वो , लांघने की करता रहा कवायत
दीवारें आबरू की ...
कब से टक - टकी लगाए
बेखौफ बेधड़क
सारी रात टक - टकी लगाए
सारा दिन टक - टकी लगाए
लगाएं घात वह बद.जात
महीनों टक - टकी लगाए
तपते ताप में , ठंडे में , बरसात में
हर रोज टक - टकी लगाए
एक रात सन्नाटे में
लांघ ही गया वह दीवारें आबरू की...
हाहाकार चारों ओर
सब्र को चीरती सन्नाटे की वो चीखें
देह पर तेजाब की छींटे
खून की बरसाते
मेज पर
फर्श पर
तस्वीरों पर
कुछ जहन पर
गरम शीशl मानों पिघलाकर
गंदी गालियों का भर दिया
मेरे कान का कोना कोना l
बिस्तर पर पड़े खिलौने की कांप गई रूह ,
इस मंजर से ...
होती गर जान उनमें तो चीर देते सीना
उसका खंजर से...
चीखती रही चादर
और फिर मर गई सिल्वटो में
बिस्तर पर ...
फेंका हुआ खून से लथपथ
फ्रॉक अब भी पापा के इंतजार में l
लॉघ ही गया वह दीवार आबरू की...
फिर
लांघने की करता रहा कवायत
नई दीवार आबरू की ll
दीवारें आबरू की ...
कब से टक - टकी लगाए
बेखौफ बेधड़क
सारी रात टक - टकी लगाए
सारा दिन टक - टकी लगाए
लगाएं घात वह बद.जात
महीनों टक - टकी लगाए
तपते ताप में , ठंडे में , बरसात में
हर रोज टक - टकी लगाए
एक रात सन्नाटे में
लांघ ही गया वह दीवारें आबरू की...
हाहाकार चारों ओर
सब्र को चीरती सन्नाटे की वो चीखें
देह पर तेजाब की छींटे
खून की बरसाते
मेज पर
फर्श पर
तस्वीरों पर
कुछ जहन पर
गरम शीशl मानों पिघलाकर
गंदी गालियों का भर दिया
मेरे कान का कोना कोना l
बिस्तर पर पड़े खिलौने की कांप गई रूह ,
इस मंजर से ...
होती गर जान उनमें तो चीर देते सीना
उसका खंजर से...
चीखती रही चादर
और फिर मर गई सिल्वटो में
बिस्तर पर ...
फेंका हुआ खून से लथपथ
फ्रॉक अब भी पापा के इंतजार में l
लॉघ ही गया वह दीवार आबरू की...
फिर
लांघने की करता रहा कवायत
नई दीवार आबरू की ll