अमित आर्यावर्त (भारत योगी)


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वैदिक धर्म का प्रचार ही हमारा मकसद होना चाहिए वैदिक धर्म बचेगा तभी देश बचेगा
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मुझे ये देख कर हैरानी हुई कि मेरे साथ अधिकतर नास्तिक या विधर्मी ही जुड़े हुए हैं, मुझे लगता था कि मेरे साथ अधिकतर व्यक्ति मेरी समान विचार धारा के जुड़े होंगे , जिन्हें अपने प्राचीन इतिहास से प्रेम होगा और उन्हें वीरों योगियों की ऐतिहासिक घटनाएं जानने में रुचि होगी,

मैने कल आप सभी के साथ इस विषय के अपने एक युटुब चैनल का लिंक साझा किया था और बोला था कि सबस्क्राइब करो , टेलीग्राम पर मेरे साथ 2 ग्रुप में 7000 लोग जुड़े हुए हैं ओर व्हाट्स एप चेनल पर 1000 , किंतु कल सबस्क्राइब कितने व्यक्तियों ने किया केवल 50 से 60 व्यक्तियों ने 😄 भाई अब ये समझ नहीं आ रहा की मुझसे वो कौनसी गलती हुई कि मैं अपने साथ अपनी समान विचार धारा के कुछ 1000 व्यक्तियों को ही नहीं जोड़ पाया,

ये जो प्राचीन ऐतिहासिक घटनाएं होती हैं ना दोस्तो ये हमारे जीवन को श्रेष्ठ बनाने में बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान देती हैं

खैर मुझे जानने वालो में से अधिकतर व्यक्ति भले ही ना जुड़े किंतु वहां कहानियां तो आती ही रहेंगी क्योंकि मुझे बहुत ही आनंद आता है अपने प्राचीन आर्य श्रेष्ठ वीर वीरांगनाओं के जीवन को पढ़ने में

ओर एनीमेशन बहुत ही अच्छा माध्यम है लोगों तक जानकारी पहुंचाने का
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🚩ओ३म्🚩


यदि आपको भी वीर रस पूर्ण इतिहास की कहानियां देखना पसंद है तो आप इस चेनल को सब्सक्राइब जरूर करें और दूसरों के साथ साझा भी करें, बहुत मेहनत से वीडियो बना रहा हूं आपको साथ देना होगा मित्रो , इस चेनल को आप सभी सबस्क्राइब जरूर करें
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भाई आपका तो पता नहीं किंतु मेरा तो जीवन नास्तिकता या फिर अंधविश्वास में ही जाता यदि ऋषि दयानंद जैसा योगी जन्म नहीं लेता , मानो जीवन ही नरक होता, जातिवाद को देखकर मेरा तो मन खट्टा होने लगा था, ऋषि दयानंद ने ही सही प्रकार समझाया सनातन वैदिक धर्म क्या है वेद कितने महत्वपूर्ण हैं

ईश्वर का बार बार धन्यवाद की इस काल में कुछ ही समय पहले ऐसा योगी हमारे लिए भेजा 🙏ओ३म्🙏


भगवान बुद्ध और भीमावदी

भीमवादियों के लिए भगवान बुद्ध ने पहले ही बता दिया था आप गुण मिलाकर देख लो

भगवान बुद्ध के समय जो लोग भिक्षुक बनते थे इनमें 2 प्रकार के व्येक्ति थे एक तो वो जो वैराग्य की भावना से मोक्ष निर्वाण की खोज में भिक्षु बनते ओर दूसरे वो जो घर से फालतू थे इन्हे वैराग्य मोक्ष से कोई लेना देना नही था इन्हे तो सम्मान चाहिए था


ये जो दूसरे किस्म के लोग थे इन्हे भगवान बुद्ध अच्छे से जानते थे और इनकी पहचान करने और इन्हे संघ से बाहर निकालने के लिए भगवान बुद्ध ने कुछ नियम बनाए थे इन नियमो को पढ़ कर कोई भी इन धूर्तों को आसानी से पहचान सकता था


देखिये भगवान बुद्ध सुत्निपात के धम्मचरित सूत में क्या बता रहे हैं 


 इस सूत्र में भिक्षुओं के लिए उपदेश हैं। इसमें यह आदेश है कि बुरे भिक्षुओं को संघ से निकाल कर अच्छे भिक्षुओं को निर्वाण के लिए प्रयत्न करना चाहिए । 


