Forward from: Your True Friend
प्रश्न - किसी के आने-जाने दे दुःख-सुख क्यों महसूस होता है ?
उत्तर -
इन्सान की रचना ही इस तरह की गई है उसे पूर्ण होने पर भी पूर्णता का एहसास नहीं होता और उसके मन में पूर्ण हो जाने की ईच्छा हमेशा हमेशा बनी रहती है। इसलिए मनुष्य किसी न किसी वस्तु या अन्य मनुष्य के को अपने पास लाकर अपनी पूर्णता को स्थापित करने की नाकाम चेष्टा करता ही रहता है।
और फिर भ्रम उत्पन्न होता है शायद इस वस्तु / व्यक्ति के आने से पूर्णता हो रही है। जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है कुछ क्षण / दिन / महीने के बाद भी उस वस्तु या व्यक्ति से ऊब महसूस होने लगती है। क्योंकि अन्तर्मन जानता है यह कोई पूर्णता नहीं है और फिर हम और नये वस्तु / व्यक्ति की खोज में निकलते हैं।
अगर वह पूर्णता होती तो तुम्हारे अन्दर ऊब नहीं उत्पन्न होती कभी, लेकिन भ्रमवश जब एक वस्तु/व्यक्ति/स्थिति से ऊब होती है तो हम एक दूसरी वस्तु की तलाश में जुट जाते हैं। वहाँ भी वही ऊब आयेगी। उदहारण के लिए - जिस स्त्री/ पुरुष के बारे में लगता है इसके मिल जाने पर जीवन पूर्ण और शान्त हो जायेगी उसी से कुछ दिन ऊब हो जाती है और एक दूसरे का साथ अच्छा नहीं लगता है। जिस मोबाइल / कार / घर आदि को लेने के लिए पूरा जमीन आसमान एक कर देते हैं कुछ दिन बाद उसी से ऊब हो जाती है दूसरे की आवश्यकता महसूस होती है।
अन्तर्मन हमेशा जिस खोज के लिए तुम्हें प्रेरित करता है वह कोई और नहीं वह तुम स्वयं हो। वह तुम्हें तुम्हारी ही खोज के लिए प्रेरणा देती है। यह अपूर्णता तब तक बनी रहेगी जब तक तुम अपनी खोज शुरू नहीं कर देते हो और तब तक तुम्हारा अन्तर्मन तुम्हें नयी खोज के लिए प्रेरित एवं विवश करता रहेगा।
ठीक उसी प्रकार जैसे हिरन अपने नाभि से उठने वाले कस्तूरी की गंध की खोज में भटकता रहता है। उसे वह सुगंध का स्रोत नहीं मिलता, हर बार दिशा परिवर्तन करके दौड़ लगाता रहता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि जब पूर्णता नहीं होती तो किसी वस्तु / व्यक्ति से दूर जाने पर दुःख का एहसास क्यों होता है। उसका मूल कारण है - मोह।
जिस वस्तु / व्यक्ति को पास लाते हो उसके प्रति मोह हो जाता है। और मोह का एक मात्र कारण है हमारी अज्ञानता। हमारी अज्ञानता के कारण जब वस्तु से दूर होते हैं तो ऐसी भाव उत्पन्न होता है शायद उस वस्तु / व्यक्ति से पूर्णता थी जीवन में। लेकिन सच्चाई बिलकुल नहीं है ऐसा, उसके वापस पास रहने से फिर से वही ऊब उत्पन्न होगी।
यह हमेशा बना रहेगा।
जब दो लोग एक साथ रहते हैं, तब भी उनके बीच में कभी दूरियाँ तो कभी नजदीकियाँ बनती ही रहती है। इसलिए जब नजदीकी होती है तो भ्रम के कारण सुखद महसूस होता है और दूरियाँ आती है तो मोह के कारण दुःख का।
इस स्थिति से निकलने का एक मात्र तरीका है - खोज बदलनी होगी। बार-बार वस्तु/व्यक्ति बदलने से या एक ही साथ रहने से यह स्थिति नहीं बदलेगी।
कैसे इस स्थिति से छुटकारा मिल सकता है ?
