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जीवन जिसकी एक विशेष प्रणाली में जन्म और मृत्य की गजब गजब के अकल्पनीय चक्र हैं।
जीवन जिसका एक मात्र उद्देश्य जन्म लेना और उसके उपरांत अपने नित्य कार्यों में संलग्न होना नही हैं उसका संलग्न प्रभु कि अपार महिमा से पूर्ण स्वयं को विलिन करना है , यह जीवन का मोल मीठी बेर से भी कई अधिक लुभावनी अथवा ध्यानकेंद्रक हैं, इसको संतुलन की जरूरत होती हैं इसीलिए समय समय पर प्रभु कि महिमा का गुणगान किया करो ।
जीवन उस अभिलेख की तरह बना बना लो जिसकी स्याही सिर्फ प्रभु के नाम से भरी पड़ी हो और उस कलम के द्वारा अंकित हर एक शब्द प्रभु के लिए पूर्तः समर्पित हो
जीवन जिसका एक मात्र उद्देश्य जन्म लेना और उसके उपरांत अपने नित्य कार्यों में संलग्न होना नही हैं उसका संलग्न प्रभु कि अपार महिमा से पूर्ण स्वयं को विलिन करना है , यह जीवन का मोल मीठी बेर से भी कई अधिक लुभावनी अथवा ध्यानकेंद्रक हैं, इसको संतुलन की जरूरत होती हैं इसीलिए समय समय पर प्रभु कि महिमा का गुणगान किया करो ।
जीवन उस अभिलेख की तरह बना बना लो जिसकी स्याही सिर्फ प्रभु के नाम से भरी पड़ी हो और उस कलम के द्वारा अंकित हर एक शब्द प्रभु के लिए पूर्तः समर्पित हो