देसी औरत की चुदाई कहानी में पढ़ें कि मैंने अपने बापू को पड़ोस की एक सेक्सी विधवा औरत की चूत चुदाई करते देखा अपने ही घर में आधी रात को!
दोस्तो, मेरा नाम आरुष है ओर में खरगोन जिले के बड़गांव में रहता हूं.
मैं आज जिस सेक्स कहानी का जिक्र कर रहा हूँ, उसके बारे में मैंने बहुत दिन तक सोचा कि लिखूं या नहीं … पर अन्तर्वासना जैसी साईट पर अपने विचार लिखने में मुझे कोई हर्ज नहीं दिखा तो मैंने देसी औरत की चुदाई कहानी लिखने का मन पक्का कर लिया.
मैं एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ. मेरे घर में मैं, मेरी बीवी, एक छोटा भाई और मां बाप रहते हैं.
मेरी शादी हुए अभी कुछ महीने ही हुए हैं.
मेरे घर में एक कमरा ही है जो मेरे लिए है.
हालांकि उसमें अभी दरवाजा नहीं लगा है, तब भी हम दोनों मियां बीवी काम चला लेते हैं.
कमरे के बाहर एक हॉल है, जिसमें घर के बाकी सदस्य सोते हैं.
यh बात उस दिन की है जब मेरी मां छन्नो राखी बांधने मेरे मामा के घर गई थीं.
उस दिन मेरे बापू लल्लू राम जी, मेरी मां को बस अड्डे पर छोड़ आए थे.
मां बस से अकेली चली गई थीं.
शाम को मेरी बीवी ने खाना बनाया और हम सबने साथ में बैठ कर खाना खाया.
खाना के बाद हम सब सोने की तैयारी करने लगे.
बापू और भाई बाहर हॉल में सो गए और मैं व मेरी पत्नी रूम में सो गए.
कमरे का पर्दा डालकर मैंने बीवी की चुदाई की और वो मेरे लंड से तृप्त होकर सो गई.
रात गहरा गई थी तो सब सो गए थे.
मुझे नींद नहीं आ रही थी, मैं मोबाइल चला रहा था. मैं मोबाइल में अन्तर्वासना साईट खोल कर सेक्स कहानी पढ़ रहा था.
बाहर बारिश होने लगी थी.
रात करीब 11:45 बजे मेरी पत्नी की नींद खुली तो उसने मुझसे कहा कि लाइट बन्द कर दो.
मैं भी उठा और लाइट बन्द करने आ गया.
मैंने लाइट बन्द कर दी और सोचा कि एक बार बाहर हॉल में भी देख लूँ.
मैंने धीरे से पर्दे को हटाया तो देखा कि पड़ोस की काकी मेरे घर में दरवाजा खोल कर अन्दर आ रही थीं.
मैंने चौंक गया और सोचा कि इतनी रात को यहां क्या करने आई होंगी?
काकी अन्दर आईं और मेरे बापू के बगल में लेट गईं. मेरी खोपड़ी घूम गई कि काकी मेरे बापू के बाजू में क्यों लेट गईं.
ये काकी मेरे पड़ोस में रहती थीं और विधवा थीं. हालांकि आजतक मैंने काकी को किसी गलत नजरिये से नहीं देखा था मगर आज समझ आ रहा था कि काकी तो अभी भी जवान माल थीं.
मेरे दिमाग में उनकी फिगर घूमने लगी थी. काकी के उठे हुए दूध और तनी हुई गांड का ध्यान तो मेरी निगाह में आज ही घूमा था.
उनका जिस्म भी एकदम ठोस था. कहीं से भी उनकी चवालीस साल की उम्र उन पर हावी नहीं दिखती थी.
हां बस गांव का पहनावा जरूर कुछ ऐसा था कि वो उम्रदराज लगती थीं.
उनकी विधवा होने की स्थिति भी उन्हें ज्यादा बनाव शृंगार करने की इजाजत नहीं देती थी.
तभी काकी की हल्की सी आवाज आई- क्या उखाड़ ही लोगे?
मेरा ध्यान भंग हुआ और मैंने वापस हॉल में नजरें गड़ा दीं.
बापू के हाथ काकी के मम्मों पर लगे हुए थे और वो काकी के पीछे से उनकी चूचियों की मां चोद रहे थे.
काकी कसमसा रही थीं और मेरे बापू के आगोश में गड़ी जा रही थीं.
