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*!! वाणी पर नियंत्रण रखें !!*
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एक बार एक बूढ़े आदमी ने अफवाह फैलाई कि उसके पड़ोस में रहने वाला नौजवान चोर है।

यह बात दूर-दूर तक फैल गई। आस-पास के लोग उस नौजवान से बचने लगे। नौजवान परेशान हो गया, कोई उस पर विश्वास ही नहीं करता था।

तभी गाँव में एक चोरी की एक वारदात हुई और शक उस नौजवान पर गया, फिर उसे गिरफ्तार कर लिया गया।

लेकिन कुछ दिनों के बाद सबूत के अभाव में वह निर्दोष साबित हो गया, निर्दोष साबित होने के बाद वह नौजवान चुप नहीं बैठा। उसने उस बूढ़े आदमी पर गलत आरोप लगाने के लिए मुकदमा दायर कर दिया।

पंचायत में बूढ़े आदमी ने अपने बचाव में सरपंच से कहा- मैंने जो कुछ कहा था, वह एक टिप्पणी से अधिक कुछ नहीं था। किसी को नुकसान पहुंचाना मेरा मकसद नहीं था।

सरपंच ने बूढ़े आदमी से कहा- आप एक कागज के टुकड़े पर वो सब बातें लिखें, जो आपने उस नौजवान के बारे में कहीं थीं और जाते समय उस कागज के टुकड़े-टुकड़े करके घर के रस्ते पर फ़ेंक दें, कल फैसला सुनने के लिए आ जाएँ...

बूढ़े व्यक्ति ने वैसा ही किया।

अगले दिन सरपंच ने बूढ़े आदमी से कहा कि फैसला सुनने से पहले आप बाहर जाएँ और उन कागज के टुकड़ों को.. जो आपने कल बाहर फ़ेंक दिए थे, इकट्ठा कर ले आएं।

बूढ़े आदमी ने कहा- मैं ऐसा नहीं कर सकता। उन टुकड़ों को तो हवा कहीं से कहीं उड़ा कर ले गई होगी। अब वे नहीं मिल सकेंगें। मैं कहाँ-कहाँ उन्हें खोजने के लिए जाऊंगा?

सरपंच ने कहा- 'ठीक इसी तरह, एक सरल-सी टिप्पणी भी किसी का मान-सम्मान उस सीमा तक नष्ट कर सकती है... जिससे वह व्यक्ति किसी भी दशा में दोबारा प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो सकता।

*शिक्षा:-*
यदि किसी के बारे में कुछ अच्छा नहीं कह सकते, तो चुप रहें। वाणी पर हमारा नियंत्रण होना चाहिए, ताकि हम शब्दों के दास न बनें..!!

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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*!! बलिदान !!*
~

एक बार की बात है, एक व्यक्ति भगवान के सामने बलिदान देने के लिए तैयारी कर रहा था. बकरियां और भेड़ों को एक साथ कत्ल करने के लिए खरीदा गया था.

जब बलिदान का दिन आया, तो भगवान ने मनुष्य से मुलाकात की और उन्होंने कई चीजों पर चर्चा की.

अंत में भगवान ने, मनुष्य की पवित्रता के बारे में बात की.

भगवान ने कहा, “जीवों को कत्ल करना पाप है. किसी भी निर्दोष जीवों को कत्ल करके, आपको पापों और भ्रमों से छुटकारा नहीं मिल सकता है.”

भगवान का वचन, मनुष्य की आत्मा के गहरे तक गया.

वह समझ गया कि, “शुद्ध दिल और ईमानदारी तरीकों से भगवान का पूजा करना, बलिदान से कई अधिक मूल्यवान है.

व्यक्ति ने फैसला किया कि उन जानवरों को आजादी दी जानी चाहिए और कत्ल करने के बजाए, उन्हें अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी जीने के लिए आजाद छोड़ देना चाहिए.

*शिक्षा:-*
हमें किसी भी निर्दोष प्राणी को नहीं मारना चाहिए वह सभी भगवान की संतान हैं.


