वेदव्यास जी ने कहा है :-
अर्थात् गुप्तेन्द्रिय-मूत्रेन्द्रिय का संयम रखना ब्रह्मचर्य है। कामवासना को उत्तेजित करने वाला कर्म, दर्शन, स्पर्शन, एकान्तसेवन, भाषण, विषय का ध्यान-कथा आदि कर्मों से बच कर ब्रह्मचारी को सदा जितेन्द्रिय होना चाहिए।
ब्रह्मचर्यं गुप्तेन्द्रियस्योपस्थस्य संयमः
अर्थात् गुप्तेन्द्रिय-मूत्रेन्द्रिय का संयम रखना ब्रह्मचर्य है। कामवासना को उत्तेजित करने वाला कर्म, दर्शन, स्पर्शन, एकान्तसेवन, भाषण, विषय का ध्यान-कथा आदि कर्मों से बच कर ब्रह्मचारी को सदा जितेन्द्रिय होना चाहिए।