Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)


Channel's geo and language: India, Hindi
Category: Religion


Hindu Devotional Channel

Related channels  |  Similar channels

Channel's geo and language
India, Hindi
Category
Religion
Statistics
Posts filter


स्त्री पुरुष समानता कभी नही थी। ना होनी चाहिए।
हा उनको अधिकार जरुर मिलने चाहिए
पश्चिमी देशो का हाल देखो क्या है।? क्या ऐसी ही समानता और आश्लिषता चाहते हो। आप सब भारत मे!
लाज और शर्म ही स्त्री का गहना है। यह भारतीय नारीओ मे जिवित है। इसलिए भारतीय संस्कृती जिवीत है।और परंपराओ का बंधन है। इसलिए वह जिवीत है।
इसलिए समानता के नाम पर भारतीय नारीओ को व्याभिचार की ओर ना ढकले।


आपके पास भले ही लाख डिग्रियाँ हों,यदि आप अपने धर्म-संस्कृति पर हो रहे हमलों को समझ नहीं पा रहे हैं तो आप अनपढ़ हैं!


मूर्ख व्यक्ति से,
कभी तर्क वितर्क मत करो,
वरना......
लोग पहचान नही पायेंगे,
कि......वास्तव में मूर्ख कौन है।


नाम इतना जपो की
"राम" धड़कन में उतर जाये,
साँस भी लो तो खुशबू
"राम" दरबार की आये,
"राम" का नशा दिल पर ऐसा छाए,
बात कोई भी हो पर नाम
"राम" "राम" ही आये ।।
जय श्री राम : जय श्री राम


"जय" बोलने से मन को शांति मिलती हे ,
"श्री" बोलने से शक्ति मिलती हे ,
"राम" बोलने से पापो से मुक्ति मिलती है
और निरंतर ""जय श्री राम"
बोलने से भक्ति मिलती है
और भक्ति से मेरे "राम" मिलते हे तो..
प्यार से बोलो
"""जय श्री राम"""


किस्मत की एक आदत है कि वो पलटती जरुर है

और जब पलटती है

तब सब पलटकर रख देती है

इसलिये अच्छे दिनों मे अहंकार न करो और खराब समय में थोड़ा सब्र करो.....


माँ के पास बैठिये,
इसके दो फायदे आप कभी बड़े नहीं होते और माँ कभी बूढ़ी नहीं होती..

जय_श्री_कृष्णा


संसार के लोगों से आशा ना किया करना,
जब कोई ना हो अपना,हरे राम हरे कृष्ण कहा करना.......


नींद की गोलियों की आदी हो चुकी
बूढ़ी माँ नींद की गोली के लिए ज़िद कर रही थी।

बेटे की कुछ समय पहले शादी हुई थी।

बहु डॉक्टर थी।
बहु सास को नींद की
दवा की लत के नुक्सान के बारे में बताते
हुए उन्हें गोली नहीं देने पर अड़ी थी।.
जब बात नहीं बनी तो सास ने गुस्सा
दिखाकर नींद की गोली पाने का
प्रयास किया।

अंत में अपने बेटे को आवाज़ दी।

बेटे ने आते ही कहा,'माँ मुहं खोलो।

पत्नी ने मना करने पर भी बेटे ने जेब से

एक दवा का पत्ता निकाल कर एक छोटी
पीली गोली माँ के मुहं में डाल दी।
पानी भी पिला दिया।गोली लेते ही आशीर्वाद देती हुई

माँ सो गयी।.

पत्नी ने कहा ,

ऐसा नहीं करना चाहिए।'

पति ने दवा का पत्ता अपनी पत्नी को दे दिया।

विटामिन की गोली का पत्ता देखकर पत्नी के
चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी।
धीरे से बोली

आप माँ के साथ चीटिंग करते हो।

''बचपन में माँ ने भी चीटिंग करके
कई चीजें खिलाई है।
पहले वो करती थीं,

अब मैं बदला ले रहा हूँ।
यह कहते हुए बेटा मुस्कुराने लगा।"


याद रखिए

जिस व्यक्ति से हमारा स्नेह होता है
उसके दोष भी हमें गुण दिखाई देते हैं

और जिस व्यक्ति से हमें द्वेष होता है
उसके गुणों में भी हमें दोष दिखाई देता है

यह भाव हमारा उस व्यक्ति विशेष के प्रति राग और द्वेष के कारण होता है

ऐसे राग और द्वेष से परिपूर्ण कर्म भी
बबूल बोने के समान है

भविष्य में बबूल ही के रूप में हमें फल मिलेगा

🙏🏻🙏🏻🙏🏻


मानव मन की हमेशा चाहत होती है उसके जीवन में सुख, प्रसन्नता के अवसर मिलते रहे। लेकिन वही अवसर किसी के जीवन से खिलवाड़ कर मिले तो क्या उन्हें स्वस्थ मनोरंजन कहा जा सकता है? संसार के प्रत्येक प्राणी को अपना जीवन जीने का हक मिला हुआ है। "विधि" का न्याय भी इसी का समर्थन करता है। कुछ व्यक्तियों का अति उत्साह या नासमझी प्राणियों के विघात का कारण बनता है तो क्या यह विधि सम्मत न्याय का उल्लंघन नहीं है.....?

