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👑⚔️🚩राजस्थान के झालावाड़ में राजपूत कौम ने बड़े स्तर पर मनाई राजपूत सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार की जयंती, ना कोई सरकार रोक पाई ना कोई समाज


सम्राट मिहिर भोज की जयंती के उपलक्ष्य में रैली निकालने को लेकर झालावाड़ में तनाव का माहौल बन गया। (Raja Mihir Bhoj Jayanti Jhalawar) जिसे देखते हुए शहर को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। पूरे जिले में इंटरनेट बंद है। हालांकि राजपूत समाज को रैली निकालने की अनुमति नहीं मिली है। मगर राजपूत समाज के रैली निकालने के ऐलान के बाद पुलिस-प्रशासन अलर्ट हो गया है।


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🌹🔅इसी तरह ये तर्क भी दिया जा सकता है कि 20वीं शताब्दी के कई बड़ी हस्तियाँ ‘गुर्जर सभा’ का हिस्सा थीं। केएम मुंशी एक गुर्जर ब्राह्मण थे, जिन्होंने सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। ‘गुर्जर सभा’ का गठन गुजराती भाषा और गुर्जर क्षेत्र की पहचान को आगे बढ़ाने के लिए बनी थी, जिसका हिस्सा महात्मा गाँधी और मोहम्मद अली जिन्ना तक थे। जिन्ना ने कहा भी था कि धरती पर हर एक गुर्जर गाँधी पर गर्व करता है।


🌹🔅प्रतिहार राजपूत: आज भी मौजूद हैं इनके वंशज आज भी ‘प्रतिहार’ वंश का क्षत्रिय समाज मौजूद है। भीनमाल, उज्जैन और कन्नौज पर इन्हीं के पूर्वजों ने शासन किया था – ऐसा माना जाता है। ये भी कहा जा रहा है कि राजस्थान और गुजरात के कुछ इलाकों को ही ‘गुर्जरदेश’ कहा जाता था, पूरे भारत को नहीं। ‘गुर्जर’ का अर्थ ‘गुजराती’ या ‘गुर्जरदेश में निवास करने वाले’ के रूप में भी किया जाता रहा है। गल्लका के शिलालेख में लिखा है कि नागभट्ट ने गुर्जरों को हराया था, जो अब तक अजेय थे।


🌹🔅इन तर्कों के आधार पर सवाल पूछा जा सकता है कि जब बागभट्ट ‘गुर्जर’ थे तो उन्होंने ‘गुर्जरों’ को कैसे हरा दिया? नागभट्ट के वंश में ही मिहिर भोज का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि ‘गुर्जरदेश’ पर विजय पाने के पश्चात ही नागभट्ट को ‘गुर्जरेश्वर’ कहा गया। मिहिर भोज के सेनापति कनलपल के बारे में भी तथ्य दिया जा सकता है कि वो ‘गुर्जर’ नहीं थे, क्योंकि आज भी गढ़वाल में परमार राजपूत रहते हैं, जो इसी समाज के हैं।


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👑🚩जानिए ‘राजपूत सम्राट मिहिर भोज’ को लेकर क्या कहता है इतिहास: जाति नहीं, क्षेत्र था गुर्जर.


🌹🔅इस लेख में हम बात करेंगे कि ‘आदिवराह’ के नाम से सिंहासन को सुशोभित करने वाले मिहिर भोज को राजपूत बताए जाने के पीछे ऐतिहासिक तथ्य क्या कहते हैं। समकालीन इतिहास में इसके बारे में कुछ है या नहीं। शिवभक्त मिहिर भोज, जिन्हें अरब के यात्री ‘भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन’ बताते थे, उनके क्षत्रिय होने के कौन से प्रमाण मौजूद हैं और किन आधार पर राजपूत संगठन आक्रोश जता रहे हैं, हम इस पर बात करेंगे।
क्षत्रिय इतिहास गौरव से भरा रहा है और राजस्थान की तरफ से भारत में दाखिल होने की कोशिश करने वाले इस्लामी आक्रांताओं को उन्होंने बार-बार धूल चटाई है। दिल्ली से कुछ ही दूरी पर स्थित मेवाड़ साम्राज्य ने मुगलों की नाक में जितना दम किया, वो कबीले तारीफ़ है। चित्तौड़ में हुए कई जौहर क्षत्रिय समाज के देश के लिए दिए गए असंख्य बलिदानों में से एक हैं। महाराणा प्रताप पूरे हिन्दू समाज के लिए पूज्य हैं। हल्दीघाटी की मिट्टी हमारे लिए पवित्र है।


🌹🔅‘गुर्जर’ और ‘गुज्जर’ के बीच का अंतर: क्षेत्र या जाति.