धार्मिक तथा श्रेष्ठ आचरण ही उत्तम है। जो घर से बेघर हो प्रव्रजित हो कर भी मुँहफट (भीमवादी नवबोधो में ये गुण खूब भरा हुआ है)  ओर, पशु की तरह, दूसरों को सतानेवाला है उसका जीवन पापी है। वह अपने मल को बढाता है ॥ १-२॥ है



जो भिक्षु झगडालु हे और मोह से भरा है, वह बुद्ध के बताये धर्म को समझाने पर भी नहीं समझता  ३ 


जो अविद्या के वशीभूत हो सन्तो को सताता है, वह नहीं जानता कि यह पाप नरक को ले जानेवाला मार्ग है ॥ ४ ॥ (भीमवादी आज यही कार्य तो खूब करते हैं)


ऐसा भिक्षु मृत्यु के बाद नरक में पड़ता है और वह एक जन्म से दूसरे जन्म को और अन्धकार से अन्धकार को प्राप्त हो परलोक में दुःख भोगता है ॥ ५ ॥ ऐसे पापी मनुष्य को शुद्ध करना वैसा ही कठिन है जैसा कि भरे हुए कई वर्ष पुराने गूथ कूप ( = संडास ) को ॥ ६ ॥


भिक्षुओ ! पापी इच्छा, पापी विचार, पापी आचार और पापी सगतिवाले किसी को जानो तो सब मिल कर उसे निकाल दो, कचरे की तरह उसे दो, कूडे की तरह उसे हटा दो ॥ ७-८ ॥ दूर कर


पापी इच्छा, पापी आचार और पापी सगतिवाले को निकालने के बाद उन तुच्छो को बाहर कर दो जो अभ्रमण हो श्रमण वेष धारण करते हैं ॥ ९ ॥ जागरूक हो शुद्ध पुरुष शुद्ध पुरुषों की संगति करें। इस प्रकार बुद्धिमान् -मेल से हट कर दु ख का अन्त कर सकेंगे ॥ १० ॥ (आज भीमवादी भिक्षु का वेश बनाते हैं ओर हिंदुओ को कोसने में ही लगे रहते हैं)


नोट: जब कोई भीमवादी भिक्षु बनता है तो वो नफरत को मन में रखकरके भिक्षु बनता है उसे निर्वाण वैराग्य से कोई लेना देना नही आप इन नवबोध भिक्षुओं के भाषणों में ये दूसरे दर्जे के भिक्षुक के रूप देख सकते हैं परंतु दुख है की आज दुनिया का कोई भी बुद्ध को मानने वाला इस गंदगी को साफ करने के लिए इस विषय में नही बोलता जानते हो क्यों क्युकी उन्हे भारत में बुद्ध के श्रेष्ठ विचार नही बल्कि भीम वादियों की घृणित मानसिकता के सहारे भारत में बौद्ध संप्रदाय को फैलाने की असीम संभावना दिखती है 


क्या होगा इन संप्रदायों से एक और नया विवाद द्वेष ही उत्पन होगा 


जानते हो भगवान बुद्ध ने कोई संप्रदाय नहीं चलाया बुद्ध ने तो शुद्ध धर्म की बात कही यानी की अहिंसा ,करुणा, राग द्वेष से दूर, चोरी ना करना, इंद्रियों का स्वामी बनना, जब भगवान बुद्ध जीवित थे तो उनके साथ लाखो व्यक्ति जुड़े थे बुद्ध ने उस समय के जन्मजात पंडो के पाखंड का विरोध किया जीव हत्या का विरोध कीया ओर आप आज देखलो बुद्ध को मानने वाले कई देशों के लोग खूब मासाहारी हैं  इसिको तो अधर्म पाप संप्रदाय बोलते हैं

भगवान बुद्ध वेद का सम्मान करते थे हवन यज्ञ गायत्री की प्रशंसा करते थे, ओर आजके भीमवादी केवल द्वेष इसीलिए बुद्ध के कहे अनुसार भीमवादी घोर नरक में जाएंगे


