7 Dec, 19:37
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6 Dec, 15:39
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1 Dec, 19:46
कंस का वध भी भगवान श्रीकृष्ण ने ही किया। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि बने और दुनिया को गीता का ज्ञान दिया। धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर धर्म की स्थापना की। भगवान विष्णु का ये अवतार सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। ♥️⚘️23- बुद्ध अवतार ● धर्म ग्रंथों के अनुसार बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे परंतु पुराणों में वर्णित भगवान बुद्धदेव का जन्म गया के समीप कीकट में हुआ बताया गया है और उनके पिता का नाम अजन बताया गया है। यह प्रसंग पुराण वर्णित बुद्धावतार का ही है।एक समय दैत्यों की शक्ति बहुत बढ़ गई। देवता भी उनके भय से भागने लगे। राज्य की कामना से दैत्यों ने देवराज इंद्र से पूछा कि हमारा साम्राज्य स्थिर रहे, इसका उपाय क्या है। तब इंद्र ने शुद्ध भाव से बताया कि सुस्थिर शासन के लिए यज्ञ एवं वेदविहित आचरण आवश्यक है। तब दैत्य वैदिक आचरण एवं महायज्ञ करने लगे, जिससे उनकी शक्ति और बढऩे लगी। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने देवताओं के हित के लिए बुद्ध का रूप धारण किया। उनके हाथ में मार्जनी थी और वे मार्ग को बुहारते हुए चलते थे।इस प्रकार भगवान बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे और उन्हें उपदेश दिया कि यज्ञ करना पाप है। यज्ञ से जीव हिंसा होती है। यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी भस्म हो जाते हैं। भगवान बुद्ध के उपदेश से दैत्य प्रभावित हुए। उन्होंने यज्ञ व वैदिक आचरण करना छोड़ दिया। इसके कारण उनकी शक्ति कम हो गई और देवताओं ने उन पर हमला कर अपना राज्य पुन: प्राप्त कर लिया। ♥️⚘️24- कल्कि अवतार ● धर्म ग्रंथों के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेंगे। कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों के अनुसार उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि पुत्र रूप में जन्म लेंगे। कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करेंगे।
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राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया। लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशालरूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटाया। ♥️⚘️16- हयग्रीव अवतार ● धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली राक्षस ब्रह्माजी से वेदों का हरण कर रसातल में पहुंच गए। वेदों का हरण हो जाने से ब्रह्माजी बहुत दु:खी हुए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान ने हयग्रीव अवतार लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु की गर्दन और मुख घोड़े के समान थी। तब भगवान हयग्रीव रसातल में पहुंचे और मधु-कैटभ का वध कर वेद पुन: भगवान ब्रह्मा को दे दिए। ♥️⚘️17- श्रीहरि अवतार ● धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राचीन समय में त्रिकूट नामक पर्वत की तराई में एक शक्तिशाली गजेंद्र अपनी हथिनियों के साथ रहता था। एक बार वह अपनी हथिनियों के साथ तालाब में स्नान करने गया। वहां एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और पानी के अंदर खींचने लगा। गजेंद्र और मगरमच्छ का संघर्ष एक हजार साल तक चलता रहा। अंत में गजेंद्र शिथिल पड़ गया और उसने भगवान श्रीहरि का ध्यान किया। गजेंद्र की स्तुति सुनकर भगवान श्रीहरि प्रकट हुए और उन्होंने अपने चक्र से मगरमच्छ का वध कर दिया। भगवान श्रीहरि ने गजेंद्र का उद्धार कर उसे अपना पार्षद बना लिया। ♥️⚘️18- परशुराम अवतार ● हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक थे। भगवान परशुराम के जन्म के संबंध में दो कथाएं प्रचलित हैं। हरिवंशपुराण के अनुसार उन्हीं में से एक कथा इस प्रकार है-प्राचीन समय में महिष्मती नगरी पर शक्तिशाली हैययवंशी क्षत्रिय कार्तवीर्य अर्जुन(सहस्त्रबाहु) का शासन था। वह बहुत अभिमानी था और अत्याचारी भी। एक बार अग्निदेव ने उससे भोजन कराने का आग्रह किया। तब सहस्त्रबाहु ने घमंड में आकर कहा कि आप जहां से चाहें, भोजन प्राप्त कर सकते हैं, सभी ओर मेरा ही राज है। तब अग्निदेव ने वनों को जलाना शुरु किया। एक वन में ऋषि आपव तपस्या कर रहे थे। अग्नि ने उनके आश्रम को भी जला डाला। इससे क्रोधित होकर ऋषि ने सहस्त्रबाहु को श्राप दिया कि भगवान विष्णु, परशुराम के रूप में जन्म लेंगे और न सिर्फ सहस्त्रबाहु का नहीं बल्कि समस्त क्षत्रियों का सर्वनाश करेंगे। इस प्रकार भगवान विष्णु ने भार्गव कुल में महर्षि जमदग्रि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्म