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टेलीग्राम शैली में सनातन भगवान, योगी, महान विचारक और किंवदंतियों, सृजन, विज्ञान और उद्धरणों का आनंद लें! तंत्र, यंत्र, मंत्र, औषधि और लगभग हर सनातन सामग्री। प्रेरणा का विस्फोट!🔥🔥
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#laxmi


पूजा करने के नियम क्या हैं ?

✤ सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, सभी कार्यों में भगवान विष्णु की पूजा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। प्रतिदिन पूजन के समय इन पंचदेवों का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।

✤ शिवजी, गणेश जी और भैरव जी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।

✤ मां दुर्गा को दूर नहीं करना चाहिए। यह गणेश जी को विशेष रूप से निर्विकार की तरह माना जाता है।

✤ सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

✤ तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के अवशेषों को तोड़ता है तो पूजन में इन पुष्पों को भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है।

✤ प्लास्टिक की बोतल में या किसी भी अपवित्र धातु के पॉट में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और आयरन से बने पोइंटर। गंगाजल के भंडार में शुभ रहता है।

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✤ शैतान को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यहां इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।

✤ मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ नहीं दिखानी चाहिए।

✤ केतकी का फूल शिवलिंग पर नहीं करना चाहिए।

✤ किसी भी पूजा में मन की शांति के लिए दक्षिणा अवश्य लेनी चाहिए। दक्षिणा निकेत समय अपने दोषों को शामिल करने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी अलग करने पर विचार अवश्य करें।

✤ दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए।

✤ माँ लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल दिया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन: चढ़ाया जा सकता है।

✤ शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक नहीं माने जाते हैं। अत: उदाहरण के लिए जल छिड़क कर पुन: लिंग पर निशान लगाया जा सकता है।

✤ आम तौर पर फूलों को हाथ में लेकर भगवान को भगवान को समर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढाने के लिए फूलों को किसी भी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और उसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को बचाकर रखना चाहिए।

✤ कांच के बर्तन में चंदन, घीसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।

✤ हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक बात से दीपक न जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं।

✤ रविवार और रविवार को पीपल के पेड़ में जल संरक्षण नहीं करना चाहिए।

✤ पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख से करनी चाहिए। यदि संभव हो तो सुबह 6 से 8 बजे तक बीच में पूजा अवश्य करें।

✤ पूजा करते समय ध्यान दें कि आसन का आसन एक होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।

✤ घर के मंदिर में सुबह और शाम को दीपक जलाएं। एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए।

✤ पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद एक ही स्थान पर 3-3 बार पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

✤ रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रांति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए।

✤ भगवान की आरती करते समय ध्यान दें ये बातें- भगवान के चरण की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान की समस्त क्रियाओं की कम से कम सात बार आरती करानी चाहिए।

✤ पूजाघर में मूर्तियाँ 1, 3, 5, 7, 9, 11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं, लेकिन गणेश जी, सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।

✤ गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो, शालिग्राम दो, सूर्य प्रतिमा दो, गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न स्थान। घर में बीच बीच में घर बिल्कुल वैसा ही वातावरण शुद्ध होता है।

✤ अपने मंदिर में विशेष प्रतिष्ठित मूर्तियाँ ही उपहार, काँच, लकड़ी और फ़ाइबर की मूर्तियाँ न रखें और खंडित, जलीकटी फोटो और बर्तन काँच तुरंत हटा दें। शिलालेखों के अनुसार खंडित ज्वालामुखी की पूजा की जाती है। जो भी मूर्ति स्थापित है, उसे पूजा स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित भगवान की पूजा अशुभ मानी जाती है। इस संबंध में यह बात ध्यान देने योग्य है कि केवल भाषा ही कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं मानी जाती


गुरु आज्ञा के विरुद्ध मन का गतिशील होना ही दुर्भाग्य के उदय का प्रबल सूचक है। मन की निष्ठा गुरु आज्ञा से पृथक् चलायमान हो तो उसको भी भविष्य में आने वाले कष्ट की सुचना ही समझें। अतः हर हाल में मेरा मन गुरुदेव के श्री मुख से निकली आज्ञा में लीन हो।

