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प्रयवाची शब्दों के कुछ और उदाहरण:

1. राजा - सम्राट, प्रजापति, सेनापति, मंत्री
2. सुंदर - रूपवान, मनोहारी, आकर्षक, सुशोभित, विशेष
3. विद्वान - पंडित, शास्त्री, विशेषज्ञ, आचार्य, विद्वान
4. बड़ा - महान, विशाल, ऊंचा, महत्वपूर्ण, प्रमुख
5. छोटा - लघु, अल्प, छोटा, नन्हा, संक्षिप्त
6. खुशी - आनंद, सुख, हर्ष, प्रसन्नता, संतुष्टि
7. दुख - शोक, पीड़ा, दर्द, कष्ट, व्यथा
8. ज्ञान - विद्या, बुद्धि, समझ, जानकारी, प्रज्ञा
9. शक्ति - बल, सामर्थ्य, क्षमता, शक्ति, प्रभाव
10. स्वतंत्रता - स्वाधीनता, आजादी, स्वच्छंदता, निर्भरता, स्वातंत्र्य


पंचायती राज से संबंधित जानकारी

पंचायती राज (भाग IX, अनुच्छेद 243)

- पंचायती राज की अवधारणा सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
- पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा 73वें संशोधन (1992) के माध्यम से प्राप्त हुआ।
- पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना के लिए भारतीय संविधान का अनुच्छेद 40, भाग IV (राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत) में वर्णित है।
- पंचायती राज अधिनियम 24 अप्रैल, 1993 को लागू हुआ।
- राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस 2011 से मनाया जा रहा है।
- पंचायतें अनुच्छेद 243 बी के तहत गठित की जाती हैं।
https://t.me/ASO_publication
- पंचायती राज प्रणाली के लिए विधि बनाने की शक्ति राज्य विधानमंडल (अनुच्छेद 243 सी) के पास है।
- पंचायतों में आरक्षित वार्डों से संबंधित अनुच्छेद 243 डी।
- पंचायत समिति की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 243 ई।
- पंचायतों के चुनाव से संबंधित अनुच्छेद 243 के।
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- पंचायती राज का उद्घाटन भारत में 2 अक्टूबर, 1959 को हुआ था।
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बलवंत राय मेहता समिति (1957)
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- बलवंत राय मेहता समिति के अध्यक्ष एम.पी. बलवंत राय मेहता थे।
- भारत सरकार द्वारा बलवंत राय मेहता समिति का गठन 1957 में किया गया था।
- समिति ने अपनी सिफारिशें सरकार को 1957 में प्रस्तुत कीं।
- भारत में पंचायती राज के जनक बलवंत राय मेहता को माना जाता है।
- समिति ने त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली की स्थापना की सिफारिश की।
https://t.me/ASO_publication


बहुव्रीहि समास में दोनों पद मिलकर किसी तीसरे का बोध कराते हैं, जिसका स्वयं से सीधा संबंध नहीं होता। दूसरे शब्दों में, इसमें जो शब्द होते हैं, वे किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति की विशेषता बताते हैं। इसमें प्रधानता समास से बने तीसरे अर्थ की होती है।

ट्रिक: इस समास में बने शब्द किसी और वस्तु या व्यक्ति के गुण या विशेषता को दर्शाते हैं, न कि स्वयं का। दोनों पद मिलकर किसी अन्य चीज़ का बोध कराते हैं।

उदाहरण:

1. चंद्रमुखी (चंद्र + मुख) = जिसका मुख चंद्रमा जैसा हो, यहाँ यह किसी अन्य व्यक्ति (मुख) का बोध कराता है।


2. पीनपयोधर (पीन + पयोधर) = जिसकी छाती भरी हुई हो (यह किसी अन्य व्यक्ति की ओर इशारा करता है)।


3. दशानन (दश + आनन) = दस मुखों वाला, यहाँ रावण के लिए उपयोग किया गया है।


4. मृगनयनी (मृग + नयनी) = जिसकी आंखें हिरण जैसी हों, यह किसी अन्य की आंखों की सुंदरता का बोध कराता है।


5. पंचानन (पंच + आनन) = पांच मुखों वाला, यह शिव जी का विशेषण है।



ट्रिक याद रखने के लिए:

1. तीसरे का बोध: अगर दो शब्द मिलकर किसी तीसरे व्यक्ति, वस्तु, या विशेषता का वर्णन कर रहे हैं, तो वह बहुव्रीहि समास है।


2. स्वयं का संबंध नहीं: इन शब्दों का स्वयं से सीधा संबंध नहीं होता है, बल्कि किसी अन्य की ओर संकेत करते हैं।


1. दुर्गंधि (दुर + गंध) = जिसकी गंध खराब हो, यह किसी वस्तु या व्यक्ति का बोध कराता है।


2. राजकुमार (राजा + कुमार) = राजा का पुत्र, यह किसी राजा के पुत्र को दर्शाता है।


3. अजगंधा (अज + गंधा) = जिसके शरीर से कोई गंध न हो, यह विशेषण किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता है।