अब आते हैं सम्राट मिहिर भोज और ‘राजपूत इतिहास’ पर। मिहिर भोज को ‘गुर्जर सम्राट’ बताए जाने के विरोध में कुछ इतिहासकारों का कहना है कि ‘गुर्जर’ शब्द की व्याख्या करने पर हमें पता चलता है कि ये शब्द एक खास क्षेत्र के लिए प्रयोग में लाया जाता था और उस क्षेत्र के निवासियों के लिए, तभी सुथार, जैन और ब्राह्मण जैसे समुदायों में भी लोगों को गुर्जर कहा गया। बड़ौदा के जो गायकवाड़ थे, उन्हें मराठा होने के बावजूद ‘गुर्जर नरेश’ कहा गया।


🌹🔅TOI के एक लेख में वरिष्ठ पत्रकार संजीव सिंह ने ‘गुर्जर’ और ‘गुज्जर’ के बीच का अंतर भी समझाया है। उनके अनुसार, ‘गुर्जर’ शब्द का पहले पहले ‘हर्षचरित्र’ में वर्णन मिलता है, जिसे सम्राट हर्षवर्धन के राजकवि बाण ने रचा था। ये 640 ईश्वी के करीब की बात है। इसमें राजा प्रभाकरवर्धन का सिंधु, मालवा, गांधार और गुर्जर प्रदेशों में विजय अभियान का जिक्र है। कर्नाटक के ऐहोले में पुलकेशी II के समय का एक शिलालेख भी मिलता है।


🌹🔅634 ईश्वी के इस शिलालेख में लिखा है कि गुर्जर प्रदेश में राजा ने विजय अभियान चलाया था। ह्वेन सांग नाम का यात्री जब भारत आया था, तो उसने अपने संस्मरण में लिखा है कि छठी-सातवीं शताब्दी में गुर्जर नाम के एक इलाके में चावड़ा वंश के राजपूतों का राज है। बड़ौदा के मराठा शासकों को ‘गुर्जर नरेश’ इसीलिए कहा जाता था, क्योंकि पहले उनकी भूमि वही हुआ करती थी। जैन मुनि उद्योतना सूरी ने भी ‘गुर्जर’ शब्द का जिक्र किया है।


🌹🔅उन्होंने ‘कुवलयमाला’ में उन्होंने गुर्जर, सिंध और मालवा के रहने वाले लोगों के लिए उनके क्षेत्र के नाम से ही विशेषण का प्रयोग किया है। साथ ही समुदायों में उन्होंने ब्राह्मण, क्षत्रिय व भील इत्यादि के साथ-साथ ‘गुज्जर’ शब्द का प्रयोग किया है। 1172 ईश्वी के एक शिलालेख में ‘गुर्जर ब्राह्मण’ सतानंद का जिक्र है, जो कृष्णात्रेय गोत्र के थे। ये शिलालेख यादव राजा कृष्णा के समय का है। संजीव कुमार इन आधार पर बताते हैं कि ‘गुर्जर’ एक क्षेत्र था, जाति नहीं।


🌹🔅12वीं शताब्दी में चालुक्य राजा कुमारपाल सोलंकी के समय की पुस्तक ‘कुमारपालप्रबंध’ में क्षत्रिय समाज के के 36 समूहों का जिक्र किया है, जिसमें ‘गुज्जर’ नहीं हैं। गुजरात में ‘गुर्जरधरित्री’ और ‘गुर्जरत्रिकदेशे’ नाम के जगहों का जिक्र जरूर मिलता है। कश्मीर के इतिहास की सबसे बड़ी पुस्तक राजतरंगिणी में भी ‘गुर्जर’ का जिक्र नहीं है, जबकि वहाँ अभी इनकी जनसंख्या 10 लाख है। ब्राह्मणों, क्षत्रियों व जैनों में भी गुर्जरों का जिक्र है, लेकिन कहीं भी वो गुर्जर समुदाय के नहीं थे और न ही गोजीरी भाषा बोलते थे।


झांसी, मध्य प्रदेश | अलीपुरा, मध्य प्रदेश
नागौद, मध्य प्रदेश | उचेहरा, मध्य प्रदेश
दमोह, मध्य प्रदेश | सिंगोरगढ़, मध्य प्रदेश
एकलबारा, गुजरात |मियागाम, गुजरात
कर्जन, गुजरात | काठियावाड़, गुजरात
उमेटा, गुजरात | दुधरेज, गुजरात
खनेती, हिमाचल प्रदेश | कुमहारसेन, हिमाचल प्रदेश | जम्मू , जम्मू कश्मीर


🌹🔅मित्रों आइए अब जानते है प्रतिहार/परिहार वंश की शाखाओं के बारे में


भारत में परिहारों की 30 शाखा है। जो अभी तक की जानकारी मे है जिसमे इन शाखाओं की भी कई उप शाखाएँ है। जिससे आज प्रतिहार/परिहार वंश पूरे भारत वर्ष में फैल गये। भारत मे प्रतिहार राजपूत लगभग 3 हजार गांवो से भी ज्यादा जगह में निवास करते है।