बापू भी मस्ती से काकी ब्लाउज के बटन खोल चुके थे और बिना ब्रा की काकी की भरी हुई नारंगियों को मसकने मसलने का मजा ले रहे थे.
बापू- बुधिया, दूध तो पिला दे.
काकी- तो पी लो न लल्लू … मना किसने किया है.
ये कह कर बुधिया काकी बापू की तरफ घूम गईं और उन्होंने अपना एक दूध बापू के मुँह की तरफ बढ़ा दिया.
बापू ने बिना एक पल की देरी किए बिना अपना मुँह बुधिया काकी के एक मम्मे के काले जामुन से चूचुक पर लगा दिया.
काकी के मुँह से एक मीठी सी आह निकली और उनके हाथ ने मेरे बापू के सर को अपने मम्मे पर कस लिया.
बापू भी किसी छोटे से बालक की तरह काकी के दूध को चुसुक चुसुक कर पीने लगे.
अपनी एक टांग उठाकर काकी ने बापू की टांग पर रख दी और दूध चुसवाने का मजा लेने लगीं.
काकी- मजा आ रहा है लल्लू.
‘हां बुधिया आज पूरे दस रोज बाद मिली हो.’
‘सच में उस दिन चौधरी के ट्यूबबैल पर पेला था, उसके बाद से खुजली नहीं मिटी.’
बापू- क्यों चौधरी ने नहीं पेला तुझे?
काकी- चुप कर साले … हटा मुँह, अब ये दूसरा वाला चूस.
बापू ने एक दूध से मुँह हटाया तो काकी ने दूसरा थन मुँह से लगा दिया.
उधर बापू ने काकी की साड़ी जांघ तक सरका दी तो काकी ने भी अपना हाथ बापू के लंड पर रख दिया और वो बापू के लंड को सहलाने लगीं.
बापू- क्या हुआ बुधिया तूने बताया नहीं?
काकी- क्या?
बापू- वही … चौधरी ने नहीं पेला?
काकी- लल्लू तुझे मालूम तो है. उसका दम कितना सा है … फुच्च फुच्च करके खत्म हो जाता है. वो तो उसके खेत पर तेरे साथ मजा मिल जाता है इसलिए उसके साथ सोना पड़ता है. नहीं तो मैं घास भी न डालूँ उसे.
दोस्तो, मेरा नाम आरुष है ओर में खरगोन जिले के बड़गांव में रहता हूं.
मैं आज जिस सेक्स कहानी का जिक्र कर रहा हूँ, उसके बारे में मैंने बहुत दिन तक सोचा कि लिखूं या नहीं … पर अन्तर्वासना जैसी साईट पर अपने विचार लिखने में मुझे कोई हर्ज नहीं दिखा तो मैंने देसी औरत की चुदाई कहानी लिखने का मन पक्का कर लिया.
मैं एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ. मेरे घर में मैं, मेरी बीवी, एक छोटा भाई और मां बाप रहते हैं.
मेरी शादी हुए अभी कुछ महीने ही हुए हैं.
मेरे घर में एक कमरा ही है जो मेरे लिए है.
हालांकि उसमें अभी दरवाजा नहीं लगा है, तब भी हम दोनों मियां बीवी काम चला लेते हैं.
कमरे के बाहर एक हॉल है, जिसमें घर के बाकी सदस्य सोते हैं.
यh बात उस दिन की है जब मेरी मां छन्नो राखी बांधने मेरे मामा के घर गई थीं.
उस दिन मेरे बापू लल्लू राम जी, मेरी मां को बस अड्डे पर छोड़ आए थे.
मां बस से अकेली चली गई थीं.
शाम को मेरी बीवी ने खाना बनाया और हम सबने साथ में बैठ कर खाना खाया.
खाना के बाद हम सब सोने की तैयारी करने लगे.
बापू और भाई बाहर हॉल में सो गए और मैं व मेरी पत्नी रूम में सो गए.
कमरे का पर्दा डालकर मैंने बीवी की चुदाई की और वो मेरे लंड से तृप्त होकर सो गई.
रात गहरा गई थी तो सब सो गए थे.
मुझे नींद नहीं आ रही थी, मैं मोबाइल चला रहा था. मैं मोबाइल में अन्तर्वासना साईट खोल कर सेक्स कहानी पढ़ रहा था.
बाहर बारिश होने लगी थी.
