आज 5 एकड़ का जो कलंक अयोध्या में हिन्दुओं के माथे पर लग गया है उसके एकमात्र दोषी कोई और नही बल्कि भाजपा, आरएसएस और विश्वहिंदू परिषद हैं। ये संघी कहाँ भारत से इस्लाम मिटाने की बात करते थे और आज कहाँ अयोध्या में 5 एकड़ जमीन मुस्लिमो को दिलवा दिए बाकी बेटियां तो पहले से ही मुसलमानों को ब्याहने की परम्परा संघ में रही है जिसका ताजा उदाहरण भाजपा संघ का नेता राम लाल गुप्ता है। जिसने फैजान करीम से अपनी बेटी ब्याही जिसमे उत्तर प्रदेश की योगी कैबिनेट सम्मिलित हुई थी।
●3 अप्रैल 1993 को, शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के दबाव में, नरसिम्हा राव ने "द एक्विजिसन ऑफ सर्टेन एरिया एट अयोध्या एक्ट, 1993" बनाकर 67 अकड़ जमीन अधिग्रहित की, जो हिन्दू और मुसलमानों दोनो से लिया गया है।
●27 जून 1993 में पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी ने श्रृंगेरी में चतुष्पीठ सम्मेलन बुलवाया, जिसमे पूज्य स्वामी निश्चलानंद जी के अलावा, काँची के आचार्य को भी बुलवाया यद्यपि वो चारो पीठो से अलग है फिर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज चाहते थे सबको एक साथ जोड़ा जाए।
●चतुष्पीठ सम्मेलन में ये तय हुआ कि नया राम मन्दिर पहले से बहुत विशाल अंकोरवाट के तर्ज पर धर्माचार्य बनाएंगे न कि राजनैतिक लोग। स्वामी स्वरूपानंद जी ने अंकोरवाट के जैसे विशाल राम मन्दिर के लिए पहले ही सब सोचा हुआ था इसलिए चतुष्पीठ सम्मेलन से पहले ही जमीन अधिग्रहण करवा दिया था जिससे भव्य मन्दिर बने। फिर चतुष्पीठ सम्मेलन बुलवा कर यह घोषणा करवाया कि राम मन्दिर के लिए देश के सभी प्रमुख आचार्य रामालय यानी राम का घर न्यास बनाएंगे जिसमे सभी शंकराचार्यों सहीत, सभी वैष्णवाचार्य, सभी अखाड़ो के आचार्य सहित कुल 25 लोग रहेंगे। जिसमें शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज स्वयं शामिल थे और उन्होंने बाकायदा हस्ताक्षर भी किया था।
● फिर जब अगले वर्ष रामालय न्यास कि बैठक काशी में हुआ जिसमें श्रृंगेरी शंकराचार्य, ज्योतिष एवं द्वारिका शंकराचार्य सहित अनेक शीर्ष प्रमुख वैष्णवाचार्य सहित अनेक अन्य आचार्य सम्मिलित हुए तो उसमें अकेले पुरि शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी ने आने से मना कर दिया,
ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि उन्हें उनके कुछ करीबियों ने गलत जानकारी दे दी कि रामालय न्यास मन्दिर और मस्जिद दोनो बना रहा है।
अन्यथा जिस रामालय न्यास में भारत के प्रमुख 25 आचार्यों में ज्योतिष एवं द्वारिकाशारदा शंकराचार्य, श्रृंगेरी शंकराचार्य, काँची के आचार्य, रामानंदाचार्य, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य, उडुपी के पेजावर स्वामी, 13 अखाड़ो के आचार्य सहित अन्य सब राम जन्मभूमि के स्थान पर मन्दिर के साथ मस्जिद कैसे बनवा सकते थे। उनका ऐसा कहना अपने आप मे कितना यह सिद्ध करता है कि पूज्य पूरी शंकराचार्य को किसी उनके करीबी ने जानबूझ कर गलत जानकारी दे दी थी।
हमने रामालय न्यास का पूरा उद्देश्य पढ़ा है जिसमे कही भी मन्दिर के साथ मस्जिद की बात नही है।