नमस्ते जी 🙏 ईश्वर हम सबको सद्बुद्धि दे और दुनिया के सभी संप्रदाय समाप्त हो जाए और केवल शुद्ध धर्म ही बचे तो यह धरती सच में स्वर्ग हो जाएगी


ऋषि दयानंद के विचारों की हत्या हमने ही की है वेदों की आज्ञा का पालन हमने नहीं किया आज यही श्रेष्ठ आर्यों की संतानों के दुख का कारण है

भगदड में कितने ही लोग मर जाएं किंतु लोगों की फिर भी बुद्धि नहीं जागेगी, कुंभ में भगदड़ में मरे अब दिल्ली रेलवेस्टेशन पर मरे कीड़े मकोड़ों की तरह मर रहे श्रेष्ठ आर्यों के वंशज, केवल किसलिए जल में डुबकी लगाने के लिए

ये लोग खुद तो मरते ही हैं साथ में अपने मासूम बच्चों को भी मरवा देते हैं,

भीड़ में ओर अंजान पानी में नहीं उतरना चाहिए भीड़ जहां दिखे इसका ये अर्थ नहीं कि धर्म भी वही हैं

जो समाज के शिक्षक बने बैठे हैं यानी खुद को ब्राह्मण और आचार्य बोलते हैं जो ये बोलते हैं कि उन्होंने धर्म ग्रंथ पढ़े हैं जैसे ये शंकराचार्य कथावाचक आदि ये सभी इन भोले लोगों की मृत्यु के दोषी हैं, इन्हें दंड ईश्वर ही देगा आप ओर हम या वर्तमान की न्यायव्यवस्था इन्हें दंड नहीं सकती, क्योंकि ये लोग सत्य बोलेंगे तो इनकी धन आमदनी के साधन बंद हो जाएंगे इसीलिए सत्य जानते हुए भी नहीं बोलते भोले भले लोगों को पागल बनाए रहते हैं

आज भारत को फिर से ऋषि दयानंद जैसे अखंड ब्रह्मचारी वेदों के विद्वान महापुरुष की जरूरत है

मैं कई बार सोचता हूं की बाबा रामदेव यदि 100% ऋषि दयानंद जी के बताए मार्ग पर ही चलते तो ये बहुत बड़ा कार्य कर सकते थे, वास्तव में ऋषि दयानंद के विचारों की हत्या प्रसिद्ध आर्यसमाजी ही कर रहे हैं, जिसे ज्ञान है और वो कुछ करता नहीं वही सबसे बड़ा दोषी है,

ईश्वर के द्वारा हिसाब हम सभी का होना है बचेगा कोई नहीं

अमित आर्य


यूट्यूबर प्रशांत ने युटुब पर एड चला चला कर अपना काफी बड़ा गिरोह त्यार कर लिया है , लोग कुछ बोल दें इस यूट्यूबर के बारे में तो गैंग के सदस्यों की कमेंट में बाढ आजाती है,

सुना है कुंभ में इसकी गैंग को वहां के साधुओं ने खूब कूटा है,

धंधा है पद प्रतिष्ठा का सब चलवाता है


नमस्ते मित्रो जय श्री राम जय आर्यावर्त , आर्यावर्त की भूमि पर अनेकों देवियां हुई है जैसे माता सीता, माता द्रोपदी, माता रुक्मणि आदि आदि आइए आज आपको एक ओर देवी के बारे में बताता हूं जो सिद्धार्थ गौतम की पत्नी यशोधरा थी।

सिद्धार्थ गौतम की पत्नी यशोधरा के गुण एसे गुण एक भारतीय नारी में ही देखने को मिलते हैं पुरे संसार में और कहीं नहीं

यशोधरा के गुण भगवान से अज्ञात नहीं थे। अतः वे स्वयं उसके निवास स्थान पर गये। महाराज सुद्धोदन भी उनका भिक्षापात्र लिए साथ गये। सारिपुत्त और मोग्गल्लान भी साथ गये। भगवान ने अपने दोनों प्रमुख शिष्यों से कहा कि यशोधरा चाहे जिस प्रकार उनका वंदन करे, उसे मत रोकना ।

