मेरा शहर मेरी राह तकता होगा,
मैं बहुत दिन से घर जो नहीं गया हूं,
मेरी गलियां मेरा बस्ता मेरी साइकिल,
ये सोचती होंगी,
रोज़ वाला लड़का कहीं नज़र नहीं आता,
मैं बहुत दिन से घर जो नहीं गया हूं,
मेरी अलमारी मेरा कमरा मेरा बिस्तर,
ये देखते होंगे,
वो शक्लों सूरत गुम गई होगी,
वो रोज़ वाली थपकी, वो सोना, वो हंसना कहां गया,
वो मुझको ढूंढती होंगी,
मैं बहुत दिन से घर जो नहीं गया हूं,
मेरा रस्ता मेरा कॉलेज मेरी पंचर वाली दुकान,
सब मेरे बारे में जानकारी खोजते होंगे,
वो एक पगला सा आता था,
जो अब नहीं आता,
कहीं किसी और रस्ते शायद जाता होगा,
मगर मुझ जैसा नहीं नहीं महसूस कर पाता होगा,
वो सब अपने तरीके से मुझे याद करते होंगे,
मैं बहुत दिन से घर जो नहीं गया हूं,
घरवाले तो रोज़ याद आते हैं,
दोस्त हरदम नज़र में आते हैं,
और भी हैं जिन्हें हमसे था वास्ता थोड़ा,
वो भी कभी कभार याद कर जाते होंगे,
बस ये यादों का सिलसिला अकेले चलता होगा,
मैं बहुत दिन से घर जो नहीं गया हूँ..!!