*आओ जरा विचारें कि आखिर हिन्दू पतनोन्मुखी क्यों है??*
आज हम हिंदुओं की वास्तविक स्थिति का आकलन करें ।
आज का जो हिंदू है वह दिशाहीन कथित हिंदुवादी राजनैतिक दल और विविध पंथों में विभक्त हो चुका है।
*यह पंथ धर्म के नाम पर ही हिंदुओं में विभिन्नता पैदा करते हैं*
हिंदुओं के चार पुरुषार्थ शास्त्रों में वर्णित हैं,
*उनमें से केवल दो पुरूषार्थ अर्थ और काम तक ही हिंदू सीमित रह चुका है*
तथा धन, मान, दान और परिजन रूपी कीचड़ में हिंदू आपादमस्तक निमग्न है ।
*और शिक्षा पद्धति कैसी है हिंदुओं की?*
आज के युवाओं की नीति और अध्यात्म विहीन शिक्षा पद्धति के कारण अश्लील मनोरंजन एवं मादक द्रव्य का रसिक युवक और युवती का समुदाय ,इस समाज में कोई क्रांति ला सके यह सर्वथा असंभव सा प्रतीत होता है ।
आज जो शिक्षा पद्धति है हमारी सभ्यता का विलोप वह क्रांति बिंदु के नाम पर करती है। हमारी सभ्यता का विलोप होता है ,तो खबर बनती है कि एक क्रांति हुई।
एक बात अत्यंत विचार करने योग्य है ब्रम्हर्षि श्री बाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण और महर्षि द्वैपायन जी महाराज के द्वारा रचित महाभारत दो आर्ष प्रणीत ग्रंथ हैं ।
दोनों में एक तरफ माता सीता जी के शील पर कटाक्ष दूसरी तरफ माता द्रोपदी के शील पर कटाछ होने के कारण विश्वयुद्ध का उल्लेख है ,
परंतु आज के समय में *शीलापहरण को संघर्ष बिंदु मानने वाले या बनाने वाले पिता, माता भ्राता तथा पति आदि के विरुद्ध ही संघर्ष दृष्टिगोचर है ।*
शिखा सूत्र आदि विहीनता को सभ्यता स्वीकार करने के कारण शिखा सूत्र आदि अपहरण निमित्त संघर्ष का स्रोत ही विलुप्त है ।
यदि हम विचार करें हमारे पूर्वजों ने अपनी शिखा नहीं कटायी थी ,अपने गर्दन कटा दिए थे ,
परंतु यदि आज के पिता माता और भाई शिखा इत्यादि के पक्षधर हों तो वह व्यक्ति ही उनके ही विरुद्ध हो सकता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक हम अपने प्राथमिक मान बिंदुओं के प्रति सचेत नहीं होंगे ,तब तक हम गर्त में जाते रहेंगे ।
हमको अपने उन्नति के आयामों के उन आधारों को देखना है जिनके चलते हम संपूर्ण विश्व में सबसे दिव्य माने जाते थे,
और आज सभ्यता के नाम पर किसी न किसी रूप में यदि हम उन को तोड़ रहे हैं तो निश्चित रुप से यह हमारे लिए सबसे बड़ी हानि है ।
जागना पड़ेगा युवाओं को जागना पड़ेगा
देश के व्यक्तियों को जागना पड़ेगा
हिंदू परिवारों को जागना पड़ेगा
सनातन मान बिंदुओं के प्रति उनको तैयार होना ही पड़ेगा
*यदि वह तैयार नहीं हुए तो भूल जाइए कि दो-चार पीढ़ी बाद आपको कोई तर्पण देने वाला आपके कुल में कोई बालक पैदा होगा!*
मर जाएंगे बिना पानी के..!!
और आपकी भूल ही आपको नरक में गिरा देगी।
यदि अभी भी चेतना बची है तो अपने आप को संभाले आप।
.