● स्वामी स्वरूपानंद जी अपना प्रयास नही छोड़े और लगातार न्यायालय में लड़ते रहे। कोर्ट में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी प्रमुख पक्षकार के रूप में रहे और इनका प्रमुख लड़ाई इस बात पे ही थी कि इतिहास में कही यह प्रमाण नही मिलता कि कभी बाबर या उसका सिपहसलार अयोध्या में आया और राम मन्दिर को तोड़ा अतः उस स्थान पर मुलसमानों का कोई अधिकार ही सिद्ध नही होता। इस बात के सैकड़ो साक्ष्य इकट्ठा किया गया और सबसे पहले हाई कोर्ट में 90 दिन की सुनवाई में 24 दिन लगातार इनके अधिवक्ता श्री पी एन मिश्र जी एवं सुश्री रंजना अग्निहोत्री जी ने बहस की और जब हाई कोर्ट का फैसला आया तो कोर्ट ने स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज का विशेष धन्यवाद किया जो कि समिति के उपाध्यक्ष है और कोर्ट में इन्होंने बड़ी अद्भुत प्रमाण प्रस्तुत कर गवाही दी। उसी बात को उच्चतम न्यायालय ने सीधे बिना किसी विवाद के स्वीकार किया और यह माना कि विवादित भूमि ही राम जन्मभूमि है सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन की बहस में अकेले 9 दिन की बहस शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के वकील ने की और जब हमारे वकील श्री पी एन मिश्र जी और सुश्री रंजना अग्निहोत्री जी न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित होते थे तो न्यायाधीश हाथ बांध कर चुपचाप इन्हें ही सुनते थे। जबकि इस केस कुल 20 पक्षकार थें। इलाहाबाद हाई कोर्ट में तो पूज्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज हिन्दुओं के ओर से धार्मिक विशेषज्ञ के रूप में प्रस्तुत होकर एक महीने तक सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक गवाही देते रहे, वो स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज ही थें जिनके प्रमाणों के आधार पर यह तय हो पाया कि रामजन्मभूमि वास्तव में वही स्थान है जहाँ श्रीरामलला का जन्म हुआ था। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में पूज्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज का ना
●3 अप्रैल 1993 को, शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के दबाव में, नरसिम्हा राव ने "द एक्विजिसन ऑफ सर्टेन एरिया एट अयोध्या एक्ट, 1993" बनाकर 67 अकड़ जमीन अधिग्रहित की, जो हिन्दू और मुसलमानों दोनो से लिया गया है।
●27 जून 1993 में पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी ने श्रृंगेरी में चतुष्पीठ सम्मेलन बुलवाया, जिसमे पूज्य स्वामी निश्चलानंद जी के अलावा, काँची के आचार्य को भी बुलवाया यद्यपि वो चारो पीठो से अलग है फिर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज चाहते थे सबको एक साथ जोड़ा जाए।
●चतुष्पीठ सम्मेलन में ये तय हुआ कि नया राम मन्दिर पहले से बहुत विशाल अंकोरवाट के तर्ज पर धर्माचार्य बनाएंगे न कि राजनैतिक लोग। स्वामी स्वरूपानंद जी ने अंकोरवाट के जैसे विशाल राम मन्दिर के लिए पहले ही सब सोचा हुआ था इसलिए चतुष्पीठ सम्मेलन से पहले ही जमीन अधिग्रहण करवा दिया था जिससे भव्य मन्दिर बने। फिर चतुष्पीठ सम्मेलन बुलवा कर यह घोषणा करवाया कि राम मन्दिर के लिए देश के सभी प्रमुख आचार्य रामालय यानी राम का घर न्यास बनाएंगे जिसमे सभी शंकराचार्यों सहीत, सभी वैष्णवाचार्य, सभी अखाड़ो के आचार्य सहित कुल 25 लोग रहेंगे। जिसमें शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज स्वयं शामिल थे और उन्होंने बाकायदा हस्ताक्षर भी किया था।