*!! भलाई !!*
~~~

एक घर में दो भाई रहते थे। छोटी उम्र में ही उनके माता और पिता की मृत्यु हो गई थी। इस भरी विपत्ति को सहते हुए वे अपने खेतों में बड़ी मेहनत से काम करते थे। कुछ वर्षों के बाद बड़े भाई की शादी हो गई और फिर दो बच्चों के साथ उसका चार लोगों का परिवार हो गया। चूंकि दूसरे बेटे की अभी शादी नहीं हुई थी फिर भी उपज को दो हिस्से में बांट दिया जाता था। एक दिन जब छोटा वाला भाई खेत में काम कर रहा था तो उसे विचार आया कि यह सही नहीं है कि हम बराबर बँटवारा करें। मैं अकेला हूँ और मेरी ज़रूरत भी बहुत अधिक नहीं हैं।

मेरे भाई का परिवार बड़ा है, एवं उसकी ज़रूरत भी अधिक हैं। अपने दिमाग में इसी विचार के साथ वह रात अपने यहाँ से अनाज का एक बोरा ले जाकर भाई के खेत में चुपचाप रखने लगा। इसी दौरान बड़े भाई ने भी सोचा, कि यह सही नहीं है कि हम हर चीज का बराबर बँटवारा करें। मेरे पास मेरा ध्यान रखने के लिए पत्नी और बच्चे हैं लेकिन मेरे भाई का तो कोई परिवार नहीं है। अत: भविष्य में उसकी कौन देखभाल करेगा ? इसलिए मुझे उसे अधिक देना चाहिए।

इस विचार के साथ वह हर दिन एक अनाज का बोरा लेता और अपने भाई के खेत में रख देता। यह सिलसिला बहुत दिनों तक चलता रहा, किन्तु दोनों भाई हैरान थे कि उनका अनाज कम क्यूँ नहीं हो रहा। एक दिन एक – दूसरे के खेतों में जाते समय उनकी मुलाकात हो गई। तब उन्हें पता चला कि आखिर इतने समय से क्या हो रहा था? वे ख़ुशी से एक – दूसरे के गले लगाकर रोने लगे।

*शिक्षा:-*
सच्चे मन से किये गये भलाई के काम में कभी अपना नुकसान नहीं होता है।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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*!! मदद और दया सबसे बड़ा धर्म !!*
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किशोर नाम का एक लड़का था जो बहुत गरीब था। दिन भर कड़ी मेहनत के बाद जंगल से लकड़ियाँ काट के लाता और उन्हें जंगल में बेचा करता। एक दिन किशोर सिर पर लकड़ियों का गट्ठर लिए जंगल से गुजर रहा था। अचानक उसने रास्ते में एक बूढ़े इंसान को देखा जो बहुत दुर्बल था उसको देखकर लगा कि जैसे उसने काफी दिनों खाना नहीं खाया है। किशोर का दिल पिघल गया, लेकिन वो क्या करता उसके पास खुद खाने को नहीं था वो उस बूढ़े व्यक्ति का पेट कैसे भरता? यही सोचकर दुःखी मन से किशोर आगे बढ़ गया।

आगे कुछ दूर चलने के बाद किशोर को एक औरत दिखाई दी जिसका बच्चा प्यास से रो रहा था क्यूंकि जंगल में कहीं पानी नहीं था। बच्चे की हालत देखकर किशोर से रहा नहीं गया लेकिन क्या करता बेचारा उसके खुद के पास जंगल में पानी नहीं था। दुःखी मन से वो फिर आगे चल दिया। कुछ दूर जाकर किशोर को एक व्यक्ति दिखाई दिया जो तम्बू लगाने के लिए लकड़ियों की तलाश में था। किशोर ने उसे लकड़ियाँ बेच दीं और बदले में उसने किशोर को कुछ खाना और पानी दिया। किशोर के मन में कुछ ख्याल आया और वो खाना, पानी लेकर वापस जंगल की ओर दौड़ा। और जाकर बूढ़े व्यक्ति को खाना खिलाया और उस औरत के बच्चे को भी पानी पीने को दिया। ऐसा करके किशोर बहुत अच्छा महसूस कर रहा था।

इसके कुछ दिन बाद किशोर एक दिन एक पहाड़ी पर चढ़कर लकड़ियाँ काट रहा था। अचानक उसका पैर फिसला और वो नीचे आ गिरा। उसके पैर में बुरी तरह चोट लग गयी और वो दर्द से चिल्लाने लगा। तभी वही बूढ़ा व्यक्ति भागा हुआ आया और उसने किशोर को उठाया। जब उस औरत को पता चला तो वो भी आई और उसने अपनी साड़ी का चीर फाड़ कर उसके पैर पर पट्टी कर दी। किशोर अब बहुत अच्छा महसूस कर रहा था।

*शिक्षा:-*
मित्रों, दूसरों की मदद करके भी हम असल में खुद की ही मदद कर रहे होते हैं। जब हम दूसरों की मदद करेंगे तभी जरुरत पड़ने पर कोई दूसरा हमारी भी मदद करेगा। तो आज इस प्रसंग को पढ़ते हुए एक वादा करिये कि रोज किसी की मदद जरूर करेंगे, रोज नहीं तो कम से कम सप्ताह में एक बार, नहीं तो महीने में एक बार। जरुरी नहीं कि मदद पैसे से ही की जाये, आप किसी वृद्ध व्यक्ति को सड़क पार करा सकते हैं या किसी प्यासे को पानी पिला सकते हैं या किसी हताश इंसान को सलाह दे सकते हैं या किसी को खाना खिला सकते हैं। यकीन मानिये ऐसा करते हुए आपको बहुत ख़ुशी मिलेगी और लोग भी आपकी मदद जरूर करेंगे।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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*!! जोकर की सीख !!*
