_एकबार लक्ष्मण जी राम जी से ज्ञान, वैराग्य, माया व भक्ति के बारे में पूछते हैं। राम जी कहते हैं कि धर्ममय जीवन जीने से वैराग्य तथा योग से ज्ञान पैदा होता है। वेद कहते हैं कि ज्ञान मोक्षदायक है। परंतु मैं जिससे शीघ्र प्रसन्न होता हूँ वह मेरी भक्ति है जो भक्तों को सुख देने वाली है।_
_मित्रों ! हम सब राम जी को प्रसन्न करना चाहते हैं। राम जी कहते हैं कि मैं भक्ति से जल्दी प्रसन्न होता हूँ। भक्ति भक्तों को सुख देने वाली है। अतः सुखी होना चाहते हैं तो भक्ति करें, राम भक्ति करें व सुखपूर्वक रहें।_
अथ ! जय राम, जय राम, जय जय राम
_मित्रों ! हम सब राम जी को प्रसन्न करना चाहते हैं। राम जी कहते हैं कि मैं भक्ति से जल्दी प्रसन्न होता हूँ। भक्ति भक्तों को सुख देने वाली है। अतः सुखी होना चाहते हैं तो भक्ति करें, राम भक्ति करें व सुखपूर्वक रहें।_
अथ ! जय राम, जय राम, जय जय राम