हुजूर में मेरी ज़िन्दगी एक जुर्म है
जीने की तमन्ना फिर जगाता कौन है
संज़ीदगी मशहूर है इन गलियों चौबारों में
मोहल्ले में झूमती महफ़िल सजाता कौन है
ज़माने में जब किसी से रूठने का हक़ नहीं
किस ख़ता के वास्ते मुझे मनाता कौन है
कफ़न की सहूलियत का भी यकीं नही मुझे
जीते जी मेरे लिए दामन फैलाता कौन है
मय के इस दौर में नहीं है हम प्याला कोई
सुने इस मैकदे में नज़रों से पिलाता कौन है
मुद्दत हुई मुझे किसी ●आशु● से रूबरू हुए
खुली पलकों से मेरी यूँ नींदें चुराता कौन है
जीने की तमन्ना फिर जगाता कौन है
संज़ीदगी मशहूर है इन गलियों चौबारों में
मोहल्ले में झूमती महफ़िल सजाता कौन है
ज़माने में जब किसी से रूठने का हक़ नहीं
किस ख़ता के वास्ते मुझे मनाता कौन है
कफ़न की सहूलियत का भी यकीं नही मुझे
जीते जी मेरे लिए दामन फैलाता कौन है
मय के इस दौर में नहीं है हम प्याला कोई
सुने इस मैकदे में नज़रों से पिलाता कौन है
मुद्दत हुई मुझे किसी ●आशु● से रूबरू हुए
खुली पलकों से मेरी यूँ नींदें चुराता कौन है