म लिखकर धन्यवाद किया है और कहा है कि आपके प्रमाणों के आधार पर ही हम फैसला देने में सफल हो पाए। यही नही, हाई कोर्ट के इस प्रमाण को सीधे सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को सुलझाने के लिए स्वीकार किया और अपने फैसले में बकायदे स्वामी जी और अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति सहित हमारे अधिवक्ता पी एन मिश्र जी का नाम लेकर धन्यवाद किया है जिसका प्रमाण न्यायालय के 1045 पन्ने के न्यायादेश अर्थात जजमेंट से कोई भी पढ़ सकता है। जिसमे 50 से अधिक बार शंकराचार्य जी के अधिवक्ता, उनके शिष्य प्रतिनिधि का नाम आया है जबकि संघ विश्व हिंदू परिषद का नाम नही आया है क्योंकि वो थे ही नही न्यायालय में।
हाई कोर्ट के लगभग 6 हजार और सुप्रीम कोर्ट के लगभग 1000 पन्ने के फैसले को पढ़कर कोई भी व्यक्ति यह समझ सकता है कि पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने रामजन्मभूमि के लिए क्या किया और तथाकथित अन्य आचार्यों, संगठनों और नेताओं ने क्या किया?
●शंकराचार्य और हमारे अधिवक्ता श्री पी एन मिश्रा जी ने यह मानने से ही मना कर दिया कि विवादित ढाँचा मस्जिद था और कभी बाबर या उसका कोई आदमी वहाँ आया जिसका प्रमाण हमारे अधिवक्ता ने न्यायालय में दिया जिसके आधार पर न्यायालय ने हिन्दुओं के पक्ष में फैसला सुनाया और पी एन मिश्र जी का धन्यवाद किया। इससे यह भी सिद्ध हो गया था कि संघियों ने बाबरी मस्जिद के नाम पर राम मन्दिर ही तोड़वाया था। अतः यह कहना कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी ने रामालय न्यास के माध्यम से मन्दिर के साथ मस्जिद बनवाना चाहते थे ये एक बहुत बड़ा झूठ है।
कांक्षी सरकार नाम की झांसी जिले की एक विशाल सभा में अयोध्या की मणिराम छावनी के महन्त नृत्यगोपाल दास जी ने शंकराचार्य जी से सार्वजनिक रूप से अनुरोध किया कि हम रामजन्मभूमि के मामले को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं आप आगे आइये । तब महाराज श्री ने श्रीरामजन्मभूमि परिक्रमा महासपर्या कार्यक्रम बनाया और लगभग पचास हजार लोगों के साथ महाराज श्री ने श्रीरामजन्मभूमि की परिक्रमा की ।
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने रामजन्मभूमि की बाधाओं के निराकरण के लिये सवा लाख आदित्य हृदय का पाठ करवाया।
उन्होंने इस कार्य में आध्यात्मिक उपाय के रूप में सवा लाख रामचरितमानस का पाठ करवाने का संकल्प लिया जिसे मानस महासपर्या के नाम से आज भी जारी रखा गया है और जिसमें लगभग चालीस हजार पाठ अभी तक हो चुके हैं ।