4. कर्णफूल (कर्ण + फूल) = कान में पहनने वाला फूल, यह किसी गहने को दर्शाता है।


5. वज्रांग (वज्र + अंग) = जिसके अंग वज्र (कठोर) के समान हों, यह किसी बलवान व्यक्ति का बोध कराता है।


6. मृगनाभि (मृग + नाभि) = हिरण की नाभि, इससे कस्तूरी निकलती है, यह किसी विशेष स्थान का बोध कराता है।

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7. धनपति (धन + पति) = धन का स्वामी, यह कुबेर को संदर्भित करता है।

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8. नीलकंठ (नील + कंठ) = जिसका कंठ नीला हो, यह भगवान का नाम है। शिव जी

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9. वज्रपाणि (वज्र + पाणि) = जिसके हाथ में वज्र हो, यह इंद्र के लिए प्रयुक्त होता है।

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10. पद्मनाभ (पद्म + नाभि) = जिसकी नाभि में कमल हो, यह भगवान विष्णु का एक नाम है।


रासायनिक यौगिक:

बेंजीन - C₆H₆ - बेंजीन
एसीटोन - C₃H₆O - एसीटोन
फॉर्मेल्डिहाइड - CH₂O - फॉर्मेल्डिहाइड
मेथेन - CH₄ - मेथेन
इथिलीन - C₂H₄ - इथिलीन
प्रोपेन - C₃H₈ - प्रोपेन
ब्यूटेन - C₄H₁₀ - ब्यूटेन
पेंटेन - C₅H₁₂ - पेंटेन
हेक्सेन - C₆H₁₄ - हेक्सेन
टोल्यून - C₇H₈ - टोल्यून
फिनोल - C₆H₅OH - फिनोल
फॉर्मिक एसिड - HCOOH - फॉर्मिक एसिड
यूरिया - CO(NH₂)₂ - यूरिया
एसिटिक एसिड - CH₃COOH - एसिटिक एसिड
ग्लिसरॉल (ग्लिसरिन) - C₃H₈O₃ - ग्लिसरॉल
इथाइल एसीटेट - C₄H₈O₂ - इथाइल एसीटेट
एनिलिन - C₆H₅NH₂ - एनिलिन
एसिटेमाइड - CH₃CONH₂ - एसिटेमाइड
नेफ्थलीन - C₁₀H₈ - नेफ्थलीन
साइक्लोहेक्सेन - C₆H₁₂ - साइक्लोहेक्सेन
जिंक ऑक्साइड - ZnO - जिंक ऑक्साइड
सिल्वर नाइट्रेट - AgNO₃ - सिल्वर नाइट्रेट
फेरिक क्लोराइड - FeCl₃ - फेरिक क्लोराइड
कॉपर ऑक्साइड - CuO - कॉपर ऑक्साइड
लेड(II) नाइट्रेट - Pb(NO₃)₂ - लेड(II) नाइट्रेट

महत्वपूर्ण यौगिक:

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रॉक सॉल्ट - सोडियम क्लोराइड (NaCl) - खनिज लवण
जिप्सम - कैल्शियम सल्फेट डाइहाइड्रेट (CaSO₄·2H₂O) - जिप्सम
प्लास्टर ऑफ पेरिस - कैल्शियम सल्फेट हेमिहाइड्रेट (CaSO₄·½H₂O) - प्लास्टर ऑफ पेरिस
नाइट्र/सैल्पीटर - पोटैशियम नाइट्रेट (KNO₃) - नाइट्र/सैल्पीटर
कॉमन सॉल्ट - सोडियम क्लोराइड (NaCl) - साधारण नमक
हाइपो - सोडियम थायोसल्फेट (Na₂S₂O₃) - हाइपो
सोडानाइट्र - सोडियम नाइट्रेट (NaNO₃) - सोडानाइट्र
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चॉक - कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO₃) - चॉक
रेड लेड - लेड(II,IV) ऑक्साइड (Pb₃O₄) - लाल सुरमा
व्हाइट विट्रियल - जिंक सल्फेट (ZnSO₄) - सफेद विट्रियल
ब्लू विट्रियल - कॉपर(II) सल्फेट (CuSO₄·5H₂O) - नीला विट्रियल
ग्रीन विट्रियल - आयरन(II) सल्फेट (FeSO₄·7H₂O) - हरा विट्रियल
एस्पिरिन - एसिटाइलसैलिसिलिक एसिड (C₉H₈O₄) - एस्पिरिन
कॉस्टिक सोडा - सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) - कॉस्टिक सोडा
कैलोमेल - मर्क्यूरी(I) क्लोराइड (Hg₂Cl₂) - कैलोमेल
सॉल्ट केक - सोडियम सल्फेट (Na₂SO₄) - सॉल्ट केक
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क्वार्ट्ज - सिलिकॉन डाइऑक्साइड (SiO₂) - क्वार्ट्ज
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संधियों को जल्दी और आसानी से पहचानने के लिए कुछ शॉर्ट ट्रिक्स

1. स्वर संधि (Vowel Sandhi)

अगर दो स्वरों का मेल हो रहा है, तो यह स्वर संधि होगी।
ट्रिक: "स्वर + स्वर = स्वर संधि"
जैसे:

नर + इन्द्र = नरेन्द्र

गुरु + उक्ति = गुरूक्टि



2. व्यंजन संधि (Consonant Sandhi)

अगर दो व्यंजन मिलकर कोई परिवर्तन कर रहे हैं, तो यह व्यंजन संधि होगी।
ट्रिक: "व्यंजन + व्यंजन = व्यंजन संधि"
जैसे:

सत् + कर्म = सत्कर्म

तद् + जन = तज्जन



3. विसर्ग संधि (Visarga Sandhi)

अगर कोई शब्द विसर्ग (ः) से समाप्त हो रहा है और उसके बाद स्वर या व्यंजन आता है, तो यह विसर्ग संधि होगी।
ट्रिक: "विसर्ग + कुछ = विसर्ग संधि"
जैसे:

दुः + ख = दुःख

राजः + ऋषि = राजर्षि



4. दीर्घ संधि (Dirgha Sandhi)

अगर दो समान स्वरों का मेल हो रहा है (जैसे अ + अ, ई + ई), तो यह दीर्घ संधि होती है।
ट्रिक: "समान स्वर + समान स्वर = दीर्घ संधि"
जैसे:

राम + आलय = रामालय

नदी + ईश = नदीश



5. गुण संधि (Guna Sandhi)

इसमें अ, आ, इ, ई, उ, ऊ के मेल से स्वर बदल जाता है।
ट्रिक: "स्वर बदलने पर = गुण संधि"
जैसे:
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इन्द्र + ईश = इन्द्रेश

लक्ष्मि + ईश = लक्ष्मीश

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6. यण संधि (Yana Sandhi)

इसमें इ, ई, उ, ऊ और ऋ स्वरों के बाद 'य', 'व' आदि का प्रयोग होता है।
ट्रिक: "इ, उ + य, व = यण संधि"
जैसे:
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हरि + ईश = हर्यीश

गुरु + ईश्वर = गुरवीश्वर


अलंकारों को याद करने के लिए कुछ शॉर्ट ट्रिक्स यहाँ दी जा रही हैं:

1. उपमा अलंकार (समानता का बोध)

पहचान: किसी वस्तु की तुलना दूसरी वस्तु से 'जैसे', 'मानो', 'सम' आदि शब्दों के साथ की जाती है।

जैसे: वह चाँद जैसी सुंदर है।


ट्रिक: "उपमा - उपमा में 'जैसे' का मज़ा" (जहाँ 'जैसे' होगा, वहाँ उपमा होगी)।


2. रूपक अलंकार (संपूर्ण एकरूपता)

पहचान: तुलना में 'जैसे' या 'मानो' नहीं आता, बल्कि सीधे एकरूपता होती है।

जैसे: वह चाँद है।


ट्रिक: "रूपक - रूपक में रूप हो एक" (सीधी तुलना होती है, 'जैसे' नहीं आता)।


3. अनुप्रास अलंकार (ध्वनि की पुनरावृत्ति)

पहचान: शब्दों में समान ध्वनि या अक्षर बार-बार आते हैं।

जैसे: चंचल चपल चितवन।


ट्रिक: "अनुप्रास - अनुप्रास में अक्षरों का खास असर" (एक ही ध्वनि या अक्षर का बार-बार प्रयोग)।


4. यमक अलंकार (शब्दों की पुनरावृत्ति, अलग अर्थ)

पहचान: एक ही शब्द का प्रयोग बार-बार हो लेकिन उसका अर्थ अलग हो।

जैसे: कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।


ट्रिक: "यमक - यमक में एक ही शब्द का धमक" (शब्द एक, अर्थ अलग)।


5. अतिशयोक्ति अलंकार (अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर कहना)

पहचान: किसी वस्तु या घटना का बखान बहुत बढ़ा-चढ़ाकर किया जाए।

जैसे: रोते-रोते नदी बन गई।


ट्रिक: "अतिशयोक्ति - अतिशयोक्ति में बढ़े शब्दों की शक्ति" (अत्यधिक बखान)।


6. संवाद अलंकार (विचारों का संवाद)

पहचान: कोई प्रश्न पूछने के बाद उसी का उत्तर दिया जाए।

जैसे: कहाँ जा रहे हो? – मैं बाजार जा रहा हूँ।


ट्रिक: "संवाद - संवाद में प्रश्नोत्तर याद" (प्रश्न और उत्तर का आदान-प्रदान)।


7. श्लेष अलंकार (दो अर्थ वाले शब्द)

पहचान: एक ही शब्द के दो अर्थ निकलते हैं।

जैसे: फल (फल - सफलता या खाने का फल)।

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ट्रिक: "श्लेष - श्लेष में एक शब्द, दो खेल" (दो अर्थ एक शब्द से)।

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8. उत्प्रेक्षा अलंकार (कल्पना का प्रयोग)

पहचान: कल्पना के आधार पर कोई तुलना की जाए।

जैसे: वह सिंह की तरह गर्ज रहा है।

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ट्रिक: "उत्प्रेक्षा - उत्प्रेक्षा में कल्पना की झलक" (कल्पना द्वारा तुलना)।


9. सन्देह अलंकार (शंका का बोध)

पहचान: किसी वस्तु को लेकर संदेह हो कि वह क्या है।
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जैसे: वह फूल है या तारा?