🌹🔅 प्रतिहार/परिहार क्षत्रिय राजपूत वंश की शाखाएँ


⚘️(1) डाभी प्रतिहार
⚘️(2) बडगुजर प्रतिहार (राघव)
⚘️(3) मडाड प्रतिहार और खडाड प्रतिहार
⚘️(4) इंदा प्रतिहार
⚘️(5) लल्लुरा / लूलावत प्रतिहार
⚘️(6) सूरा प्रतिहार
⚘️(7) रामेटा / रामावत प्रतिहार
⚘️(8) बुद्धखेलिया प्रतिहार
⚘️(9) खुखर प्रतिहार
⚘️(10) सोधया प्रतिहार
⚘️(11) चंद्र प्रतिहार
⚘️(13) माहप प्रतिहार
⚘️(14) धांधिल प्रतिहार
⚘️(15) सिंधुका प्रतिहार
⚘️(16) डोरणा प्रतिहार
⚘️(17) सुवराण प्रतिहार
⚘️(18) कलाहँस प्रतिहार
⚘️(19) देवल प्रतिहार
⚘️(20) खरल प्रतिहार
⚘️(21) चौनिया प्रतिहार
⚘️(22) झांगरा प्रतिहार
⚘️(23) बोथा प्रतिहार
⚘️(24) चोहिल प्रतिहार
⚘️(25) फलू प्रतिहार
⚘️(26) धांधिया प्रतिहार
⚘️(27) खखढ प्रतिहार
⚘️(28) सीधकां प्रतिहार
⚘️(29) कमाष / जेठवा प्रतिहार
⚘️(30) तखी प्रतिहार

ये सभी परिहार राजाओं अथवा परिहार ठाकुरों के नाम से बनी है। आइए अब जानते है प्रतिहार वंश के महान योद्धा शासको के बारे में जिन्होंने अपनी मातृभूमि, प्रजा व राज्य के लिए सदैव ही न्यौछावर थे।


🌹🔅प्रतिहार/परिहार वंश के महान राजा


⚘️(1) राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार
⚘️(2) राजा नागभट्ट प्रतिहार
⚘️(3) राजा यशोवर्धन प्रतिहार
⚘️(4) राजा वत्सराज प्रतिहार
⚘️(5) राजा नागभट्ट द्वितीय
⚘️(6) राजा मिहिरभोज प्रतिहार
⚘️(7) राजा महेन्द्रपाल प्रतिहार
⚘️(8) राजा महिपाल प्रतिहार
⚘️(9) राजा विनायकपाल प्रतिहार
⚘️(10) राजा महेन्द्रपाल द्वितीय
⚘️(11) राजा विजयपाल प्रतिहार
⚘️(12) राजा राज्यपाल प्रतिहार
⚘️(13) राजा त्रिलोचनपाल प्रतिहार
⚘️(14) राजा यशपाल प्रतिहार
⚘️(15) राजा वीरराजदेव प्रतिहार (नागौद राज्य के संस्थापक )


🌹🔅बचपन से ही बहादुर और निडरता


मिहिरभोज प्रतिहार बचपन से ही वीर बहादुर माने जाते थे।एक बालक होने के बावजूद, देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस करते हुए उन्होंने युद्धकला और शस्त्रविधा में कठिन प्रशिक्षण लिया। राजकुमारों में सबसे प्रतापी प्रतिभाशाली और मजबूत होने के कारण, पूरा राजवंश और विदेशी आक्रमणो के समय देश के अन्य राजवंश भी उनसे बहुत उम्मीद रखते थे और देश के बाकी वंशवह उस भरोसे पर खरे उतरने वाले थे।


🌹🔅वह वैध उत्तराधिकारी साबित हुए


मिहिरभोज प्रतिहार राजपूत साम्राज्य के सबसे प्रतापी सम्राट हुए उनके राजगद्दी पर बैठते ही जैसे देश की हवा ही बदल गई । मिहिरभोज की वीरता के किस्से पूरी दूनीया मे मशूहर हुए।विदेशी आक्रमणो के समय भी लोग अपने काम मे निडर लगे रहते है। गद्दी पर बैठते ही उन्होने देश के लुटेरे,शोषण करने वाले, गरीबो को सताने वालो का चुन चुनकर सफाया कर दिया। उनके समय मे खुले घरो मे भी चोरी नही होती थी।


🌹🔅अरबी लेखो मे मिहिरभोज का है यशोगान ● अरब यात्री सुलेमान – पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं


जब वह भारत भ्रमण पर आया था। सुलेमान सम्राट मिहिरभोज के बारे में लिखता है कि इस सम्राट की बड़ी भारी सेना है। उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है। सुलेमान ने यह भी लिखा है कि भारत में सम्राट मिहिरभोज से बड़ा इस्लाम का कोई शत्रु नहीं था । मिहिरभोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की सर्वश्रेष्ठ सेना है। इसके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। ये भी कहा जाता है।कि उसके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी।