पूज्य शंकराचार्य जी ने रामजन्मभूमि की बाधाओं के अपसारण हेतु छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी के किनारे बेमेतरा जिले में सवा लाख शिवलिंग मन्दिर की स्थापना कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि शिव जी की कृपा हो जायेगी तो राम जी का मन्दिर बन जायेगा । वे कहते हैं कि रामजी ने रामेश्वर की स्थापना कर अपने इष्ट की पूजा कर ली है अब शिवजी की भारी है कि वे अब रामजन्मभूमि को बाधारहित करवावें ।
● 25,26,27 नवम्बर 2018 में काशी में परम धर्म संसद 1008 के तत्वाधान में देश भर के कानूनी विद्वानों से चर्चा करके, धर्म संसद में प्रस्ताव पारित कराके, जगद्गुरु ने सरकार को राम मन्दिर का मामला कोर्ट से खींचकर संसद में लाकर संसद से कानून बनाकर राम मन्दिर बनाने का संवैधानिक तरीका भेजा जिसपर केंद्र सरकार ने कोई जवाब नही दिया क्योंकि उनको 2019 की चुनावी राजनीति करनी थी।
●28,29,30 जनवरी 2019 को परमधर्म संसद 1008 के दूसरे सम्मेलन में संसद में प्रस्तावित बिल के आधार पर अयोध्या जाकर राम मन्दिर निर्माण करने का तारिक घोषित किया पर उसके ठीक पहले पुलवामा हमले के कारण देश को शोक में डूबा देख इस यात्रा को रद्द किया ।
● जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने पिछले 30 वर्षों में राम मन्दिर के लड़ाई में कई करोड़ रुपये खर्च कर दिये। इसके अलावा शंकराचार्य के पद पर रहते हुए जेल यात्रा सहित अनेक यातनाएं भी सह ली पर कभी हिन्दुओ से एक रुपया राम के नाम पर चन्दा नही मांगा, न ही कभी इसके लिए वोट मांगा।
●इतना कुछ करने के बावजूद भी आज 98 वर्षीय एक स्वतन्त्रता सेनानी जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज को अपने आप को हिन्दू कहने वाले संघी, भाजपाइयों ने उनकी आलोचना, उनको गालियां देने के सिवाय आजतक क्या दिया?
यही नही आजतक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्वहिन्दू परिषद ने राम के लिए सिवाय वोट और चंदा लेने के अलावा कुछ नही किया कोर्ट में भाजपा, संघ, विश्व हिन्दू परिषद ने राम के लिए एक पन्ना तक जमा नही किया, केस लड़ने की बात ही क्या करनी। कोर्ट केस में पक्षकार के रूप में कही इनका नाम नही है।
●वर्तमान में राम मन्दिर बनाने के लिए न्यायालय का जो आदेश आया है उसके हिसाब से यह मौका रामालय न्यास को मिलना चाहिए था क्योंकि "द एक्विजिसन ऑफ सर्टेन एरिया एट अयोध्या एक्ट, 1993" के हिसाब से एक मात्र रामालय न्यास ही है जो एक्ट के सारे शर्तो को पूरा करता है। और इसके लिए सारी तैयारी
हाई कोर्ट के लगभग 6 हजार और सुप्रीम कोर्ट के लगभग 1000 पन्ने के फैसले को पढ़कर कोई भी व्यक्ति यह समझ सकता है कि पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने रामजन्मभूमि के लिए क्या किया और तथाकथित अन्य आचार्यों, संगठनों और नेताओं ने क्या किया?
