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395th Birth Anniversary of Shri Chhatrapati Shivaji Maharaj

• Shri Chhatrapati Shivaji Bhosale (1630-1680 C.Е.)

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PM Modi at MahaKumbh 2025

महाकुंभ 13 जनवरी 2025 (सोमवार) को पौष पूर्णिमा के साथ शुरू होगा और 26 फरवरी 2025 (बुधवार) को महाशिवरात्रि के साथ समाप्त होगा।

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हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा क्यों?
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अद्भुत रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता है, जिसमें मंगलवार की सुबह जब हनुमानजी को भूख लगी, तो वे माता जानकी के पास कुछ कलेवा पाने के लिए पहुंचे। सीता माता की मांग में लगा सिंदूर देखकर हनुमानजी ने उनसे आश्चर्यपूर्वक पूछा- "माता! मांग में आपने यह कौन-सा लाल द्रव्य लगाया है?"

इस पर सीता माता ने प्रसन्नतापूर्वक कहा "पुत्र! यह सुहागिन स्त्रियों का प्रतीक, मंगल सूचक, सौभाग्यवर्धक सिंदूर है, जो स्वामी के दीर्घायु के लिए जीवनपर्यंत मांग में लगाया जाता है। इससे वे मुझ पर प्रसन्न रहते हैं।"

हनुमानजी ने यह जानकर विचार किया कि जब अंगुली भर सिंदूर लगाने से स्वामी की आयु में वृद्धि होती है, तो फिर क्यों न सारे शरीर पर इसे लगाकर अपने स्वामी भगवान् श्रीराम को अजर-अमर कर दूं। उन्होंने जैसा सोचा, वैसा ही कर दिखाया। अपने सारे शरीर पर सिंदूर पोतकर भगवान् श्रीराम की सभा में पहुंच गए। उन्हें इस प्रकार सिंदूरी रंग में रंगा देखकर सभा में उपस्थित सभी लोग हंसे, यहां तक कि भगवान् राम भी उन्हें देखकर मुस्कराए और बहुत प्रसन्न हुए। उनके सरल भाव पर मुग्ध होकर उन्होंने यह घोषणा की कि जो मंगलवार के दिन मेरे अनन्य प्रिय हनुमान को तेल और सिंदूर चढ़ाएंगे, उन्हें मेरी प्रसन्नता प्राप्त होगी और उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। इस पर माता जानकी के वचनों में हनुमानजी को और भी अधिक दृढ़ विश्वास हो गया।

कहा जाता है कि उसी समय से भगवान् श्रीराम के प्रति हनुमानजी की अनुपम स्वामिभक्ति को याद करने के लिए उनके सारे शरीर पर चमेली के तेल में घोलकर सिंदूर लगाया जाता है। इसे चोला चढ़ाना भी कहते हैं।

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આભમાં અવસર અને આંખમાં જ અંબર સૂરજ નો તાપ સમે... આભમાં ચાંદની રેલાય એજ... આભમાં સમ-વિષમ સમે... આભમાં ભેદ વિભેદ સંગ વિવેક વિશેષ સૂરજના તાપમાંય ટમટમતા તારલાં નીચા નિશાન સદાય પરેશાન ઊંચા નિશાન જ અંબરને આંબે કંકરને સંકટ પથ્થરને પતઝડ વસંતમાં...યે સંત

આભના બાગમાં ઝગમગ તારલાં
વિરાટની કોખમાં... અવસરની આશમાં
વિનાશમાં...યે આશ
સપનાનાં અંબાર
પુરે અંબરની.... આશ
અસીમ... આભ સર્જે વિરાટની... આશ
માર્ગ... તપનો
મર્મ... આશનો
અવિરત... અવિરામ

કલ્યાણ યાત્રી... સૂર્ય આજ તપતા... સુરજ ને, તર્પણની... પળ. શત શત નમન... શત શત નમન સૂરજ દેવને અનેક નમન.

by નરેન્દ્ર મોદી 🪁

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🙏 मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!


