१२.०५.२०२४
मातृ दिवस विशेष (Mother's Day):
चाहत बढ़ जाती है, जब हद से ज्यादा,
थक जाऊं जब, कमजोर हो जाए इरादा,
खुद को मैं सम्हालता हूं, समझता हूं,
तब मैं अपने मन का तीरथ कर आता हूं.....
अंधकार घना जब छाए, जी बहुत घबराता,
मिलता है जब धोखा, मिला हुआ छूट जाता,
बेआवाज अकेले रोता हूं, थोड़ा सा पछताता हूं,
फिर शांति की तलाश में, गुहारता चिल्लाता हूं।
तब मैं अपने मन का तीरथ कर आता हूं.....
होते उतार चढ़ाव जीवन में, राह मिले पथरीली,
मुश्किलों की धूप में तपती, मंजिल हो कंटीली,
निडर हो बढ़ना सीखा, तनिक न मैं घबराता हूं,
संघर्षों से कर संघर्ष, ले शंख, जयनाद बजाता हूं।
तब मैं अपने मन का तीरथ कर आता हूं.....
जिम्मेदारियां हैं कांधों पर, घर से बहुत दूर हुआ,
दिल में कसक छूटने की, पर ‘बेतौल’ मजबूर हुआ,
आशीष स्नेह की चाहत में, मैं विचलित हो जाता हूं,
अब आंसू पीना सीख लिया, झूठा ही मुस्कुराता हूं।
तब मैं अपने मन का तीरथ कर आता हूं.....
झुर्रियों भरे चेहरे की वो आंखें, मेरा जीवन संबल हैं,
कांपते डगमग वो हाथ पैर, मेरे लिए बहुत प्रबल हैं,
थक जाता जब जीवन में, मैं तीरथ कर आता हूं,
तीर्थ चरण मात-पिता के, मैं मां के घर आ जाता हूं।
तब मैं अपने मन का ये तीरथ कर आता हूं.....।
@kataizaharila