कोई नारी एक गृहत्यागी श्रमण के शरीर का स्पर्श नहीं कर सकती। पांव का भी नहीं। यह तो साधारण श्रमण ही नहीं, अरहंत हैं, सम्यक-संबुद्ध हैं। कोई नारी, भले उनकी पूर्वपत्नी ही क्यों न हो, उनके शरीर का स्पर्श कैसे कर सकती है? परंतु महाकारुणिक भगवान के मानस में असीम मैत्री का उत्स (स्रोत) फूट पड़ा। देवी यशोधरा आयी और उन्होंने भगवान के सम्मुख बैठ कर उनके पांव पकड़ कर मनचाही वंदना की किसी ने कोई रुकावट उत्पन्न नहीं की।

इस पर महाराज सुद्धोदन ने देवी यशोधरा के गुणों का संक्षेप में वर्णन

जब आपने घर-गृहस्थी त्याग और लौटने की कोई संभावना नहीं रही, तब राजवंश के अनेक राजकुमारों ने इस परित्यक्ता युवती के साथ संबंध जोड़ना चाहा। परंतु मेरी बेटी ने उनकी ओर नजर उठा कर भी नहीं देखा।

मेरी बेटी ने जब सुना कि आपने श्रमण वेश धारण करते हुये मुंडन कर लिया, तब से इसने भी अपने सिर का मुंडन करवा लिया।
जब से सुना कि आपने सभी गेरुए वस्त्र धारण कर लिए हैं, तब से इसने भी मुलायम राजसी वस्त्रालंकार त्याग कर, रूखे गेरुए वस्त्र धारण कर लिए।

जब से सुना कि आप एक वक्त ही भोजन ग्रहण करते हैं, तब से यह भी एकाहारी हो गयी।

जब से सुना कि आपने ऊंचे आरामदेह पलंग पर लेटना त्याग दिया है, तब से यह भी नीचे मंच पर सोने लगी।

जब से सुना कि आपने माला, गंध, विलेपन धारण करना त्याग दिया है, तब से इसने भी उन्हें छुआ तक नहीं।

जब से सुना कि आपने नृत्य, गीत, वादन आदि आमोद-प्रमोद त्याग दिये हैं, तब से इसने भी इनसे मुख मोड़ लिया।

पुस्तक :- राहुल की माता यशोधरा


आज की महिला को विशेष रूप से प्राचीन भारतवर्ष की श्रेष्ठ महिलाओं से कुछ सीखना चाहिए, आज भारत में स्त्री जाती ने अपनी मर्यादाएं भंग की हुई हैं , ना जाने कितने ही कमजोर आत्मबल के पुरुष इन महिलाओं के अत्याचार से दुखी होकर आत्महत्या कर चुके हैं , ना जाने कितने ही परिवार कानूनी रूप से प्रताड़ित हो चुके हैं,

हमारे इतिहास में महिलाओं को सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त था सभी महापुरुष माता के नाम से ही जाने जाते हैं किंतु आज सारी मर्यादाएं भंग हो चुकी है जिसका परिणाम भारतीय परिवारों का विनाश विनाश हो रहा है


राहुल गांधी हिंदुओ के पीछे क्यों पड़ा है, हिंदुओ की जाती जनगणना करवाने के पीछे इसका असली लक्ष्य केवल हिंदुओ का विनाश है, बिहार ओर तेलंगाना जैसे राज्यों में जाती जनगणना हो चुकी है

जातियां तो मुस्लिमों में भी है फ़िरकों के रूप में ओर ये तो एक दूसरे फिरके के खून के प्यासे भी हैं, पाकिस्तान में देख लो एक मुस्लिम फिरका दूसरे फिरके की हत्याएं करता है

देखिए मुस्लिमों में कितनी सारी जातियां (फिरके) हैं,
सुन्नी, शिया, सूफ़ी, अहमदिया, इस्ना अशरी, ज़ैदिया, इस्माइली, दाऊदी बोहरा, खोजा, नुसैरी.कादियानी, खारजी, कुर्द, बहाई, द्रुज, जाफ़री, इशना, अशरी, अहले हदीस, सलफ़ी. आदि आदि अनेकों अनेक, ओर सभी एक दूसरे से अत्यधिक नफरत करते हैं

राहुल गांधी मुस्लिमों की जनगणना पर कभी विचार नहीं करेगा क्योंकि लक्ष्य तो हिंदुओ के पतन का है