ट्रिक: "सन्देह - सन्देह में क्या है यह संशय" (क्या है इसमें संदेह)।


पर्यावरण के अनुकूल मनोवृति ओ तथा मूल्यों को प्रोत्साहित एवं पोषितकरना।
अवलोकन, रचनात्मक कौशल तथा सकारात्मक क्रियाओं को बढ़ावा देना।
पिछले और वर्तमान पर्यावरण के मध्य तुलना विद्यार्थी कर सकें कि अतीत से अब में पर्यावरण में क्या परिवर्तन आया है।
पर्यावरण मुद्दों के प्रति विद्यार्थियों को जागरूक होना।
पर्यावरण के संरक्षण और प्रबंधन के लिए प्रभावी कार्रवाई का महत्व बताना।
प्रश्न उठाने की क्षमता एवं उनका स्तर देने के लिए परिकल्पना(Hypothese) बनाने की क्षमता का विकास कराना।
परिकल्पना ओं की जांच के तरीके सोच पानी एवं उन तरीकों को काम में लेने के लिए आवश्यक क्षमताओं का विकास करना।
निष्कर्ष निकालने एवं चिंतन की क्षमता का विकास करना।
बच्चों को करके सीखने का अवसर मिले, खोज करने के लिए पर्याप्त स्थान मिले।
भौतिक और सामाजिक परिवेश के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना।


NCF -2005 (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005)
NCF -2005 मैं भी प्राथमिक कक्षाओं में पर्यावरण अध्ययन को एक रत रूप में ही सशक्त रूप से पढ़ने पर बल दिया गया।
कक्षा 1 व कक्षा 2 में पर्यावरण संबंधी कौशल एवं सरोकारों को भाषा एवं गणित के माध्यम से संबोधित करने की संस्तुति दी गई।
कक्षा 3 बा 4 तक अलग विषय के रूप में पढ़ाए जाने की संस्तुति दी गई।
पर्यावरण अध्ययन को एकीकृत करने की आवश्यकता-
ऐसा माना जाता है, कि बच्चा टुकड़े टुकड़े में खंडित बातों की बजाय संपूर्णता मैं बातों को आसानी से समझता है। जैसे कि बच्चा पेड़ को एक संपूर्ण पेड़ के रूप में पहचानता है। वह पेड़ को घर का पेड़ या बाहर का पेड़ के रूप में पहचानता है। वह मूर्त बातों को ही देखता हैऐसे में हम यदि उसे अमूर्त और अनुभव से परे की बात बताने लगे तो वह उन्हें अपने अनुभवों से जोड़ नहीं पाएगा और सूचनाओं को रटने लगेगा अपनी पर्यावरण के प्रति सार्थक समझ विकसित नहीं कर पाएगा।
NCERT द्वारा कक्षा 3- 5: तक पर्यावरण अध्ययन के पाठ्यक्रम को एकीकृत, स्वरूप प्रदान करने के लिए 6 विषय क्षेत्रों की पहचान की जिसमें बहु विशेयकता को एकीकृत किया गया इन्हें ”थीम” अर्थात प्रकरण कहां गया।
परिवार एवं मित्र( संबंध, जानवर, पौधे, कार्य एवं खेल)
भोजन
आश्रय\ आवाज
पानी
यात्रा
चीजें जो हम बनाते और करते हैं
1 “परिवार एवं मित्र” प्रकरण की भाग के रूप में
“पौधे” एवं” जानवर” : “पौधे” एवं” जानवर परिवार एवं मित्र प्रकरण में सोच समझकर शामिल किए गए हैं । यह स्पष्ट करने के लिए कि मानव पौधे और जीव जंतुओं के साथ प्रगाढ़ संबंध रखते हैं तथा हमें उनके बारे में पूर्ण एवं संगठित वैज्ञानिक एवं सामाजिक नजरिए से पढ़ने की आवश्यकता है।
“रिश्ते\ संबंध” : इस उपप्रकरण में, वे अपने रिश्तेदारों के बारे में चर्चा करते हैं जो उनके साथ रहते हैं और जो कहीं और चले गए हैं जिससे उनके रिश्ते और घरों में क्या बदलाव आए हैं। उसका ज्ञान मिलता है वह सोचते हैं कि अपने रिश्तेदारों में कौन-कौन प्रशंसा के पात्र हैं एवं किन किन गुणों या कौशलों के कारण संबंध तथा परिवारों से बच्चों में अपनेपन तथा प्रेम की भावना का विकास होता है।
“ काम तथा खेल” : इस उपप्रकरण से उन्हें यह पता चलता है, कि परिवार या पड़ोस में कुछ लोग काम करते हैं या कुछ काम नहीं करते हैं। इससे उन्हें लिंग भेज दो पर आधारित भूमिकाओं को भावात्मक रूप से समझने में सहायता प्राप्त होती है।
वे जो खेल खेलते हैं उनका विश्लेषण करने का अवसर मिलता है किस प्रकार पारंपरिक खेल तथा खिलौने से वह अलग है यह समझ मिलती है।
Environmental studies and environmental education (पर्यावरण अध्ययन एवं पर्यावरण शिक्षा)
पर्यावरण अध्ययन(EVS) (Environmental studies)
पर्यावरण अध्ययन परिवेश के सामाजिक और भौतिक घटकों की अंतर क्रियाओं का अध्ययन है। अतः जब हम अपने परिवेश, अर्थात इर्द-गिर्द उपस्थित उपरोक्त सामाजिक और बौद्धिक घटकों को समझने का प्रयास करते हैं, तो वहीं पर्यावरण अध्ययन कहलाता है।
सामाजिक घटक- भाषा, मूल्य, संस्कृति
भौतिक घटक- वनस्पति, पशु पक्षी, हवा, पानी
पर्यावरण शिक्षा(environmental education)
पर्यावरण शिक्षा में लोगों को बताया जाता है कि प्राकृतिक पर्यावरण के तरीके पर प्रदूषण मुक्त पर्यावरण को बनाए रखने के लिए परिस्थितिकी तंत्र को कैसे व्यवस्थित रखना चाहिए?
अर्थात पर्यावरण के विविध पक्षों इसके घटकों एवं मानव के साथ अंतः संबंध है । परिस्थितिक तंत्र, प्रदूषण विकास, नगरीकरण, जनसंख्या आदि का पर्यावरण पर प्रभाव आदि की समुचित जानकारी देना। .
उद्देश्य-
शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्रदान कराने के साथ साथ जागरूकता पैदा करना, चिंतन का एक दृष्टिकोण पैदा करना और पर्यावरणीय चुनौतियों को नियंत्रित करने के आवश्यक कौशल को प्रदान करना है।
आज के बच्चे आंतरिक खेलों और इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों को खेलने में व्यस्त रहते हैं। जिससे उन्हें अपनी प्राकृतिक दुनिया के बारे में जानने के अवसर नहीं मिलते छात्रों को अपने परिवेश से परिचित कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, और इसलिए पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करना आवश्यक है।
पर्यावरण अध्ययन के उद्देश्य(NCF 2005) Objectives of environmental studies)
बच्चों का उनके वास्तविक संसार( प्राकृतिक एवं सामाजिक- सांस्कृतिक) से परिचित करवाना, पर्यावरण का ज्ञान एवं समझ विकसित करना।
प्रकृति में पारस्परिक निर्भरता तथा संबंधों का ज्ञान कराना तथा समाज का विकास कराना।
पर्यावरण से संबंधित विषयों को समझने में उनकी सहायता कराना।


