भक्ति मार्ग ,कर्मकांड • में उचित मार्ग कौन है
एकबार काशीजी में एक ब्राह्मणदेवता ने पूज्य श्रीकरपात्री स्वामीजी को प्रणाम करके पुछा -
स्वामीजी! मैं सन्ध्या-यज्ञादि कर्म नहीं करता हूँ बस श्रीरामनाम का जप-कीर्तन एवं रामचरितमानस का मासपारायण पाठ कर लेता हूँ। तो क्या इससे मेरा कल्याण हो जायेगा?
इसपर पूज्य श्रीकरपात्री स्वामीजी ने कहा - यदी आप शुद्रकुल में उत्पन्न हुए होते तो निश्चित आपका कल्याण हो गया होता पर दुर्भाग्य से आपका जन्म ब्राह्मणकुल में हुआ है अतः आपके लिए सन्ध्या-यज्ञादि वैदिक कर्म करना अत्यंत आवश्यक है।
अब आप विचार करें, क्या करपात्री स्वामीजी भगवन्नाम विरोधी है ? क्या उनको नहीं ज्ञात था कि "राम नाम अवलम्बन एकु" का सिद्धांत कलिकाल में मुख्य है?
अरे भाई! जितना रामनाम प्रेमी करपात्री स्वामीजी हुए उतना शायद ही कोई और हुआ होगा। स्वामीजी श्वास-प्रश्वास में सतत रामनाम का जप करते थे, इतना की एकबार जब वे अस्वस्थ होकर कुछ समय तक मूर्छित रहें तो जगने पर उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ कि उनका रामनाम का जप स्थगित हो गया था। तो विचार कीजिए की स्वामीजी ने उस ब्राह्मण को ऐसा क्यों कहा? +
एकबार काशीजी में एक ब्राह्मणदेवता ने पूज्य श्रीकरपात्री स्वामीजी को प्रणाम करके पुछा -
स्वामीजी! मैं सन्ध्या-यज्ञादि कर्म नहीं करता हूँ बस श्रीरामनाम का जप-कीर्तन एवं रामचरितमानस का मासपारायण पाठ कर लेता हूँ। तो क्या इससे मेरा कल्याण हो जायेगा?
इसपर पूज्य श्रीकरपात्री स्वामीजी ने कहा - यदी आप शुद्रकुल में उत्पन्न हुए होते तो निश्चित आपका कल्याण हो गया होता पर दुर्भाग्य से आपका जन्म ब्राह्मणकुल में हुआ है अतः आपके लिए सन्ध्या-यज्ञादि वैदिक कर्म करना अत्यंत आवश्यक है।
अब आप विचार करें, क्या करपात्री स्वामीजी भगवन्नाम विरोधी है ? क्या उनको नहीं ज्ञात था कि "राम नाम अवलम्बन एकु" का सिद्धांत कलिकाल में मुख्य है?
अरे भाई! जितना रामनाम प्रेमी करपात्री स्वामीजी हुए उतना शायद ही कोई और हुआ होगा। स्वामीजी श्वास-प्रश्वास में सतत रामनाम का जप करते थे, इतना की एकबार जब वे अस्वस्थ होकर कुछ समय तक मूर्छित रहें तो जगने पर उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ कि उनका रामनाम का जप स्थगित हो गया था। तो विचार कीजिए की स्वामीजी ने उस ब्राह्मण को ऐसा क्यों कहा? +