Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)


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किसी के सुख का कारण बनो.... भागीदार नहीं....
और.....
किसी के दुख का भागीदार बनो..... कारण नहीं...!!

जय श्री कृष्ण
राधे राधे
कृष्णमयी सुप्रभातम्


हर कोई ऐसा एक मित्र पाए....

जो बातें सुनते थके नही.....

और मौन को भी पढ जाए........

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एक बुढ़िया के कांपते हांथो ने डाले थे मेरे थैले में "दिवाली के दीये"

मै मोल भाव करता तो भगवान को मुँह दिखाता कैसे


दुनिया में सबसे ज्यादा सपने
इस बात से तोड़े गए हैं कि
"लोग क्या कहेंगे" !


पाताल विराट् पुरुष के तलवे हैं, उनकी एडियाँ और पंजे रसातल हैं, दोनों गुल्फ—एड़ी के ऊपर की गाँठें महातल हैं, उनके पैर के पिंडे तलातल हैं,। विश्व-मूर्ति भगवान के दोनों घुटने सुतल हैं, जाँघें वितल और अतल हैं, पेंडू भूतल है और उनके नाभिरूप सरोवरों को ही आकाश कहते हैं । आदिपुरुष परमात्मा की छाती को स्वर्गलोक, गले को महर्लोक, मुख को जनलोक और ललाट को तपोलोक कहते हैं। उस सहस्त्र सिर वाले भगवान का मस्तक समूह ही सत्यलोक है । इन्द्रादि देवता उनकी भुजाएँ हैं। दिशाएँ कान और शब्द श्रवणेन्द्रिय हैं। दोनों अश्विनीकुमार उनकी नासिका के छिद्र हैं; गन्ध घ्राणेन्द्रिय है और धधकती हुई आग उनका मुख है ।


मृत्यु का समय आने पर मनुष्य घबराये नहीं। उसे चाहिये कि वह वैराग्य के शस्त्र से शरीर और उससे सम्बन्ध रखने वालों के प्रति ममता को काट डाले । धैर्य के साथ घर से निकलकर पवित्र तीर्थ के जल में स्नान करे और पवित्र तथा एकान्त स्थान में विधिपूर्वक आसन लगाकर बैठ जाय । तत्पश्चात् परम पवित्र ‘अ उ म्’ इन तीन मात्राओं से युक्त प्रणव का मन-ही-मन जप करे। प्राण वायु को वश में करके मन का दमन करे और एक क्षण के लिये भी प्रणव को न भूले । बुद्धि की सहायता से मन के द्वारा इन्द्रियों को उनके विषयों से हटा ले और कर्म की वासनाओं से चंचल हुए मन को विचार के द्वारा रोक कर भगवान के मंगलमय रूप में लगाये । स्थिर चित्त से भगवान के श्रीविग्रह में से किसी एक अंग का ध्यान करते-करते विषय-वासना से रहित मन को पूर्ण रूप से भगवान में ऐसा तल्लीन कर दे कि फिर और किसी विषय का चिन्तन ही न हो। वही भगवान विष्णु का परमपद है, जिसे प्राप्त करके मन भगवत्प्रेम रूप आनन्द से भर जाता है ।


जो अभय पद को प्राप्त करना चाहता है, उसे तो सर्वात्मा, सर्वशक्तिमान् भगवान श्रीकृष्ण की ही लीलाओं का श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिये । मनुष्य-जन्म का यही—इतना ही लाभ है कि चाहे जैसे हो—ज्ञान से, भक्ति से अथवा अपने धर्म की निष्ठा से जीवन को ऐसा बना लिया जाय कि मृत्यु के समय भगवान की स्मृति अवश्य बनी रहे । जो निर्गुण स्वरुप में स्थित हैं एवं विधि-निषेध की मर्यादा को लाँघ चुके हैं, वे बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी प्रायः भगवान के अनन्त कल्याणमय गुणगणों के वर्णन में रमे रहते हैं ।


पुरुष और नारी, ना कोई हल्का ना कोई भारी
दोनों अपने कर्म करते जब आती उनकी बारी

प्रेम,विश्वास और सत्य से बंधे हुए है दोनो
सावित्री का तप ये बंधन विष के शिव अधिकारी
🙏


दिल उसी से लगाओ , जिसने ये दिल बनाया है l जिसने हमारे दिल को धड़कन दी है l यह शरीर परमात्मा की कृपा से परमात्मा को पाने के लिये ही मिला है। परमात्मा के सिवाय सब कुछ नश्वर है, छूटने वाला है...!!