🌹🔅बगदाद का निवासी अल मसूदी 915ई.-916ई


वह कहता है कि (जुज्र) प्रतिहार साम्राज्य में 90,000 गांव, नगर तथा ग्रामीण क्षेत्र थे तथा यह दो हजार किलोमीटर लंबा और दो हजार किलोमीटर चौड़ा था। राजा की सेना के चार अंग थे और प्रत्येक में सात लाख से नौ लाख सैनिक थे। उत्तर की सेना लेकर वह मुलतान के बादशाह और दूसरे मुसलमानों के विरूद्घ युद्घ लड़ता है। उसकी घुड़सवार सेना देश भर में प्रसिद्घ थी।जिस समय अल मसूदी भारत आया था उस समय मिहिरभोज तो स्वर्ग सिधार चुके थे परंतु प्रतिहार शक्ति के विषय में अल मसूदी का उपरोक्त विवरण मिहिरभोज के प्रताप से खड़े साम्राज्य की ओर संकेत करते हुए अंतत: स्वतंत्रता संघर्ष के इसी स्मारक पर फूल चढ़ाता सा प्रतीत होता है। समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया था,क्योंकि प्रतिहार राजपूत राजाओं ने 11 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवर्त का महान सम्राट कहा जाता था।


🌹🔅 प्रतिहार शैली कला


भारत मे कोई ऐसा स्थान नही बचा जहां प्रतिहारो ने अपनी तलवार और निर्माण कला का जौहर ना दिखाया हो। प्रतिहारो ने सैकडो मंदिर व किले के निर्माण किए थे जिसमे शास्त्रबहु मंदिर, बटेश्वर मंदिर, मण्डौर किला, जालौर किला, ग्वालियर किला, कुचामल किला, पडावली मंदिर, मिहिर बावडी, चौसठ योगिनी मंदिर आदि इनके अलावा सैकडो इलाके व ठिकाने है जहाँ प्रतिहारो ने अपनी कला का प्रदर्शन किया ।


🌹🔅लक्ष्मणवंशी प्रतिहार राजपूतों का परिचय

⚘️वर्ण – क्षत्रिय
⚘️राजवंश – प्रतिहार वंश
⚘️वंश – सूर्यवंशी
⚘️गोत्र – कौशिक
⚘️वेद – यजुर्वेद
⚘️उपवेद – धनुर्वेद
⚘️गुरु – वशिष्ठ
⚘️कुलदेव – विष्णु भगवान
⚘️कुलदेवी – चामुण्डा देवी, गाजन माता
⚘️नदी – सरस्वती
⚘️तीर्थ – पुष्कर राज ( राजस्थान )
⚘️मंत्र – गायत्री
⚘️झंडा – केसरिया
⚘️निशान – लाल सूर्य
⚘️पशु – वाराह
⚘️नगाड़ा – रणजीत
⚘️अश्व – सरजीव
⚘️पूजन – खंड पूजन दशहरा
⚘️आदि गद्दी – माण्डव्य पुरम ( मण्डौर )
⚘️ज्येष्ठ गद्दी – बरमै राज्य नागौद


🌹🔅 भारत मे प्रतिहार/परिहार राजपूतों की रियासत जो 1950 तक काबिज रही


⚘️नागौद रियासत – मध्यप्रदेश
⚘️अलीपुरा रियासत – मध्यप्रदेश
⚘️खनेती रियासत – हिमांचल प्रदेश
⚘️कुमारसैन रियासत – हिमांचल प्रदेश
⚘️मियागम स्टेट – गुजरात
⚘️उमेटा रियासत – गुजरात
⚘️एकलबारा रियासत – गुजरात
⚘️मुजपुर रियासत – गुजरात


🌹🔅 प्रतिहार/परिहार वंश की वर्तमान स्थिति


भले ही यह विशाल प्रतिहार राजपूत साम्राज्य 15 वीं शताब्दी के बाद में छोटे छोटे राज्यों में सिमट कर बिखर हो गया हो लेकिन इस वंश के वंशज राजपूत आज भी इसी साम्राज्य की परिधि में मिलते हैँ।


लिए न्यौछावर किया है। जिसे सभी विद्वानों ने भी माना है। प्रतिहार साम्राज्य ने दस्युओं, डकैतों, अरबों, हूणों, कुषाणों, खजरों, इराकी,मंगोलो,तुर्कों, से देश को बचाए रखा और देश की स्वतंत्रता पर आँच नहीं आई।


🌹🔅इनका राजशाही निशान वराह है।


ठीक उसी समय मुश्लिम धर्म का जन्म हुआ और इनके प्रतिरोध के कारण ही उन्हे हिंदुश्तान मे अपना राज कायम करने मे 300 साल लग गए। प्रतिहार राजपूत ही भारतीय संस्कृति के रक्षक बने। और इनके राजशाही निशान ” वराह ” विष्णु का अवतार माना है प्रतिहार मुश्लमानो के कट्टर शत्रु थे । इसलिए वो इनके राजशाही निशान ‘वराह’ से आजतक नफरत करते है।


🌹🔅शासन व्यवस्था


सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार वीरता, शौर्य और पराक्रम के प्रतीक हैं। उन्होंने विदेशी साम्राज्यो के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपनी पूरी जिन्दगी अपनी मलेच्छो से पृथ्वी की रक्षा करने मे बिता दी। सम्राट मिहिरभोज बलवान, न्यायप्रिय और धर्म रक्षक सम्राट थे। सिंहासन पर बैठते ही मिहिरभोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने प्रतिहार राजपूत साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में उसे ‘सम्राट’ मिहिरभोज प्रतिहार की उपाधि मिली थी। अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे कई महान विशेषणों से वर्णित किया गया है।


