जो अभय पद को प्राप्त करना चाहता है, उसे तो सर्वात्मा, सर्वशक्तिमान् भगवान श्रीकृष्ण की ही लीलाओं का श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिये । मनुष्य-जन्म का यही—इतना ही लाभ है कि चाहे जैसे हो—ज्ञान से, भक्ति से अथवा अपने धर्म की निष्ठा से जीवन को ऐसा बना लिया जाय कि मृत्यु के समय भगवान की स्मृति अवश्य बनी रहे । जो निर्गुण स्वरुप में स्थित हैं एवं विधि-निषेध की मर्यादा को लाँघ चुके हैं, वे बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी प्रायः भगवान के अनन्त कल्याणमय गुणगणों के वर्णन में रमे रहते हैं ।