प्रशान्त कुमार मिश्र
*वैदिक ब्राह्मण ग्रुप गुजरात*
आज हम हिंदुओं की वास्तविक स्थिति का आकलन करें ।
आज का जो हिंदू है वह दिशाहीन कथित हिंदुवादी राजनैतिक दल और विविध पंथों में विभक्त हो चुका है।
*यह पंथ धर्म के नाम पर ही हिंदुओं में विभिन्नता पैदा करते हैं*
हिंदुओं के चार पुरुषार्थ शास्त्रों में वर्णित हैं,
*उनमें से केवल दो पुरूषार्थ अर्थ और काम तक ही हिंदू सीमित रह चुका है*
तथा धन, मान, दान और परिजन रूपी कीचड़ में हिंदू आपादमस्तक निमग्न है ।
*और शिक्षा पद्धति कैसी है हिंदुओं की?*
आज के युवाओं की नीति और अध्यात्म विहीन शिक्षा पद्धति के कारण अश्लील मनोरंजन एवं मादक द्रव्य का रसिक युवक और युवती का समुदाय ,इस समाज में कोई क्रांति ला सके यह सर्वथा असंभव सा प्रतीत होता है ।
आज जो शिक्षा पद्धति है हमारी सभ्यता का विलोप वह क्रांति बिंदु के नाम पर करती है। हमारी सभ्यता का विलोप होता है ,तो खबर बनती है कि एक क्रांति हुई।
एक बात अत्यंत विचार करने योग्य है ब्रम्हर्षि श्री बाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण और महर्षि द्वैपायन जी महाराज के द्वारा रचित महाभारत दो आर्ष प्रणीत ग्रंथ हैं ।
दोनों में एक तरफ माता सीता जी के शील पर कटाक्ष दूसरी तरफ माता द्रोपदी के शील पर कटाछ होने के कारण विश्वयुद्ध का उल्लेख है ,
परंतु आज के समय में *शीलापहरण को संघर्ष बिंदु मानने वाले या बनाने वाले पिता, माता भ्राता तथा पति आदि के विरुद्ध ही संघर्ष दृष्टिगोचर है ।*
शिखा सूत्र आदि विहीनता को सभ्यता स्वीकार करने के कारण शिखा सूत्र आदि अपहरण निमित्त संघर्ष का स्रोत ही विलुप्त है ।
यदि हम विचार करें हमारे पूर्वजों ने अपनी शिखा नहीं कटायी थी ,अपने गर्दन कटा दिए थे ,
परंतु यदि आज के पिता माता और भाई शिखा इत्यादि के पक्षधर हों तो वह व्यक्ति ही उनके ही विरुद्ध हो सकता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक हम अपने प्राथमिक मान बिंदुओं के प्रति सचेत नहीं होंगे ,तब तक हम गर्त में जाते रहेंगे ।
हमको अपने उन्नति के आयामों के उन आधारों को देखना है जिनके चलते हम संपूर्ण विश्व में सबसे दिव्य माने जाते थे,
और आज सभ्यता के नाम पर किसी न किसी रूप में यदि हम उन को तोड़ रहे हैं तो निश्चित रुप से यह हमारे लिए सबसे बड़ी हानि है ।
जागना पड़ेगा युवाओं को जागना पड़ेगा
देश के व्यक्तियों को जागना पड़ेगा
हिंदू परिवारों को जागना पड़ेगा
सनातन मान बिंदुओं के प्रति उनको तैयार होना ही पड़ेगा
*यदि वह तैयार नहीं हुए तो भूल जाइए कि दो-चार पीढ़ी बाद आपको कोई तर्पण देने वाला आपके कुल में कोई बालक पैदा होगा!*
मर जाएंगे बिना पानी के..!!
और आपकी भूल ही आपको नरक में गिरा देगी।
यदि अभी भी चेतना बची है तो अपने आप को संभाले आप।
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प्रशान्त कुमार मिश्र
*वैदिक ब्राह्मण ग्रुप गुजरात*