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एक बार एक जोकर सर्कस में लोगों को एक चुटकुला सुना रहा था। चुटकुला सुनकर लोग खूब जोर-जोर से हंसने लगे। कुछ देर बाद जोकर ने वही चुटकुला दुबारा सुनाया। अबकी बार कम लोग हंसे। थोडा और समय बीतने के बाद तीसरी बार भी जोकर ने वही चुटकुला सुनाना शुरू किया।

पर इससे पहले कि वो अपनी बात ख़त्म करता बीच में ही एक दर्शक बोला, “अरे ! कितनी बार एक ही चुटकुला सुनाओगे… कुछ और सुनाओ अब इस पर हंसी नहीं आती।”

जोकर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, “धन्यवाद भाई साहब, यही तो मैं भी कहना चाहता हूँ… जब ख़ुशी के एक कारण की वजह से आप लोग बार-बार खुश नहीं हो सकते तो दुःख के एक कारण से बार-बार दुःखी क्यों होते हो, भाइयों हमारे जीवन में अधिक दुःख और कम ख़ुशी का यही कारण है… हम ख़ुशी को आसानी से छोड़ देते हैं पर दुःख को पकड़ कर बैठे रहते हैं।”

*शिक्षा:-*
मित्रों, जीवन में सुख-दुःख का आना-जाना लगा रहता है। पर जिस तरह एक ही खुशी को हम बार-बार नहीं महसूस करना चाहते उसी तरह हमें एक ही दु:ख से बार-बार दुःखी नहीं महसूस करना चाहिए। जीवन में सफलता तभी मिलती है जब हम दु:खों को भूलकर आगे बढने का प्रयत्न करते हैं।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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🙏जय श्री राम 🙏

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*!! सफलता !!*
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एक बार की बात है, एक निःसंतान राजा था, वह बूढा हो चुका था और उसे राज्य के लिए एक योग्य उत्तराधिकारी की चिंता सताने लगी थी। योग्य उत्तराधिकारी के खोज के लिए राजा ने पुरे राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि अमुक दिन शाम को जो मुझसे मिलने आएगा, उसे मैं अपने राज्य का एक हिस्सा दूंगा। राजा के इस निर्णय से राज्य के प्रधानमंत्री ने रोष जताते हुए राजा से कहा, "महाराज, आपसे मिलने तो बहुत से लोग आएंगे और यदि सभी को उनका भाग देंगे तो राज्य के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। ऐसा अव्यावहारिक काम न करें।" राजा ने प्रधानमंत्री को आश्वस्त करते हुए कहा, ''प्रधानमंत्री जी, आप चिंता न करें, देखते रहें, क्या होता है।' 

निश्चित दिन जब सबको मिलना था, राजमहल के बगीचे में राजा ने एक विशाल मेले का आयोजन किया। मेले में नाच-गाने और शराब की महफिल जमी थी, खाने के लिए अनेक स्वादिष्ट पदार्थ थे। मेले में कई खेल भी हो रहे थे।

राजा से मिलने आने वाले कितने ही लोग नाच-गाने में अटक गए, कितने ही सुरा-सुंदरी में, कितने ही आश्चर्यजनक खेलों में मशगूल हो गए तथा कितने ही खाने-पीने, घूमने-फिरने के आनंद में डूब गए। इस तरह समय बीतने लगा। 

पर इन सभी के बीच एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसने किसी चीज की तरफ देखा भी नहीं, क्योंकि उसके मन में निश्चित ध्येय था कि उसे राजा से मिलना ही है। इसलिए वह बगीचा पार करके राजमहल के दरवाजे पर पहुंच गया। पर वहां खुली तलवार लेकर दो चौकीदार खड़े थे। उन्होंने उसे रोका। उनके रोकने को अनदेखा करके और चौकीदारों को धक्का मारकर वह दौड़कर राजमहल में चला गया, क्योंकि वह निश्चित समय पर राजा से मिलना चाहता था। 

जैसे ही वह अंदर पहुंचा, राजा उसे सामने ही मिल गए और उन्होंने कहा, 'मेरे राज्य में कोई व्यक्ति तो ऐसा मिला जो किसी प्रलोभन में फंसे बिना अपने ध्येय तक पहुंच सका। तुम्हें मैं आधा नहीं पूरा राजपाट दूंगा। तुम मेरे उत्तराधिकारी बनोगे।

*शिक्षा:-*
