सुनो आज अपनी क़िस्मत सुनाता हूँ।
गिरता बहुत हूँ, पर वक़्त रहते संभल जाता हूँ।
वैसे हमदम मेरे बहुत सारे है।
पर ज़रूरत पर दोनों हाथ ख़ाली पाता हूँ।
सोचा था इस साल उसे भूल जाऊँगा।
खुद को हर लम्हा उसके क़रीब पाता हूँ।
मैंने ख़ुद बग़ावत कई बार करनी चाही।
उसकी एक आवाज़ औऱ मैं खुद को चलता पाता हूँ।
तकलीफ़ कितनी भी हो इस बेबस दिल को।
मग़र ख़ुद को मुस्कुराता पाता हूँ।
मुझे आबाद करने में चांद तारे सब थे।
आज भीड़ में भी ख़ुद को अकेला पाता हूँ।
किसी ने कहा था मुझसे हँसने से ग़म दूर हो जाते है।
अब समझे मैं बेवज़ह क्यों मुस्कुराता हूँ।
#Abhiwrites❣
गिरता बहुत हूँ, पर वक़्त रहते संभल जाता हूँ।
वैसे हमदम मेरे बहुत सारे है।
पर ज़रूरत पर दोनों हाथ ख़ाली पाता हूँ।
सोचा था इस साल उसे भूल जाऊँगा।
खुद को हर लम्हा उसके क़रीब पाता हूँ।
मैंने ख़ुद बग़ावत कई बार करनी चाही।
उसकी एक आवाज़ औऱ मैं खुद को चलता पाता हूँ।
तकलीफ़ कितनी भी हो इस बेबस दिल को।
मग़र ख़ुद को मुस्कुराता पाता हूँ।
मुझे आबाद करने में चांद तारे सब थे।
आज भीड़ में भी ख़ुद को अकेला पाता हूँ।
किसी ने कहा था मुझसे हँसने से ग़म दूर हो जाते है।
अब समझे मैं बेवज़ह क्यों मुस्कुराता हूँ।
#Abhiwrites❣