•?((¯°·..• कलम-ए-इश्क •..·°¯))؟•
महफ़िल में रंगो की बात छिड़ी थी,
लगता है उनके इश्क की बात चली थी।
भरी दोपहर में भी मानो कोई शाम खड़ी थी
काली जुल्फें उनकी सामने कुछ इस तरह उड़ी थी।।
मन बावला ये समझ न पाया नूर निगाहों का,
उतरे उनकी आँखों में जो समंदर से गहरी चली थी
महफ़िल में रंगो की बात छिड़ी थी,
लगता है उनके इश्क की बात चली थी।
-लफ़्ज-ए-प्रशान्त✍🏻
#incomplete
🖊️☕𝒦𝒶𝓁𝒶𝓂-𝒜𝑒-𝐼𝓈𝒽𝓀 ☕🖊️
महफ़िल में रंगो की बात छिड़ी थी,
लगता है उनके इश्क की बात चली थी।
भरी दोपहर में भी मानो कोई शाम खड़ी थी
काली जुल्फें उनकी सामने कुछ इस तरह उड़ी थी।।
मन बावला ये समझ न पाया नूर निगाहों का,
उतरे उनकी आँखों में जो समंदर से गहरी चली थी
महफ़िल में रंगो की बात छिड़ी थी,
लगता है उनके इश्क की बात चली थी।
-लफ़्ज-ए-प्रशान्त✍🏻
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