मैं गुलाब...
रस, सुगंध, पराग,
मैं इत्र गुलाब।
स्मृति का संग, इकरार और इजहार,
सौंदर्य की उपमा, हर दिल का अधिकार।
मैं कांटों के संग भी उपहार,
मैं हूँ सजीव गुलाब।
जेब की शोभा, केशों का हार,
सैया का साथी, सेज का श्रृंगार।
हर कोने में लाऊं प्रेम का एहसास,
मैं महकता गुलाब।
पूजा की थाली, आरती का दीप,
प्रेमियों के वचन, आशीषों का संगी।
जहाँ भी जाऊं, फैलाऊं उजास,
मैं खुशबू भरा गुलाब।
आंधी, तूफान या धूप की धार,
हर मौसम में खिलूं मैं बार-बार।
चीर के मिट्टी, बनूं बहार,
मैं जीवन का आधार, मैं गुलाब।
फूलों की भाषा, भावों की जान,
हर दिल का सपना, हर बगिया का मान।
मैं हूँ अमर, मैं हूँ अनमोल,
मैं हर युग के प्रेमियों का..
महकता गुलाब।...