सफल वही होता है जो लक्ष्य का निर्धारण करता है, उस पर अडिग रहता है, रास्ते में आने वाली हर कठिनाइयों का डटकर सामना करता है और छोटी-छोटी कठिनाईयों को नजरअंदाज कर देता है..!!

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है!*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है!!*
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*!! संगति, परिवेश और भाव !!*
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एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ख्याल रखता था. राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बहुत आने लगीं. कोशिश करने से भी चोर पकड़ा नहीं गया.

हारकर राजा ने ढींढोरा पिटवा दिया कि जो चोरी करते पकडा जाएगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए. घोषणा के बाद तीन-चार दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नही आई.

उस राज्य में एक चोर था जिसे चोरी के सिवा कोई काम आता ही नहीं था. उसने सोचा मेरा तो काम ही चोरी करना है. मैं अगर ऐसे डरता रहा तो भूखा मर जाउंगा. चोरी करते पकडा गया तो भी मरुंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए.

वह उस रात को एक घर में चोरी करने घुसा. घर के लोग जाग गए. शोर मचाने लगे तो चोर भागा. पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसका पीछा किया. चोर जान बचाने के लिए नगर के बाहर भागा.

उसने मुडके देखा तो पाया कि कई सैनिक उसका पीछा कर रहे हैं. उन सबको चमका देकर भाग पाना संभव नहीं होगा. भागने से तो जान नहीं बचने वाली, युक्ति सोचनी होगी.

चोर नगर से बाहर एक तालाब किनारे पहुंचा. सारे कपडे उतारकर तालाब मे फेंक दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड के नीचे पहुंचा.

बरगद पर बगुलों का वास था. बरगद की जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी. चोर ने बीट उठाकर उसका तिलक लगा लिया ओर आंख मूंदकर ऐसे स्वांग करने बैठा जैसे साधना में लीन हो.

खोजते-खोजते थोडी देर मे सैनिक भी वहां पहुंच गए पर उनको चोर कहीं नजर नहीं आ रहा था. खोजते खोजते उजाला हो रहा था ओर उनकी नजर बाबा बने चोर पर पडी.

सैनिकों ने पूछा- बाबा इधर किसी को आते देखा है. पर ढोंगी बाबा तो समाधि लगाए बैठा था. वह जानता था कि बोलूंगा तो पकडा जाउंगा सो मौनी बाबा बन गया और समाधि का स्वांग करता रहा.

सैनिकों को कुछ शंका तो हुई पर क्या करें. कही सही में कोई संत निकला तो ? आखिरकार उन्होंने छुपकर उसपर नजर रखना जारी रखा. यह बात चोर भांप गया. जान बचाने के लिए वह भी चुपचाप बैठा रहा.

एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गए बाबा बैठा रहा. नगर में चर्चा शुरू हो गई की कोई सिद्ध संत पता नही कितने समय से बिना खाए-पीए समाधि लगाए बैठै हैं. सैनिकों को तो उनके अचानक दर्शऩ हुए हैं.

नगर से लोग उस बाबा के दर्शन को पहुंचने लगे. भक्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी. राजा तक यह बात पहुंच गई. राजा स्वयं दर्शन करने पहुंचे. राजा ने विनती की आप नगर मे पधारें और हमें सेवा का सौभाग्य दें.

चोर ने सोचा बचने का यही मौका है. वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया. सब लोग जयघोष करते हुए नगर में लेजा कर उसकी सेवा सत्कार करने लगे.

लोगों का प्रेम और श्रद्धा भाव देखकर ढोंगी का मन परिवर्तित हुआ. उसे आभास हुआ कि यदि नकली में इतना मान-संम्मान है तो सही में संत होने पर कितना सम्मान होगा. उसका मन पूरी तरह परिवर्तित हो गया और चोरी त्यागकर संन्यासी हो गया.

*शिक्षा:-*
संगति, परिवेश और भाव इंसान में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है. रत्नाकर डाकू को गुरू मिल गए तो प्रेरणा मिली और वह आदिकवि हो गए. असंत भी संत बन सकता है, यदि उसे राह दिखाने वाला मिल जाए.

अपनी संगति को शुद्ध रखिए, विकारों का स्वतः पलायन आरंभ हो जाएगा.