लिया। ♥️⚘️19- महर्षि वेदव्यास ● पुराणों में महर्षि वेदव्यास को भी भगवान विष्णु का ही अंश माना गया है। भगवान व्यास नारायण के कलावतार थे। वे महाज्ञानी महर्षि पराशर के पुत्र रूप में प्रकट हुए थे। उनका जन्म कैवर्तराज की पोष्यपुत्री सत्यवती के गर्भ से यमुना के द्वीप पर हुआ था। उनके शरीर का रंग काला था। इसलिए उनका एक नाम कृष्णद्वैपायन भी था। इन्होंने ही मनुष्यों की आयु और शक्ति को देखते हुए वेदों के विभाग किए। इसलिए इन्हें वेदव्यास भी कहा जाता है। इन्होंने ही महाभारत ग्रंथ की रचना भी की। ♥️⚘️20- हंस अवतार ● एक बार भगवान ब्रह्मा अपनी सभा में बैठे थे। तभी वहां उनके मानस पुत्र सनकादि पहुंचे और भगवान ब्रह्मा से मनुष्यों के मोक्ष के संबंध में चर्चा करने लगे। तभी वहां भगवान विष्णु महाहंस के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने सनकादि मुनियों के संदेह का निवारण किया। इसके बाद सभी ने भगवान हंस की पूजा की। इसके बाद महाहंसरूपधारी श्रीभगवान अदृश्य होकर अपने पवित्र धाम चले गए।♥️⚘️21- श्रीराम अवतार ● त्रेतायुग में राक्षसराज रावण का बहुत आतंक था। उससे देवता भी डरते थे। उसके वध के लिए भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु ने अनेक राक्षसों का वध किया और मर्यादा का पालन करते हुए अपना जीवन यापन किया।पिता के कहने पर वनवास गए। वनवास भोगते समय राक्षसराज रावण उनकी पत्नी सीता का हरण कर ले गया। सीता की खोज में भगवान लंका पहुंचे, वहां भगवान श्रीराम और रावण का घोर युद्ध जिसमें रावण मारा गया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने राम अवतार लेकर देवताओं को भय मुक्त किया। ♥️⚘️22- श्रीकृष्ण अवतार ● द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था। इनके पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम देवकी था। भगवान श्रीकृष्ण ने इस अवतार में अनेक चमत्कार किए और दुष्टों का सर्वनाश किया।
♥️⚘️11- कूर्म अवतार ● धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है- एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इंद्र को श्राप देकर श्रीहीन कर दिया। इंद्र जब भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने समुद्र मंथन करने के लिए कहा। तब इंद्र भगवान विष्णु के कहे अनुसार दैत्यों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए। समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया। देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़ा और उसे समुद्र की ओर ले चले, लेकिन वे उसे अधिक दूर तक नहीं ले जा सके। तब भगवान विष्णु ने मंदराचल को समुद्र तट पर रख दिया। देवता और दैत्यों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर नागराज वासुकि को नेती बनाया।किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए। भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ।♥️⚘️12- भगवान धन्वन्तरि ● धर्म ग्रंथों के अनुसार जब देवताओं व दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से सबसे पहले भयंकर विष निकला जिसे भगवान शिव ने पी लिया। इसके बाद समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, देवी लक्ष्मी, ऐरावत हाथी, कल्प वृक्ष, अप्सराएं और भी बहुत से रत्न निकले। सबसे अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। यही धन्वन्तरि भगवान विष्णु के अवतार माने गए हैं। इन्हें औषधियों का स्वामी भी माना गया है। ♥️⚘️13- मोहिनी अवतार ● धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर निकले। जैसे ही अमृत मिला अनुशासन भंग हुआ। देवताओं ने कहा हम ले लें, दैत्यों ने कहा हम ले लें। इसी खींचातानी में इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कुंभ लेकर भाग गया। सारे दैत्य व देवता भी उसके पीछे भागे। असुरों व देवताओं में भयंकर मार-काट मच गई। देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया। भगवान ने मोहिनी रूप में सबको मोहित कर दिया किया। मोहिनी ने देवता व असुर की बात सुनी और कहा कि यह अमृत कलश मुझे दे दीजिए तो मैं बारी-बारी से देवता व असुर को अमृत का पान करा दूंगी। दोनों मान गए। देवता एक तरफ तथा असुर दूसरी तरफ बैठ गए। फिर मोहिनी रूप धरे भगवान विष्णु ने मधुर गान गाते हुए तथा नृत्य करते हुए देवता व असुरों को अमृत पान कराना प्रारंभ किया । वास्तविकता में मोहिनी अमृत पान तो सिर्फ देवताओं को ही करा रही थी, जबकि असुर समझ रहे थे कि वे भी अमृत पी रहे हैं। इस प्रकार भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं का भला किया। ♥️⚘️14- भगवान नृसिंह ● भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। इस अवतार की कथा इस प्रकार है- धर्म ग्रंथों के अनुसार दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था। उसे मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था। उसके राज में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसको दंड दिया जाता था। उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात जब हिरण्यकशिपु का पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया।हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच गया। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया। ♥️⚘️15- वामन अवतार ● सत्ययुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। सभी देवता इस विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी।
तब भगवान शंकर, विष्णु व ब्रह्मा साधु वेश बनाकर अत्रि मुनि के आश्रम आए। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। तीनों ने देवी अनुसूइया से भिक्षा मांगी मगर यह भी कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी। अनुसूइया पहले तो यह सुनकर चौंक गई, लेकिन फिर साधुओं का अपमान न हो इस डर से उन्होंने अपने पति का स्मरण किया और बोला कि यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु छ:-छ: मास के शिशु हो जाएं। ऐसा बोलते ही त्रिदेव शिशु होकर रोने लगे। तब अनुसूइया ने माता बनकर उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया और पालने में झूलाने लगीं। जब तीनों देव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो देवियां व्याकुल हो गईं। तब नारद ने वहां आकर सारी बात बताई। तीनों देवियां अनुसूइया के पास आईं और क्षमा मांगी। तब देवी अनुसूइया ने त्रिदेव को अपने पूर्व रूप में कर दिया। प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेंगे। तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। ♥️⚘️7- यज्ञ ● भगवान विष्णु के सातवें अवतार का नाम यज्ञ है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान यज्ञ का जन्म स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुआ था। स्वायम्भुव मनु की पत्नी शतरूपा के गर्भ से आकूति का जन्म हुआ। वे रूचि प्रजापति की पत्नी हुई। इन्हीं आकूति के यहां भगवान विष्णु यज्ञ नाम से अवतरित हुए। भगवान यज्ञ के उनकी धर्मपत्नी दक्षिणा से अत्यंत तेजस्वी बारह पुत्र उत्पन्न हुए। वे ही स्वायम्भुव मन्वन्तर में याम नामक बारह देवता कहलाए। ♥️⚘️8- भगवान ऋषभदेव ● भगवान विष्णु ने ऋषभदेव के रूप में आठवांं अवतार लिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार महाराज नाभि की कोई संतान नहीं थी। इस कारण उन्होंने अपनी धर्मपत्नी मेरुदेवी के साथ पुत्र की कामना से यज्ञ किया। यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने महाराज नाभि को वरदान दिया कि मैं ही तुम्हारे यहां पुत्र रूप में जन्म लूंगा।वरदान स्वरूप कुछ समय बाद भगवान विष्णु महाराज नाभि के यहां पुत्र रूप में जन्मे। पुत्र के अत्यंत सुंदर सुगठित शरीर, कीर्ति, तेल, बल, ऐश्वर्य, यश, पराक्रम और शूरवीरता आदि गुणों को देखकर महाराज नाभि ने उसका नाम ऋषभ (श्रेष्ठ) रखा। ♥️⚘️9- आदिराज पृथु ● भगवान विष्णु के एक अवतार का नाम आदिराज पृथु है। धर्म ग्रंथों के अनुसार स्वायम्भुव मनु के वंश में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसिक पुत्री सुनीथा के साथ हुआ। उनके यहां वेन नामक पुत्र हुआ। उसने भगवान को मानने से इंकार कर दिया और स्वयं की पूजा करने के लिए कहा। तब महर्षियों ने मंत्र पूत कुशों से उसका वध कर दिया। तब महर्षियों ने पुत्रहीन राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया, जिससे पृथु नाम पुत्र उत्पन्न हुआ। पृथु के दाहिने हाथ में चक्र और चरणों में कमल का चिह्न देखकर ऋषियों ने बताया कि पृथु के वेष में स्वयं श्रीहरि का अंश अवतरित हुआ है। ♥️⚘️10- मत्स्य अवतार ● पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्यावतार लिया था। इसकी कथा इस प्रकार है- कृतयुग के आदि में राजा सत्यव्रत हुए। राजा सत्यव्रत एक दिन नदी में स्नान कर जलांजलि दे रहे थे। अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आई। उन्होंने देखा तो सोचा वापस सागर में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने बोला- आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। तब राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया। मछली और बड़ी हो गई तो राजा ने उसे अपने सरोवर में रखा, तब देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई।राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है। राजा ने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की। राजा की प्रार्थना सुन साक्षात चारभुजाधारी भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा कि ये मेरा मत्स्यावतार है। भगवान ने सत्यव्रत से कहा- सुनो राजा सत्यव्रत! आज से सात दिन बाद प्रलय होगी। तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना, जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा।उस समय तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना। उस समय प्रश्न पूछने पर मैं तुम्हें उत्तर दूंगा, जिससे मेरी महिमा जो परब्रह्म नाम से विख्यात है, तुम्हारे ह्रदय में प्रकट हो जाएगी। तब समय आने पर मत्स्यरूपधारी भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया, जो मत्स्यपुराण नाम से प्रसिद्ध है।