रात करीब 11:45 बजे मेरी पत्नी की नींद खुली तो उसने मुझसे कहा कि लाइट बन्द कर दो.
मैं भी उठा और लाइट बन्द करने आ गया.
मैंने लाइट बन्द कर दी और सोचा कि एक बार बाहर हॉल में भी देख लूँ.
मैंने धीरे से पर्दे को हटाया तो देखा कि पड़ोस की काकी मेरे घर में दरवाजा खोल कर अन्दर आ रही थीं.
मैंने चौंक गया और सोचा कि इतनी रात को यहां क्या करने आई होंगी?
काकी अन्दर आईं और मेरे बापू के बगल में लेट गईं. मेरी खोपड़ी घूम गई कि काकी मेरे बापू के बाजू में क्यों लेट गईं.
ये काकी मेरे पड़ोस में रहती थीं और विधवा थीं. हालांकि आजतक मैंने काकी को किसी गलत नजरिये से नहीं देखा था मगर आज समझ आ रहा था कि काकी तो अभी भी जवान माल थीं.
मेरे दिमाग में उनकी फिगर घूमने लगी थी. काकी के उठे हुए दूध और तनी हुई गांड का ध्यान तो मेरी निगाह में आज ही घूमा था.
उनका जिस्म भी एकदम ठोस था. कहीं से भी उनकी चवालीस साल की उम्र उन पर हावी नहीं दिखती थी.
हां बस गांव का पहनावा जरूर कुछ ऐसा था कि वो उम्रदराज लगती थीं.
उनकी विधवा होने की स्थिति भी उन्हें ज्यादा बनाव शृंगार करने की इजाजत नहीं देती थी.
तभी काकी की हल्की सी आवाज आई- क्या उखाड़ ही लोगे?
मेरा ध्यान भंग हुआ और मैंने वापस हॉल में नजरें गड़ा दीं.
बापू के हाथ काकी के मम्मों पर लगे हुए थे और वो काकी के पीछे से उनकी चूचियों की मां चोद रहे थे.
काकी कसमसा रही थीं और मेरे बापू के आगोश में गड़ी जा रही थीं.
बापू भी मस्ती से काकी ब्लाउज के बटन खोल चुके थे और बिना ब्रा की काकी की भरी हुई नारंगियों को मसकने मसलने का मजा ले रहे थे.
बापू- बुधिया, दूध तो पिला दे.
काकी- तो पी लो न लल्लू … मना किसने किया है.
ये कह कर बुधिया काकी बापू की तरफ घूम गईं और उन्होंने अपना एक दूध बापू के मुँह की तरफ बढ़ा दिया.
बापू ने बिना एक पल की देरी किए बिना अपना मुँह बुधिया काकी के एक मम्मे के काले जामुन से चूचुक पर लगा दिया.
काकी के मुँह से एक मीठी सी आह निकली और उनके हाथ ने मेरे बापू के सर को अपने मम्मे पर कस लिया.
बापू भी किसी छोटे से बालक की तरह काकी के दूध को चुसुक चुसुक कर पीने लगे.
अपनी एक टांग उठाकर काकी ने बापू की टांग पर रख दी और दूध चुसवाने का मजा लेने लगीं.
काकी- मजा आ रहा है लल्लू.
‘हां बुधिया आज पूरे दस रोज बाद मिली हो.’
‘सच में उस दिन चौधरी के ट्यूबबैल पर पेला था, उसके बाद से खुजली नहीं मिटी.’
बापू- क्यों चौधरी ने नहीं पेला तुझे?
काकी- चुप कर साले … हटा मुँह, अब ये दूसरा वाला चूस.
बापू ने एक दूध से मुँह हटाया तो काकी ने दूसरा थन मुँह से लगा दिया.
उधर बापू ने काकी की साड़ी जांघ तक सरका दी तो काकी ने भी अपना हाथ बापू के लंड पर रख दिया और वो बापू के लंड को सहलाने लगीं.
बापू- क्या हुआ बुधिया तूने बताया नहीं?
काकी- क्या?
बापू- वही … चौधरी ने नहीं पेला?
काकी- लल्लू तुझे मालूम तो है. उसका दम कितना सा है … फुच्च फुच्च करके खत्म हो जाता है. वो तो उसके खेत पर तेरे साथ मजा मिल जाता है इसलिए उसके साथ सोना पड़ता है. नहीं तो मैं घास भी न डालूँ उसे.