🅟🅞🅢🅘🅣🅘🅥🅔 🅣🅗🅞🅤🅖🅗🅣🅢, 🅟🅞🅔🅜🅢 🅐🅝🅓 🅢🅣🅞🅡🅘🅔🅢
अनागत विधाता च प्रत्युत्पन्न्मतिस्तथा।
द्वावेतौ सुखमेवैते यद्धविष्यो विनश्यति।।
✍️ आचार्य चाणक्य..
.
इस श्लोक का अर्थ है कि जो लोग भविष्य में आने वाले संकटों के प्रति जागरूक रहता है, जिसकी बुद्धि तीक्ष्ण होती है, ऐसा व्यक्ति सुखी रहता है। इसके विपरीत जो भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं, उनका सबकुछ नष्ट हो जाता है।
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इसका आशय है ये जो लोग पहले से ही तैयार रहते हैं और संकट आने पर उसका डटकर मुकाबला करते हैं, अपनी बुद्धि से सही निर्णय लेते हैं, ऐसे व्यक्ति बड़ी से बड़ी विपत्ति को भी चुटकियों में परास्त कर देते हैं।
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Bhakti Kathayen भक्ति कथायें.
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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अनागत विधाता च प्रत्युत्पन्न्मतिस्तथा।
द्वावेतौ सुखमेवैते यद्धविष्यो विनश्यति।।
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इस श्लोक का अर्थ है कि जो लोग भविष्य में आने वाले संकटों के प्रति जागरूक रहता है, जिसकी बुद्धि तीक्ष्ण होती है, ऐसा व्यक्ति सुखी रहता है। इसके विपरीत जो भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं, उनका सबकुछ नष्ट हो जाता है।
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इसका आशय है ये जो लोग पहले से ही तैयार रहते हैं और संकट आने पर उसका डटकर मुकाबला करते हैं, अपनी बुद्धि से सही निर्णय लेते हैं, ऐसे व्यक्ति बड़ी से बड़ी विपत्ति को भी चुटकियों में परास्त कर देते हैं।
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