🌹🔅वराह उपाधी


सम्राट मिहिर भोज के महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी। सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार का नाम आदिवाराह भी है। ऐसा होने के पीछे यह मुख्य कारण हैं जिस प्रकार वाराह (विष्णु जी) भगवान ने पृथ्वी की रक्षा की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था ठीक उसी प्रकार मिहिरभोज ने मलेच्छों को मारकर अपनी मातृभूमि की रक्षा की। इसीलिए इनहे आदिवाराह की उपाधि दी गई है।


🌹🔅उपासक


सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार शिव शक्ति के उपासक थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में भगवान शिव के प्रभास क्षेत्र में स्थित शिवालयों व पीठों का उल्लेख है। प्रतिहार साम्राज्य के काल में सोमनाथ को भारतवर्ष के प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना जाता था। प्रभास क्षेत्र की प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ के समान थी। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। मिहिरभोज के संबंध में कहा जाता है कि वे सोमनाथ के परम भक्त थे उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ था। उन्होंने मलेच्छों से पृथ्वी की रक्षा की। 50 वर्ष तक राज करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल प्रतिहार को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। सम्राट मिहिरभोज का सिक्का जो कन्नौज की मुद्रा था उसको सम्राट मिहिरभोज ने 836 ईस्वीं में कन्नौज को देश की राजधानी बनाने पर चलाया था।


🌹🔅 धन व्यवस्था


सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। इनके पूर्वज सम्राट नागभट्ट प्रथम ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस समय में और भी पक्की हो गई और प्रतिहार साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई। यह भारतीय इतिहास का पहला उदाहरण है, जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता हो।


🌹🔅मिहिर भोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की दूनिया कि सर्वश्रेष्ठ सेना थी ।


इनके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। यइनके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी। भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया।


🌹🔅 विश्व की सुगठित और विशालतम सेना

मिहिरभोज प्रतिहार की सैना में 4,00,000 से ज्यादा पैदल करीब 30,000 घुडसवार,, हजारों हाथी और हजारों रथ थे। मिहिरभोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। जरा हर्षवर्धन बैस के राज्यकाल से तुलना करिए। हर्षवर्धन के राज्य में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे,पर मिहिरभोज के राज्य में खुली जगहों में भी चोरी की आशंका नहीं रहती थी।


🌹🔅बेहद प्रजापालक थे मिहिर भोजमिहिर


भोज के सक्षम शासन तले एक ऐसा साम्राज्य स्थापित हुआ, जहां प्रजा खुश थी,अत्याचारियों को दण्डित किया जाता था. व्यापार और कृषि को खूब बढ़ावा दिया जा रहा था. राजधानी कन्नौज में 7 किले और दस हजार मंदिर थे. सारा साम्राज्य धन, वैभव से संपन्न था. उनके राज्य में व्यापार सोने और चांदी के सिक्कों से होता था.


🌹🔅मिहिर भोज की गाथाओं से भरे हैं सनातन ग्रंथ


भले ही वामपंथी इतिहासकारों ने मिहिर भोज के इतिहास को काट देने की साजिश की. लेकिन स्कंद पुराण के प्रभास खंड में भी सम्राट मिहिरभोज की वीरता, शौर्य और पराक्रम के बारे में विस्तार से वर्णन है. मिहिरभोज बचपन से ही वीर बहादुर माने जाते थे. उनका जन्म विक्रम संवत 873 को हुआ था. सम्राट मिहिरभोज की पत्नी का नाम चंद्रभट्टारिका देवी था. जो भाटी राजपूत वंश की थी. मिहिरभोज की वीरता के किस्से पूरी दुनिया मे मशहूर हुए. कश्मीर के राज्य कवि कल्हण ने अपनी पुस्तक राज तरंगिणी में सम्राट मिहिरभोज का उल्लेख किया है.


🌹🔅महादेव के अनन्य भक्त थे मिहिर भोज


सम्राट मिहिर भोज मूल रूप से शैव थे. वह उज्जैन में स्थापित भगवान महाकाल के अनन्य भक्त थे. उनकी सेना जय महादेव जय विष्णु, जय महाकाल की ललकार के साथ रणक्षेत्र में दुश्मन का खात्मा कर देती थी. कभी रणक्षेत्र में भिनमाल, कभी हकड़ा नदी का किनारा, कभी भड़ौच और वल्लभी नगर तक अरब हमलावरों के साथ युद्ध होता रहता. मिहिर भोज की एक उपाधि ‘आदिवराह’ भी थी. उनके समय के सोने के सिक्कों पर वराह की आकृतियां उकेरी गई थी.


🌹🔅मिहिरभोज के समय अरब के हमलावरों ने भारत में अपनी शक्ति बढ़ाने की कई नाकाम कोशिश की.


