#36🛕🚩तुंगनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड.🛕🚩
तुंगनाथ भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। ये दुनिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिरों में से एक है। तुंगनाथ मंदिर, जो 3640 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है और पंच केदारों (तुंगनाथ, केदारनाथ,मध्य महेश्वर, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर) में सबसे ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर १,००० वर्ष पुराना माना जाता है और यहाँ भगवान शिव की पंच केदारों में से एक के रूप में पूजा होती है। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है।
मंदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि इसे पाण्डवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्थापित किया था जो कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार के कारण पाण्डवों से रुष्ट थे। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि माता पार्वती ने भी भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए यहीं पर तपस्या की थी। कहते हैं कि यहां बैल के रूप में भगवान शिव के हाथ दिखाई दिए थे, जिसके बाद पांडवों ने तुंगनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर का नाम 'तुंग' है, जिसका मतलब हाथ और 'नाथ' भगवान शिव के प्रतीक के रूप में लिया गया है। कहा ये भी जाता है कि रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसी जगह पर तपस्या की थी। इसके अलावा भगवान राम ने रावण के वध के बाद खुद को ब्राह्मण हत्या के शाप से मुक्त करने के लिए उन्होंने इस जगह पर शिवजी की तपस्या की थी।
#Panchkedar
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तुंगनाथ भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। ये दुनिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिरों में से एक है। तुंगनाथ मंदिर, जो 3640 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है और पंच केदारों (तुंगनाथ, केदारनाथ,मध्य महेश्वर, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर) में सबसे ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर १,००० वर्ष पुराना माना जाता है और यहाँ भगवान शिव की पंच केदारों में से एक के रूप में पूजा होती है। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है।
मंदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि इसे पाण्डवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्थापित किया था जो कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार के कारण पाण्डवों से रुष्ट थे। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि माता पार्वती ने भी भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए यहीं पर तपस्या की थी। कहते हैं कि यहां बैल के रूप में भगवान शिव के हाथ दिखाई दिए थे, जिसके बाद पांडवों ने तुंगनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर का नाम 'तुंग' है, जिसका मतलब हाथ और 'नाथ' भगवान शिव के प्रतीक के रूप में लिया गया है। कहा ये भी जाता है कि रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसी जगह पर तपस्या की थी। इसके अलावा भगवान राम ने रावण के वध के बाद खुद को ब्राह्मण हत्या के शाप से मुक्त करने के लिए उन्होंने इस जगह पर शिवजी की तपस्या की थी।
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