9 पर्यावरण अध्ययन पाठ्यक्रम में हाथों से काम करने के महत्व और विरासत में प्राप्त शिल्प परंपराओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत पर बल दिया गया है।
10 पर्यावरण अध्ययन NCF 2005 की चिंताओं में से एक को कम करने में भी मदद करता है, पाठ्यक्रम के बोझ को घटाना।
11 इसके अध्ययन से बच्चे गहनता से सोचते एवं सीखते हैं तथा अनुभवों का विश्लेषण करते हैं।
12 इस प्रकार के अनुभव बच्चों में सामूहिक कौशलों का विकास करने में सहायता करते हैं। यह उन्हें दल के साथ घुलने मिलने के कुछ प्राथमिक कौशलों का विकास करने में सहायता करते हैं, जैसे की दल के साथ काम करना, उनकी बात सुनना तथा उनसे बात करना सीखना आदि।
13 इसी के साथ बच्चों में दूसरों के दृष्टिकोण एवं विश्वासों के प्रति भावनाओं का विकास होता है। विचारों, अनुभवों लोगो, भोजन, भाषा, पर्यावरण तथा सबसे अधिक सामाजिक-सांस्कृतिक रिवाजों एवं आस्थाओं की कदर करना सीखते हैं।
14 अपने शुरुआती वर्षों में बच्चों के ऐसे अनुभव उन्हें बड़े होकर लोकतांत्रिक देश के अच्छे नागरिक बनने में सहायता करते हैं ।
15 अधिगम इर्द गिर्द के पर्यावरण, प्रकृति, वस्तु एवं लोगों के साथ क्रियाओं एवं भाषा के द्वारा संपर्क बनाने से होता है। खोजना तथा खुद काम करना, प्रश्न करना सुनना तथा सहक्रिय करना मुख्य क्रियाए हैं जिसके माध्यम से अधिगम होता है, पर्यावरण अध्ययन इसमें सहायक है ।
एकीकृत पर्यावरण अध्ययन(Integrated Evs)
1 हमारी राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा( 1975, 1988, 2000, 2005) इस बात को ध्यान में रखकर बनाई गई है कि पर्यावरण की सुरक्षा महत्वपूर्ण है।
2 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में” पर्यावरण के बचाव” को केंद्र में रखकर ही राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के विकास की बात कही गई है अर्थात यह संपूर्ण शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
3 राष्ट्रीय स्तर पर N.C.E. R.T द्वारा विकसित सब्जी पाठ्यचर्या में इस पर ध्यान देने पर विशेष बल दिया गया है।
4 1975 की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या(NCF 1975) प्राथमिक कक्षाओं में पर्यावरण को एक अलग विषय के रूप में पढ़ाने की थी। इसमें यह प्रस्तावित किया गया था कि पर्यावरण अध्ययन के रूप में प्राथमिक कक्षाओं में कक्षा 1 और कक्षा दो में प्राकृतिक और सामाजिक दोनों को सम्मिलित पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए एवं कक्षा 3 व 4 तक इसमें दो विषय के रूप में अर्थात पर्यावरणीय अध्ययन 1 ( प्राकृतिक विज्ञान) और पर्यावरण अध्ययन 2 ( सामाजिक विज्ञान) पढ़ाया जाना चाहिए ।
5 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 तथा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 1988(NCF 1988) में भी पर्यावरण अध्ययन के बारे में उपयुक्त व्यवस्था को ही मंजूर किया गया था।
बोझ रहित अधिगम ( शिक्षा: राष्ट्रीय सलाहकार समिति की रिपोर्ट 1993)
ईश्वर भाई पटेल समीक्षा समिति 1977,NCERT कार्य समूह( 1984) और शिक्षा के लिए समीक्षा समिति पर राष्ट्रीय नीति(1990) ने सीखने के कार्य को आसान करने के लिए छात्रों पर शैक्षणिक बोझ को कम करने के लिए कई सिफारिशें की लेकिन कम होने के बजाय समस्या और अधिक तीव्र हो गई ,और इसीलिए संसाधन विकास मंत्रालय ने छात्रों पर शैक्षणिक बोझ बढ़ाने की समस्या की जांच करने के लिए 1992 में एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति की स्थापना की( भारत सरकार 1993)
इसके उद्देश्यों में शामिल है-” जीवन भर स्वयं सीखने और कौशल तैयार करने के लिए क्षमता सहित की गुणवत्ता में सुधार करते हुए सभी स्तरों पर छात्रोंप् पर भार को कम करने के लिए तरीके और साधन सूझाना”
इस समिति ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की( 1993) “ बोझ रहित शिक्षण” – पर्यावरण शिक्षा पाठ्यक्रम पर निर्णय को काफी हद तक इसके द्वारा निर्देशित किया गया था।
NCF -2000 (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2000)
NCF -2000 ने पहली बार सुझाव दिया की विभिन्न विषयों के विचारों और अवधारणाओं को एकीकृत किया जाए । जैसे- भारत की संस्कृति विरासत पर्यावरण की सुरक्षा, परिवार प्रणाली, कानूनी साक्षरता, मानव अधिकार शिक्षा, वैज्ञानिक सोच का पोषण इत्यादि।
NCF -2000 मैं पहली बार पर्यावरण अध्ययन को सामाजिक अध्ययन और विज्ञान के रूप में प्रथक प्रथक ना कर एकीकृत रूप में पढ़ने की सिफारिश की गई थी इसके अनुसार-
कक्षा 1 व 2 ने इसे पाठ्यक्रम के अलग से विषय के रूप में नहीं रख कर इसे भाषा और गणित विषयों के साथ एकीकृत कर पढ़ाने के लिए कहा गया गणित की सामग्री बच्चे के नजदीक पर्यावरण के चारों ओर बनाई जानी है।
कक्षा 3 व 4 में बच्चों को पर्यावरण एवं उसके प्राकृतिक और सामाजिक रूप में विभक्त ना करते हुए एक संपूर्ण विषय के रूप में पढ़ने के लिए कहा गया।