क्योंकि कांग्रेस की स्थापना ही अंग्रेजो ने ए ओ ह्यूम
से इसलिए करवाई ताकि भारतीयों को स्वतंत्रता के नाम पर भ्रमित किया जा सके, ये तो शुरू में कांग्रेस में आर्यसमाजी नेता जुड़ गए इसी कारण शुरू में अंग्रेज भारतीयों को मूर्ख ना बना सके फिर आर्यसमाजियों ने धीरे धीरे कांग्रेस छोड़ दी क्योंकि यहां गांधी जैसे अपनी मनमानी करवाते थे,

योगी जी का वो नारा हमेशा याद रखने योग्य है बटोगे तो कटोगे

एक रहो मजबूत रहो सनातनियों वरना भारत को ये लोग इस्लामिक देश बना डालेंगे,

ओर सभी सनातनियों को रोज प्राणायाम ध्यान बल बढ़ाने वाले धीमे राममूर्ति व्यायाम जरूर करने चाहिए यही शरीर बल बुद्धि अंत में काम आएंगे

🚩हर हर महादेव🚩


सुख दुख का कारण क्या?

मनुष्य के सुख-दुःख का कारण उसका प्रारब्ध कर्म है, ईश्वर नहीं; वेद स्वतः प्रमाण हैं-स्वामी जी कहते थे कि किसी के अच्छा बुरा होने पर लोग ईश्वर को दोष देते हैं, यह लोगों की भूल है, उनका ऐसा कहना ठीक नहीं । सुख दुख तो सब मनुष्यों के प्रारब्ध कर्म का फल है।' बातचीत के समय किसी व्यक्ति ने प्रश्न किया स्वामी जी ने श्रुति का प्रमाण दिया। उसने फिर प्रश्न किया श्रुति (के सत्यत्व) का क्या प्रमाण है? तो स्वामी जी ने कहा कि वह स्वतः प्रमाण है, जैसे सूर्य के प्रकाश के लिए दीपक की आवश्यकता नहीं, ऐसे ही स्वतः प्रमाण वेद के लिए और प्रमाण नहीं हो सकता।

यहां का कोई पण्डित उनका सामना करने का साहस न कर सका और न किसी का मुख उनके विरोध में खुला। बनारसी लोग बहुत सी झूठी बातें उड़ाते रहे कि यह कोई जर्मन ईसाई है परन्तु ये सब आरोप व्यर्थ थे। हम प्रायः जाया करते थे, परंतु जब जाते उनको अकेला न पाते थे, लोगों का जमघट लगा रहता था। करते थे।

स्त्रोत– पंडित लेखराम कृत महर्षि दयानन्द सरस्वती का जीवन चरित्र पेज नंबर 226


ये भगवा रंग तो अत्यंत प्रिय है हम सभी सनातन धर्मियों को, आने वाले ओर 50 सालों तक सनातनी बीजेपी को जिताता रहे तो भारत अत्यंत शक्तिशाली बन जाएगा, ओर सभी सनातनियों को रोज सुबह प्राणायाम ध्यान व्यायाम जरूर करना चाहिए समय पर ये शरीर और बुद्धि ही काम आएगी

🚩जय श्री राम🚩


ईसाई बन चुके पंडित को हुआ पश्चाताप

पंडित लोग १० बजे के लगभग आये। वह स्वामी जी के भोजन करने का समय था। पंडितों को आसन देकर बिठाया गया। स्वामी जी ने भोजन करके कुछ समय विश्राम किया, फिर दिन के एक बजे से बातचीत आरम्भ हुई।

वे पंडित न्यायशास्त्र में बोलते थे और स्वामी जी उनका उत्तर देते थे। पांच बजे तक उनसे बातचीत होती रही। फिर पंडित लोग चले गये और कह गये कि हम प्रातः राजा साहब को भी आपके दर्शनार्थ लावेंगे।

पंडितों ने यहां से राजा साहब के पास लौटकर स्वामी जी की बहुत स्तुति की और उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि ४ बजे सायंकाल को हम अवश्य चलेंगे। उस दिन प्रातःकाल ही से ३०-४० यूरोपियन तथा स्वदेशी पादरी लोग आ गये और कुछ मुसलमान मौलवी भी।