सारी स्थिति ही उत्पन्न होती है अज्ञानता के कारण इसलिए इससे छुटकारा सिर्फ ज्ञान दे सकता है। ज्ञान का अर्थ ढेर सारी किताबें पढ़ने से नहीं है यहाँ। ज्ञान अर्थात आत्मज्ञान, स्वयं के बारे में जानकारी। जब जानकारी होगी तभी तो गलत और सही का अन्तर कर पायेंगे और उससे छुटकारा पा सकते हैं। उसके लिए योग / ध्यान का अभ्यास करना चाहिये।
आज के समाज में दुःख-सुख का सामंजस्य कैसे किया जाये -
1. अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें
2. अपने शब्दों एवं हृदय में लोगों के लिये करुणा रखें
3. ऐसे साहित्य से बचें जो आपको इस तरह के मानसिक आन्दोलन में धकेलते हैं
4. ऐसे लोगों से कम संसर्ग करें जो इस तरह की प्रवृतियों में लिप्त हैं
5. हमेशा अच्छे लोगों की संगति करें
6. हमेशा अपने दिनचर्या को अपने नियंत्रण में रखें
( आज के युवा के लिए विशेष)
7. समय पर उठो और समय पर बिस्तर में जाने का अभ्यास करो
8. मोबाईल का प्रयोग तुम करो, तुम्हारा प्रयोग मोबाईल को मत करने दो अर्थात मोबाईल प्रयोग उचित तरीके से करो, कम करो
आज के युवा के लिये सन्देश -
आज कल के माहौल में जहाँ यह विचार परोसा जाता है हर किसी का एक प्रेमी और प्रेमिका होना बहुत ही जरूरी है नहीं तो जीवन तो व्यर्थ ही है। सिनेमा, टेलीविजन और मोबाइल बहुत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं ऐसे विचारों को मन में भर देने के लिये। और हम इस दौड़ में लग जाते हैं, आँख बंद करके। जब आँख खुलती है तब खुद को अकेला और क्या करें क्या न करें की स्थिति में पाते हैं।
मेरे मित्रों, जागो इस भ्रम की स्थिति से जागो। अपनी अनभिज्ञता के कारण किसी अनायास दौड़ का हिस्सा नहीं बनो।
रुको, थोड़ी देर ठहरो, अपने विचारों को नियंत्रण दो, अपने वर्तमान को सम्भालो और भविष्य को दिशा दो।
उत्तर -
इन्सान की रचना ही इस तरह की गई है उसे पूर्ण होने पर भी पूर्णता का एहसास नहीं होता और उसके मन में पूर्ण हो जाने की ईच्छा हमेशा हमेशा बनी रहती है। इसलिए मनुष्य किसी न किसी वस्तु या अन्य मनुष्य के को अपने पास लाकर अपनी पूर्णता को स्थापित करने की नाकाम चेष्टा करता ही रहता है।
और फिर भ्रम उत्पन्न होता है शायद इस वस्तु / व्यक्ति के आने से पूर्णता हो रही है। जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है कुछ क्षण / दिन / महीने के बाद भी उस वस्तु या व्यक्ति से ऊब महसूस होने लगती है। क्योंकि अन्तर्मन जानता है यह कोई पूर्णता नहीं है और फिर हम और नये वस्तु / व्यक्ति की खोज में निकलते हैं।
अगर वह पूर्णता होती तो तुम्हारे अन्दर ऊब नहीं उत्पन्न होती कभी, लेकिन भ्रमवश जब एक वस्तु/व्यक्ति/स्थिति से ऊब होती है तो हम एक दूसरी वस्तु की तलाश में जुट जाते हैं। वहाँ भी वही ऊब आयेगी। उदहारण के लिए - जिस स्त्री/ पुरुष के बारे में लगता है इसके मिल जाने पर जीवन पूर्ण और शान्त हो जायेगी उसी से कुछ दिन ऊब हो जाती है और एक दूसरे का साथ अच्छा नहीं लगता है। जिस मोबाइल / कार / घर आदि को लेने के लिए पूरा जमीन आसमान एक कर देते हैं कुछ दिन बाद उसी से ऊब हो जाती है दूसरे की आवश्यकता महसूस होती है।