सीताराम


जरूरत से ज्यादा सोचकर
हम ऐसी समस्या खडी कर लेते है
जो असल मे है भी नहीं....


भगवान 'श्रीहरि' अर्थात विष्णु निर्वाण मोक्ष प्रदान करने वाले हैं, इसीलिए वे 'कृष्ण' कहे गये हैं।
हिन्दूधार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में श्रीकृष्ण को स्वयं भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। सभीदेवताओं में इन्हें सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। लोगों का यह विश्वास है कि श्रीकृष्ण का नाम लेने मात्र से ही सभी पाप कट जाते हैं। इनका भजन, कीर्तन और भक्तिकरने से बड़ा पुण्य मिलता है।

नाम का अर्थ

भगवान निष्कर्म भक्ति के दाता हैं, इसीलिए उनका नाम 'कृष्ण' है। 'कृष्' का अर्थ है- 'कर्मों का निर्मूलन', 'ण' का अर्थ है- 'दास्यभाव' और 'अकार' प्राप्ति का बोधक है। वे कर्मों का समूल नाश करके भक्ति की प्राप्ति कराते हैं, इसीलिए कृष्ण कहे गये हैं। नन्द! भगवान के करोड़ों नामों का स्मरण करने पर जिस फल की प्राप्ति होती है, वह सब केवल कृष्ण नाम का स्मरण करने से मनुष्य अवश्य प्राप्त कर लेता है।

नाम स्मरण का पुण्य

कृष्ण नाम के स्मरण का जैसा पुण्य है, उसके कीर्तनऔर श्रवण से भी वैसा ही पुण्य होता है। श्रीकृष्ण के कीर्तन, श्रवण और स्मरण आदि से मनुष्य के करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। भगवान विष्णु के सब नामों में कृष्ण नाम ही सबकी अपेक्षा सारतम वस्तु और परात्पर तत्त्व है। कृष्ण नाम अत्यन्त मंगलमय, सुन्दर तथा भक्तिदायक है। 'ककार' के उच्चारण से भक्त पुरुष जन्म मृत्यु का नाश करने वाले कैवल्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। 'ऋकार' के उच्चारण से भगवान का अनुपम दास्यभाव प्राप्त होता है। 'षकार' के उच्चारण से उनकी मनोवांछित भक्ति सुलभ होती है। 'णकार' के उच्चारण से तत्काल ही उनके साथ निवास का सौभाग्य प्राप्त होता है और 'विसर्ग' के उच्चारण से उनके सारूप्य की उपलब्धि होती है, इसमें संशय नहीं है। 'ककार' का उच्चारण होते ही यमदूत कांपने लगते हैं। 'ऋकार' का उच्चारण होने पर ठहर जाते हैं, आगे नहीं बढ़ते। 'षकार' के उच्चारण से पातक, 'णकार' के उच्चारण से रोग तथा 'अकार' के उच्चारण से मृत्यु- ये सब निश्चय ही भाग खड़े होते हैं, क्योंकि वे नामोच्चारण से डरते हैं।

जयश्रीराधारानी-कृष्णदुलारी


"आकर्षण" और " प्रेम" दोनो ही प्राकृतिक है और एक दूसरे के परिपुरक भी लेकिन दोनो मे अंतर है !!
"आकर्षण" बिल्कुल उस बच्चे की तरह होता है , जो बाजार मे किसी खिलौने को देखकर मचल जाता है और उसे पाने की जिद्द करने लगता है… उसके लिये रोता, बिलखता, चिल्लाता है !! उस समय उस बच्चे को कुछ भी सही या गलत नही लगता बस इतना की उसे वो खिलौना किसी भी तरिके से हाँसिल करना है || जब उसकी ये जिद्द पुरी हो जाती है तो वो बहुत खुश होता है और कुछ दिन तक उस खिलौने को अपने सीने से लगाये घूमता है, बहुत सम्भाल के रखता है …
.............पर जैसे जैसे समय बीतता जाता है उस खिलौने के प्रति बच्चे की रुचि कम होती जाती है और एक समय बाद खत्म हो जाती है ,
... क्यू की अब उसका आकर्षण क केंद्र एक नया खिलौना बन रहा है ||
ऐसा ही कभी कभी हमारे साथ होता है दरअसल हम जिसे "प्रेम" समझ बैठते है वो एक आकर्षण मात्र होता है … क्यू की ये इतना तीव्र होता है की हमारी सोचने और समझने की शक्ति को शिथिल कर देता है और हम भी उस बच्चे की तरह ही जिद्द करने लगते है ||
रिश्तो मे बेवफायी क एक कारण ये भी है क्यू की "आकर्षण" की एक समय सीमा होती है उस समय उपरांत वो खत्म हो जाता है… क्षणिक सुख होता है,
ये सिर्फ किसी को पा लेना भर होता है ||