👑⚔️🚩भगवान विष्णु के 24 अवतार 🔥जब-जब पृथ्वी पर कोई संकट आता है तो भगवान अवतार लेकर उस संकट को दूर करते हैं। भगवान शिव और भगवान विष्णु ने कई बार पृथ्वी पर अवतार लिया है। भगवान विष्णु के 24 वें अवतार के बारे में कहा जाता है कि‘कल्कि अवतार’के रूप में उनका आना सुनिश्चित है।🔥उनके 23 अवतार अब तक पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं। इन 24 अवतार में से 10 अवतार विष्णु जी के मुख्य अवतार माने जाते हैं। यह है मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार. कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार, कल्कि अवतार। आइए जानें विस्तार से.... ♥️⚘️1- श्री सनकादि मुनि ● धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में लोक पितामह ब्रह्मा ने अनेक लोकों की रचना करने की इच्छा से घोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तप अर्थ वाले सन नाम से युक्त होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के रूप में अवतार लिया। ये चारों प्राकट्य काल से ही मोक्ष मार्ग परायण, ध्यान में तल्लीन रहने वाले, नित्यसिद्ध एवं नित्य विरक्त थे। ये भगवान विष्णु के सर्वप्रथम अवतार माने जाते हैं। ♥️⚘️2- वराह अवतार ● धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने दूसरा अवतार वराह रूप में लिया था। वराह अवतार से जुड़ी कथा इस प्रकार है- पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए।जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। ♥️⚘️3- नारद अवतार ● धर्म ग्रंथों के अनुसार देवर्षि नारद भी भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक हैं। उन्होंने कठिन तपस्या से देवर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते हैं। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में देवर्षि नारद को भगवान का मन भी कहा गया है। श्रीमद्भागवतगीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं। ♥️⚘️4- नर-नारायण ● सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए दो रूपों में अवतार लिया। इस अवतार में वे अपने मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे। उनके हाथों में हंस, चरणों में चक्र एवं वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे। उनका संपूर्ण वेष तपस्वियों के समान था। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर-नारायण के रूप में यह अवतार लिया था। ♥️⚘️5- कपिल मुनि ● भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया। इनके पिता का नाम महर्षि कर्दम व माता का नाम देवहूति था। शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह के शरीर त्याग के समय वेदज्ञ व्यास आदि ऋषियों के साथ भगवा कपिल भी वहां उपस्थित थे। भगवान कपिल के क्रोध से ही राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे। भगवान कपिल सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं। कपिल मुनि भागवत धर्म के प्रमुख बारह आचार्यों में से एक हैं। ♥️⚘️6- दत्तात्रेय अवतार ● धर्म ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेय भी भगवान विष्णु के अवतार हैं। इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है-एक बार माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती को अपने पातिव्रत्य पर अत्यंत गर्व हो गया। भगवान ने इनका अंहकार नष्ट करने के लिए लीला रची। उसके अनुसार एक दिन नारदजी घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों को बारी-बारी जाकर कहा कि ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया के सामने आपका सतीत्व कुछ भी नहीं। तीनों देवियों ने यह बात अपने स्वामियों को बताई और उनसे कहा कि वे अनुसूइया के पातिव्रत्य की परीक्षा लें।
1 Dec, 19:32