लेकिन वह विफल रहे. साहस, शौर्य, पराक्रम वीरता और संस्कृति के रक्षक सम्राट मिहिर भोज जीवन के अंतिम वर्षों में अपने बेटे महेंद्रपाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यास ले लिया था. मिहिरभोज का स्वर्गवास 888 ईस्वी को 72 वर्ष की आयु में हुआ था. भारत के इतिहास में मिहिरभोज का नाम सनातन धर्म और राष्ट्र रक्षक के रूप में दर्ज है.क्षत्रिय राजपूत राजा मिहिर भोज को लेकर स्पषटीकरण कोई भी भाईचारा ना बिगाडे सत्य स्वीकार करने की हिम्मत दम रखो भाई गुर्जर और गूजर/गुज्जर में अंतर है। गूजर शब्द गऊचर से बना है यानी गाय चराने वाले। जो कि एक जाती है।


🌹🔅 प्रतिहार राजपूतों का एक वंश है।


वनवास काल में लक्ष्मण जी भगवान राम के द्वारपाल यानी प्रतिहार बन कर रहे थे। उन्हीं से प्रतिहार वंश चला है जिसे आजकल परिहार या पडियार भी कहा जाता है।गुजरात के साथ राजस्थान का बहुत बड़ा हिस्सा जिसमें भीनमाल जोधपुर आदि आते हैं उसे पहले समय में गुर्जरात्रा या गुर्जरस्त्र कहा जाता था। यहां पर शासन करने वाले राजाओं को गुर्जराधिराज कहा जाता था। ना केवल प्रतिहार बल्कि चावड़ा और चालुक्य भी गुजरात पर शासन करने के कारण गुर्जर वंश कहलाते हैं।
इसलिए गुर्जर शब्द का गूजर (गऊचर) शब्द से कोई संबंध नहीं है। पुराने समय में गौ सेवा भी बहुत पवित्र कार्य माना जाता था जिन लोगों ने गौसेवा स्वीकार की वही आगे चलकर गऊचर कहलाए यही शब्द आगे चलकर गूजर हो गया।


🌹🔅राजा मिहिर भोज ,भोज परमार ये सब राजपूत सम्राट थे


क्षत्रिय राजन्य अपभ्रंश राजपूत ठाकुर ऊपाधी । आज भी परमार /पडियार राजपूत हे सबसे ज्यादा गोत्र के चालुक्य सोलंकी राजपूत हे गुजरात के ओर ये गोत्र राजपूतो मे जाने माने हे मिहिर भोज के वंशज आज भी हे ओर वे अपने आप को पडियार/परिहार राजपूत बालते हे ओर रिशतेदारी सब चोहान,सोलंकी, जडेजा, चुडासमा इन राजपूतो मे हे ओर ये गोत्र राजपूतो के सबसे ज्यादा गुजरात मे पाये जाते हे.


🌹🔅काव्यों एवं इतिहास मे इन विशेषणो से वर्णित किया


क्षत्रिय सम्राट,भोजदेव, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर , प्रभास, महानतम भोज, मिहिर महान।


🌹🔅शासनकाल


सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने 18 अक्टूबर 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 50 साल तक राज किया। मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक था।


🌹🔅प्रतिहार साम्राज्य


प्रतिहार साम्राज्य ने अपने शुरूआती शासनकाल मे ही पूरी दूनिया को अपनी ताकत से हिला दिया था। इनके साम्राज्य का क्षेत्रफल लगभग 20 लाख किलोमीटर स्क्वायर माइल्स था। इनका शासनकाल 6ठी शताब्दी से 10वी शताब्दी तक रहा। प्रतिहारों ने अरबों से 300 वर्ष तक लगभग 200 से ज्यादा युद्ध किये जिसका परिणाम है कि हम आज यहां सुरक्षित है। प्रतिहारों ने अपने वीरता, शौर्य , कला का प्रदर्शन कर सभी को आश्चर्यचकित किया है। भारत देश हमेशा ही प्रतिहारो का रिणी रहेगा उनके अदभुत शौर्य और पराक्रम का जो उनहोंने अपनी मातृभूमि के


👑⚘️ महान हिंदू राजपूत सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार का स्वर्णिम इतिहास.


🌼⚘️ नाम ● सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार


🌼⚘️ पूरा नाम ● हिंदू राजपूत सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार


🌼⚘️ जाति ● हिंदू क्षत्रिय प्रतिहार राजपूत


🌼⚘️राजवंश ● लक्ष्मणवंशी प्रतिहार राजपूत .सूर्यवंशी पुरुषोत्तम श्री राम के अनुज श्री लक्ष्मण जी के वंशज हैं.


🌼⚘️ उपाधि ● 'भोजराज ' , 'भोजदेव‘, आदिवराह’ एवं ‘प्रभास’ की उपाधियाँ धारण की थीं .


