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*लेख:- चम्पा षष्ठी, शनिवार (7/12/2024)*
*षष्ठी प्रारम्भ:- 6/12/2024-12:07 pm*
*षष्ठी समाप्त:- 7/12/2024-11:05 am*
चम्पा षष्ठी का त्यौहार भगवान कार्तिकेय अर्थात सुब्रह्मण्यम जी को समर्पित है। चम्पा षष्ठी महाराष्ट्र में एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप मे मनाया जाता है। जिस वर्ष चम्पा षष्ठी रविवार अथवा मंगलवार के दिन शतभिषा नक्षत्र तथा वैधृति योग के साथ सयुंक्त होती है, तो इस संयोग को अत्यधिक शुभ माना जाता है।
दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम से भी जाना जाता है। उनका प्रिय फूल चंपा है, इसलिए इस व्रत को चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।
मान्यता है कि षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय का पूजन हर मनोकामना को पूर्ण करने में सहायक है। इस दिन भगवान कार्तिकेय के पूजन से रोग, राग, दुख-दरिद्रता का निवारण होता है। इसके अतिरिक्त यह व्रत क्रोध, लोभ, अहंकार, काम जैसी बुराइयों पर विजय दिलाकर मनुष्य को अच्छा और सुखी जीवन व्यतीत करने को प्रेरित करता है।
*चम्पा षष्ठी पर्व के संबंध मे प्रचलित दो कथाएं:-*
1. चंपा षष्ठी के विषय मे एक कथा के अनुसार
पौराणिक काल मे एक बार मणि और मल्ला (मल्ह) नाम के दो राक्षस भाई थे, जिन्होंने मनुष्यों के साथ-साथ देवताओं और ऋषियों के लिए बहुत सी परेशानियां खड़ी कर दी थीं। सभी देवताओं और साधुओं ने भगवान शिव से मदद मांगी।
अतः उन राक्षसो के अत्याचारों से मानव जाति को निजात दिलाने के लिए महादेव ने महाराष्ट्र के पुणे मे खंडोबा नामक स्थान पर भगवान खांडोबा का रूप धारण किया, जोकि सोने की चमक की तरह दिखते थे। भगवान का चेहरा हल्दी चूर्ण से ढका हुआ था।
भगवान खंडोबा के रूप मे उन्होने लगातार छः दिनों तक राक्षस भाइयों से भयानक युद्ध लड़ा था, छह दिनों की लंबी लड़ाई के बाद, मणि राक्षस ने भगवान शिव से क्षमा मांगी और उन्हें अपना सफेद घोड़ा भेंट किया। इसके बाद, भगवान शिव ने मनी को एक वरदान मांगने के लिए कहा। मनी ने भगवान शिव से उनके साथ रहने की इच्छा जाहिर की। उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए, मणि की मूर्ति को सभी खंडोबा मंदिरों में रखा गया। इस प्रकार, उसी समय से चंपा षष्ठी को धार्मिक रूप से मनाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इन दोनों राक्षसों का वध करने के लिए भगवान शिव ने भैरव और पार्वती ने शक्ति का रूप धारण किया था। यही कारण है कि महाराष्ट्र में रुद्रावतार भैरव को मार्तंड- मल्लहारी कहा जाता है, साथ ही खंडोबा, खंडेराया आदि नामों से भी पहचाना जाता है। मणि और मल्ह नामक दैत्यों का वध करने के कारण ही इस दिन को चंपा षष्ठी कहा जाता है।
2. द्वितिय पौराणिक कथा के अनुसार एक बार कार्तिकेय अपने माता पिता शंकर जी और पार्वती व छोटे भाई गणेश से लेकर रूष्ट होकर कैलाश पर्वत छोड़ कर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन चलें गए, और वहीं पर निवास करने लगे। यहां पर वास करते हुए मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को भगवान कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध किया था। इसी तिथि को उन्हें देवताओं की सेना का सेनापति बनाया गया था। अतः इसी दिन से चंपा षष्ठी का यह त्योहार मनाया जाना आरम्भ हुआ। चम्पा के फूल भी कार्तिकेय जी को बहुत पसंद है, इसी वजह से इस तिथि को चंपा षष्ठी के नाम से जाना जाता है।
