Dr. Dharm Guru Ji dan repost
तृतीय चरण:...
द्वितीय चरण में आयुर्वेद के अष्टांग और षडरस को समझने के पश्चात् औषधियों के गूढ़ भाव को देखते हैं। वनस्पति शास्त्र औषधियों का परिचय देता है जिससे औषधीय वनस्पति संग्रह, उनके संग्रह काल, भूमि की विशेषता,संग्रह स्थान और अभाव द्रव्य के स्थान पर अन्य द्रव्य आदि का आयुर्वेद चिकित्सा में प्रमुखता से वर्णन मिलता है। जिसे पूर्ण रूप में विस्तृत न करते हुए संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।
१ संग्रह काल का निर्धारण_ सुश्रुत के अनुसार वर्षा में पत्र , शरद में छाल, वसंत में सार और ग्रीष्म में फल संग्रह करना चाहिए, राजनिघट्ट में लिखा है हेमंत में लिया हुआ कंद, शिशिर में लिया हुआ मूल , वसंत में लिया हुआ पुष्प और ग्रीष्म में लिया हुआ पत्र गुण कारक होता है। वहीं शारंगधर कहते हैं समस्त कार्यों के लिए रस युक्त औषधियां शरद ऋतु में ग्रहण करें परंतु वमन और विरेचन की औषधियां बसंत ऋतु के अंत में ग्रहण करनी चाहिए। अधिकतर विद्वान एक मत है कि जो औषधियां सौम्य हो उनको सौम्य ऋतु में (अर्थात वर्षा शरद हेमंत), आग्नेय हो उनको आग्नेय ऋतु में संग्रह करना चाहिए।
२ भूमि, संग्रहालय की विशेषता_ पृथ्वी और जल के गुणों की अधिकता वाली भूमि से विरेचक द्रव्य लेने चाहिए अग्नि वायु और आकाश के गुणों की अधिकता वाली भूमि से वामक द्रव्य लेने चाहिए, आकाश के गुणों की अधिकता वाली भूमि से शंशमक लेने चाहिए । औषध द्रव्य लाने के बाद छाया में सुखाकर भेषजागार , गोदाम में रखना चाहिए। वनस्पति संग्रहालय स्वच्छ स्थान में , पूर्व या उत्तर की ओर द्वार वाला और अग्नि, जल, भाप , धुआं , धूल , चूहे, चौपाई आदि से सुरक्षित होना चाहिए।
३ निषिद्ध स्थानों और संग्रह करने वाली औषधियों का ज्ञान_ सांप के बिल दूषित स्थान, जल से गीले सीलन वाले स्थान और जिन स्थानों में आसपास लगातार जल भरा रहता हो उसमें उत्पन्न, श्मशान तथा जिस जमीन पर घास फूस पैदा नहीं होती तथा सड़क पर उत्पन्न औषधियों का संग्रह नहीं करना चाहिए। कीड़ों से व्याप्त, अग्नि या पाला से झुलसी हुई औषधि भी प्रयोग नहीं करनी चाहिए।
गुणहीनं भवेदवर्षा दूर्ध्व तदरूपम औषधम
अर्थात औषधि जिस रुप में संग्रहित हुई है उसी रुप में एक वर्ष रखने पर गुण हीन हो जाती है, पूर्ण गुणकारी नहीं रहती।
हिमालय पर उत्पन्न औषधियां श्रेष्ठ और ठंडी , विंध्याचल पर होने वाली श्रेष्ठ किंतु गर्म यह सिद्धांत है। उदाहरणार्थ हिमालय में पैदा हुई औषधि ब्राह्मी अन्य स्थानों में भी मिलती है किंतु गुण उसके सामने कुछ नहीं। व्यवहारिक रुप से जो औषधियां आसपास अधिक होती हैं प्रयोग करनी चाहिए। वर्तमान में औषधि संग्रह प्रणाली दोषपूर्ण है जिससे औषधियां शीघ्र ही खराब हो जाती हैं।
४ अभाव द्रव्यों के स्थान पर प्रतिनिधि द्रव्य अनेक औषधियों ऐसी हैं जिनके नाम से उन में प्रयुक्त मुख्य द्रव्य का बोध सहज होता है जैसे कस्तूरी भैरव रस, त्रिफला घृत, शंख वटी, हिंग्वाष्टक चूर्ण आदि। परंतु अनेक औषध के साथ ऐसा नहीं है जैसे आनंद भैरव, संजीवनी वटी, मृगांक रस, योगेंद्र रस, महानारायण तेल, कंदर्प पाक आदि। औषध के नाम उस में पढ़ने वाले किसी गौण द्रव्य के नाम से संबंध रखते भी देखे गए हैं जैसे चंद्रप्रभा वटी में चंद्रप्रभा नाम कचूर या कपूर और वाय विडंग का है क्योंकि चंद्रप्रभा वटी के योग में मुख्य द्रव्य शिलाजीत गूगल, लौह भस्म हैं । इसी तरह योगरत्नाकर के तालीसदी चूर्ण में तालीसपत्र गौण है मुख्य द्रव्य भांग या हरड़ है।
गौण द्रव्य और प्रतिनिधि द्रव्यों को ध्यान रखते हुए किसी भी औषधि के अभाव में अन्य औषधि प्रयोग कर सकते हैं।
इस प्रकार औषधियों के संक्षिप्त परिचय के इस तृतीय चरण को विराम देते हैं। चतुर्थ चरण में आयुर्वेद के रस रसायन तंत्र पर विचार प्रवाह होगा। इसे अनेक महानुभावों ने स्वर्ण निर्माण का विषय भी कहा है।