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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एक गाँव था, उस गाँव के रास्ते में बहुत घना जंगल था. जंगल घना होने के कारण तरह तरह के पशु-पक्षी जंगल में रहते थे. एक शेर भी रहता था. शेर कभी-कभी गाँव में घुसकर काफी तहलका मचाता था. इसी वजह से गाँव वाले जंगल के रास्ते में एक पिंजड़ा रख दिए थे. रात हुई सभी अपने-अपने घरों के अन्दर हो गये. गाँव शांत हो गयी. तभी शेर उसी रास्ते से गाँव की ओर जा रहा था. रास्ते में लगा पिंजड़ा में उसका पैर फंसा और भारी शरीर होने के कारण शेर पिंजड़े में बंद हो गया. अब वह उस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका था. काफी कोशिश करने के बावजूद भी वह वहाँ से नहीं निकल पाया. पूरी रात शेर पिंजड़े में ही कैद रहा.

सुबह हुई कुछ समय बाद उसी रास्ते से गाँव में एक व्यक्ति जा रहा था. तभी शेर बोला - "ओ भाई! ओ भाई!" वह व्यक्ति शेर को पिंजड़े में देखकर डर गया. शेर को काफी तेज़ की भूख लगी थी.

शेर ने उस व्यक्ति से कहा - "मेरी सहायता करो. मुझे बहुत तेज़ प्यास लगी है. कृपया कुछ पानी पिला दो."

व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो, अगर मुझे ही अपना शिकार बना लिए तो!" शेर बोला - "नही भाई! मैं ऐसा नहीं करूंगा."

शेर की लाचारी देखकर उस व्यक्ति को शेर पर दया आ गयी और वह बगल के तालाब से पानी ले आया और शेर को पानी पिलाया. शेर पानी पी लिया उसके बाद फिर से उस व्यक्ति को बोला - "प्यास तो बुझ गयी अब पूरी रात से भूखा हूँ कुछ खाने को दे दो न." उस व्यक्ति ने शेर के भोजन की व्यवस्था में जुट गया और कहीं कहीं से उसका भोजन ले आया. शेर भोजन भी किया.

शेर ने फिर से आवाज लगायी - "ओ भले इन्सान! मैं इस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका हूँ. कृपा करके इस पिंजड़े से मुझे आजाद करा दो." वह व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी और सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो. पिंजड़े के बाहर आते ही तु अपनी रूप में आ जाएगा.

शेर बोला - "मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा. तुम्हारे परिवार को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा."

वह व्यक्ति उसकी बात मान कर पिंजड़ा का दरवाजा खोल दिया और शेर बाहर आ गया. शेर बहार आते ही पहले चैन की साँस ली और बोला मेरी अभी तक भूख मिटी नहीं है और भोजन भी सामने है. सो भोजन तलाशने का भी जरुरत नही है. अब झट से तुझे अपना शिकार बना लेता हूँ.

इतना सुन वह व्यक्ति डर से काँपने लगा और बोला - "तुम बेईमानी नहीं कर सकते. तुमने पहले ही बोला था की मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा और तुम्हारे परिवार को भी नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा, तो अब ऐसा क्यों कर रहे हो."

शेर बोला - मैं प्राणी ही उसी तरह का हूँ. मुझे बहुत जोर से भूख लगी है तो अब कुछ नहीं. संयोग से ये सब घटना पास के एक पेड़ पर बैठे बन्दर देख रहा था. शेर और उस व्यक्ति में बहस चल ही रही थी तभी बीच में से बन्दर बोल पड़ा - "क्या बात है! क्या बहस हो रही है? उस व्यक्ति ने बन्दर को सारी बात बताई। बन्दर बोला - अच्छा! तो ये बात है. वैसे मुझे एक बात समझ नहीं आई इतना बड़ा शेर इस छोटे से पिंजड़े में कैसे आ सकता है? नहीं ! नहीं ! ये हो ही नहीं सकता!"

शेर को अपनी बेइज्जती होते देख रहा नहीं गया और शेर बोला - "ये पंडित ठीक कह रहा है, मैं इस पिंजड़े में पूरी रात कैद था." बन्दर बोला - "मैं कैसे यकीन करूं?"

शेर बोला - "मैं अभी दिखा देता हूँ, इस पिंजड़े में फिर से जा कर." और इतना कह शेर फिर से उस पिंजड़े में चला जाता है और पिंजड़ा का दरवाजा बंद हो जाता है और उसके बाद शेर बोला - "देखो मैं इसी तरह पिंजड़े में था."

बन्दर उस व्यक्ति से बोला - "अब देख क्या रहे हो तुरंत अपनी जान बचा कर भाग लो!" और पंडित वहाँ से भाग जाता है. शेर फिर से पिंजड़े में कैद हो जाता है.


*शिक्षा:-*