चंपा षष्ठी के दिन भगवान शिव और कार्तिकेय की पूजा करना बहुत ही शुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन सच्चे मन से शिव और कार्तिकेय की आराधना करता है, वह समस्त पापो से मुक्त हो जाता है। भक्त के जीवन में सुख-शांति बनी रहती है, तथा जीवन के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है।
*चंपा षष्ठी पूजन*
यह त्यौहार पूर्ण शुद्धि तथा भक्ति के साथ मार्गशीर्ष अमावस्या से लेकर चंपा षष्ठी तक लगातार छह दिनों के लिए मनाते हैं।
इन छह दिनों मे भक्त प्रातः स्नानादि के उपरांत मंदिर जाते हैं।
भक्त भगवान खांडोबा की मूर्ति के सामने छह दिनों तक तेल का दीया जलाते हैं।
तत्पश्चात भगवान खांडोबा (भगवान शिव) की पूजा करते हुए सब्जियां, फल, लकड़ी, सेब के पत्तों और हल्दी चूर्ण अर्पित करते हैं।
छठे दिन चंपा षष्ठी के दिन देवता को कई तरह के नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं जैसे- थोंबरा (जो कई अनाजों के आटे से बना होता है), रोडगा (गेहूं के आधार से तैयार व्यंजन) और भंडारा (हल्दी पाउडर)।
पूजा के अंत मे आरती की जाती है।
*चंपा षष्ठी पर्व मे कृत्य कर्म*
1. चंपा षष्ठी पूजन के दिनो मे भक्तो को जमीन पर ही सोना चाहिए।
2. व्रती तथा उपासक को चंपा षष्ठी के दिन तेल का बिल्कुल भी सेवन नही करना चाहिए।
3. चंपा षष्ठी पूजन के दिनो मे, तथा चंपा षष्ठी के अगले दिन सप्तमी तिथि तक व्रती तथा उपासको को पूर्ण रूप
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा
*लेख:- चम्पा षष्ठी, शनिवार (7/12/2024)*
*षष्ठी प्रारम्भ:- 6/12/2024-12:07 pm*
*षष्ठी समाप्त:- 7/12/2024-11:05 am*
चम्पा षष्ठी का त्यौहार भगवान कार्तिकेय अर्थात सुब्रह्मण्यम जी को समर्पित है। चम्पा षष्ठी महाराष्ट्र में एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप मे मनाया जाता है। जिस वर्ष चम्पा षष्ठी रविवार अथवा मंगलवार के दिन शतभिषा नक्षत्र तथा वैधृति योग के साथ सयुंक्त होती है, तो इस संयोग को अत्यधिक शुभ माना जाता है।
दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम से भी जाना जाता है। उनका प्रिय फूल चंपा है, इसलिए इस व्रत को चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।
मान्यता है कि षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय का पूजन हर मनोकामना को पूर्ण करने में सहायक है। इस दिन भगवान कार्तिकेय के पूजन से रोग, राग, दुख-दरिद्रता का निवारण होता है। इसके अतिरिक्त यह व्रत क्रोध, लोभ, अहंकार, काम जैसी बुराइयों पर विजय दिलाकर मनुष्य को अच्छा और सुखी जीवन व्यतीत करने को प्रेरित करता है।
*चम्पा षष्ठी पर्व के संबंध मे प्रचलित दो कथाएं:-*
1. चंपा षष्ठी के विषय मे एक कथा के अनुसार
पौराणिक काल मे एक बार मणि और मल्ला (मल्ह) नाम के दो राक्षस भाई थे, जिन्होंने मनुष्यों के साथ-साथ देवताओं और ऋषियों के लिए बहुत सी परेशानियां खड़ी कर दी थीं। सभी देवताओं और साधुओं ने भगवान शिव से मदद मांगी।
अतः उन राक्षसो के अत्याचारों से मानव जाति को निजात दिलाने के लिए महादेव ने महाराष्ट्र के पुणे मे खंडोबा नामक स्थान पर भगवान खांडोबा का रूप धारण किया, जोकि सोने की चमक की तरह दिखते थे। भगवान का चेहरा हल्दी चूर्ण से ढका हुआ था।