स्वामी जी उनसे भी संस्कृत में बोलते रहे। वह भी यथाशक्ति समझते रहे। स्वामी जी का उपदेश सुनकर एक बंगाली ब्राह्मण जो ईसाई हो गया था, बहुत रोने लगा और दुःख प्रकट किया कि यदि आप जैसे पंडित लोग हमको पहले मिलते तो हम ईसाई न होते; क्योंकि जब हम स्कूल से पढ़कर और वहां के पादरियों के आक्षेप सुनकर घर जाकर पंडितों से पूछते तो कोई भी इन प्रश्नों के सन्तोषजनक उत्तर न देता था। यदि हमको उत्तर मिलता तो हम ईसाई न होते ।

ये घटना भागलपुर की है, स्त्रोत– पंडित लेखराम कृत महर्षि दयानन्द सरस्वती का जीवन चरित्र


रक्षणाय बल का प्रयोग - 'हमने देखा कि स्वामी जी (ऋषि दयानंद) लंगोट मारे (पहने हुए) सड़क दाऊदनगर, पर जा रहे है। वहां सड़क के ऊपर कीचड़ था। एक गाड़ीवान की गाड़ी और बैल कीचड़ में फंस गये थे। स्वामी जी ने देखा कि बैल वाला बेलों को जोर-जोर से मार रहा है परन्तु वे फिर भी नहीं चलते। स्वामी जी ने जाकर बैल खोल दिये और गाड़ी को खींचकर पश्चिम की ओर शुष्कभूमि पर पहुंचा दिया। हम लोग देखकर बहुत चकित हुए कि ये इतने बलवान् हैं ! तत्पश्चात् हम आगे को चले गये । ऐसा प्रतीत होता है कि स्वामी जी (ऋषि दयानंद) कदाचित् काशी या दाऊदपुर को जा रहे थे।


आप कितने नीच हो जो अपने माता पिता की सेवा नही करते जिस लड़की से आपकी शादी हुई उसके बहकावे में आकर अपने माता पिता को गलत समझते हो और उनकी सेवा नही करते

आप कितने बड़े नीच हो जो अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर कर दिया

तुम्हारी अपने माता पिता से शिकायत कोई मायने नहीं रखती तुम्हारी मां ने तुम्हे 9 महीने कोख में रख कर अपने जीवन को दाव पर लगाकर तुम्हे पैदा किया और तुमने कल की आई हुई किसी स्त्री के लिए अपने माता पिता को त्याग दिया वाह रे नीच

भारत जैसी ऋषियों की भूमि पर वृद्धाश्रम होना एक बहुत बड़ा कलंक है कानून को इतना सख्त होना चाहिए की नीच सनतानो को भयंकर से भयंकर दंड मिले

तुम्हे नही भूलना चाहिए की बूढ़ा तुम्हे भी होना है

ये बाते उन नीच पुरुष और स्त्री के लिए हैं जो अपने माता पिता सास ससुर की सेवा नही करते उन्हे कूड़ा समझते हैं,

जब तक इस भारत भूमि पर एक भी वृद्धाश्रम है या गौचर भूमि दुष्टों के कब्जे में है तब तक ये भारत विश्वगुरू नही बन सकता

भगवान श्री राम की तरह अपने माता पिता की सेवा करो उनकी आज्ञा का पालन करो वो तुम्हारा सर मांगे देदो उन्हे

आज एक अच्छा खासा खुश परिवार शादी के बाद बिखर जाता है क्योंकि जिसे लक्ष्मी समझ कर घरमे लाय थे वो तो ताड़का निकली और नचा दिया पूरा परिवार जिसने घर जोड़ना था उसने सबको अलग अलग कर दिया

आज भारत में वृद्धाश्रम तेजी से बढ़ रहे हैं, ये खतम होते भारत की एक और निशानी है


अमित आर्यवर्त

नमस्ते जी 🚩🙏ओ३म्🚩🙏


प्रतिदिन समाधि लगाते थे

प्रातःकालीन दिनचर्या तथा समाधि-स्वामी जी रात्रि को प्रतिदिन दो बजे उठते और सी० बोल्ड नामक एक अंग्रेज के कार्यालय के आगे से होकर नीचे गंगा के कच्चे घाट पर सोइया तालाब के सामने जाया करते और वहां से शौच और स्नान कर मिट्टी लगाकर चले आते।

