित जीवन की मदद से वीर्य पर पूरा नियंत्रण पाया जा सकता है एवं यौन रोगों को रोका जा सकता है।
गुडूची में मौजूद रसायन (ऊर्जादायक) गुणों की वजह से इसे धात रोग के इलाज में उपयोगी माना जाता है।
@ayurved27 पर एक अंतरलेख के अंतर्गत
अगले भाग में पुरुषों के लिए अश्वगंधा, बाला, गौक्षुरु और कपिकच्छु तथा महिलाओं के लिए शतावरी पर कुछ महत्वपूर्ण अंश ..
क्रमशः.......