भगवान खंडोबा के रूप मे उन्होने लगातार छः दिनों तक राक्षस भाइयों से भयानक युद्ध लड़ा था, छह दिनों की लंबी लड़ाई के बाद, मणि राक्षस ने भगवान शिव से क्षमा मांगी और उन्हें अपना सफेद घोड़ा भेंट किया। इसके बाद, भगवान शिव ने मनी को एक वरदान मांगने के लिए कहा। मनी ने भगवान शिव से उनके साथ रहने की इच्छा जाहिर की। उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए, मणि की मूर्ति को सभी खंडोबा मंदिरों में रखा गया। इस प्रकार, उसी समय से चंपा षष्ठी को धार्मिक रूप से मनाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इन दोनों राक्षसों का वध करने के लिए भगवान शिव ने भैरव और पार्वती ने शक्ति का रूप धारण किया था। यही कारण है कि महाराष्ट्र में रुद्रावतार भैरव को मार्तंड- मल्लहारी कहा जाता है, साथ ही खंडोबा, खंडेराया आदि नामों से भी पहचाना जाता है। मणि और मल्ह नामक दैत्यों का वध करने के कारण ही इस दिन को चंपा षष्ठी कहा जाता है।
2. द्वितिय पौराणिक कथा के अनुसार एक बार कार्तिकेय अपने माता पिता शंकर जी और पार्वती व छोटे भाई गणेश से लेकर रूष्ट होकर कैलाश पर्वत छोड़ कर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन चलें गए, और वहीं पर निवास करने लगे। यहां पर वास करते हुए मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को भगवान कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध किया था। इसी तिथि को उन्हें देवताओं की सेना का सेनापति बनाया गया था। अतः इसी दिन से चंपा षष्ठी का यह त्योहार मनाया जाना आरम्भ हुआ। चम्पा के फूल भी कार्तिकेय जी को बहुत पसंद है, इसी वजह से इस तिथि को चंपा षष्ठी के नाम से जाना जाता है।
चंपा षष्ठी के दिन भगवान शिव और कार्तिकेय की पूजा करना बहुत ही शुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन सच्चे मन से शिव और कार्तिकेय की आराधना करता है, वह समस्त पापो से मुक्त हो जाता है। भक्त के जीवन में सुख-शांति बनी रहती है, तथा जीवन के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है।
*चंपा षष्ठी पूजन*
यह त्यौहार पूर्ण शुद्धि तथा भक्ति के साथ मार्गशीर्ष अमावस्या से लेकर चंपा षष्ठी तक लगातार छह दिनों के लिए मनाते हैं।
इन छह दिनों मे भक्त प्रातः स्नानादि के उपरांत मंदिर जाते हैं।
भक्त भगवान खांडोबा की मूर्ति के सामने छह दिनों तक तेल का दीया जलाते हैं।
तत्पश्चात भगवान खांडोबा (भगवान शिव) की पूजा करते हुए सब्जियां, फल, लकड़ी, सेब के पत्तों और हल्दी चूर्ण अर्पित करते हैं।
छठे दिन चंपा षष्ठी के दिन देवता को कई तरह के नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं जैसे- थोंबरा (जो कई अनाजों के आटे से बना होता है), रोडगा (गेहूं के आधार से तैयार व्यंजन) और भंडारा (हल्दी पाउडर)।
पूजा के अंत मे आरती की जाती है।
*चंपा षष्ठी पर्व मे कृत्य कर्म*
1. चंपा षष्ठी पूजन के दिनो मे भक्तो को जमीन पर ही सोना चाहिए।
2. व्रती तथा उपासक को चंपा षष्ठी के दिन तेल का बिल्कुल भी सेवन नही करना चाहिए।
3. चंपा षष्ठी पूजन के दिनो मे, तथा चंपा षष्ठी के अगले दिन सप्तमी तिथि तक व्रती तथा उपासको को पूर्ण रूप
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा