Forward from: सनातनी हरिप्रकाश सरोहा सरोहा
मगर सब के सब सैनिक बनने को तैयार थे।
इसलिए उसने इस देश पर राज किया। देश के कई हिस्सों को हमेशा के लिए अलग करने की नीव रख दिया।
हिन्दुस्तान के हर गॉव, हर कस्बे से, केवल एक सैनिक हिन्दुस्तान की रक्षा के लिए खडा हो जाता तो अंक्रान्ताओ की हिम्मत न होती हिन्दुस्तान के ऊपर आंख उठाकर देखने की...
हमने जमीन ही नहीं सभ्यता भी गवॉई।
किसी प्रदेश से सभ्यता का खत्म हो जाना क्या होता है।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण कश्मीर है जहां के हिंदू राजा हरिसिंह के होते हुए भी कश्मीर हिंदुस्तान के लिए आजतक सिरदर्द है। क्योंकि वे प्रदेश में सनातन सभ्यता को नही बचा सके थे।
वही हैदराबाद मुस्लिम निजाम के हाथ मे होने के बावजूद आज वह भारत का अटूट हिस्सा है सिर्फ इसलिए कि वहां सनातन सभ्यता को खत्म नही कर सके थे।
सेक्यूलरो का तकिया कल गंगा यमुनी तहजीब की बात मात्र छलावा है।
आखिर मुस्लिमो के नाम अरबी, पैगम्बर अरबी, गृन्थ अरबी, महिलाओं का पहनावा अरबी। भोजन, रहन सहन, सभ्यता सब अरबी है।
इन अरबियो का न तो गगां से न वास्ता है न यमुना से वास्ता है।
यदि सही में मुस्लिमों का गंगा-जमुना संस्कृति से वास्ता होता तो यह गंगा यमुनी संस्कृति मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में भी दिखाई देती।
पाकिस्तान बांग्लादेश कश्मीर मे भी दिखाई देती।
मगर वहॉ कही नही दिखता।
देखा जाय तो यह गगां यमुनी संस्कृति अल्पसंख्यक होने की मजबूरी मे किया जाने वाला अल तकिया( छल) ही है।
हम स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की खुशियां मनाते हैं हम कोई अफ्रीकी कबीले समुदाय से नही है..
जो पहली बार स्वतंत्रता देखी हो.. या गणतत्र देखा है..
*बच्चों को यह बताने की बजाय कि हम स्वतंत्र कैसे हुए यह बताना अच्छा रहेगा कि हम गुलाम कैसे हो गए*
ताकि भविष्य की चुनौतियों सामना करने वाली एक पीढ़ी हम तैयार कर सके
हमारे पुरखो ने 15 - 20000 साल पहले हमने उपनिषद लिख डाली 5000 साल पहले गीता लिखी गई।
अध्यात्म की यह सर्वोच्च ग्रंथ है तात्कालिक समय मे लिखी गयी
जब शेष दुनिया खाने पहनने का सलीका भी सीख नही पायी थी।
जरूरत है इस दिन बच्चों को यह सिखाने की कि किन वजहों से हमारी यह हालात हुई थी।
जरुरत है यह सिखाये जाने की कि भारत आज भविष्य की किन चुनौतियों का सामना कर रहा है।
यह सभ्यता का संघर्ष क्या है?
सभ्यता का संघर्ष मोहम्मद बिन कासिम के बाद से आज तक जारी है अलग-अलग रूपों जारी है।
कभी हमलावर अक्रान्ता के रूप में। कभी आतंकवाद के रूप में।
कभी जिहाद के रूप में।
तो लोकतत्रं में यहॉ सेकुलरिज्म के नाम पर अल्पसंख्यक बाद के रूप में।
मगर इस लड़ाई के प्रारूप को समझे बिना लड़ाई में जीत हरगिज संभव नहीं है।
लडाई किससे मुसलमान से नही इस्लाम से है।
अरबी सभ्यता से है।
मुसलमान तो एक समाज है, हिन्दू समाज की ही तरह से है।
*देश के लिए इस्लाम एक रोग है*
रोग फैलने पर अंग काटने की नौबत आती है।
इस्लाम के फैलने पर देश टूटने की नौबत आती है
इस लडाई मे हिन्दू सिक्ख बौद्ध जैन सहित इसाई और मुस्लिम समुदाय से भी मदद लेनी होगी।
*रोगी को साथ लिए बिना रोग का इलाज सम्भव नही है।*
चाहे वह इसके लिए रोगी राजी हो चाहे ना हो
हमे तो रोगी से नही रोग से परहेज करना चाहिए।
जैसे टीबी के मरीज से नही टीबी के संक्रमण की रोकथाम करनी चाहिए।
मुस्लिम की नही, इस्लामी संक्रमण की रोकथाम करनी होगी।
योगी जी का नया नामकरण इस्लामी संक्रमण से मुक्ति का ही मार्ग है।
जबकि सेक्यूलर दलो का मार्ग स्पष्ट रूप से अरबी सभ्यता के प्रसार का मार्ग है।
और अरबी सभ्यता के प्रसार के मार्ग पर ही देश के बटवारे की नीव है।
इसलिए सनद रहे यह लड़ाई योगी या मोदी के अकेले की नहीं है।
लडाई मोदी बनाम राहुल भी नही है।
यह लड़ाई अरबी सभ्यता बनाम सनातन सभ्यता के बीच की है
राजा जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी की लड़ाई को व्यक्तिगत लड़ाई समझने की गलती की थी..
यदि यही गलती हमने फिर दोबारा की , तब इतिहास हमें माफ नहीं करेगा..
कम से कम योगी जी को लड़ाई का प्रारूप पता है।
उन्हें राम मंदिर का महत्व और हिंदूस्तानी नामकरण का महत्व भी पता है।
उन्हे देश के अस्तित्व के लिए सनातन परंपरा और विरासत का महत्व पता है
सेक्यूलरो ने नीद की एसी घुट्टी पिलाई है कि।
नीद मे कहते हो। *बात कुछ ऐसी है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।*
नीद से उठकर देखो।
*दूर दूर तक बस्ती दिखती नही हमारी*
800 साल की नीद बहुत होती है।
अब भी न जागे तो कल कहोगे।
अब तो कोई हस्ती बचती नही हमारी।
🚩🚩जय जय श्री राम 🚩🚩
इसलिए उसने इस देश पर राज किया। देश के कई हिस्सों को हमेशा के लिए अलग करने की नीव रख दिया।
हिन्दुस्तान के हर गॉव, हर कस्बे से, केवल एक सैनिक हिन्दुस्तान की रक्षा के लिए खडा हो जाता तो अंक्रान्ताओ की हिम्मत न होती हिन्दुस्तान के ऊपर आंख उठाकर देखने की...
हमने जमीन ही नहीं सभ्यता भी गवॉई।
किसी प्रदेश से सभ्यता का खत्म हो जाना क्या होता है।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण कश्मीर है जहां के हिंदू राजा हरिसिंह के होते हुए भी कश्मीर हिंदुस्तान के लिए आजतक सिरदर्द है। क्योंकि वे प्रदेश में सनातन सभ्यता को नही बचा सके थे।
वही हैदराबाद मुस्लिम निजाम के हाथ मे होने के बावजूद आज वह भारत का अटूट हिस्सा है सिर्फ इसलिए कि वहां सनातन सभ्यता को खत्म नही कर सके थे।
सेक्यूलरो का तकिया कल गंगा यमुनी तहजीब की बात मात्र छलावा है।
आखिर मुस्लिमो के नाम अरबी, पैगम्बर अरबी, गृन्थ अरबी, महिलाओं का पहनावा अरबी। भोजन, रहन सहन, सभ्यता सब अरबी है।
इन अरबियो का न तो गगां से न वास्ता है न यमुना से वास्ता है।
यदि सही में मुस्लिमों का गंगा-जमुना संस्कृति से वास्ता होता तो यह गंगा यमुनी संस्कृति मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में भी दिखाई देती।
पाकिस्तान बांग्लादेश कश्मीर मे भी दिखाई देती।
मगर वहॉ कही नही दिखता।
देखा जाय तो यह गगां यमुनी संस्कृति अल्पसंख्यक होने की मजबूरी मे किया जाने वाला अल तकिया( छल) ही है।
हम स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की खुशियां मनाते हैं हम कोई अफ्रीकी कबीले समुदाय से नही है..
जो पहली बार स्वतंत्रता देखी हो.. या गणतत्र देखा है..
*बच्चों को यह बताने की बजाय कि हम स्वतंत्र कैसे हुए यह बताना अच्छा रहेगा कि हम गुलाम कैसे हो गए*
ताकि भविष्य की चुनौतियों सामना करने वाली एक पीढ़ी हम तैयार कर सके
हमारे पुरखो ने 15 - 20000 साल पहले हमने उपनिषद लिख डाली 5000 साल पहले गीता लिखी गई।
अध्यात्म की यह सर्वोच्च ग्रंथ है तात्कालिक समय मे लिखी गयी
जब शेष दुनिया खाने पहनने का सलीका भी सीख नही पायी थी।
जरूरत है इस दिन बच्चों को यह सिखाने की कि किन वजहों से हमारी यह हालात हुई थी।
जरुरत है यह सिखाये जाने की कि भारत आज भविष्य की किन चुनौतियों का सामना कर रहा है।
यह सभ्यता का संघर्ष क्या है?
सभ्यता का संघर्ष मोहम्मद बिन कासिम के बाद से आज तक जारी है अलग-अलग रूपों जारी है।
कभी हमलावर अक्रान्ता के रूप में। कभी आतंकवाद के रूप में।
कभी जिहाद के रूप में।
तो लोकतत्रं में यहॉ सेकुलरिज्म के नाम पर अल्पसंख्यक बाद के रूप में।
मगर इस लड़ाई के प्रारूप को समझे बिना लड़ाई में जीत हरगिज संभव नहीं है।
लडाई किससे मुसलमान से नही इस्लाम से है।
अरबी सभ्यता से है।
मुसलमान तो एक समाज है, हिन्दू समाज की ही तरह से है।
*देश के लिए इस्लाम एक रोग है*
रोग फैलने पर अंग काटने की नौबत आती है।
इस्लाम के फैलने पर देश टूटने की नौबत आती है
इस लडाई मे हिन्दू सिक्ख बौद्ध जैन सहित इसाई और मुस्लिम समुदाय से भी मदद लेनी होगी।
*रोगी को साथ लिए बिना रोग का इलाज सम्भव नही है।*
चाहे वह इसके लिए रोगी राजी हो चाहे ना हो
हमे तो रोगी से नही रोग से परहेज करना चाहिए।
जैसे टीबी के मरीज से नही टीबी के संक्रमण की रोकथाम करनी चाहिए।
मुस्लिम की नही, इस्लामी संक्रमण की रोकथाम करनी होगी।
योगी जी का नया नामकरण इस्लामी संक्रमण से मुक्ति का ही मार्ग है।
जबकि सेक्यूलर दलो का मार्ग स्पष्ट रूप से अरबी सभ्यता के प्रसार का मार्ग है।
और अरबी सभ्यता के प्रसार के मार्ग पर ही देश के बटवारे की नीव है।
इसलिए सनद रहे यह लड़ाई योगी या मोदी के अकेले की नहीं है।
लडाई मोदी बनाम राहुल भी नही है।
यह लड़ाई अरबी सभ्यता बनाम सनातन सभ्यता के बीच की है
राजा जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी की लड़ाई को व्यक्तिगत लड़ाई समझने की गलती की थी..
यदि यही गलती हमने फिर दोबारा की , तब इतिहास हमें माफ नहीं करेगा..
कम से कम योगी जी को लड़ाई का प्रारूप पता है।
उन्हें राम मंदिर का महत्व और हिंदूस्तानी नामकरण का महत्व भी पता है।
उन्हे देश के अस्तित्व के लिए सनातन परंपरा और विरासत का महत्व पता है
सेक्यूलरो ने नीद की एसी घुट्टी पिलाई है कि।
नीद मे कहते हो। *बात कुछ ऐसी है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।*
नीद से उठकर देखो।
*दूर दूर तक बस्ती दिखती नही हमारी*
800 साल की नीद बहुत होती है।
अब भी न जागे तो कल कहोगे।
अब तो कोई हस्ती बचती नही हमारी।
🚩🚩जय जय श्री राम 🚩🚩