👑🚩 भगवान विष्णु के नाम 'नारायण' और 'हरि' का रहस्य. 👑⚔️🚩भगवान श्री विष्णु को करोड़ो नामोंसे जाना जाता है, और ये हम सभी जानते है जिनमें हरि और नारायण उनके प्रसिद्द नामों में से एक हैं। वैसे तो भगवान विष्णु के अनंत नाम हैं पर इन नामों का रहस्य सचमुच बहुत खास है। आईये जानते हैं –♥️⚘️पुराणों में भगवान विष्णु के दो रूप.पुराणों में भगवान विष्णु के दो रूप बताए गए हैं. एक रूप में तो उन्हें बहुत शांत, प्रसन्न और कोमल बताया गया है और दूसरे रूप में प्रभु को बहुत भयानक बताया गया है. जहां श्रीहरि काल स्वरूप शेषनाग पर आरामदायक मुद्रा में बैठे हैं. लेकिन प्रभु का रूप कोई भी हो, उनका ह्रदय तो कोमल है और तभी तो उन्हें कमलाकांत और भक्तवत्सल कहा जाता है.♥️⚘️ भगवान विष्णु का शांत स्वाभावकहा जाता है कि भगवान विष्णु का शांत चेहरा कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति को शांत रहने की प्रेरणा देता है. समस्याओं का समाधान शांत रहकर ही सफलतापूर्वक ढूंढा जा सकता है. शास्त्रों में भगवान विष्णु के बारे में लिखा है. “शान्ताकारं भुजगशयनं”। पद्मनाभं सुरेशं ।विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । इसका अर्थ है भगवान विष्णु शांत भाव से शेषनाग पर आराम कर रहे हैं. भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर मन में ये प्रश्न उठता है कि सर्पों के राजा पर बैठकर कोई इतना शांत कैसे रह सकता है? लेकिन वो तो भगवान हैं और उनके लिए सब कुछ संभव है. श्री विष्णु के पास कई अन्य शक्तियां हैं, जो आपको आश्चर्यचकित कर सकती हैं.♥️⚘️क्या है भगवान के “हरि” नाम के पीछे का भाव:-आपने भगवान विष्णु का ‘हरि’ नाम भी कई बार जाने-अनजाने में बोला और सुना होगा। किंतु यहां बताए जा रहे इसी नाम के कुछ रोचक अर्थों से संभवतः अब तक आप भी अनजान होंगे। ये मतलब जानकर आप यह नाम बार-बार बोलने का कोई मौका चूकना नहीं चाहेंगे –शास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु के ‘हरि’ नाम का शाब्दिक मतलब हरण करने लेने वाला होता है। कहा गया है कि ‘हरि: हरति पापानि’ जिससे यह साफ है कि हरि पाप या दु:ख हरने वाले देवता है। सरल शब्दों में ‘हरि’ अज्ञान और उससे पैदा होने वाले कलह को हरते या दूर कर देते हैं। क्योंकि सच्चे मन से श्रीहरि का स्मरण करने वालों को कभी निऱाशा नहीं मिलती है. कष्ट और मुसीबत चाहें जितनी भी बड़ी हो श्रीहरि सब दुख हर लेते हैं.‘हरि’ नाम को लेकर एक रोचक बात भी बताई गई है, जिसके मुताबिक हरि को ऐश्वर्य और भोग हरने वाला भी माना है। चूंकि भौतिक सुख, वैभव और वासनाएं व्यक्ति को भगवान और भक्ति से दूर करती है। ऐसे में हरि नाम स्मरण से भक्त इन सुखों से दूर हो प्रेम, भक्ति और अंत में भगवान से जुड़ जाता है।यही वजह है कि ‘हरि’ नाम को धार्मिक और व्यावहारिक रूप से सुख और शांति का महामंत्र माना गया है।♥️⚘️क्या है भगवान के “नारायण” नाम के पीछे का भाव.भगवान विष्णु अपने भक्तों पर हर रूप और हर स्वरूप से कृपा बरसाते हैं और इसीलिए वो जगत के पालनहार कहलाते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान विष्णु का नाम नारायण क्यों है? उनके भक्त उन्हें नारायण क्यों बुलाते हैं? भगवान विष्णु को “नारायण” भी पुकारा जाता है। सांसारिक जीवन के लिए तो नारायण नाम की महिमा इतनी ज्यादा बताई गई है कि इस नाम का केवल स्मरण भी सारे दुःख व कलह दूर करने वाला बताया गया है।पौराणिक प्रसंगों में भगवान विष्णु के परम भक्त देवर्षि नारद क नारायण-नारायण भजना भी इस नाम की महिमा उजागर करता है। इसी तरह भगवान विष्णु के कई नाम स्वरूप व शक्तियों के साथ नारायण शब्द जोड़कर ही बोले जाते हैं। जैसे– सत्यनारायण, अनंतनारायण, लक्ष्मीनारायण, शेषनारायण, ध्रुवनारायण आदि।इस तरह नारायण शब्द की महिंमा तो सभी सुनते और मानते हैं, किंतु कई लोग भगवान विष्णु को नारायण क्यों पुकारा जाता है, नहीं जानते। ♥️⚘️भगवान विष्णु के सोने का क्या रहस्य है, आखिर क्या कहता है हिन्दू धर्म.असल में, पौराणिक मान्यता है कि जल, भगवान विष्णु के चरणों से ही पैदा हुआ। गंगा नदी का नाम “विष्णुपादोदकी’ यानी भगवान विष्णु के चरणों से निकली भी इस बात को उजागर करता है।वहीं पानी को नीर या नार कहा जाता है तो वहीं जगतपालक के रहने की जगह यानी अयन क्षीरसागर यानी जल में ही है। इस तरह नार और अयन शब्द मिलकर नारायण नाम बनता है। यानी जल में रहने वाले या जल के देवता। जल को देवता मानने के पीछे यह भी एक वजह है।पौराणिक प्रसंगों पर गौर भी करें तो भगवान विष्णु के दशावतारों में पहले तीन अवतारों (मत्स्य, कच्छप व वराह) का संबंध भी किसी न किसी रूप में जल से ही रहा। सीलिए भगवान विष्णु को उनके भक्त ‘नारायण’ नाम से बुलाते हैं.
1 Dec, 19:31
1 Dec, 19:27
👑⚔️🚩𝗝𝗔𝗚𝗔𝗧𝗣𝗜𝗧𝗔 𝗣𝗔𝗥𝗕𝗥𝗔𝗛𝗠𝗔 𝗣𝗔𝗥𝗠𝗘𝗦𝗛𝗪𝗔𝗥 𝗦𝗛𝗥𝗜𝗛𝗔𝗥𝗜 𝗩𝗜𝗦𝗛𝗡𝗨.24 AVATAR OF VISHNU | 10 AVATAR OF VISHNU | BHSGWAN SHRI VISHNU HD 4K AI WALLPAPER PHOTO POSTER PICTURE | DASHAVATAR | NARAYANA | SHRIRAM | KRISHNA | MATSYA | KURMA | VARAHA | NARSIMHA | VAMANA | PARSHURAMA | BUDDHA | KALKI | KAPILA MUMI | ADIPURUSH | NARA NARAYANA | KAPILA MUNI | SANAD KUMAR | VEDA VYASA | YAJNA | RISHABHA | PRITHU | NARAD | DATTATATREYA | MOHINI | DHANVANTRI | BALRAM | KRISHNA | KALKI | BUDDHA | JAI SHRI RAM .