वही "प्रेम" अनंत होता है किसी के बदलने से बदलता नही … ये हमेशा आपको हर्ष और उल्लास की अनुभूति कराता है|| प्रेम त्याग सिखाता है…
दूसरो के लिये जीना सिखाता है जो निस्वार्थ होता है ,
मासूम होता है… जहाँ भेद भाव नही !!
ऐसा ही होता है प्रेम !!

ये असमानता दोनो मे इसलिये है क्यूकि " प्रेम मे आकर्षण होता है लेकिन आकर्षण मे प्रेम नही होता" !


प्रेम मे जीत या हार किस बात पर निधारित होती है?

प्रेम में हार-जीत जैसा कुछ भी नही। प्रेम तो बस प्रेम है। ये सादा है, सरल है, सुगम भी है यदि प्रेम करने वाले मष्तिष्क के द्वार नही अपितु हृदय के द्वार खोलकर प्रेम करे। प्रेम एक प्यारा सा एहसास है, जो ईर्ष्या, द्वेष, लालसा, लोभ अथवा स्वार्थ से परे है। इसमें पाने को एक दिल है, मगर खोने को सारे जहान की ख़ुशियाँ है।


दूसरों से तुलना करने के बजाय, खुद की तुलना अपने बीते हुए कल से करें तो ज्यादा बेहतर रहेगा आपके भविष्य के लिए…!


जमाना क्या कहेगा ये मत सोचो...

क्योंकि ज़माना बहुत अजीब हैं,

नाकामयाब लोगो का मज़ाक उड़ाता हैं

और कामयाब लोगो से जलता हैं


इस दुनिया में बिना स्वार्थ के

सिर्फ माता पिता ही प्यार कर सकते हैं !


जिस तरह ढक लेते हो तुम….बंसी के छिद्र सारे

कान्हा जी दया करना ऐसे ही ढक लेना सब अवगुण हमारे
जय श्री कृष्णा🌹🙏


!! मित्रता की परिभाषा !!

एक बेटे के अनेक मित्र थे जिसका उसे बहुत घमंड था। पिता का एक ही मित्र था लेकिन था सच्चा। एक दिन पिता ने बेटे को बोला कि तेरे बहुत सारे दोस्त हैं उनमें से आज रात तेरे सबसे अच्छे दोस्त की परीक्षा लेते हैं। बेटा सहर्ष तैयार हो गया। रात को 2 बजे दोनों बेटे के सबसे घनिष्ठ मित्र के घर पहुंचे, बेटे ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा नहीं खुला, बार-बार दरवाजा ठोकने के बाद अंदर से बेटे का दोस्त उसकी माताजी को कह रहा था माँ कह दे मैं घर पर नहीं हूँ। यह सुनकर बेटा उदास हो गया, अतः निराश होकर दोनों लौट आए।

फिर पिता ने कहा कि बेटे आज तुझे मेरे दोस्त से मिलवाता हूँ। दोनों पिता के दोस्त के घर पहुंचे। पिता ने अपने मित्र को आवाज लगाई। उधर से जवाब आया कि ठहरना मित्र, दो मिनट में दरवाजा खोलता हूँ। जब दरवाजा खुला तो पिता के दोस्त के एक हाथ में रुपये की थैली और दूसरे हाथ में तलवार थी। पिता ने पूछा, यह क्या है मित्र। तब मित्र बोला... अगर मेरे मित्र ने दो बजे रात्रि को मेरा दरवाजा खटखटाया है, तो जरूर वह मुसीबत में होगा और अक्सर मुसीबत दो प्रकार की होती है, या तो रुपये पैसे की या किसी से विवाद हो गया हो। अगर तुम्हें रुपये की आवश्यकता हो तो ये रुपये की थैली ले जाओ और किसी से झगड़ा हो गया हो तो ये तलवार लेकर मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। तब पिता की आँखें भर आई और उन्होंने अपने मित्र से कहा कि,मित्र मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं, मैं तो बस मेरे बेटे को मित्रता की परिभाषा समझा रहा था।

शिक्षा:-
अतः बेशक मित्र,एक चुनें,लेकिन नेक चुनें..!!

जय श्री कृष्ण

20 last posts shown.