तीन बजे के लगभग आकर समाधि लगा, ईश्वर के ध्यान में बैठ जाते। फिर, उस समय, किसी के (वहां) आने-जाने का ध्यान तक नहीं था। एक दिन हम बहुत सवेरे गये परन्तु वह उस समय भी समाधि में थे। हम मौन हो कर बैठ गये। जब सूर्य निकला तब उठकर टहलने लगे और हमको देखकर पूछा कि तुम कब आये थे। हमने सब वृत्तांत कहा।

इस प्रकार एक दिन की बात है कि स्वामी जी रात के दो बजे के लगभग गंगा की ओर जा रहे थे। सी० बोल्ड साहब के सिपाही ने देखा और चकित हो गया कि ऐसे लम्बे शरीर वाले कौन हैं; भयभीत हो गया। साहब को जाकर सूचना दी, साहब लालटेन लेकर आये और देखा कि स्वामी जी हैं। तब सन्तरी से कह दिया कि यह जिस समय आवें आने दिया करो ताकि गंगा को चले जाया करें, कोई रोक-टोक न करे ।'

स्त्रोत– पंडित लेखराम कृत महर्षि दयानन्द सरस्वती का जीवन चरित्र


दिल्ली में इंग्लैंड के अंग्रेजो ने किया था नरसंहार हिंदू और मुसलमानों को चुन चुन कर क्रूरता से मारा था साल 1857

सिक्खों और गोरों ने अपनी संगीनों से मनुष्यों के चेहरों को बार-बार बिंधा और अधमरे करके अग्नि में जला कर सता-सता कर मारा। कुछ मुसलमानों को तांबे की शलाकों से नंगे शरीर को सिर से पांव तक जलाकर तड़फा-तड़फा कर समाप्त किया।

रसल लिखता है, "मुसलमानों को मारने से पहले उन्हें सूअर की खाल में सी दिया जाता था. उन पर सूअर की चर्बी मल दी जाती थी और फिर उनके शरीर जला दिए जाते थे। हिन्दुओं को गोमांस खिलाकर धर्मभ्रष्ट किया जाता था। इस प्रकार सारी दिल्ली मनुष्यों का बूचड़खाना बन गई। सारा नगर उजड़ गया। जो कोई फांसी और कत्ल से बचा उसे बल पूर्वक नगर से निकाल दिया गया।

होम्स लिखता है- "दिल्लो के निवासियों को विप्लव के बदले वड़ा भारी प्रायश्चित करना पड़ा। दस सहस्र स्त्री पुरुष और बालक विना घर के इधर उधर के प्रान्त में घूम रहे थे, जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया था अपना जो धन वैभव था उसे वे नगर में अपने घरों में छोड़ गये थे। उससे वे सदा के लिए हाथ धो चुके थे, क्योंकि सैनिकों ने गली-गली और घर-घर जाकर प्रत्येक मूल्यवान् वस्तु को खोजकर निकाल लिया था और जो सामान वे उठाकर नहीं ले जा सके उसे उन्होंने नष्ट कर डाला।"

अंग्रेजों ने दिल्ली पर जो अत्याचार किये उनके विषय में लार्ड एल्फिन्सटन ने सर जॉन लारेन्स को लिखा- "मोहासरों के समाप्त होने के पश्चात् हमारी सेना ने जो अत्याचार किए हैं उन्हें सुनकर हृदय फटने लगता है।

बिना मित्र व शत्रु में भेद किए ये लोग सबसे एक समान बदला ले रहे हैं। लुट में तो वास्तव में हम नादिरशाह से भी बढ़ गए।" मोहासरे के दिनों में किले के छत्ते में रोगी और घायल सैनिकों का एक हस्पताल था। जिस समय कम्पनी की सेना किले में घुसी तब हस्पताल में जितने घायल रोगी थे सब गोली से मारकर समाप्त कर दिये गये।

अन्यत्र भी जो रोगी और घायल मिले कत्ल कर दिए गए। मटगुमरी माटिन लिखता है- "जिस समय हमारी सेना ने दिल्ली प्रवेश किया तो जितने नगर निवासी नगर की दीवारों के अन्दर पाये गये उन्हें उसी स्थान पर संगीनों से मार डाला गया। आप समझ सकते हैं उनकी संख्या कितनी अधिक रही होगी। जब में आपको यह बताऊँ कि एक मकान में चालीस और पचास-पचास तक आदमी छिपे हुए थे। ये लोग विद्रोही न थे किन्तु नगर के निवासी थे, जिन्हें हमारी दयालुता और क्षमाशीलता पर विश्वास था। मुझे हर्ष है कि उनका भ्रम दूर हो गया।"

