Репост из: सनातनी हरिप्रकाश सरोहा सरोहा
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धन्य है वो मां और धन्य है वो कोख जिसने ऐसे वीर और मेधावी बेटे को जन्म दिया है। बहुत हो चुकी झूठे आदर्शवाद की लीपापोती। कान पक गए झूठ को सुनते सुनते। बहुत पोत चुके विद्यालयों और सार्वजनिक भवनों की दीवारों को इस अधूरे सत्य से कि"अहिंसा परमो धर्म"। आखिर समय ने करवट ली, परिस्थितियों ने आंखें खोलने के लिए विवश किया और आज किसी ने साहस किया कि आडम्बरपूर्ण सच आखिर कब तक ढोया जाए और उतारिए इसकी नकाब। जिस धाराप्रवाह शैली में इस युवा कवि ने वीर रस से सनी वाणी की बौछार की, ऐसे लगा जैसे मानो सुनने वालों के शरीर में करंट सा लग गया। ये युवा कवि न तो कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ा है न हार्वर्ड में। ये भारत के किसी ग्रामीण परिवेश में पला - बढ़ा और शिक्षा प्राप्त युवा है,बस मां सरस्वती जी की इस पर पूर्ण अनुकंपा है। बंधुओ इस वीडियो को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाइये और इस के विचारों से प्रेरणा लें।🙏