💠✨सनातन रहस्य ✨💠 💠✨ Sanatan Rahasya✨💠


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टेलीग्राम शैली में सनातन भगवान, योगी, महान विचारक और किंवदंतियों, सृजन, विज्ञान और उद्धरणों का आनंद लें! तंत्र, यंत्र, मंत्र, औषधि और लगभग हर सनातन सामग्री। प्रेरणा का विस्फोट!🔥🔥

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मधुमेह


मधुमेह रोग में दो पत्ते पीपल के चार पत्ते बिल्व पत्र के, तथा आठ पत्र निम्बू के एवं चार काली मिर्च को मुख में चबा-चबाकर रस चूसना चाहिए शेष बचे हुए तंतुओं को फेंक देना चाहिए। इस प्रकार औषध सेवन करते हुए शक्ति के अनुसार पैदल भ्रमण भी करते रहना चाहिए. इससे कुछ ही दिनों में रक्त शर्करा न्यून हो जाती है।

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Репост из: Aayurveda Treatment: - Research
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Just check your health 😇💪

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जय श्री राम 🖤🙏


श्री राम लला प्राण प्रतिष्ठा समारोह की हार्दिक शुभकामनाएं 💥


केहि बिधि कहौं जाहु अब स्वामी । कहहु नाथ तुम्ह अंतरजामी ।। अस कहि प्रभु बिलोकि मुनि धीरा । लोचन जल बह पुलक सरीरा ।।

मैं किस प्रकार कहूं कि हे स्वामी! आप अब जाइए? हे नाथ! आप हृदय की बात जानने वाले हैं, आप ही कहिए। ऐसा कहकर धीर मुनि प्रभु को देखने लगे। मुनि के नेत्रों से जल बह रहा है और शरीर पुलकित है ।।५।।

मन ग्यान गुन गोतीत प्रभु मैं दीख जप तप का किए ।। जप जोग धर्म समूह तें नर भगति अनुपम पावई ।
रघुबीर चरित पुनीत निसि दिन दास तुलसी गावई ।।


मुनि अत्यंत प्रेम से परिपूर्ण हैं; उनका शरीर पुलकित है और नेत्रों को श्रीरामजी के कमलवत् मुख पर लगाए हुए हैं। [मन में सोच रहे हैं कि मैंने ऐसे कौन से जप-तप किए थे, जिसके फलस्वरूप मन, ज्ञान, गुण और इंद्रियों से परे प्रभु के दर्शन पाए। जप, योग और धर्म-समूह से मनुष्य अनुपम भक्ति को पाता है। श्रीरघुवीर के पवित्र चरित्र को तुलसीदास रात-दिन गाता है

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प्रातःकाले च मध्याह्ने सूर्यास्ते चार्द्धरात्रके ॥ कुर्यादेवं चतुर्वारं कालेष्वे- तेषु कुम्भकान् ॥ २७ ॥

टीका-पूर्वोक्त विधिले प्रातःकाल और मध्याह्नमें और सायंकालमें और अर्द्धरात्रिमें इसीतरह चार बार नित्य कुम्भक करना उचित है ।॥ २७ ॥

मूलम्-इत्थं मासत्रयं कुर्यादनालस्योदिने दिने ॥ ततो नाडीविशुद्धिः स्यादविल- म्वेन निश्चितम् ॥ २८ ॥

टीका-इसीप्रकार आलस्यको छोडकरके तीन मास नित्यकरे तो उस पुरुषकी नाडी बहुत शीघ्र शुद्ध होजाय यह निश्चय है ।। २८ ।।

मूलम् यदा तु नाडीशुद्धिः स्याद्योगिन- स्तत्त्वदर्शिनः ॥ तदा विध्वस्तदोषश्च भवेदारम्भसम्भवः ॥ २९ ॥

टीका:- तत्त्वदर्शी योगीकी जब नाडी शुद्ध होगी तब सर्व दोषका नाश होगा और आरम्भका सम्भव होगा ।। २९ ।।

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व्यभिचारात्तु भर्तुः स्त्री लोके प्राप्नोति निन्यताम् । शृगालयोनिं प्राप्नोति पापरोगैश्च पीड्यते ॥ १६४॥ पतिं या नाभिचरति मनोवाग्देहसंयता । सा भर्तृलोकमाप्नोति सन्द्भिः साध्वीति चोच्यते ॥ १६५॥ अनेन नारी वृत्तेन मनोवाग्देहसंयता । इहाग्रयां कीर्तिमाप्नोति पतिलोकं परत्र च ॥ १६६॥