स्रोत– पुस्तक बलिदान (लेखक स्वतंत्रता-संग्राम-सेनानी स्वामी ओमानंद सरस्वती जी)

मित्रो हमारा दुर्भाग्य देखिए आज भी हमारे देश को उन नीच इंग्लैंड वासियों के दिए नाम इंडिया से ही जाना जाता है, हमारा अपना नाम भारत और आर्यावर्त विलुप्त हो चुका है,

हमारे पूर्वजों ने बहुत कष्ट सहे कम से कम उनके सम्मान में हम इतना तो कर ही सकते हैं ये इंडिया नाम की गाली अपनी जन्मभूमि का ना दें 🙏⚔️


*नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और आर्यसमाज लाहौर*

आज विश्व में भारतीयों के द्वारा अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती मनाई जा रही है, चलिए आज आपको एक इतिहास की अमर घटना सुनाता हूं

''सुना है आप देश से बाहर जाकर सेना बना रहे हैं?''

लाहौर आर्य समाज के एक सम्मेलन में महाशय कृष्ण जी ने सुभाष बाबू से पूछा, जो प्रताप अखबार के संस्थापक थे।

''जी।'' नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उत्तर दिया।

''आर्य समाज इसके लिए आपको दस हजार रुपए की थैली तत्काल भेंट करता है।''

''धन्यवाद।''

''धन्यवाद किस बात का नेताजी,'' महाशय कृष्ण जी जो उस समय गुरुकुल कांगड़ी के कुलपति के पद पर भी आसीन थे उन्होंने आगे कहा, ''जब भी आप आह्वान करेंगे, गुरुकुल कांगडी के सभी ब्रह्मचारी आपकी सेना में भर्ती होने के लिए पहुंचे जाएंगे।''

''आर्य समाज तो मेरी मां है, जिसने मुझे पैदा किया,'' सुभाष आगे बोले, ''और आजादी की जंग में जो भी भाग ले रहा है उसका किसी न किसी रूप में आर्य समाज से संबंध अवश्य है, भले ही वह किसी भी मत पंथ से संबंध रखता हो, परंतु दयानंद जी के स्वदेशी के आह्वान का उस पर प्रभाव है ही। क्योंकि स्वामी जी ने ही सबसे पहले कहा था कि स्वेदशी राज्य ही सर्वोपरि उत्तर होता है।''
..........
घटना एवं चित्र के लिए देखें
पुस्तक : जीवन संघर्ष, प्रकाशक राजपाल एंड संस, लाहौर
*चित्र : आर्य समाज के सम्मेलन के दौरान नेताजी सुभाष, महाशय कृश्न एवं अन्य आर्य नेता।*

🚩जय हो सभी क्रांतिकारियों की🚩




आर्य पुत्र महाराज हेमू जिन्हें हेमचंद्र विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है, इन्हें आखिरी हिंदू सम्राट भी कहा जाता है,

ये जन्म से क्षत्रिय नहीं थे , किंतु जब भारत भूमि पर इस्लामिक अत्याचार देखे तो इन्होंने क्षत्रिय वर्ण धारण किया और एक समय ऐसा आया जब अत्याचारी इस्लामिक आक्रांत इनके नाम से भी कांपने लगे और महाराज हेमू ने आर्य पुत्र सम्राट महाराज विक्रमादित्य की उपाधि धारण की, इसी से हम समझ सकते हैं कि ये कितने गजब के इंसान रहे होंगे

समय समय पर मां भारती की भूमि पर विशेष आत्माएं जन्म लेती रहती हैं

यदि आखिरी युद्ध में वो तीर आंख पर ना लगता तो भारत का इतिहास ओर आज का वर्तमान कुछ ओर ही होता

आपको इनके बारे में जरूर पढ़ना चाहिए बाकी मैं अपने नए चेनल पर इनके विषय में विस्तार से वीडियो डालूंगा ही


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