सनातन रहस्य

#tantra #guru #rahasya #tatwa #gyan


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दो दोषों की अधिकता में नाड़ों को विशेष गति दो दोषों की अधिकता होने पर श्रेष्ठ वैद्यों को सर्पादि की गतियों के अनुसार गति समझनी चाहिए। अर्थात् बात-पित्त की निश्चित अधिकता में सर्प तथा काक की गति समय भेद से प्रतीत होती है। बात-कफ की निश्वित अधिकता में सर्प तथा हंस की तरह गति समान भेद से प्रतीत होती है और पित्त-कफ की अधिकता में काक तथा हंस की गति की भाँति समय भेद से होती है ॥ १९ ॥

असाध्यनाडीलक्षणम् -

कचिन्मन्दां कचित्तीनां त्रुटितां बहते कचित् । कचित्सूक्ष्मां कश्चित्स्थूलां नाढ्यसाध्यगदे गतिम् ।। २० ।।
त्वगुध्वं दृश्यते नाडी प्रबद्देद‌तिचञ्चला। असाध्यलक्षणा प्रोक्ता पिच्छिला चातिचञ्चला ।। २१ ।।

असाध्य नाड़ी की गति का लक्षण असाध्य रोग के रोगी की नाड़ी कभी मन्द, कभी-कभी त्रुटित (रुक-रुक कर), कभी सूक्ष्म तथा कभी स्थूल गति से चलती है। यदि नाड़ी की गति चर्म के ऊपर स्पष्ट प्रतीत हो और अत्यन्त चञ्चलगति हो तो असाध्य रोग का लक्षण है। इसके अतिरिक्त अति पिच्छिल तथा चथल गति से युक्त नाड़ी प्रतीत हो तो भी असाध्य समझना चाहिए ॥ २०-२१ ॥

निर्दोषाया नाज्या लक्षणम् -

अनुवादूर्ध्वसंलग्गा समा च बहते यदि । निर्दोषा साच विज्ञेया नाडोलक्षणकोविदैः ।। २२ ।।

निर्दोष नाड़ी का लक्षण - यदि नाड़ी की गति अंगूठे के ऊपर की ओर चलती हो और उसकी गति समभाव से अर्थात् न मन्द हो और न शीघ्र हो तो निर्दोष नाड़ी समझनी चाहिए ।

१. मद्दा दाहेऽपि शीतत्वं शीतत्वे तापिता शिरा ।नाना विधगतिर्यस्य तस्य मृत्युर्न संशयः ॥

(नाड़ी दर्पण) जिस मनुष्य के देह में दाह अधिक हो किन्तु नाड़ी शीत प्रतीत हो और शरीर अत्यन्त शीतल हो तथा नाड़ी उष्ण प्रतीत हो एवं जिसकी नाड़ी अनेक प्रकार की गति से चलती हो तो रोगी की मृत्यु हो जाती है इसमें सन्देह नहीं है।

#nari #nadi #aayurveda

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हे जगदम्बिके ! तब तक ही हरि एवं हर में, मनुष्यों में भेदबुद्धि उत्पन्न होती है। करालवदना काली, श्रीमत् एकजटा शिवा से भिन्न रहती हैं । (तब तक) षोडशी एवं भैरवी भिन्ना हैं। (तब तक) भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, अन्नपूर्णा भिन्त्रा हैं। (तब तक) बगलामुखी भी भिन्ना हैं ।।84।।

(तब तक) मातङ्गी एवं कमला भिन्ना हैं; वाणी एवं राधिका भिन्ना हैं, चेष्टाएँ भिन्ना है; क्रियाएँ भिन्ना हैं; आचार समूह भी भिन्न हैं ।।85।।

जब तक भवानी के पादपद्म में ऐक्य-ज्ञान उत्पन्न नहीं होता है; जब तक परम पावन तारिणी के अद्वैत (एक) पादपद्म में ऐक्य-ज्ञान उत्पन्न नहीं होता है, तब तक यह भेद रहता है ।186।।