जो स्त्री रूप, धन आदि से रहित अपने पति को छोड़कर दूसरे पुरुप की सेवा करती है वह संसार में निन्दा पाती है और इसका अमुक पति पहला है अमुक दूसरा है इस प्रकार लोग कहते हैं। जो त्री पति को छोड़कर व्यभिचार करती है वह जगत् में निन्दा पाती है और भरकर शृगाल की योनि में जन्म लेती है । पाप रोग कोढ़ वचैरह से पीड़ित होती है। और जो स्त्री शरीर, वाणी और मन को वश में रखकर पतिसेवा करती है। वह पतिलोक पाती है और संसार में पतिव्रता कहलाती है । मन, वाणी श्रौर शरीर सें नियम और सदाचार से रहनेवाली स्त्री उत्तम कीर्ति और स्वर्ग पाती है ॥ १६३-१६६ ॥

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👋 स्वास्थ्य से संबंधित कुछ विशेष जानकारियां 👋

1- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।

2- कुल 13 अधारणीय वेग हैं

3-160 रोग केवल मांसाहार से होते है

4- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।

5- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।

6- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।

7- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।

8- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।

9- ठंडेजल (फ्रिज)और आइसक्रीम से बड़ी आंत सिकुड़ जाती है।

10- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।

11- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।

12- बाल रंगने वाले द्रव्यों(हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।

13- दूध(चाय) के साथ नमक (नमकीन पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।

14- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।

15- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।

16- टाई बांधने से आँखों और मस्तिष्क हो हानि पहुँचती है।

17- खड़े होकर जल पीने से घुटनों(जोड़ों) में पीड़ा होती है।

18- खड़े होकर मूत्रत्याग करने से रीढ़ की हड्डी को हानि होती है।

19- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।

20- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।

21- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।

22- पुस्तक पर अधिक झुकने से फेफड़े खराब हो जाते हैं और क्षय(टीबी) होने का डर रहता है।

23- चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है मलेरिया नहीं होता है।

24- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।

25- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।

26- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।

27- हृदयरोगी के लिए अर्जुनकी छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी,
सेंधा नमक, गुड़, चोकरयुक्त आटा, छिलकेयुक्त अनाज औषधियां हैं।

28- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।

29- अपक्व भोजन (जो आग पर न पकाया गया हो) से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।

30- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।

31- जल सदैव ताजा(चापाकल, कुएंआदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी बासी और अनेक रोगों के कारण होते हैं

32- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।

33- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।

34- फल, मीठा और घी या तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।

35- भोजन पकने के 48 मिनट के
अन्दर खा लेना चाहिए। उसके पश्चात् उसकी पोषकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।।

36- मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोषकता 100%, कांसे के बर्तन में 97%, पीतल के बर्तन में 93%, अल्युमिनियम के बर्तन और प्रेशर कुकर में 7-13% ही बचते हैं।

37- गेहूँ का आटा 15 दिनों पुराना और चना, ज्वार, बाजरा, मक्का का आटा 7 दिनों से अधिक पुराना नहीं प्रयोग करना चाहिए।

38- 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मैदा (बिस्कुट, ब्रेड , समोसा आदि) कभी भी नहीं खिलाना चाहिए।

39- खाने के लिए सेंधा नमक सर्वश्रेष्ठ होता है उसके बाद काला नमक का स्थान आता है। सफेद नमक जहर के समान होता है।

40- जल जाने पर आलू का रस, हल्दी, शहद, घृतकुमारी में से कुछ भी लगाने पर जलन ठीक हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते।

41- सरसों, तिल,मूंगफली , सुरजमुखी या नारियल का कच्ची घानी का तेल और देशी घी ही खाना चाहिए है। रिफाइंड तेल और
वनस्पति घी (डालडा) जहर होता है।

42- पैर के अंगूठे के नाखूनों को सरसों तेल से भिगोने से आँखों की खुजली लाली और जलन ठीक हो जाती है।

43- खाने का चूना 70 रोगों को ठीक करता है।

44- चोट, सूजन, दर्द, घाव, फोड़ा होने पर उस पर 5-20 मिनट तक चुम्बक रखने से जल्दी ठीक होता है। हड्डी टूटने पर चुम्बक का प्रयोग करने से आधे से भी कम समय में ठीक होती है।

45- मीठे में मिश्री, गुड़, शहद, देशी(कच्ची) चीनी का प्रयोग करना चाहिए सफेद चीनी जहर होता है।

46- कुत्ता काटने पर हल्दी लगाना चाहिए।

47-बर्तन मिटटी के ही प्रयोग करने चाहिए।

48- टूथपेस्ट और ब्रश के स्थान पर दातून और मंजन करना चाहिए दाँत मजबूत रहेंगे।
(आँखों के रोग में दातून नहीं करना चाहिए)