● फिर जब अगले वर्ष रामालय न्यास कि बैठक काशी में हुआ जिसमें श्रृंगेरी शंकराचार्य, ज्योतिष एवं द्वारिका शंकराचार्य सहित अनेक शीर्ष प्रमुख वैष्णवाचार्य सहित अनेक अन्य आचार्य सम्मिलित हुए तो उसमें अकेले पुरि शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी ने आने से मना कर दिया,
ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि उन्हें उनके कुछ करीबियों ने गलत जानकारी दे दी कि रामालय न्यास मन्दिर और मस्जिद दोनो बना रहा है।
अन्यथा जिस रामालय न्यास में भारत के प्रमुख 25 आचार्यों में ज्योतिष एवं द्वारिकाशारदा शंकराचार्य, श्रृंगेरी शंकराचार्य, काँची के आचार्य, रामानंदाचार्य, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य, उडुपी के पेजावर स्वामी, 13 अखाड़ो के आचार्य सहित अन्य सब राम जन्मभूमि के स्थान पर मन्दिर के साथ मस्जिद कैसे बनवा सकते थे। उनका ऐसा कहना अपने आप मे कितना यह सिद्ध करता है कि पूज्य पूरी शंकराचार्य को किसी उनके करीबी ने जानबूझ कर गलत जानकारी दे दी थी।
हमने रामालय न्यास का पूरा उद्देश्य पढ़ा है जिसमे कही भी मन्दिर के साथ मस्जिद की बात नही है।
● स्वामी स्वरूपानंद जी अपना प्रयास नही छोड़े और लगातार न्यायालय में लड़ते रहे। कोर्ट में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी प्रमुख पक्षकार के रूप में रहे और इनका प्रमुख लड़ाई इस बात पे ही थी कि इतिहास में कही यह प्रमाण नही मिलता कि कभी बाबर या उसका सिपहसलार अयोध्या में आया और राम मन्दिर को तोड़ा अतः उस स्थान पर मुलसमानों का कोई अधिकार ही सिद्ध नही होता। इस बात के सैकड़ो साक्ष्य इकट्ठा किया गया और सबसे पहले हाई कोर्ट में 90 दिन की सुनवाई में 24 दिन लगातार इनके अधिवक्ता श्री पी एन मिश्र जी एवं सुश्री रंजना अग्निहोत्री जी ने बहस की और जब हाई कोर्ट का फैसला आया तो कोर्ट ने स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज का विशेष धन्यवाद किया जो कि समिति के उपाध्यक्ष है और कोर्ट में इन्होंने बड़ी अद्भुत प्रमाण प्रस्तुत कर गवाही दी। उसी बात को उच्चतम न्यायालय ने सीधे बिना किसी विवाद के स्वीकार किया और यह माना कि विवादित भूमि ही राम जन्मभूमि है सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन की बहस में अकेले 9 दिन की बहस शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के वकील ने की और जब हमारे वकील श्री पी एन मिश्र जी और सुश्री रंजना अग्निहोत्री जी न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित होते थे तो न्यायाधीश हाथ बांध कर चुपचाप इन्हें ही सुनते थे। जबकि इस केस कुल 20 पक्षकार थें। इलाहाबाद हाई कोर्ट में तो पूज्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज हिन्दुओं के ओर से धार्मिक विशेषज्ञ के रूप में प्रस्तुत होकर एक महीने तक सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक गवाही देते रहे, वो स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज ही थें जिनके प्रमाणों के आधार पर यह तय हो पाया कि रामजन्मभूमि वास्तव में वही स्थान है जहाँ श्रीरामलला का जन्म हुआ था। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में पूज्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज का ना