हे चार्वङ्गि ! हृत्पद्म-गृह में ज्ञान का पार ( पराकाष्ठा) उत्पन्न होने पर, समस्त ही ब्रह्ममय है एवं विध ऐक्य ज्ञान उत्पन्न होता है ।18711

हे देवेशि ! समस्त जीव को यह ऐक्यज्ञान (प्राप्त) हो सकता है। हे शङ्करि ! यह ऐक्यज्ञान उत्पन्न होने पर, पाप नहीं है, पुण्य नहीं है, यम (मृत्यु) नहीं है, नरक नहीं है, सुख नहीं है, दुःख नहीं है। उसी प्रकार, रोग से भय भी नहीं है ।।88।।


#mundmala #tantra


श्री शिव ने कहा हे वरारोहे! हे देवि ! मेरे निश्चित वाक्य का श्रवण करें। दुर्गा के परिज्ञान के बिना पूजा एवं जप विफल है ।। दुर्गा ही परम मन्त्र है, दुर्गा ही परम जप है। दुर्गा ही परम तीर्थ है। दुर्गा ही श्रेष्ठ क्रिया है। दुर्गा ही परम भक्ति है। इस महीतल पर दुर्गा ही परम मुक्ति है ।।

बुद्धि, निद्रा, क्षुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, क्षमा, दया, तुष्टि, पुष्टि, शान्ति, लक्ष्मी एवं मति ये सभी दुर्गा हैं ।-

वैदिक एवं तान्त्रिक जो समस्त क्रियाएँ सभी की अपेक्षा श्रेष्ठ हैं, वे समस्त क्रियाएँ ही दुर्गा, दुर्गा से भिन्न नहीं है। उनका जप भी दुर्गा से भिन्न नहीं है ।।

दुर्गा के पदयुगल की वन्दना करें। दिवारात्रि दुर्गा का स्मरण करें। हे देवि ! परम कारण 'दुर्गा' इस मन्त्र का जप करें ।।

हे शिवे ! इस प्रकार भक्ति का अवलम्बन कर जो पूजादि क्रिया को सुन्दर रूप से करता है, वह समस्त सिद्धियों से युक्त होकर क्षितिमण्डल पर विचरण करता है ।।

हर गौरी संवाद

#mundmala #tantra






इसे सेव कर सुरक्षित कर लें, ऐसी पोस्ट कम ही आती है...

याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें : जो आपको हमेशा स्वस्थ और सेहतमंद रखेंगी :-

1- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।
2- कुल 13 अधारणीय वेग हैं
3-160 रोग केवल मांसाहार से होते है
4- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।
5- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।
6- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।
7- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।
8- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।
9- ठंडेजल (फ्रिज)और आइसक्रीम से बड़ी आंत सिकुड़ जाती है।
10- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।
11- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।
12- बाल रंगने वाले द्रव्यों(हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।
13- दूध(चाय) के साथ नमक (नमकीन पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।
14- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।
15- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।
16- टाई बांधने से आँखों और मस्तिष्क हो हानि पहुँचती है।
17- खड़े होकर जल पीने से घुटनों(जोड़ों) में पीड़ा होती है।
18- खड़े होकर मूत्रत्याग करने से रीढ़ की हड्डी को हानि होती है।
19- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।
20- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।
21- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।
22- पुस्तक पर अधिक झुकने से फेफड़े खराब हो जाते हैं और क्षय(टीबी) होने का डर रहता है।
23- चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है मलेरिया नहीं होता है।
24- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।
25- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।
26- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।
27- हृदयरोगी के लिए अर्जुनकी छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी,
सेंधा नमक, गुड़, चोकरयुक्त आटा, छिलकेयुक्त अनाज औषधियां हैं।
28- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।
29- अपक्व भोजन (जो आग पर न पकाया गया हो) से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।
30- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।
31- जल सदैव ताजा(चापाकल, कुएंआदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी बासी और अनेक रोगों के कारण होते हैं।
32- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।
33- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।
34- फल, मीठा और घी या तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।
35- भोजन पकने के 48 मिनट के
अन्दर खा लेना चाहिए। उसके पश्चात् उसकी पोषकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।।
36- मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोषकता 100%, कांसे के बर्तन में 97%, पीतल के बर्तन में 93%, अल्युमिनियम के बर्तन और प्रेशर कुकर में 7-13% ही बचते हैं।
37- गेहूँ का आटा 15 दिनों पुराना और चना, ज्वार, बाजरा, मक्का का आटा 7 दिनों से अधिक पुराना नहीं प्रयोग करना चाहिए।
38- 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मैदा (बिस्कुट, ब्रेड , समोसा आदि) कभी भी नहीं खिलाना चाहिए।
39- खाने के लिए सेंधा नमक सर्वश्रेष्ठ होता है उसके बाद काला नमक का स्थान आता है। सफेद नमक जहर के समान होता है।
40- जल जाने पर आलू का रस, हल्दी, शहद, घृतकुमारी में से कुछ भी लगाने पर जलन ठीक हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते।
41- सरसों, तिल,मूंगफली , सुरजमुखी या नारियल का कच्ची घानी का तेल और देशी घी ही खाना चाहिए है। रिफाइंड तेल और
वनस्पति घी (डालडा) जहर होता है।
42- पैर के अंगूठे के नाखूनों को सरसों तेल से भिगोने से आँखों की खुजली लाली और जलन ठीक हो जाती है।
43- खाने का चूना 70 रोगों को ठीक करता है।
44- चोट, सूजन, दर्द, घाव, फोड़ा होने पर उस पर 5-20 मिनट तक चुम्बक रखने से जल्दी ठीक होता है। हड्डी टूटने पर चुम्बक का प्रयोग करने से आधे से भी कम समय में ठीक होती है।
45- मीठे में मिश्री, गुड़, शहद, देशी(कच्ची) चीनी का प्रयोग करना चाहिए सफेद चीनी जहर होता है।
46- कुत्ता काटने पर हल्दी लगाना चाहिए।
47-बर्तन मिटटी के ही प्रयोग करने चाहिए।


एकासने निविष्ठा ये भुञ्जाना हौक भाजने । एकपात्रे पिवन्तो ये ते यान्ति निरयं ध्रुवम्!

योगामृत का कुल्ला करने से, मद्यभाण्ड की परिक्रमा करने से एवं कण्ठ के ऊपर तक मद्यपान करने से देवता के शाप की प्राप्ति होती है। जो लोग एक आसन पर बैठकर एक ही पात्र में भोजन करते हैं और एक ही पात्र से पान करते हैं, उन्हें निश्चित ही नरक में जाना पड़ता है।।

ये सेवन्ते कुलद्रव्यमेकग्रामे स्थिते गुरी। तत्कुलजे च तत्पुत्रे स्वज्येष्ठे कुलदेशिके
विनानुज्ञां स पापात्मा रौरवं निरयं ब्रजेत् ।
उच्छिष्ठो न स्पृशेच्चक्रं कुलद्रव्यं तथा गुरुम् ॥५७३॥

बहिः प्रक्षाल्य च जलैः कुलद्रव्याणि दापयेत् । मद्यभाण्डं समुद्धत्य न पात्रं परिपूजयेत् ॥५७४॥

गुरु, गुरुकुल में उत्पत्र, गुरुपुत्र, अपने ज्येष्ठ और कुलदेशिक के साथ एक ही माम में स्थित रहने पर भी जो लोग उनकी विना आज्ञा प्राप्त किये कुलद्रव्य का सेवन करते हैं, वे पापात्मा रौरव नरक में गमन करते हैं।r

जूठे हाथ-मुँह से चक्र, कुलद्रव्य एवं गुरु का स्पर्श नहीं करना चाहियेः अपितु बाहर जल से हाथ-मुँह धोकर कुलद्रव्य का स्पर्श करना चाहिये। मद्यभाण्ड को उठाकर पात्र का पूजन नहीं करना चाहिये।

#meru


पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि। विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्वादमां मयि सन्निध्त्स्व।।