🌼⚘️ शिलालेख प्रमाण ●
⚘️मिहिरभोज’ (ग्वालियर अभिलेख में)
⚘️ ‘प्रभास’ (दौलतपुर अभिलेख में) ⚘️‘आदिवराह’ (ग्वालियर चतुर्भुज अभिलेखों), चांदी के ‘द्रम्म’ सिक्के चलवाए थे
⚘️सिक्कों पर निर्मित सूर्यचन्द्र उसके चक्रवर्तिन का प्रमाण है।


🌼⚘️ जन्म ● विक्रम संवत 873 (86 ईस्वी)


🌼⚘️ राज्याभिषेक ● विक्रम संवत 893 यानी 18 अक्टूबर दिन बुधवार 836 ईस्वी में 20 वर्ष की आयु में हुआ था। और इसी दिन 18 अक्टूबर को ही हर वर्ष भारत में आपकी जयंती मनाई जाती है


🌼⚘️शासनकाल ● राजपूत सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने 8 अक्टूबर 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 50 साल तक राज किया।


🌼⚘️ राजशाही निशान ● अपना राज कायम करने मे 300 साल लग गए। और इनके राजशाही निशान " वराह " विष्णु का अवतार माना है प्रतिहार मुश्लमानो के कट्टर शत्रु थे । इसलिए वो इनके राजशाही निशान 'बराह' से आजतक नफरत करते है।


🌼⚘️पिता का नाम ● राजपूत सम्राट रामभद्र प्रतिहार


🌼⚘️ माता का नाम ● अप्पादेवी
था। माता पिता ने सूर्य की उपासना की थी जिसके फलस्वरूप उन्हें मिहिरभोज के रुप मे पुत्र की प्राप्ति हुई थी।


🌼⚘️ दादा का नाम ● राजपूत सम्राट नागभट्ठ द्वितीय था उनका स्वर्गवास विक्रम संवत 890 (833 ईस्वी) भादो मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ.


🌼⚘️पत्नी का नाम ● चंद्रभट्टारिका देवी था. जो भाटी राजपूत वंश की थी।


🌼⚘️पुत्र का नाम ● राजपूत सम्राट महेन्द्रपाल प्रतिहार था जो सम्राट मिहिरभोज के स्वर्गवास उपरांत कन्नौज की गद्दी पर बैठे.


🌼⚘️साम्राज्य ● आज के मुल्तान से
पश्चिम बंगाल और कश्मीर से उत्तर महाराष्ट्र तक था।


🌼⚘️उपासक ● राजपूत सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार शिव शक्ति के उपासक थे। और उन्होंने मलेच्छों (अरब, मुगल, कुषाण, हूण) से पृथ्वी की रक्षा की थी। उन्हें वराह यानी भगवान विष्णु का अवतार भी बताया गया है।उनके द्वारा चलाये गये सिक्कों पर वराह की आकृति बनी हुई है।


🌼⚘️अरब यात्री सुलेमान ने अपनी पुस्तक सिलसिला - उत -तारिका 85 ईस्वी में लिखी ● वह लिखता है की सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार (परिहार) के पास उंटो, घोडों व हाथियों की बडी विशालएवं सर्वश्रेष्ठ सेना है। उनके राज्य में व्यापार सोने व चांदी के सिक्‍कों से होता है। उनके राज्य में सोने व चांदी की खाने भी है।इनके राज्य में चोरों डाकुओं का भय नही है। भारत वर्ष मेंराजपूत सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार से बडा इस्लाम का अन्य कोई शत्रु नहीं है।मिहिरभोज के राज्य की सीमाएं दक्षिण के राष्ट्रकूटों के राज्य , पूर्वमें बंगाल के शासक पालवंश और पश्िम में मुल्तान के मुस्लिमशासकों से मिली हुई है।


🌼⚘️मिहिरभोज की सेना ● राजपूत सम्राट मिहिरभोज के पूर्वज राजपूत सम्राट नागभट्ट प्रथम (730 - 760 ईस्वी)ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा जो सर्वप्रथम चलाई , वो राजपूत सम्राट मिहिरभोज के समय और पक्की होई गई थी।


🌼⚘️विक्रम संवत 972 (95 ईस्वी) में भारत भ्रमण आये बगदादके इतिहासकार अलमसूदी ने अपनी किताब मिराजुल ● जहाब में इस महाशक्तिशाली , महापराक्रमी सेना का विवरण किया है।उसने इस सेना की संख्या लाखों में बताई है। जो चारो दिशाओं में लाखो की संख्या में रहती है।


🌼⚘️प्रसिद्ध इतिहासकार के. एम. मुंशी ने राजपूत सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार की तुलना गुप्तवंशीय राजपूत सम्राट समुद्रगुप्त और मौर्यवंशीय राजपूत सम्राट चंद्रगुप्त से इस प्रकार की है ● वे लिखते हैं कि राजपूत सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार इन सभी से बहुत महान थे। क्योंकि तत्कालीन भारतीय धर्म एवं संस्कृति के लिए जो चुनौती अरब के इस्लामिक विजेताओं की फौजों द्वारा प्रस्तुत की गई। वह समुद्रगुप्त , चंद्रगुप्त आदि के समय पेश नही हुई थी और न ही उनका मुकाबला अरबों