Attach your heart to the one who has made this heart. The one who has given beats to our heart. This body has been given by the grace of God to attain God. Everything except God is mortal, it is going to be left behind...!!


The mental suffering you create is always some form of non-acceptance,

some form of unconscious resistance to what is.

On the level of thought, the resistance is some form of judgement.

The intensity of the suffering depends on the degree of resistance to the present moment.

Self-observation is the first step of inner unfolding.

In meditation we are continuously discovering who and what we are.

Meditation is the tongue of the soul and the language of our spirit.


"मतलब ना हो तो लोग बोलना तो दूर देखना भी छोड़ देते हैं, इसलिए अपेक्षा सिर्फ खुद से रखिये.


जय श्री राम
राधे कृष्ण


you have read thousands of books of knowledge. Have you ever tried to read your own-self?

आपने ज्ञान की हजारों किताबें पढ़ी हैं। क्या आपने कभी खुद को पढ़ने की कोशिश की है?


And in the end, only those who saw beauty in your soul will remain with you, but those who are impressed with appearances will leave in turn.

और अंत में, केवल वे ही लोग आपके साथ रहेंगे जिन्होंने आपकी आत्मा में सुंदरता देखी, लेकिन जो दिखावे से प्रभावित हुए वे भी चले जाएंगे।


शक्ति का महत्व,,,,,,,,


सावन का महीना रिमझिम रिमझिम बरसात प्रारंभ हो जाती है खेत खलिहान पानी से भर जाते हैं चारों तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आनी प्रारंभ हो जाती है प्रकृति का नजारा बहुत ही मनभावन बन जाता है।

भेड़ बकरियां चराने वाला ग्वाला सुरजा राम अपनी भेड़ बकरियों को लेकर चराने के लिए जंगल की तरफ रवाना हो जाता है चारों तरफ हरियाली है या हरियाली नजर आती है उसे हरियाली को देखकर सुरजा राम ही नहीं भेड़ बकरियां भी खुश हो जाती है वहां पर हरी हरी घास चरना प्रारंभ कर देती है,ग्वाला एक तरफ पेड़ की छाया में विश्राम करना प्रारंभ कर देता है।

जिस पेड़ की छाया के नीचे ग्वाला विश्राम कर रहा था उसी पेड़ पर एक कौवा आकर बैठ जाता है भेड़ बकरियों के झुंड को देखना प्रारंभ कर देता है देखो किस तरह से अलमस्त होकर यह हरा-हरा घास चर रही है।

इस समय कौवे जैसा एक पक्षी आकाश में उड़ता हुआ आता है जो उससे डेढ़ गुना ज्यादा बड़ा था उसको उकाब कह पुकारते थे वह भेड़ बकरियों की झुंड के ऊपर आकाश में जोर-जोर से चक्कर लगाना प्रारंभ कर देता है,अचानक नीचे आता है बहुत बलिष्ठ भेड़ को पकड़ कर आकाश की ओर उड़ जाता है।

यह दृश्य देखकर कौवा आश्चर्य चकित रह जाता है मेरे और इसके रंग रूप में कोई अंतर नहीं है केवल मेरा आकार छोटा है इसका आकार बड़ा है यही तो केवल अंतर है क्यों नहीं मैं भी इसकी तरह भेड़ का शिकार करूं।

वह पेड़ से उड़ता है उकाब की तरह आकाश में चक्कर लगाना प्रारंभ कर देता है अचानक तेजी के साथ नीचे आता है बहुत बड़ी भेड़ के ऊपर झपटा मारता है उसको लेकर आकाश में उड़ने का प्रयास करता है।

पर यह क्या आकाश में उड़ना तो दूर रहा उसके पंख भेड़ के बालों में उलझ कर रह जाते हैं वह वहां से मुक्त होने के लिए बहुत ज्यादा प्रयास करता है पर किसी भी हालत में वह अपने आप को मुक्त नहीं कर पाता है,मुक्त होने के लिए छटपटाता रहता है।