1 पर्यावरण अध्ययन में हम प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप, भूस्खलन चक्रवात आंधी के कारण एवं परिणाम को समझने एवं प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के उपाय का अध्ययन करते हैं।
इसमें हम वनस्पति एवं जंतु के प्रकारों एवं उनकी सुरक्षा के बारे में अध्ययन करते हैं।
3 प्राकृतिक संपदा एवं उनकी समस्याओं का संरक्षण एवं सुरक्षा इसमें जल, मृदा, वन, खनिज, बिजली एवं परिवहन शामिल है।
पर्यावरण के अध्ययन क्षेत्र में ना सिर्फ पृथ्वी वरन अंतरिक्ष भी सम्मिलित है
5 मानव पर्यावरण संबंध पर्यावरण मुद्दों से संबंधित नीति एवं कानून का अध्ययन करते हैं ।
मौसम संबंधी अनेक कारण जैसे कि तापमान,, पवन, दाब, वर्षा, ओलावृष्टि, हिमपात ,पाला पड़ना भी पर्यावरण के जैविक घटकों को प्रभावित करते हैं जलवायु परिवर्तन के कारण आज अनेकों समस्याएं हमारे सामने प्रगट हो रही हैं, जिन्हें समझने तथा उनके निवारण हेतु मौसम विज्ञान के बारे में हम पर्यावरण अध्ययन में पढ़ते हैं ।
7 पर्यावरण का क्षेत्र काफी व्यापक होता है पर्यावरण अध्ययन को 3:00 व्यापक नियमों के अनुसार संचालित किया जाता है।
पर्यावरण के बारे में सीखना।
पर्यावरण के लिए सीखना।
पर्यावरण के माध्यम से सीखना।
8 पर्यावरण अध्ययन का विस्तार पर्यावरण को सीखने के माध्यम की तरह प्रयोग करने से लेकर, इसकी सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए क्या किया जा सकता है इस की विषय वस्तु की व्यवस्था बच्चे के आसपास के परिचित अनुभवों से शुरू होकर बाहरी अपरिचित दुनिया की तरफ चलती है ।
9 पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र सिर्फ बच्चों को अपने पर्यावरण की खोज करके समझा ना ही नहीं बल्कि-
सकारात्मक अभिवृत्तियो , मूल्यों एवं प्रथाओं जैसे कि धरती पर जीवन की रक्षा, प्यार, अपने और दूसरों की देखभाल, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, सामूहिक अधिगम की प्रशंसा, अपनेपन का भाव, सामाजिक दायित्व, संस्कृति के महत्व को समझने का विकास भी करना है।
पर्यावरण की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सकारात्मक तथा अनुकूल क्रियाओं की शुरुआत करना।
संरक्षण की नीतियों को बढ़ावा देना तथा पर्यावरण को बढ़ावा देने वाले स्वभाव एवं आदतों को अपनाना ।
पर्यावरण अध्ययन का महत्व एवं एकीकृत पर्यावरण अध्ययन(Significance of Evs ,Integrated Evs)
पर्यावरण अध्ययन अपने आप में अलग से कोई विषय नहीं है। इसके अंतर्गत विभिन्न विषयों सामाजिक अध्ययन, विज्ञान, पर्यावरण शिक्षा (Science, social science, Environmental education) की अवधारणाओं का उपयोग करते हुए प्राथमिक कक्षाओं में इसकी आधार भूमि तैयार की जाती है।
प्रत्येक विषय के शिक्षण का अपना उद्देश्य है अपना महत्व है एवं इससे विषय के सीखने की प्रक्रिया जुड़ी है।
पर्यावरण अध्ययन का महत्व Significance of Evs
1 संपूर्ण शिक्षा का उद्देश्य बच्चों की मानसिक, भावनात्मक, सृजनात्मक, सामाजिक, शारीरिक आदि क्षमताओं का विकास करना है, यह सिर्फ कक्षाओं में रट्टा मार कर पढ़ने से नहीं होता बल्कि पर्यावरण के साथ जुड़ाव तथा अनुभव से होता है।
2 पर्यावरण अध्ययन के मुख्य केंद्र बिंदुओं में से एक है। बच्चों को वास्तविक संसार जिसमें वह रहते हैं से परिचित कराया जाए पर्यावरण अध्ययन की परिस्थितियां तथा अनुभव उन्हें अपने प्राकृतिक एवं मानव निर्मित प्रति देश की छानबीन करने तथा उससे जुड़ने में सहायता करते हैं।
3 हम अपने अस्तित्व एवं जीवन की निरंतरता के लिए अपने पर्यावरण पर निर्भर हैं। इस संदर्भ में प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक कर्तव्य है कि हम अपने पर्यावरण की रक्षा एवं संरक्षण करें ऐसा करने के लिए इस बात की समझ अत्यंत आवश्यक है, कि हमारे पर्यावरण की संरचना क्या है, तथा इसका महत्व क्या है पर्यावरण अध्ययन इसमें सहायक होता है।
4 पर्यावरण अध्ययन बच्चों को पर्यावरण में होने वाली अनेक घटनाओं एवं क्रियाकलापों के बारे में अपनी समाज का विकास करने में सहायता करता है इसके द्वारा इन्हें सीखने के लिए प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान किए जाते हैं।
5 पर्यावरण अध्ययन बच्चों को यह समझ प्रदान करता है कि हम किस प्रकार से अपने भौतिक, जैविक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रियाकलाप करते हैं तथा उसके द्वारा प्रभावित होते हैं।
पर्यावरण अध्ययन का मुख्य लक्ष्य की बच्चों को इस योग्य बनाना ताकि वह पर्यावरण से संबंधित सभी मुद्दों को जानने समझने और संबंधित समस्याओं को हल करने में सक्षम हो सके।
7 यह बच्चों को कक्षा में सकारात्मक माहौल प्रदान करता है तथा सीखने के लिए प्रेरित करता है।
8 पर्यावरण अध्ययन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सरल और सुविधाजनक बनाने में सहायक है क्योंकि यह करके सीखने पर बल देता है।