अन्तर्मन हमेशा जिस खोज के लिए तुम्हें प्रेरित करता है वह कोई और नहीं वह तुम स्वयं हो। वह तुम्हें तुम्हारी ही खोज के लिए प्रेरणा देती है। यह अपूर्णता तब तक बनी रहेगी जब तक तुम अपनी खोज शुरू नहीं कर देते हो और तब तक तुम्हारा अन्तर्मन तुम्हें नयी खोज के लिए प्रेरित एवं विवश करता रहेगा।
ठीक उसी प्रकार जैसे हिरन अपने नाभि से उठने वाले कस्तूरी की गंध की खोज में भटकता रहता है। उसे वह सुगंध का स्रोत नहीं मिलता, हर बार दिशा परिवर्तन करके दौड़ लगाता रहता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि जब पूर्णता नहीं होती तो किसी वस्तु / व्यक्ति से दूर जाने पर दुःख का एहसास क्यों होता है। उसका मूल कारण है - मोह।
जिस वस्तु / व्यक्ति को पास लाते हो उसके प्रति मोह हो जाता है। और मोह का एक मात्र कारण है हमारी अज्ञानता। हमारी अज्ञानता के कारण जब वस्तु से दूर होते हैं तो ऐसी भाव उत्पन्न होता है शायद उस वस्तु / व्यक्ति से पूर्णता थी जीवन में। लेकिन सच्चाई बिलकुल नहीं है ऐसा, उसके वापस पास रहने से फिर से वही ऊब उत्पन्न होगी।
यह हमेशा बना रहेगा।
जब दो लोग एक साथ रहते हैं, तब भी उनके बीच में कभी दूरियाँ तो कभी नजदीकियाँ बनती ही रहती है। इसलिए जब नजदीकी होती है तो भ्रम के कारण सुखद महसूस होता है और दूरियाँ आती है तो मोह के कारण दुःख का।
इस स्थिति से निकलने का एक मात्र तरीका है - खोज बदलनी होगी। बार-बार वस्तु/व्यक्ति बदलने से या एक ही साथ रहने से यह स्थिति नहीं बदलेगी।
कैसे इस स्थिति से छुटकारा मिल सकता है ?
सारी स्थिति ही उत्पन्न होती है अज्ञानता के कारण इसलिए इससे छुटकारा सिर्फ ज्ञान दे सकता है। ज्ञान का अर्थ ढेर सारी किताबें पढ़ने से नहीं है यहाँ। ज्ञान अर्थात आत्मज्ञान, स्वयं के बारे में जानकारी। जब जानकारी होगी तभी तो गलत और सही का अन्तर कर पायेंगे और उससे छुटकारा पा सकते हैं। उसके लिए योग / ध्यान का अभ्यास करना चाहिये।
आज के समाज में दुःख-सुख का सामंजस्य कैसे किया जाये -
1. अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें
2. अपने शब्दों एवं हृदय में लोगों के लिये करुणा रखें
3. ऐसे साहित्य से बचें जो आपको इस तरह के मानसिक आन्दोलन में धकेलते हैं
4. ऐसे लोगों से कम संसर्ग करें जो इस तरह की प्रवृतियों में लिप्त हैं
5. हमेशा अच्छे लोगों की संगति करें
6. हमेशा अपने दिनचर्या को अपने नियंत्रण में रखें
( आज के युवा के लिए विशेष)
7. समय पर उठो और समय पर बिस्तर में जाने का अभ्यास करो
8. मोबाईल का प्रयोग तुम करो, तुम्हारा प्रयोग मोबाईल को मत करने दो अर्थात मोबाईल प्रयोग उचित तरीके से करो, कम करो
आज के युवा के लिये सन्देश -
आज कल के माहौल में जहाँ यह विचार परोसा जाता है हर किसी का एक प्रेमी और प्रेमिका होना बहुत ही जरूरी है नहीं तो जीवन तो व्यर्थ ही है। सिनेमा, टेलीविजन और मोबाइल बहुत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं ऐसे विचारों को मन में भर देने के लिये। और हम इस दौड़ में लग जाते हैं, आँख बंद करके। जब आँख खुलती है तब खुद को अकेला और क्या करें क्या न करें की स्थिति में पाते हैं।
मेरे मित्रों, जागो इस भ्रम की स्थिति से जागो। अपनी अनभिज्ञता के कारण किसी अनायास दौड़ का हिस्सा नहीं बनो।
रुको, थोड़ी देर ठहरो, अपने विचारों को नियंत्रण दो, अपने वर्तमान को सम्भालो और भविष्य को दिशा दो।