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2025 महाकुंभ (प्रयागराज)

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2025 महाकुंभ (प्रयागराज)

महाकुंभ, भारत के सबसे बड़े और पवित्र धार्मिक आयोजनों में से एक है। यह एक ऐसा उत्सव है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु एक साथ पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं। 2025 में, यह भव्य आयोजन प्रयागराज में होगा। यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।

महाकुंभ 13 जनवरी 2025 (सोमवार) को पौष पूर्णिमा के साथ शुरू होगा और 26 फरवरी 2025 (बुधवार) को महाशिवरात्रि के साथ समाप्त होगा।
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• महाकुंभ का अर्थ

'कुंभ' का शाब्दिक अर्थ है 'घड़ा'। यह पर्व समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ा है, जिसमें देवताओं और असुरों के बीच अमृत के घड़े को लेकर युद्ध हुआ था। इस युद्ध के दौरान, अमृत की कुछ बूंदें धरती पर गिरी थीं, जिनमें से प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक जैसे स्थान शामिल हैं। इसीलिए इन स्थानों पर बारी-बारी से कुंभ का आयोजन किया जाता है।
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• यात्रा की योजना

यदि आप महाकुंभ में शामिल होने की योजना बना रहे हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है,

1. (पहले से योजना बनाएं) यात्रा की योजना पहले से बना लें, ताकि आपको टिकट और आवास ढूंढने में कोई परेशानी न हो।
2. (सुरक्षित रहें) कुंभ के दौरान सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें।
3. (स्वच्छता का ध्यान रखें) मेले के दौरान स्वच्छता बनाए रखने में मदद करें।
4. (स्थानीय संस्कृति का सम्मान करें) स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों का सम्मान करें।
5. (ज़रूरी सामान साथ रखें) अपनी दवाइयां और ज़रूरी सामान हमेशा साथ रखें।

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राघव ललन तेरे कोमल चरण ,
कहीं कंकड़िया गढ़ी नहि जाय
राघव ललन तेरे कोमल चरण ,
कहीं कंकड़िया गढ़ी नहि जाय।।

नवरा जीव चरण अरुणाय ,
खेलन बिनु पग परे अकुलाय
नीरज नयन मोद मंगल अयन ,
लाल तेरी मैं ले लूँ बलाय।।

राघव ललन तेरे कोमल चरण ,
कहीं कंकड़िया गढ़ी नहि जाय
रवि कर उदित सीस नहि छाही ,
बदन निरखि सर सिज संकुचाय।।

सूरज किरण पड़े अधरन जले ,
क्यों मुखड़ा नही कुम्हलाय
राघव ललन तेरे कोमल चरण ,
कंकड़िया कहीं गढ़ी नहि जाय।।

लालन यंही आंगन मिल खेलो,
अल बल वचन तोतरे बोलो
चितवन चपल चाल मंजुल मचल ,
देख सुषमा सरस तरसाय।।

राघव ललन तेरे कोमल चरण ,
कहीं कंकड़िया गढ़ी नहि जाय
खेलन को अब दुरी न जाओ,
ठुमक ठुमक पठ नाच दिखाओ।।

सुन्दर सुवन दिन बरसे सुमन आज,
कौसल्या बलि बलि जाय
राघव ललन तेरे कोमल चरण ,
कहीं कंकड़िया गढ़ी नहि जाय ।।

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Репост из: Hindu X
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Justice for Men.

Justice for Atul Subhash.

You are NEXT.

Beta Bachao.

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शिक्षा शेरनी का दूध है जो पियेगा दहाड़ेगा, उस दूध को सू-अर को पिला दो, क्या वह गंदगी खाना छोड़कर दहाड़ने लगेगा? या कौवे को पिला दो तो कांव कांव करना छोड़ कर दहाड़ने लगेगा?

शिक्षा शब्द का प्रयोग जब वामपंथी करते हैं तो वह हमेशा एजेंडे वाली शिक्षा होती है। इनके लिए सा विद्या या विमुक्तये नहीं बल्कि शिक्षा वह उपकरण है जिससे लोगों को गुलाम बनाया जा सकता है।

स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों में वाम समूहों को देखो तो स्वतंत्र चेतना जो सकारात्मक हो नहीं दिखती, दिखता तो केवल चरित्रहीन, डफलीबाज, नशेबाज, उद्दंड और अनुशासनहीन छात्र जो मां बाप से लेकर अपनी धर्म-संस्कृति, वेशभूषा को गाली दे रहा है।

वामपंथियों के लिए शिक्षा गोलबंदी करने का माध्यम है बस। इनके लिए शिक्षित होने का अर्थ इतना है कि वाम समूह का सदस्य बढ़ जाए। अगर पढ़ा लिखा व्यक्ति वामपंथी नहीं तो ये उसे पढ़ा लिखा मानते ही नहीं।

इन मूर्खों को यह समझ में नहीं आता ही कि दहाड़ना शेर की प्रकृति होती है, गीदड़ की नहीं।

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अपने तो सिर्फ राम है ...

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प्रेम क्या है ?

राम सीता सुंदर रूप, प्रेम अगाध, अमर धूप।
वनवास में भी, सदा साथ, सच्चे प्रेम का ये स्वरूप।

@Hindu




(पूर्व पोस्ट का उत्तर...)