29 Nov, 19:38
♥️⚘️ दरअसल यह शिक्षा महाराजा अग्रसेन को एक घटना देखने के बाद मिली थी। हुवा यूँ था की एक बार अग्रोहा में अकाल पड़ने से चारों तरफ भूखमरी, महामारी जैसे विकट संकट की स्थिति पैदा हो गई थी। वहीं इस विकट समस्या का हल निकालने के लिए जब अग्रसेन महाराज अपनी वेष-भूषा बदलकर नगर का भ्रमण कर रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। इसी दौरान उन्होंने देखा कि एक परिवार में सिर्फ 4 लोगों का भी खाना बना था, और उस परिवार में एक मेहमान के आने पर खाने की समस्या उत्पन्न हो गई, तब परिवार के सदस्यों ने एक हल निकाला और अपनी-अपनी थालियों से थोड़ा-थोड़ा खाना निकालकर आए मेहमान के लिए पांचवी थाली परोस दी। इस तरह मेहमान की भोजन की समस्या का समाधान हो गया। इससे प्रभावित होकर अग्रवाल समाज के संस्थापक महाराजा अग्रसेन ने ‘एक ईट और एक रुपया’ के सिद्धांत की घोषणा की।♥️⚘️महाराजा अग्रसेन का अंतिम क्षण ● महाराजा अग्रसेन समाजवाद के प्रर्वतक, युग पुरुष, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी थे। महाराजा अग्रसेन उन महान विभूतियों में से थे जो सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखायः कृत्यों द्वारा युगों-युगों तक अमर रहेगें। यह एक प्रिय राजा की तरह प्रसिद्द थे। इन्होने महाभारत युद्ध में पांडवो के पक्ष में युद्ध किया था।
👑जय वैश्य धर्म ⚔️जय सनातन धर्म⚔️🚩
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♥️⚘️सुन्दरावती का वरण ● कोलापुर में नागराज महीरथ का शासन था। राजकुमारी सुन्दरावती के स्वयंवर में अनेक देशों के राजकुमार, वेश बदलकर अनेक गंधर्व व देवता उपस्थित थे, तब भगवान शंकर एवं माता लक्ष्मी की प्रेरणा से राजकुमारी ने श्री अग्रसेन को वरण किया। दो-दो नाग वंशों से संबंध स्थापित करने के बाद महाराजा वल्लभ के राज्य में अपार सुख समृद्धि व्याप्त हुई, इन्द्र भी श्री अग्रसेन से मैत्री के बाध्य हुये।♥️⚘️अग्रोहा का निर्माण – अग्रोहा का इतिहास ● एक नए राज्य के लिए जगह चुनने के लिए अग्रसेन ने अपनी रानी के साथ पूरे भारत में यात्रा की। अपने छोटे भाई शूरसेन को प्रतापनगर का शासन सौंप दिया। अपनी यात्रा के दौरान एक समय में, उन्हें कुछ बाघ शावक और भेड़िया शावकों को एक साथ देखे। राजा अग्रसेन और रानी माधवी के लिए, यह एक शुभ संकेत था कि क्षेत्र वीराभूमि (बहादुरी की भूमि) था और उन्होंने उस स्थान पर अपना नया राज्य पाया। ॠषि मुनियों और ज्योतिषियों की सलाह पर नये राज्य का नाम अग्रेयगण रखा गया जिसे अग्रोहा नाम से जाना जाता है। अग्रोहा हरियाणा वर्तमान दिन हिसार के पास स्थित है। वर्तमान में अग्रोहा कृषि के पवित्र स्टेशन के रूप में विकसित हो रहा है, जिसमें अग्रसेन और वैष्णव देवी का एक बड़ा मंदिर है।♥️⚘️अठारह यज्ञ – Maharaja Agrasen ki 18 Yag ● माता लक्ष्मी की कृपा से श्री अग्रसेन के 18 पुत्र हुये। राजकुमार विभु उनमें सबसे बड़े थे। महर्षि गर्ग ने महाराजा अग्रसेन को 18 पुत्र के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। माना जाता है कि यज्ञों में बैठे 18 गुरुओं के नाम पर ही अग्रवंश (अग्रवाल समाज) की स्थापना हुई । यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी। प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ॠषि बने, राजकुमार विभु को दीक्षित कर उन्हें गर्ग गोत्र से मंत्रित किया। इसी प्रकार दूसरा यज्ञ गोभिल ॠषि ने करवाया और द्वितीय पुत्र को गोयल गोत्र दिया। तीसरा यज्ञ गौतम ॠषि ने गोइन गोत्र धारण करवाया, चौथे में वत्स ॠषि ने बंसल गोत्र, पाँचवे में कौशिक ॠषि ने कंसल गोत्र, छठे शांडिल्य ॠषि ने सिंघल गोत्र, सातवे में मंगल ॠषि ने मंगल गोत्र, आठवें में जैमिन ने जिंदल गोत्र, नवें में तांड्य ॠषि ने तिंगल गोत्र, दसवें में और्व ॠषि ने ऐरन गोत्र, ग्यारवें में धौम्य ॠषि ने धारण गोत्र, बारहवें में मुदगल ॠषि ने मन्दल गोत्र, तेरहवें में वसिष्ठ ॠषि ने बिंदल गोत्र, चौदहवें में मैत्रेय ॠषि ने मित्तल गोत्र, पंद्रहवें कश्यप ॠषि ने कुच्छल गोत्र दिया। 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे।♥️⚘️ जिस समय 18 वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि दी जा रही थी, महाराज अग्रसेन को उस दृश्य को देखकर घृणा उत्पन्न हो गई। उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा, न माँस खाएगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा। इस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने वनिका धर्म ( वैश्य बनिया धर्म ) को अपना लिया। अठारवें यज्ञ में नगेन्द्र ॠषि द्वारा नांगल गोत्र से अभिमंत्रित किया।