ग्वाला जब शाम के समय अपनी भेड़ बकरियों को लेकर अपने घर के तरफ रवाना होने की तैयारी करना प्रारंभ करता है अचानक उसका ध्यान अपनी ही भेड़ के बालों में उलझे हुए कोवै पर केंद्रित होती है,वह तत्काल दौड़कर आता है,उसके पंजों को बालों से उलझा हुआ देखकर उसको सुलझाने का प्रयास करता है।

जब कौवा मुक्त हो जाता है उड़ने का प्रयास करता है पर ग्वाला उसको कस कर अपने हाथ में पकड़ लेता है अपनी भेड़ बकरियों के साथ अपने घर पर पहुंच जाता है।

कोवे को देखकर उसके घर के सारे बच्चे एक जगह पर इकट्ठे हो जाते हैं पूछना प्रारंभ कर देती हैं यह कौन सा पक्षी है इसका नाम क्या है बच्चे उसके साथ अट्टखेलिया करना प्रारंभ कर देती है।

बच्चों के लिए एक अनोखा खिलौना बन गया था उसने सोचा कहीं यह उड़ नहीं जाए फिर मेरे बच्चे किसके साथ में खेलेंगे इसलिए उसने उसके जो पंख है उनको नोचना प्रारंभ कर दिया।

अब वह पंख रहित हो गया था उड़ने की शक्ति समाप्त हो चुकी थी बच्चे बार-बार पूछते हैं इस पक्षी का नाम क्या है।

अपने बच्चों के जिद्द देखकर ग्वाला बोल पड़ता है अगर तुम इससे पूछोगे तो यह कहेगा कि मैं उकाब हूं जबकि असलियत यह है यह मात्र एक कोआ है।

जो व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कार्य नहीं करता है उसे व्यक्ति का यही हालत होती है यह बात बार-बार उसके कानों में गूंजायमान होने प्रारंभ हो जाती है,बिना ज्ञान के नकल करने वाले का यही हालात बनते हैं..!!

जय श्री कृष्ण🙏🏼

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506


!! विद्या बड़ी या बुद्धि !!

किसी ब्राह्मण के चार पुत्र थे। उनमें परस्पर गहरी मित्रता थी। चारों में से तीन शास्त्रों में पारंगत थे, लेकिन उनमें बुद्धि का अभाव था। चौथे ने शास्त्रों का अध्ययन तो नहीं किया था, लेकिन वह था बड़ा बुद्धिमान।

एक बार चारों भाइयों ने परदेश जाकर अपनी-अपनी विद्या के प्रभाव से धन अर्जित करने का विचार किया। चारों पूर्व के देश की ओर चल पड़े।

रास्ते में सबसे बड़े भाई ने कहा- ‘हमारा चौथा भाई तो निरा अनपढ़ है। राजा सदा विद्वान व्यक्ति का ही सत्कार करते हैं। केवल बुद्धि से तो कुछ मिलता नहीं। विद्या के बल पर हम जो धन कमाएँगे, उसमें से इसे कुछ नहीं देंगे। अच्छा तो यही है कि यह घर वापस चला जाए।’

दूसरे भाई का विचार भी यही था। किंतु तीसरे भाई ने उनका विरोध किया। वह बोला-‘हम बचपन से एक साथ रहे हैं, इसलिए इसको अकेले छोड़ना उचित नहीं है। हम अपनी कमाई का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा इसे भी दे दिया करेंगे।’ अतः चौथा भाई भी उनके साथ लगा रहा।

रास्ते में एक घना जंगल पड़ा। वहाँ एक जगह हड्डियों का पंजर था। उसे देखकर उन्होंने अपनी-अपनी विद्या की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उनमें से एक ने हड्डियों को सही ढंग से एक स्थान पर एकत्रित कर दिया। वास्तव में ये हड्डियाँ एक मरे हुए शेर की थीं।