दोस्तों! कभी भी किसी की मदद करें तो सोच समझ कर करें. विश्वास उसी पर करें जो सचमुच में विश्वास करने लायक हो. बहुत से लोग सच बोलने का दिखावा करते हैं और सामने वाला व्यक्ति उन पर पहली बार भरोसा कर लेते हैं. ऐसे दुष्ट लोगों से दूर रहने में ही भलाई है.

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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*!! संत की सरलता !!*
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एक गांव में एक संत निवास करते थे। संत का व्यवहार बहुत ही सरल ज्ञानी कर्तव्यनिष्ठ शांत रहता था। संत के इस व्यवहार से बच्चे बहुत ज्यादा खिल्ली उड़ाते रहते थे, लेकिन कभी संत बुरा नहीं मानते।

अपने इस व्यवहार के कारण संत का स्वभाव आसपास में मशहूर था। गांव के लोग अपनी समस्या भी संत के पास लेकर आते और उचित मार्गदर्शन से संतुष्ट भी होते थे। इन सभी व्यवहार के कारण बच्चे बूढ़े सभी के लिए चहेते भी थे।

एक बार बच्चों को कुछ शैतानी सूझी, बच्चों ने संत के साध्वी को जाकर भड़काया कि संत बाबा को आज बहुत सारा गन्ना मिला है, पर पता नहीं आपके पास आते आते आपके लिए बचा पाएंगे कि नहीं, सभी को रास्ते में बांटते आ रहे हैं।

संत की साध्वी थोड़ा झगड़ालू व चिड़चिड़ा प्रवृत्ति की थी, तब तक संत अपने कुटिया की ओर पहुँच गए। बच्चे शीघ्रता से छिप गए, परंतु साध्वी संत के हाथों में मात्र एक ही गन्ना देखकर गुस्सा से आग-बबूला हो गई और गुस्से से बोली कि मात्र एक ही गन्ना लेकर आये हो, (गन्ना छीनकर) जाओ इसे भी किसी को बांट दो कहकर फेंक दिया, जिससे गन्ना दो टुकड़ा हो जाता है। संत जी ये देखकर शांति से बोलते हैं कि तुम्हारा भी कोई जवाब नहीं, कितना सुंदर बराबर दो भाग में टुकड़ा किये हो। चलो मैं स्नान करके आता हूं फिर गन्ना खाएंगे।

इस प्रकार संत के स्वभाव से साध्वी का गुस्सा शांत हो जाता है। और बच्चे अपने शरारती स्वभाव पर लज्जित हो भाग जाते हैं।

उधर संत जी नदी में स्नान कर रहे होते हैं तो क्या देखते हैं कि एक बिच्छू का बच्चा पानी में बह रहा है, संत जी बिच्छु के बच्चे को बाहर निकालने की कोशिश करते हैं परंतु बिच्छू के बच्चा स्वभाव वश संत को डंक मरता है और जल में पुनः हाथ से गिर जाता है। यह प्रक्रिया तीन चार बार होते देख पास में स्नान कर रहे ग्रामीण, संत से बोलते हैं कि बाबा आपको बिच्छू का बच्चा डंक पे डंक मार रहा है और आप उसे बचाने पर तुले हैं।

संत बड़ी ही सरलता से बोलते हैं कि यह बिच्छू का बच्चा होते हुए भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ रहा है तो हम मनुष्यों का स्वभाव क्यों छोड़े!

हमें तो किसी असहाय प्राणियों की रक्षा करनी ही चाहिए और फिर कमंडल में पकड़ कर बिच्छू के बच्चे को बाहर निकाल ही लेते हैं।

*शिक्षा:-*
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि विषम परिस्थितियों में भी हमें अपना धैर्य नहीं खोकर कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए..!!






🙏जय श्री राम 🙏

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*!! लाभ और हानि !!*
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एक गरीब आदमी बड़ी मेहनत से एक एक-एक रूपया जोड़ कर मकान बनवाता है। उस मकान को बनवाने के लिए वह पिछले बीस वर्षों से एक-एक पैसा बचत करता है ताकि उसका परिवार छोटे से झोपड़े से निकलकर पक्के मकान में सुखी से रह सके।

आखिरकार एक दिन मकान बन कर तैयार हो जाता है। तत्पश्चात पंडित से पूछ कर गृह प्रवेश के लिए शुभ दिन निश्चित की जाती है। लेकिन गृहप्रवेश के दो दिन पहले ही भूकंप आता है और उसका मकान पूरी तरह ध्वस्त हो जाता है। यह खबर जब उस आदमी को पता चलती है तो वह दौड़ा-दौड़ा बाजार जाता है और मिठाई खरीद कर ले आता है। मिठाई लेकर वह घटनास्थल पर पहुंचता है जहां पर काफी लोग इकट्ठे होकर उसके मकान गिरने पर अफसोस जाहिर कर रहे थे। ओह! बेचारे के साथ बहुत बुरा हुआ, कितनी मुश्किल से एक-एक पैसा जोड़कर मकान बनवाया था।