इस मंत्र में भगवती लक्ष्मी की स्तुति की गई है। इस का अर्थ इस प्रकार है -

“कमलवत् विकसित सुन्दर मुख वाली हे लक्
ष्मी ! कमलवासिनी ! तुम पद्मिनी हो, कमल के समान कोमल गीव्रा वाली हों। कमल पत्र की तरह विश्खाल आंखों वाली हे देवी! तुम विश्वप्रिया हो, सबके मन को अनुकूलता प्रदान करने वाली हो, अपने चरण कमलों से मुझे पवित्र बना दो।" इसका तात्पर्य हुआ कि लक्ष्मी हमारे घर में एक बार प्रवेश करें और कभी न जायें।

पद्मानने पद्म ऊरु पद्माक्षि पद्मसम्भवे। तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ।।


"हे कमलमुखी ! कोमलांगी देवी ! तुम कमल के समान नेत्र वाली, कमल सदृश अत्यन्त कोमल जङ्
घावाली, उस कमल सी कृपा दृष्टि से मुझे देखो, ताकि मैं जीवन में सुख प्राप्त करूं।"


लक्ष्मी कमला मंत्र

यह मंत्र लक्ष्मी का प्रिय एवं श्रेष्ठ मंत्र कहा गया है तथा इस मंत्र के जप या प्रयोग से विशेष आर्थिक अनुकूलता, सम्पन्नता, ऐश्वर्य और व्यापारिक उन्नति सम्भव है।

इस मंत्र का जप सम्पन्न करने के लिए आयु, जाति या वर्ग का कोई बन्धन नहीं है, कोई भी पुरुष या स्त्री इस मंत्र का जप सकता है तथा इस साधना को पूर्ण कर सकता है।

इसके लिए यह आवश्यक है, कि पीले रंग का आसन बिछा कर पूर्व या उत्तर की तरफ मुंह करके साधक को स्वयं भी पीला वस्त्र धारण कर बैठना चाहिए और।

साधक को अपने सामने अगरबत्ती एवं घी का दीपक भी लगा लेना चाहिए।

सामने 'गज लक्ष्मी' का प्राण प्रतिष्ठितत चित्र स्थापित करें। इस चित्र में लक्ष्मी बैठी हुई होती हैं तथा उनके दोनों तरफ हाथी उन पर जल-वर्षा या घट-वर्षा करते हैं, इस चित्र को कांच के फ्रेम में मढ़वा कर सामने रख देना चाहिए।

इसके बाद नीचे लिखे मंत्र की 'कमलगट्टे की माला' से एक माला या ग्यारह मालाएं फेरनी चाहिए, कुल मिला कर इस अनुष्ठान में सवा लाख मंत्र जप होता है। इसलिए साधक को चाहिए, कि वह कुल मिला कर 1250 मालाएं फेरे, ऐसा करने पर सवा लाख मंत्र जप पूरा हो । जाता है।

इस मंत्र का जप या तो प्रातःकाल सूर्योदय से पहले करना चाहिए। अथवा रात्रि को किया जा सकता है, पर इस बात का ध्यान रखें, कि यह. सवा लाख मंत्र जप चालीस दिन में पूरा हो जाना चाहिए। इस प्रकार का चालीस दिन का अनुष्ठान करने के लिए नित्य जितनी भी सम्भव हो, मालाएं फेरी जा सकती हैं।

चालीस दिन बाद माला को नदी में प्रवाहित कर दे और चित्र को पूजा स्थान में स्थापित कर दे, परन्तु यदि अनुष्ठान के रूप में इस मंत्र को नहीं जपना है, तो साधक को नित्य अपनी पूजा में एक माला या ग्यारह मालाएं फेरनी चाहिए।

अनुष्ठान के रूप में इस प्रयोग को सम्पन्न कर जब साधक मंत्र जप सवा लाख पूरा कर ले, तब इसी मंत्र से दूध के बने पेड़ों की 108 आहुतियां देनी चाहिए और प्रत्येक आहुति देते समय इसी मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

मंत्र

।।ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।।

यह मंत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है, साधकों ने इससे विशेष लाभ उठाया है।

मंत्र जप में भूल कर भी रुद्राक्ष माला का प्रयोग नहीं करना चाहिए, लक्ष्मी से सम्बन्धित मंत्र जप में कमलगट्टे की माला सबसे अधिक उपयुक्त एवं लाभकारी मानी गई है, परन्तु यह माला भी मंत्रसिद्ध प्राणप्रतिष्ठा युक्त हो।


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हिरण की रफ्तार तकरीबन 90 km प्रति घंटा, शेर की रफ्तार 58 km प्रति घंटा होती है !!