🌼⚘️ भारत के इतिहास में मिहिरभोज से बडा आज तक कोई भीसनातन धर्म रक्षक एवं राष्ट्र रक्षक नही हुआ ● एक ऐसा हिंदू क्षत्रिय राजपूत योद्धा , अरबों का सबसे बडा दुश्मन जिसने लगभग 40 युद्ध कर अरबों को भारत से पलायन करने पर मजबूरकर दिया एवं सनातन धर्म की रक्षा की, ऐसे थे महान चक्रवर्ती राजपूत सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार जिसने भारत पर 50 वर्ष शासन किया।


🌼⚘️ स्वर्गवास ● विक्रम संवत 945 (888 ईस्वी) 72 वर्ष की आयु में राजपूत सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार का स्वर्गवास हुआ।


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👑⚔️🚩राजपूत सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार के लिए प्रयोग किया गया शब्द "गुर्जर" स्थानवाचक है ना की जातिसूचक, राजनीतिक पार्टियों द्वारा जानबुझ कर गुज्जर समाज से वोट लेने के लिए सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार के नाम के आगे गुर्जर स्थानवाचक को गुर्जर जातिसूचक बता दिया गया, पिछले कुछ वर्षों में विवादित बना दिया गया और राजपूत गुज्जर - विवाद पर राजनीतिक रोटियाँ सेकी गई, परंतु देश के शिक्षित लोग सत्य को देखें समझे और मानें



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♥️⚘️Nagod parihar dynasty


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♥️⚘️नागौद रियासत के राजकुमार अरुणोदय सिंह व राजपरिवार द्वारा मनाई गई Rajput samrat Mihir bhoj की जयंती


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♥️⚘️इतिहासचोरो पर बरसे क्षत्रिय सम्राट Mihirbhoj Pratihar Rajput वंशज Nagod महाराज अरुणोदय सिंह प्रतिहार


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♥️⚘️History Of Pratihar Kshatriya Dynasty - Nagod Riyasat | Rajkumur Arunoday Singh | Shauryagatha


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♥️⚘️Samrat Mihir bhoj के वंसज आये सामने, Nagod Riyasat (Pratihar Rajput Vansh ) के असली वारिश


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👑⚔️🚩शस्त्र की महत्ता, महर्षि दधीचि का देह दान और संदेश


❤️⚘️महर्षि दधीचि ने समाज हित में अपनी हड्डियों का दान कर दिया था


🏹 उनकी हड्डियों से तीन धनुष बने- १. गांडीव, २. पिनाक और ३. सारंग !


🏹 जिसमे से गांडीव अर्जुन को मिला था जिसके बल पर अर्जुन ने महाभारत का युद्ध जीता !


🏹 सारंग से भगवान राम ने युद्ध किया था और रावण के अत्याचारी राज्य को ध्वस्त किया था !


🏹 और, पिनाक भगवान शिव जी के पास था जिसे तपस्या के माध्यम से खुश रावण ने शिव जी से मांग लिया था ! परन्तु , वह उसका भार लम्बे समय तक नहीं उठा पाने के कारण बीच रास्ते में जनकपुरी में छोड़ आया था !


❤️⚘️ इसी पिनाक की नित्य सेवा सीताजी किया करती थी ! पिनाक का भंजन करके ही भगवान राम ने सीता जी का वरण किया था ! ब्रह्मर्षि दधिची की हड्डियों से ही "एकघ्नी नामक वज्र" भी बना था , जो भगवान इन्द्र को प्राप्त हुआ था ! इस एकघ्नी वज्र को इन्द्र ने कर्ण की तपस्या से खुश होकर उन्होंने कर्ण को दे दिया था! इसी एकघ्नी से महाभारत के युद्ध में भीम का महाप्रतापी पुत्र घतोत्कक्ष कर्ण के हाथों मारा गया था ! और भी कई अश्त्र-शस्त्रों का निर्माण हुआ था उनकी हड्डियों से !


❤️⚘️लेकिन दधिची के इस अस्थि-दान का उद्देश्य क्या था...??? क्या उनका सन्देश यही था कि उनकी आने वाली पीढ़ी नपुंसकों और कायरों की भांति मुंह छुपा कर घर में बैठ जाए और शत्रु की खुशामद करे....??? नहीं.. कोई ऐसा काल नहीं है जब मनुष्य शस्त्रों से दूर रहा हो.. हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ से ले कर ऋषि-मुनियों तक का एक दम स्पष्ट सन्देश और आह्वान रहा है कि.... ''हे सनातनी वीरो.शस्त्र उठाओ और अन्याय तथा अत्याचार के विरुद्ध युद्ध करो !''बस आज भी सबके लिए यही एक मात्र सन्देश है राष्ट्र और धर्म रक्षा के लिए अंततः बस एक ही मार्ग है ! सशक्त बनो..युद्ध करो.. क्योंकि बलि हमेशा बकरे की दी जाती है शेरो की नहीं।



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