●शंकराचार्य और हमारे अधिवक्ता श्री पी एन मिश्रा जी ने यह मानने से ही मना कर दिया कि विवादित ढाँचा मस्जिद था और कभी बाबर या उसका कोई आदमी वहाँ आया जिसका प्रमाण हमारे अधिवक्ता ने न्यायालय में दिया जिसके आधार पर न्यायालय ने हिन्दुओं के पक्ष में फैसला सुनाया और पी एन मिश्र जी का धन्यवाद किया। इससे यह भी सिद्ध हो गया था कि संघियों ने बाबरी मस्जिद के नाम पर राम मन्दिर ही तोड़वाया था। अतः यह कहना कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी ने रामालय न्यास के माध्यम से मन्दिर के साथ मस्जिद बनवाना चाहते थे ये एक बहुत बड़ा झूठ है।
कांक्षी सरकार नाम की झांसी जिले की एक विशाल सभा में अयोध्या की मणिराम छावनी के महन्त नृत्यगोपाल दास जी ने शंकराचार्य जी से सार्वजनिक रूप से अनुरोध किया कि हम रामजन्मभूमि के मामले को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं आप आगे आइये । तब महाराज श्री ने श्रीरामजन्मभूमि परिक्रमा महासपर्या कार्यक्रम बनाया और लगभग पचास हजार लोगों के साथ महाराज श्री ने श्रीरामजन्मभूमि की परिक्रमा की ।
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने रामजन्मभूमि की बाधाओं के निराकरण के लिये सवा लाख आदित्य हृदय का पाठ करवाया।
उन्होंने इस कार्य में आध्यात्मिक उपाय के रूप में सवा लाख रामचरितमानस का पाठ करवाने का संकल्प लिया जिसे मानस महासपर्या के नाम से आज भी जारी रखा गया है और जिसमें लगभग चालीस हजार पाठ अभी तक हो चुके हैं ।
पूज्य शंकराचार्य जी ने रामजन्मभूमि की बाधाओं के अपसारण हेतु छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी के किनारे बेमेतरा जिले में सवा लाख शिवलिंग मन्दिर की स्थापना कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि शिव जी की कृपा हो जायेगी तो राम जी का मन्दिर बन जायेगा । वे कहते हैं कि रामजी ने रामेश्वर की स्थापना कर अपने इष्ट की पूजा कर ली है अब शिवजी की भारी है कि वे अब रामजन्मभूमि को बाधारहित करवावें ।
● 25,26,27 नवम्बर 2018 में काशी में परम धर्म संसद 1008 के तत्वाधान में देश भर के कानूनी विद्वानों से चर्चा करके, धर्म संसद में प्रस्ताव पारित कराके, जगद्गुरु ने सरकार को राम मन्दिर का मामला कोर्ट से खींचकर संसद में लाकर संसद से कानून बनाकर राम मन्दिर बनाने का संवैधानिक तरीका भेजा जिसपर केंद्र सरकार ने कोई जवाब नही दिया क्योंकि उनको 2019 की चुनावी राजनीति करनी थी।
●28,29,30 जनवरी 2019 को परमधर्म संसद 1008 के दूसरे सम्मेलन में संसद में प्रस्तावित बिल के आधार पर अयोध्या जाकर राम मन्दिर निर्माण करने का तारिक घोषित किया पर उसके ठीक पहले पुलवामा हमले के कारण देश को शोक में डूबा देख इस यात्रा को रद्द किया ।
● जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने पिछले 30 वर्षों में राम मन्दिर के लड़ाई में कई करोड़ रुपये खर्च कर दिये। इसके अलावा शंकराचार्य के पद पर रहते हुए जेल यात्रा सहित अनेक यातनाएं भी सह ली पर कभी हिन्दुओ से एक रुपया राम के नाम पर चन्दा नही मांगा, न ही कभी इसके लिए वोट मांगा।
●इतना कुछ करने के बावजूद भी आज 98 वर्षीय एक स्वतन्त्रता सेनानी जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज को अपने आप को हिन्दू कहने वाले संघी, भाजपाइयों ने उनकी आलोचना, उनको गालियां देने के सिवाय आजतक क्या दिया?
यही नही आजतक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्वहिन्दू परिषद ने राम के लिए सिवाय वोट और चंदा लेने के अलावा कुछ नही किया कोर्ट में भाजपा, संघ, विश्व हिन्दू परिषद ने राम के लिए एक पन्ना तक जमा नही किया, केस लड़ने की बात ही क्या करनी। कोर्ट केस में पक्षकार के रूप में कही इनका नाम नही है।
●वर्तमान में राम मन्दिर बनाने के लिए न्यायालय का जो आदेश आया है उसके हिसाब से यह मौका रामालय न्यास को मिलना चाहिए था क्योंकि "द एक्विजिसन ऑफ सर्टेन एरिया एट अयोध्या एक्ट, 1993" के हिसाब से एक मात्र रामालय न्यास ही है जो एक्ट के सारे शर्तो को पूरा करता है। और इसके लिए सारी तैयारी