दूसरे ने बड़े कौशल से हड्डियों के पंजर पर मांस एवं खाल का अवरण चढ़ा दिया। उनमें उसमें रक्त का संचार भी कर दिया। तीसरा उसमें प्राण डालकर उसे जीवित करने ही वाला था कि चौथे भाई ने उसको रोकते हुए कहा, ‘तुमने अपनी विद्या से यदि इसे जीवित कर दिया तो यह हम सभी को जान से मार देगा।’

तीसरे भाई ने कहा, ‘तू तो मूर्ख है!’मैं अपनी विद्या का प्रयोग अवश्य करुँगा और उसका फल भी देखूँगा।’ चौथे भाई ने कहा, ‘तो फिर थोड़ी देर रुको। मैं इस पेड़ पर चढ़ जाऊँ, तब तुम अपनी विद्या का चमत्कार दिखाना।’ यह कहकर चौथा भाई पेड़ पर चढ़ गया।

तीसरे भाई ने अपनी विद्या के बल पर जैसे ही शेर में प्राणों का संचार किया, शेर तड़पकर उठा और उन पर टूट पड़ा। उसने पलक झपकते ही तीनों अभिमानी विद्वानों को मार डाला और गरजता हुआ चला गया। उसके दूर चले जाने पर चौथा भाई पेड़ से उतरकर रोता हुआ घर लौट आया।

शिक्षा:-
इसीलिए कहा गया है कि विद्या से बुद्धि श्रेष्ठ होती है।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506


श्रीमद्भागवत महापुराण प्रथम स्कन्ध आज संपूर्ण होने वाला है राजा परीक्षित अब श्रीमद्भागवत कथा सुनने के लिए बैठने वाले है।

जीन भक्तो को पढ़ने में रुचि हो अगर जो चैनल से जुड़ सकते है।

कथा पढ़ने के लिए आपको २४ घंटे में से रोजाना २० से ३० मिनिट निकलना होगा।

होता ये है लोगो को ज्ञान चाहिए पर धीरे धीरे उनकी पढ़ने की रुचि खत्म हो गई है उन्हे देखना ज्यादा पसंद आता है। सीरियल और फिल्म बनाने वाले या कथावाचक हर कथा में entertainmnet परोस देते है ताकि दर्शक उन चीज को लेकर attract हो उनका मनोरंजन होगा। इनमे कथावाचक या फिल्म बनाने वालो की भी गलती नहीं होती लोग हर जगह भक्ति से ज्यादा मनोरंजन चाहते है जो उन्हे देना पड़ता है।

पर मेरा ऐसा मानना है भगवान की कथा में रुचि अपने आप बढ़ने लगती है जब आप पूरी श्रद्धा और भक्ति से साथ कथा के रस का पान करते है आप ये चाहते है कथा पढ़ते रहे और अपनी आंखो के सामने उस दृश्य को महसूस करते है।

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हिम्मत से जीते हुए लोग कभी हार नहीं मानते, क्योंकि उन्हें पता होता है कि मुश्किलें सिर्फ़ एक पड़ाव हैं, मंज़िल नहीं।

सीताराम


जीवन में कोई किसी का नही होता है,

समय सबका होता है समय आपका है तो सब आपका है समय आपका नही तो आपका कुछ भी नहीं है।

समय बड़ा बलवान होता है समय की कद्र करो।

809 0 11 1 28

सुखी
जीवन जीने का
सिर्फ एक ही रास्ता है
वह है अभाव की तरफ दृष्टि ना डालना।
आज हमारी स्थिति यह है कि
जो हमे प्राप्त है उसका आनंद तो लेते नहीं,
वरन जो नहीं है उसका चिन्तन करके
जीवन को नर्क तुल्य बना लेते हैं।
दुःख का मूल कारण
हमारी आवश्कताएं नहीं हमारी इच्छाएं हैं।
एक इच्छा पूरी नहीं होती,
उससे पहले दूसरी खड़ी हो जाती है।
जीवन में सुख एवम शान्ति के लिए
दुख सुख में सम भाव रखें,
सब से प्रेम मय व्यवहार करें और
किसी से कोई अपेक्षा न रखें।
हरि ॐ
🙏


खुशी तब मिलती है जब आपके काम और शब्द दूसरों के लिए फायदेमंद हों...!!

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