(C) दोनों समान रूप से शक्तिशाली हैं

• स्पष्टीकरण :

यह प्रश्न सनातन धर्म की एक महत्वपूर्ण अवधारणा को उजागर करता है - दोनों शिव और विष्णु शक्तिशाली हैं, लेकिन उन्हें एक दूसरे से श्रेष्ठ नहीं माना जाता। शिव और विष्णु दोनों ही ब्रह्मांड के महत्वपूर्ण देवता हैं, और उनकी शक्तियाँ अलग-अलग रूपों में प्रकट होती हैं।

🕉️ शिव : संहार के देवता, उनकी शक्ति विनाशकारी और रूपांतकारी है। वे ब्रह्मांड को नष्ट करने और नवीनीकृत करने में सक्षम हैं।

🕉️ विष्णु : पालन के देवता, उनकी शक्ति संरक्षण और रक्षा करने वाली है। वे ब्रह्मांड को बनाए रखने और रक्षा करने में सक्षम हैं।

यह कहना कि कौन "बड़ा" या "मजबूत" है, सनातन धर्म की अवधारणा के विपरीत है। दोनों देवता अपने-अपने क्षेत्रों में सर्वोच्च शक्तिशाली हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि सनातन धर्म में शक्ति को केवल भौतिक बल के रूप में नहीं देखा जाता। शिव की विनाशकारी शक्ति और विष्णु की पालन शक्ति दोनों ही ब्रह्मांड के संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।

🕉️ ॐ नमः शिवाय 🙏
🕉️ ॐ नमो नारायणाय 🙏

🕉️ ॐ हरिहराय नमः 🙏

@Hindu
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❓सनातन धर्म में, शिव और विष्णु दोनों ही शक्तिशाली देवता हैं। लेकिन अगर हमें इन दोनों में से एक को "बड़ा" या "मजबूत" कहना हो, तो कौन अधिक शक्तिशाली माना जाता है? (@Hindu)
Опрос
  •   (A.) शिव
  •   (B.) विष्णु
  •   (C.) दोनों समान रूप से शक्तिशाली हैं
  •   (D.) यह निर्धारित करना असंभव है
1077 голосов


🕉️ ॐ हरिहराय नमः 🙏

@Hindu




(पूर्व पोस्ट का उत्तर...)

C.) दूध चढ़ाना एक प्रतीकात्मक कार्य है, जिसका अर्थ है भगवान की सेवा और भक्ति।

• स्पष्टीकरण -

सनातन धर्म में, शिवलिंग पर दूध चढ़ाना एक प्रतीकात्मक कार्य है, जिसका अर्थ है भगवान की सेवा और भक्ति। यह कार्य किसी पदार्थ का भौतिक उपयोग नहीं है, बल्कि भक्ति का एक अभिव्यक्ति है।

- विकल्प A: जबकि प्रथा पुरानी है, यह केवल तर्क के लिए पर्याप्त नहीं है।
- विकल्प B: शिव को भोजन पसंद है या नहीं, यह एक अलग बहस है। मुख्य बिंदु भक्ति का प्रदर्शन है।
- विकल्प C: यह सबसे सही उत्तर है। दूध चढ़ाना एक प्रतीकात्मक कृत्य है, जो भक्ति, श्रद्धा, और समर्पण का प्रतिनिधित्व करता है।
- विकल्प D: जबकि दूध चढ़ाने से कोई नुकसान नहीं होता है, यह मुख्य तर्क नहीं है।

यह प्रश्न सनातन धर्म में प्रतीकात्मकता और भक्ति की भूमिका को समझने में चुनौतीपूर्ण है। यह दर्शाता है कि धार्मिक प्रथाओं को समझने के लिए, केवल सतही दृष्टिकोण से परे जाना आवश्यक है।

@Hindu


❓ कुछ लोग शिवलिंग पर दूध चढ़ाने को लेकर आपत्ति जताते हैं, यह तर्क देते हुए कि यह बेकार या अशिष्ट है। सनातन धर्म के अनुसार, इन आलोचनाओं का क्या जवाब है? निम्नलिखित में से कौन सा कथन सनातन धर्म की दृष्टि से सबसे उपयुक्त जवाब है? (@Hindu)
Опрос
  •   A.) दूध चढ़ाने की प्रथा सदियों पुरानी है और इसका कोई धार्मिक आधार है।
  •   B.) दूध शिव का प्रिय भोजन है और इस तरह यह उन्हें खुश करता है।
  •   C.) दूध चढ़ाना एक प्रतीकात्मक कार्य है, जिसका अर्थ है भगवान की सेवा और भक्ति।
  •   D.) दूध चढ़ाने से कोई नुकसान नहीं होता है और यह भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक है।
493 голосов

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