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708 0 14 50 11

मूलम्-अतीवसाधुसंलापं साधुसम्मति- बुद्धिमान्॥ करोति पिण्डरक्षार्थ बह्वालाप विवर्जितः ॥२३०॥ त्याज्यते त्यज्यते स- ङ्गं सर्वथा त्यज्यते भृशम् ॥ अन्यथा न ल- भेन्मुक्तिं सत्यं सत्यं मयोदितम् ॥२३१॥

टीका:- बुद्धिमान् साधक सभामें साधुके समान थोडा और प्रमाण वाक्य बोले और शरीरके रक्षार्थ थोडा भोजन करे और संगको सर्व प्रकारसे तजदे कदापि किसीके संगमें लिप्त न होय हे पार्वति । और दूसरे प्रकार कदापि मुक्ति नहीं पावेगा यह हम सर्वथा सत्य कहते हैं इसमें संशय नहीं है ॥ २३० ॥ २३१ ॥


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ध्यात्वाऽऽत्मानं प्रतिशिवं सर्वभूतेषु संस्थितः । जपेन्मन्त्रन्तु यो मन्त्री सर्व सिद्धयति नान्यथा ॥ ६१ ॥

समस्त प्राणियोंमें तथा अपनेमें स्थित शिवजीको जाने ऐसे जानकर जो मन्त्रज्ञाता मंत्र जपता है उसके निःसन्देह सब मनोरथ सिद्ध होतेहैं ॥ ६१ ॥

शिवोऽहं सर्वभूतोऽहं जगत्स्थावरजङ्गमम् । एवं सम्भावयन् योगी सिद्धयते वत्सरार्द्धतः॥६२

मैं शिव हूं मैं सर्वभूत हूँ स्थावर जंगम जगत् बेराही रूप है यह भावना करता हुआ योगी छः महीनेमें सिद्ध होजाता है ॥ ६२ ॥

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ब्रह्मचर्य की शुरुआत करने वाले युवा यह लेख अवश्य पढे,और जीवन मे ब्रह्मचर्य को धारण करे।

🔥 वीर्य क्या है? 🔥

जो भोजन हम प्रतिदिन करते हैं।उसका पेट में जाकर पहले रस बनता है। जैसे पशुओं के शरीर में दूध बनता है।वैसे ही भोजन का असली सार शरीर में रहता है।उसी से रस आदि धातुएं बनती हैं।भोजन का जो स्थूल खराब भाग होता है।वह मल मूत्र आदि गंदगी के रूप में शरीर से निकलता रहता है रस फिर से जठराग्नि में पकने के लिए जाता है। इससे पककर रक्त  बनता है।  इसी प्रकार क्रमशः  एक के बाद एक रक्त से मांस(गोस्त)  मांस से मेद, मेद से हड्डी,हड्डी से मज्जा और मज्जा से वीर्य सातवीं धातु बनती है। प्रत्येक धातु के बनने में 5 दिन से अधिक का समय लगता है।वीर्य के तैयार करने में शरीर के यंत्रों को विशेष परिश्रम करना पड़ता है। इसमें 3 दिन से अधिक समय लगता है।तब कहीं यह मनुष्य का बीज वीर्य तैयार होता है।100 बूंद रक्त से एक बूंद वीर्य बनता है। लगभग जो भोजन एक मन की मात्रा में किया जाता है। उससे एक सेर रक्त बनता है एक सेर रक्त से एक तोला (10ग्राम) से कम वीर्य बनता है। यदि एक तोला वीर्य शरीर से निकल जाए तो एक सेर खून अर्थात एक मन भोजन का सार नष्ट हो गया।एक बार की कुचेष्टा व व्यभिचार से जो वीर्यपात नष्ट होता है वह एक तोले से अधिक होता है एक बार के वीर्य नाश (हस्तमैथुन) से 10 दिन के आयु घटती है  अतः हमारे पूर्वज वीर्य रक्षा में जी-जान से लगे रहते थे यही तो बात है कि पुराने समय में हमारे देश में 100 वर्ष से पूर्व कोई मरता न था। अकाल बाल मृत्यु कोई जानता भी ना था यह तो शरीर का बल है।वीर्य की अग्नि मृत्यु के पंखों को भी जला देती है जिसका शरीर वीर्य से भरा है,उसे मृत्यु का भय कैसा।

अतः अंत में देश के युवाओ से प्रार्थना है,कि ब्रह्मचर्य शिक्षा को ग्रहण करे,तथा अपने आपको वीर्यवान,बलवान,बुद्धिमान बनाएँ।


त्याग की मात्रा जितनी ही ज़्यादा होती है, यह शासन-भावना भी उतनी ही प्रबल होती है और जब सहसा हमें विद्रोह का सामना करना पड़ता है, तो हम क्षुब्ध हो उठते हैं, और वह त्याग जैसे प्रतिहिंसा का रूप ले लेता है।

- मुंशी प्रेमचंद



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