सादर ॐ🙏
द्वितीय चरण में आयुर्वेद के अष्टांग और षडरस को समझने के पश्चात् औषधियों के गूढ़ भाव को देखते हैं। वनस्पति शास्त्र औषधियों का परिचय देता है जिससे औषधीय वनस्पति संग्रह, उनके संग्रह काल, भूमि की विशेषता,संग्रह स्थान और अभाव द्रव्य के स्थान पर अन्य द्रव्य आदि का आयुर्वेद चिकित्सा में प्रमुखता से वर्णन मिलता है। जिसे पूर्ण रूप में विस्तृत न करते हुए संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।
१ संग्रह काल का निर्धारण_ सुश्रुत के अनुसार वर्षा में पत्र , शरद में छाल, वसंत में सार और ग्रीष्म में फल संग्रह करना चाहिए, राजनिघट्ट में लिखा है हेमंत में लिया हुआ कंद, शिशिर में लिया हुआ मूल , वसंत में लिया हुआ पुष्प और ग्रीष्म में लिया हुआ पत्र गुण कारक होता है। वहीं शारंगधर कहते हैं समस्त कार्यों के लिए रस युक्त औषधियां शरद ऋतु में ग्रहण करें परंतु वमन और विरेचन की औषधियां बसंत ऋतु के अंत में ग्रहण करनी चाहिए। अधिकतर विद्वान एक मत है कि जो औषधियां सौम्य हो उनको सौम्य ऋतु में (अर्थात वर्षा शरद हेमंत), आग्नेय हो उनको आग्नेय ऋतु में संग्रह करना चाहिए।
२ भूमि, संग्रहालय की विशेषता_ पृथ्वी और जल के गुणों की अधिकता वाली भूमि से विरेचक द्रव्य लेने चाहिए अग्नि वायु और आकाश के गुणों की अधिकता वाली भूमि से वामक द्रव्य लेने चाहिए, आकाश के गुणों की अधिकता वाली भूमि से शंशमक लेने चाहिए । औषध द्रव्य लाने के बाद छाया में सुखाकर भेषजागार , गोदाम में रखना चाहिए। वनस्पति संग्रहालय स्वच्छ स्थान में , पूर्व या उत्तर की ओर द्वार वाला और अग्नि, जल, भाप , धुआं , धूल , चूहे, चौपाई आदि से सुरक्षित होना चाहिए।
३ निषिद्ध स्थानों और संग्रह करने वाली औषधियों का ज्ञान_ सांप के बिल दूषित स्थान, जल से गीले सीलन वाले स्थान और जिन स्थानों में आसपास लगातार जल भरा रहता हो उसमें उत्पन्न, श्मशान तथा जिस जमीन पर घास फूस पैदा नहीं होती तथा सड़क पर उत्पन्न औषधियों का संग्रह नहीं करना चाहिए। कीड़ों से व्याप्त, अग्नि या पाला से झुलसी हुई औषधि भी प्रयोग नहीं करनी चाहिए।
गुणहीनं भवेदवर्षा दूर्ध्व तदरूपम औषधम
अर्थात औषधि जिस रुप में संग्रहित हुई है उसी रुप में एक वर्ष रखने पर गुण हीन हो जाती है, पूर्ण गुणकारी नहीं रहती।
हिमालय पर उत्पन्न औषधियां श्रेष्ठ और ठंडी , विंध्याचल पर होने वाली श्रेष्ठ किंतु गर्म यह सिद्धांत है। उदाहरणार्थ हिमालय में पैदा हुई औषधि ब्राह्मी अन्य स्थानों में भी मिलती है किंतु गुण उसके सामने कुछ नहीं। व्यवहारिक रुप से जो औषधियां आसपास अधिक होती हैं प्रयोग करनी चाहिए। वर्तमान में औषधि संग्रह प्रणाली दोषपूर्ण है जिससे औषधियां शीघ्र ही खराब हो जाती हैं।
४ अभाव द्रव्यों के स्थान पर प्रतिनिधि द्रव्य अनेक औषधियों ऐसी हैं जिनके नाम से उन में प्रयुक्त मुख्य द्रव्य का बोध सहज होता है जैसे कस्तूरी भैरव रस, त्रिफला घृत, शंख वटी, हिंग्वाष्टक चूर्ण आदि। परंतु अनेक औषध के साथ ऐसा नहीं है जैसे आनंद भैरव, संजीवनी वटी, मृगांक रस, योगेंद्र रस, महानारायण तेल, कंदर्प पाक आदि। औषध के नाम उस में पढ़ने वाले किसी गौण द्रव्य के नाम से संबंध रखते भी देखे गए हैं जैसे चंद्रप्रभा वटी में चंद्रप्रभा नाम कचूर या कपूर और वाय विडंग का है क्योंकि चंद्रप्रभा वटी के योग में मुख्य द्रव्य शिलाजीत गूगल, लौह भस्म हैं । इसी तरह योगरत्नाकर के तालीसदी चूर्ण में तालीसपत्र गौण है मुख्य द्रव्य भांग या हरड़ है।
गौण द्रव्य और प्रतिनिधि द्रव्यों को ध्यान रखते हुए किसी भी औषधि के अभाव में अन्य औषधि प्रयोग कर सकते हैं।
इस प्रकार औषधियों के संक्षिप्त परिचय के इस तृतीय चरण को विराम देते हैं। चतुर्थ चरण में आयुर्वेद के रस रसायन तंत्र पर विचार प्रवाह होगा। इसे अनेक महानुभावों ने स्वर्ण निर्माण का विषय भी कहा है।
सादर ॐ🙏