इसी प्रकार, लोग आपस में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। वह आदमी वहां पहुंचता है और झोले से मिठाई निकाल कर सबको बांटने लगता है। यह देखकर सभी लोग हैरान हो जाते हैं। तभी उसका एक मित्र उससे कहता है, कहीं तुम पागल तो नहीं हो गए हो, तुम्हारा घर गिर गया, तुम्हारी जीवन भर की कमाई बर्बाद हो गई और तुम खुश होकर मिठाई बांट रहे हो। वह आदमी मुस्कुराते हुए कहता है, तुम इस घटना का सिर्फ नकारात्मक पक्ष देख रहे हो इसलिए इसका सकारात्मक पक्ष तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है। ये तो बहुत अच्छा हुआ कि मकान आज ही गिर गया। वरना तुम्हीं सोचो अगर यह मकान दो दिनों के बाद गिरता तो मैं, मेरी पत्नी और बच्चे सभी मारे जा सकते थे। तब कितना बड़ा नुकसान होता!

*शिक्षा:-*
मित्रों! सकारात्मक और नकारात्मक सोच में क्या अंतर है, यदि वह व्यक्ति नकारात्मक दृष्टिकोण से सोचता तो शायद वह नकारात्मकता का शिकार हो जाता, लेकिन केवल एक सोच के फर्क ने उसके दुःख को सुख में परिवर्तित कर दिया।

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*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*

*!! अंत का साथी !!*
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एक व्यक्ति के तीन साथी थे। उन्होंने जीवन भर उसका साथ निभाया। जब वह मरने लगा तो अपने मित्रों को पास बुलाकर बोला, “अब मेरा अंतिम समय आ गया है। तुम लोगों ने आजीवन मेरा साथ दिया है। मृत्यु के बाद भी क्या तुम लोग मेरा साथ दोगे?” पहला मित्र बोला, “मैंने जीवन भर तुम्हारा साथ निभाया। लेकिन अब मैं बेबस हूँ। अब मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता।” दूसरा मित्र बोला, मैं मृत्यु को नहीं रोक सकता।

मैंने आजीवन तुम्हारा हर स्थिति में साथ दिया है। मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि मृत्यु के बाद तुम्हारा अंतिम संस्कार सही से हो। तीसरा मित्र बोला, “मित्र! तुम चिंता मत करो। में मृत्यु के बाद भी तुम्हारा साथ दूंगा। तुम जहां भी जाओगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।” मनुष्य के ये तीन मित्र हैं- माल (धन), इयाल (परिवार) और आमाल (कर्म)। तीनों में से मनुष्य के कर्म ही मृत्यु के बाद भी उसका साथ निभाते हैं।

*शिक्षा:-*
हमें अच्छे कर्म करने चाहिए। यही वो दौलत हैं जो मरने के बाद भी इंसान के साथ जाती हैं। अतः अच्छे कार्यों में इस अनमोल जीवन को बिताना चाहिए।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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*!! विद्या का घमंड !!*
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गंगा पार होने के लिए कई लोग एक नौका में बैठे, धीरे-धीरे नौका सवारियों के साथ सामने वाले किनारे की ओर बढ़ रही थी, मनमोहन भी उसमें सवार थे। मनमोहन जी ने नाविक से पूछा “क्या तुमने भूगोल पढ़ी है?”

भोला-भाला नाविक बोला, “भूगोल क्या है इसका मुझे कुछ पता नहीं।”

मनमोहन जी ने शिक्षा का प्रदर्शन करते कहा, “तुम्हारी पाव भर जिंदगी पानी में गई।”

फिर मनमोहन जी ने दूसरा प्रश्न किया, “क्या इतिहास जानते हो? महारानी लक्ष्मीबाई कब और कहाँ हुई तथा उन्होंने कैसे लडाई की?”

नाविक ने अपनी अनभिज्ञता जाहिर की तो मनमोहन जी ने विजयीमुद्रा में कहा, “ये भी नहीं जानते तुम्हारी तो आधी जिंदगी पानी में गई।”

फिर विद्या के मद में मनमोहन जी ने तीसरा प्रश्न पूछा, “महाभारत का भीष्म-नाविक संवाद या रामायण का केवट और भगवान श्रीराम का संवाद जानते हो?”

अनपढ़ नाविक क्या कहे, उसने इशारे में ना कहा, तब मनमोहन जी मुस्कुराते हुए बोले, “तुम्हारी तो पौनी जिंदगी पानी में गई।”

तभी अचानक गंगा में प्रवाह तीव्र होने लगा। नाविक ने सभी को तूफान की चेतावनी दी और मनमोहन जी से पूछा “नौका तो तूफान में डूब सकती है, क्या आपको तैरना आता है?”

मनमोहन जी घबराहट में बोले, “मुझे तो तैरना-वैरना नहीं आता है?”

