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प्रेम तो राधा और कृष्ण से निर्मित उन्ही का एक अंश है जो सिर्फ़ और सिर्फ़ उनपर ही शोभित होता
प्रेम एक निर्मल और स्वान की तरह आकर्षित स्थिति होती है जिसका किसी अन्य व्यक्ति द्वारा विभिन्न तरीकों से मूलत; अपने महिला मित्र को प्रसन्न करने के लिए बनावटी शब्दो और अन्य अनादि प्रकार के कृत्य किए जाते है।
प्रेम को कलयुग में प्यार शब्द से परिस्भाषित कर इसका बाहुल्य मात्रा में दुरुपयोग किया जा रहा है,
हर एक पुरुष अथवा महिला स्वय को प्यार से लाभांचित करने की चेष्टा रख रहा है , यह कार्यकर्म की तरह से प्रदर्शित हो चुका है जिसमे हर एक को हर बार एक साथी की तलाश रहती है ।
कलयुग का प्यार ही संभोग की पहली सीढ़ी है।
सच तो ये है कलयुग में प्रेम का प्रभाव सिर्फ ईश्वर और उनके निश्वार्थ भाव वाले भक्त अथवा पुत्र के बीच ही उत्पन्न हो सकता है ।