♥️⚘️ ॠषियों द्वारा प्रदत्त अठारह गोत्रों को महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्रों के साथ महाराजा द्वारा बसायी 18 बस्तियों के निवासियों ने भी धारण कर लिया एक बस्ती के साथ प्रेम भाव बनाये रखने के लिए एक सर्वसम्मत निर्णय हुआ कि अपने पुत्र और पुत्री का विवाह अपनी बस्ती में नहीं दूसरी बस्ती में करेंगे। आगे चलकर यह व्यवस्था गोत्रों में बदल गई जो आज भी अग्रवाल समाज में प्रचलित है।♥️⚘️ ‘एक ईट और एक रुपया’ के सिद्धांत महाराजा अग्रसेन ‘एक ईट और एक रुपया’ के सिद्धांत की घोषणा की। जिसके अनुसार नगर में आने वाले हर नए परिवार को नगर में रहनेवाले हर परिवार की ओर से एक ईट और एक रुपया दिया जाएं। ईटों से वो अपने घर का निर्माण करें एवं रुपयों से व्यापार करें। इस तरह महाराजा अग्रसेन जी को समाजवाद के प्रणेता के रुप में पहचान मिली।
👑⚔️🚩अग्रवाल समाज ( बनिया समाज ) का इतिहास ● सूर्यवंशी क्षत्रिय महाराजा अग्रसेन - अग्रवाल जाति के संस्थापक थे।♥️⚘️महाराजा अग्रसेन (Maharaja Agrasen) अग्रवाल जाति के संस्थापक थे। इनका जन्म मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम की चौंतीसवी पीढ़ी में सूर्यवशीं क्षत्रिय कुल के महाराजा वल्लभ सेन के घर में द्वापर के अन्तिमकाल और कलियुग के प्रारम्भ में आज से 5000 वर्ष पूर्व हुआ था। उन्हें उत्तर भारत में व्यापारियों के नाम पर अग्रोहा का श्रेय दिया जाता है, और यज्ञों में जानवरों को मारने से इनकार करते हुए उनकी करुणा के लिए जाने जाते है। महाराजा अग्रसेन की कर्मभूमि रही अग्रोहा में बना, अग्रोहा धाम देश के पांचवें धाम के रूप में प्रसिद्ध है।♥️⚘️ भारतेन्दु हरीशचंद्र के वृत्तांत के अनुसार, महाराजा अग्रसेन एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे, जिनका जन्म महाभारत महाकाव्य काल में द्वापर युग के अंतिम चरण में हुआ था, वे भगवान कृष्ण के समकालीन थे। वह राजा वल्लभ देव के पुत्र थे जो कुश (भगवान राम के पुत्र) के वंशज थे। वह सूर्यवंशी राजा मान्धाता के वंशज भी थे । अग्रसेन ने 18 पुत्र हुए, जिनसे 18 अग्रवाल गोत्र अस्तित्व में आए।अग्रसेन सूर्यवंश के एक क्षत्रिय राजपूत राजा थे जिन्होंने अपने लोगों के लिए वनिका धर्म ( वैश्य बनिया धर्म ) को अपनाया था। वस्तुतः, अग्रवाल का अर्थ है “अग्रसेन के लोग”, हरियाणा क्षेत्र के हिसार के पास प्राचीन कुरु पंचला में एक शहर, जिसे अग्रसेन ने स्थापित किया था।♥️⚘️महाराजा अग्रसेन का जन्म स्थान और प्रारंभिक शिक्षा ● महाराजा अग्रसेन जी का जन्म अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को हुआ, जिसे अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। महाराजा अग्रसेन का जन्म लगभग पाँच हज़ार वर्ष पूर्व प्रताप नगर के राजा वल्लभ के यहाँ सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में हुआ था। वर्तमान में राजस्थान व हरियाणा राज्य के बीच सरस्वती नदी के किनारे प्रतापनगर स्थित था। राजा वल्लभ के अग्रसेन और शूरसेन नामक दो पुत्र हुये। अग्रसेन महाराज वल्लभ के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनकी माता का नाम भगवती था। महाराजा अग्रसेन के जन्म के समय गर्ग ॠषि ने महाराज वल्लभ से कहा था, कि यह बहुत बड़ा राजा बनेगा। इस के राज्य में एक नई शासन व्यवस्था उदय होगी और हज़ारों वर्ष बाद भी इनका नाम अमर होगा।♥️⚘️ इतिहास के मुताबिक इनका जन्म कलियुग के प्रारम्भ और द्वापर युग के अंतिम चरण में हुआ था, उस समय राम राज्य हुआ करते थे अर्थात राजा प्रजा के हित में कार्य करते थे। यही सिधांत को राजा अग्रसेन ने भी बढ़ाया, जिनके कारण वे इतिहास में अमर हुए। इनकी नगरी का नाम प्रतापनगर था, बाद में इन्होने अग्रोहा नामक नगरी बसाई थी, जो आज एक प्रसिद्ध स्थान हैं।♥️⚘️महाराजा अग्रसेन की जन्म तिथि और समय ● महाराजा अग्रसेन की जन्म तिथि और समय के बारे में कोई सटीक साक्ष्य मौजूद नहीं हैं, परन्तु कहा जाता हैं उनका जन्म 3130+ संवत 2073( विक्रम संवत शुरु होने से करीब 3130 साल पहले) हुआ था।♥️⚘️माधवी का वरण ● महाराज अग्रसेन ने नाग लोक के राजा कुमद के यहाँ आयोजित स्वंयवर में राजकुमारी माधवी का वरण किया इस स्वंयवर में देव लोक से राजा इंद्र भी राजकुमारी माधवी से विवाह की इच्छा से उपस्थित थे, परन्तु माधवी द्वारा श्री अग्रसेन का वरण करने से इंद्र कुपित होकर स्वंयवर स्थल से चले गये इस विवाह से नाग एवं आर्य कुल का नया गठबंधन हुआ।