नाविक ने स्थिति भांपते हुए कहा, “तब तो समझो आपकी पूरी जिंदगी पानी में गयी।”

कुछ ही देर में नौका पलट गई और मनमोहन जी बह गए।

*शिक्षा:-*
मित्रों, विद्या वाद-विवाद के लिए नहीं है और ना ही दूसरों को नीचा दिखाने के लिए है। लेकिन कभी-कभी ज्ञान के अभिमान में कुछ लोग इस बात को भूल जाते हैं और दूसरों का अपमान कर बैठते हैं। याद रखिये, शास्त्रों का ज्ञान समस्याओं के समाधान में प्रयोग होना चाहिए, शस्त्र बना कर हिंसा करने के लिए नहीं।

कहा भी गया है, जो पेड़ फलों से लदा होता है उसकी डालियाँ झुक जाती हैं। धन प्राप्ति होने पर सज्जनों में शालीनता आ जाती है। इसी तरह, विद्या जब विनयी के पास आती है तो वह शोभित हो जाती है। इसीलिए संस्कृत में कहा गया है, ‘विद्या विनयेन शोभते’।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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*!! कड़वा वचन !!*
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सुंदर नगर में एक सेठ रहते थे। उनमें हर गुण था- नहीं था तो बस खुद को संयत में रख पाने का गुण। जरा-सी बात पर वे बिगड़ जाते थे। आसपास तक के लोग उनसे परेशान थे। खुद उनके घर वाले तक उनसे परेशान होकर बोलना छोड़ देते।

किंतु, यह सब कब तक चलता। वे पुन: उनसे बोलने लगते। इस प्रकार काफी समय बीत गया, लेकिन सेठ की आदत नहीं बदली। उनके स्वभाव में तनिक भी फर्क नहीं आया।

अंततः एक दिन उसके घरवाले एक साधु के पास गये और अपनी समस्या बताकर बोले- “महाराज ! हम उनसे अत्यधिक परेशान हो गये हैं, कृपया कोई उपाय बताइये।” तब, साधु ने कुछ सोचकर कहा- “सेठ जी ! को मेरे पास भेज देना।”

“ठीक है, महाराज” कहकर सेठ जी के घरवाले वापस लौट गये। घर जाकर उन्होंने सेठ जी को अलग-अलग उपायों के साथ उन्हें साधु महाराज के पास ले जाना चाहा। किंतु, सेठ जी साधु-महात्माओं पर विश्वास नहीं करते थे। अतः वे साधु के पास नहीं आये। तब एक दिन साधु महाराज स्वयं ही उनके घर पहुंच गये। वे अपने साथ एक गिलास में कोई द्रव्य लेकर गये थे।

साधु को देखकर सेठ जी की प्योरिया चढ़ गयी। परंतु घरवालों के कारण वे चुप रहे।

साधु महाराज सेठ जी से बोले- “सेठ जी ! मैं हिमालय पर्वत से आपके लिए यह पदार्थ लाया हूं, जरा पीकर देखिये।” पहले तो सेठ जी ने आनाकानी की, परंतु फिर घरवालों के आग्रह पर भी मान गये। उन्होंने द्रव्य का गिलास लेकर मुंह से लगाया और उसमें मौजूद द्रव्य को जीभ से चाटा।

ऐसा करते ही उन्होंने सड़ा-सा मुंह बनाकर गिलास होठों से दूर कर लिया और साधु से बोले- “यह तो अत्यधिक कड़वा है, क्या है यह ?”

“अरे आपकी जबान जानती है कि कड़वा क्या होता है” साधु महाराज ने कहा। “यह तो हर कोई जानता है” कहते समय सेठ ने रहस्यमई दृष्टि से साधु की ओर देखा।

“नहीं ऐसा नहीं है, अगर हर कोई जानता होता तो इस कड़वे पदार्थ से कहीं अधिक कड़वे शब्द अपने मुंह से नहीं निकालता। सेठ जी वह एक पल को रुके फिर बोले। सेठ जी याद रखिये जो आदमी कटु वचन बोलता है वह दूसरों को दुख पहुंचाने से पहले, अपनी जबान को गंदा करता है।”

सेठ समझ गये थे कि साधु ने जो कुछ कहा है उन्हें ही लक्षित करके कहा है। वह फौरन साधु के पैरों में गिर पड़े- “बोले साधु महाराज ! आपने मेरी आंखें खोल दी, अब मैं आगे से कभी कटु वचनों का प्रयोग नहीं करूंगा।”

सेठ के मुंह से ऐसे वाक्य सुनकर उनके घरवाले प्रसन्नता से भर उठे। तभी सेठ जी ने साधु से पूछा- “किंतु, महाराज! यह पदार्थ जो आप हिमालय से लाये हो वास्तव में यह क्या है?”

साधु मुस्कुराकर बोले- “नीम के पत्तों का अर्क।” “क्या” सेठ जी के मुंह से निकला और फिर वे धीरे-से मुस्कुरा दिये।

*शिक्षा:-*
मित्रों! कड़वा वचन बोलने से बढ़कर इस संसार में और कड़वा कुछ नहीं। किसी द्रव्य के कड़वे होने से जीभ का स्वाद कुछ ही देर के लिए कड़वा होता है। परंतु कड़वे वचन से तो मन और आत्मा को चोट लगती है।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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