पर्यावरण अध्ययन टॉपिक्स

Concept and scopes of Evs (पर्यावरण अध्ययन की अवधारणा एवं क्षेत्र)

Introduction (परिचय)
पर्यावरण अध्ययन (Environment)का अध्यापन राष्ट्रीय पाठ्यचर्या समिति ने 1975 के नीतिगत दस्तावेज” 10 वर्षीय स्कूल के लिए पाठ्यक्रम: एक रूपरेखा” अर्थात(The curriculum for the 10 year school: a framework)मैं सिफारिश की थी, कि एक एकल विषय पर्यावरण अध्ययन(evs) प्राथमिक स्तर पर पढ़ाया जाना चाहिए।
पहले 2 वर्ष में( कक्षा 1-2 ) पर्यावरण अध्ययन प्राकृतिक और सामाजिक वातावरण दोनों को देखेगा, जबकि कक्षा 3 – 4 में सामाजिक अध्ययन और सामान्य विज्ञान के लिए अलग से होंगे Evs part 1 और Evs part 2 ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National policy of education)1986 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF)1988 में भी प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण के लिए यही दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
NCF 2000मैं सिफारिश की थी कि पर्यावरण अध्ययन को एक एकीकृत पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाए, प्राथमिक स्तर( कक्षा 3 -4 ) पर विज्ञान और सामाजिक अध्ययन के लिए अलग-अलग विषय ना बढ़ाए जाएं।
वर्तमान एनसीएफ 2005 में पर्यावरण अध्ययन के लिए एकीकृत दृष्टिकोण को निरंतरता आगे मजबूत बनाने का आह्वान किया है।
पर्यावरण का अर्थ है वाह्य आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं। अतः पर्यावरण से अभिप्राय उन सभी भौतिक दशाएं तथा तथ्यों से लिया जाता है जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं।
पर्यावरण शिक्षा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है अतः प्राथमिक स्तर से ही इसका शिक्षण आवश्यक है।
पर्यावरण अध्ययन की संकल्पना(NCF2005)Concept of environmental studies-
बच्चों को प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण के बीच संबंधों का पता लगाने और उन्हें समझने के लिए प्रशिक्षित करना।
अवलोकन और चित्रों के आधार पर समझ विकसित करने के लिए अनुभव के माध्यम से उन में भौतिक, जैविक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू की समझ प्राप्ति की ओर अग्रसर करना।
बच्चो को सामाजिक घटनाओं के प्रति जिज्ञासु बनाने हेतु संख्यात्मक क्षमता पैदा करने के लिए परिवार से शुरुआत कर पूरे संसार की समझ विकसित करते हुएआगे बढ़ाना।
पर्यावरण के मुद्दों के बारे में जागरूकता विकसित करना।
बुनियादी संख्यात्मक और मनो प्रेरणा कौशल(Psychomotor Skills) प्राप्त करने के लिए बच्चे को खोजपूर्ण और हाथों की गतिविधियों में संलग्न कराना अर्थात अवलोकन, वर्गीकरण आदि द्वारा।
विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय मुद्दे जैसे- लिंगभेद, उत्पीड़न के मुद्दे, प्रदूषण, अनैतिक व्यवहार आदि को मूर्त घटनाओं से संबंधित कर उन्हें समझने की क्षमता का विकास कराना ताकि उनमें मानवीय अधिकारों, समानता और न्याय मूल्यों के लिए सम्मान विकसित हो।
उन्हें इस योग्य बनाने की समानता, न्याय, मानव की गरिमा और अपने अधिकारों संबंधी मुद्दों को हल करने में सक्षम हो सके।
पर्यावरण संरक्षण क्यों आवश्यक है? प्रदूषण क्या है? इसका समाधान कैसे हो सकता है? इन प्रश्नों के उत्तर की समझ विकसित करने के लिए पर्यावरण अध्ययन को प्राथमिक स्तर पर शामिल किया जाना आवश्यक है ।
पर्यावरण को किसी प्रकार की हानि ना हो इसलिए इससे संबंधित अच्छी आदतों का विकास करने हेतु पर्यावरण अध्ययन आवश्यक है।
पर्यावरण अध्ययन विषय को बाल केंद्रित एवं एकीकृत करने के लिए इसमें लगभग 6 सामान्य विषयों का समावेश किया गया है जो इस प्रकार है।
1 परिवार और मित्र(Family and friends)
2 भोजन(Food)
3 आश्रय( shelter)
4 पानी( water)
5 यात्रा( travel)
6 चीजें जो हम बनाते हैं और करते हैं (Things we make and do)
पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005(NCF 2005) बच्चों के स्कूली जीवन को बाहर के जीवन से जोड़ने का समर्थन करती है।
पर्यावरण अध्ययन के विषय में तो यह पूरी तरह से सही है, क्योंकि पर्यावरण अध्ययन का ध्येय मात्र ज्ञान का अर्जन ही नहीं ,बल्कि इससे जुड़े सामाजिक, प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों पर एक संपूर्ण रूप से समझ बनाते हुए आवश्यक कौशलों के विकास द्वारा पर्यावरण संबंधी समस्याओं का समाधान करना भी है।
पर्यावरण अध्ययन में पर्यावरण विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान का समावेश है । यह इन विषयों के सार को संकलित करके प्राकृतिक वातावरण तथा उसके भौतिक, रासायनिक एवं जैविक तत्व की पारस्परिक क्रियाओं को व्यवस्थित रूप से समझने तथा संचालित करने में सहायता करता है।
पर्यावरण शब्द फ्रांसीसी फ्रेंच शब्द “इंवीरोनर”से लिया गया है जिसका अर्थ है पूरा परिवेश।
पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र (Scop of EVS)


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