इसके बावजूद अक्सर हिरण शेर का शिकार हो जाता है क्यों..... ?
क्योंकि हिरण को यकीन होता है वह शेर से कमजोर है, यही खौफ उसे पीछे मुड़कर देखने पर मजबूर करता है और हिरण का हौसला, रफ्तार दोनों कम हो जाता है !!

इसलिए आप खुद पर यकीन रखिये पीछे मुड़कर मत, देखिए !!
आप अपने सत्य पर अडिग रहिये.......
कोई आपका साथ दे या ना दे बस खुद की क्षमताओं पर यकीन रखिये !👍


नमस्ते मित्रों मैं आपको यहां हवन सामग्री के बारे में विशेष जानकारी दे रहा हूं आप सभी इस जानकारी को लिख ले

किसी रोग में जो जो जड़ी बूटी खाने में प्रयोग होती है उसी रोग में वही जड़ी बूटीयां दरदरी सी कूटकर गौ माता का घी मिलाकर हवन करने से और साथ में रोगी को गहरी श्वास लेने छोड़ने क्रिया करने को बोलने से लाभ होता है परंतु हवन करते समय धुआं नही होना चाहिए

अब आप जानिए सामग्री कैसे बनाते हैं सबसे सरल तरीका
पतंजलि के क्वाथ आते हैं अलग अलग प्रकार के जैसे
गिलोय क्वाथ, श्वासरी क्वाथ, दिव्य पेय, दशमुल क्वाथ, सर्वक्लप क्वाथ, अर्जुन क्वाथ, आदि इसमें आप लोंग, चावल, दालचीनी, गुलाब के पत्ते, अगर तगर, आदि मिला सकते हैं

जब आप देसी गाय के घी को गरम करे उसके बाद इसमें देसी कपूर मिला दें इसका फायदा ये होगा की अग्नि अच्छी प्रकार भड़केगी तापमान ज्यादा होगा जिससे घी और सामग्री अपना अच्छा प्रभाव डाल सकेगी


जब आपको हवन करना हो तो इसमें से कुछ सामग्री ले और उसमें इतना घी मिलाएं की सामग्री का लड्डू सा बन जाए यानी इसमें घी अधिक भी नहीं डलना चाहिए और बिल्कुल कम भी नहीं डलना चाहिए अब इससे हवन करें

धुम्नी देने का तरीका

आप हवन होने के बाद में जड़ी बूटियों की धूमनी भी दे सकते हैं यह जो धूमनी होती है यह बहुत ही ज्यादा अच्छी होती है लाभदायक होती है इसे धूम्र विद्या बोलते हैं कैसे देना है यह अब जान लो

जब आपका हवन हो जाए और हवन की अग्नि बुझ जाए तब आखिर में केवल जलते हुए अंगारे बचेंगे अब उन अंगारों पर यही सामग्री थोड़ी-थोड़ी डालें तो उससे जो धूम्र निकलेगा वह आसपास फैलेगा

मैं हवन करने के बाद में इसी प्रकार अपने पेड़ पौधों में धूमनी देता हूं, ये आसपास के मच्छरों को भी भगाती है कई प्रकार के रोगों में लाभदायक होती है

ध्यान रहे समिधा को अच्छे से सुखा कर ही प्रयोग करें जिसमे कीडा लगा हो उसे प्रयोग ना करें

हवन दोस्तो एक विज्ञान है जितना खोजोगे इस विद्या को समझोगे उतना आपका और इस धरती के समस्त प्राणियों का शारीरिक मानसिक लाभ होगा

आशा करता हूं कि आपको इस लेख से कुछ सहायता मिलेगी
अमित आर्य

नमस्ते जी 🚩जय श्री राम 🚩

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