♥️⚘️तपस्या ● कुपित इंद्र ने अपने अनुचरो से प्रताप नगर में वर्षा नहीं करने का आदेश दिया जिससे भयंकर आकाल पड़ा। चारों तरफ त्राहि त्राहि मच गई तब अग्रसेन और शूरसेन ने अपने दिव्य शस्त्रों का संधान कर इन्द्र से युद्ध कर प्रतापनगर को विपत्ति से बचाया। लेकिन यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं था। तब अग्रसेन ने भगवान शंकर एवं महालक्ष्मी माता की अराधना की, इन्द्र ने अग्रसेन की तपस्या में अनेक बाधाएँ उत्पन्न कीं परन्तु श्री अग्रसेन की अविचल तपस्या से महालक्ष्मी प्रकट हुई एवं वरदान दिया कि तुम्हारे सभी मनोरथ सिद्ध होंगे। तुम्हारे द्वारा सबका मंगल होगा। माता को अग्रसेन ने इन्द्र की समस्या से अवगत कराया तो महालक्ष्मी ने कहा, इन्द्र को अनुभव प्राप्त है। आर्य एवं नागवंश की संधि और राजकुमारी माधवी के सौन्दर्य ने उसे दुखी कर दिया है, तुम्हें कूटनीति अपनानी होगी। कोलापुर के राजा भी नागवंशी है, यदि तुम उनकी पुत्री का वरण कर लेते हो तो कोलापुर नरेश महीरथ की शक्तियाँ तुम्हें प्राप्त हो जाएंगी, तब इन्द्र को तुम्हारे सामने आने के लिए अनेक बार सोचना पडेगा। तुम निडर होकर अपने नये राज्य की स्थापना करो।
29 Nov, 19:37
👑⚔️🚩 𝗔𝗚𝗔𝗥𝗪𝗔𝗟 𝗖𝗔𝗦𝗧𝗘 ( 𝗕𝗔𝗡𝗜𝗬𝗔 𝗦𝗔𝗠𝗔𝗝 ) 𝗛𝗜𝗦𝗧𝗢𝗥𝗬 | 𝗦𝗨𝗥𝗬𝗔𝗩𝗔𝗡𝗦𝗛𝗜 𝗞𝗦𝗛𝗔𝗧𝗥𝗜𝗬𝗔 𝗠𝗔𝗛𝗔𝗥𝗔𝗝 𝗔𝗚𝗥𝗔𝗦𝗘𝗡 𝗜𝗦 𝗖𝗢𝗡𝗦𝗜𝗗𝗘𝗥𝗘𝗗 𝗔𝗦 𝗙𝗢𝗨𝗡𝗗𝗘𝗥 𝗢𝗙 𝗔𝗚𝗔𝗥𝗪𝗔𝗟 𝗖𝗔𝗦𝗧𝗘.♥️⚘️भारतेन्दु हरीशचंद्र के वृत्तांत के अनुसार, महाराजा अग्रसेन एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे, जिनका जन्म महाभारत महाकाव्य काल में द्वापर युग के अंतिम चरण में हुआ था, वे भगवान कृष्ण के समकालीन थे। वह राजा वल्लभ देव के पुत्र थे जो कुश (भगवान राम के पुत्र) के वंशज थे। वह सूर्यवंशी राजा मान्धाता के वंशज भी थे । अग्रसेन ने 18 पुत्र हुए, जिनसे 18 अग्रवाल गोत्र अस्तित्व में आए। अग्रसेन सूर्यवंश के एक क्षत्रिय राजपूत राजा थे जिन्होंने अपने लोगों के लिए वनिका धर्म ( वैश्य बनिया धर्म ) को अपनाया था। वस्तुतः, अग्रवाल का अर्थ है “अग्रसेन के लोग”, हरियाणा क्षेत्र के हिसार के पास प्राचीन कुरु पंचला में एक शहर, जिसे अग्रसेन ने स्थापित किया था।♥️⚘️ महाराजा अग्रसेन समाजवाद के प्रर्वतक, युग पुरुष, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी थे। इन्होने महाभारत युद्ध में पांडवो के पक्ष में युद्ध किया था।
👑𝗝𝗢𝗜𝗡 | @Hindu_Forum
29 Nov, 17:42
👑🔱🚩 क्षत्रिय इतिहास ⚔️🚩 प्रभु श्री एकलिंगनाथ जी की कृपा और दिव्य आशीर्वाद से महाराजाधिराज श्रीजी महाराणा विश्वराज सिंह जी को परम्परागत महाराणा मेवाड़ की गद्दी पर बिराजने के शुभ अवसर की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। 💐⚔️🚩 मेवाड़ में एक नया इतिहास रचा गया, एकलिंग दीवान महाराणा विश्वराज सिंह जी मेवाड़ का। महाराणा मेवाड़ की राजगद्दी पर बिराजने का दस्तूर फ़तहप्रकाश महल चित्तौड़गढ़ पर दिनांक 25 नवंबर 2024 प्रातः10 बजे सम्पन्न हुआ .⚔️🚩एकलिंगजी सदा सहायते |⚔️🚩 स्वाभिमान अमर रहे |⚔️🚩 सत्य कर्म की प्रथम आराधना है |⚔️🚩 जय क्षात्र धर्म जय राजपूताना |⚔️🚩जय श्री राम जय सनातन धर्म |
25 Nov, 18:33
🔥🐍 भगवान शिव के गले में लिपटे नाग के 10 रहस्य 🌹🐍 भगवान शिव के गले में लिपटे नाग का नाम वासुकि है। 🌹🐍वासुनि नाग के पिता ऋषि कश्यप और माता कद्रू थीं। 🌹🐍 वासुकि नाग के बड़े भाई का नाभ शेष (अनंत) और अन्य भाइयों का नाम तक्षक, पिंगला और कर्कोटक आदि था। 🌹🐍 शेष नाग विष्णु के सेवक तो वासुकि शिव के सेवक बनें। वासुकि भगवान शिव के परम भक्त थे। वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने उन्हें अपने गणों में शामिल कर लिया था। 🌹🐍 मान्यता है कि वासुकि का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था। यह भी कहा जाता है कि वासुकी को नागलोक का राजा माना गया है। 🌹🐍 भगवान शिव के साथ ही वासुकि नाग की पूजा होती है। इसीलिए नागपंचमी पर शेषनाग के बाद वासुकि नाग की पूजा करना भी जरूरी है। 🌹🐍 समुद्र मंथन के दौरान वासुकि नाग को ही रस्सी के रूप में मेरू पर्वत के चारों और लपेटकर मंथन किया गया था, जिसके चलते उनका संपूर्ण शरीर लहूलुहान हो गया था। 🌹🐍 माना जाता है कि वासुकि के कारण ही नाग जाति के लोगों ने ही सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरू किया था। 🌹🐍 वासुकी ने ही कुंति पुत्र भीम को दस हजार हाथियों के बल प्राप्ति का वरदान दिया था। जब भीम को दुर्योधन ने धोखे से विष पिलाकर गंगा नदी में फेंक दिया था तब भीम नागलोक पहुंच गए थे। वहां पर भीम के नानाजी ने वासुकि को बताया कि यह कौन है तब वासुनिक नाग ने भीष का विष उतारा और उसे दस हाजार हथियों का बल प्रदान किया। 🌹🐍 वासुकी के सिर पर ही नागमणि होती थी। जब भगवान श्री कृष्ण को कंस की जेल से चुपचाप वसुदेव उन्हें गोकुल ले जा रहे थे तब रास्ते में जोरदार बारिश हो रही थी। इसी बारिश और यमुना के उफान से वासुकी नाग ने ही श्री कृष्ण की रक्षा की थी। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि शेषनाग ने ऐसा किया था।