*🌞~ आज का हिन्दू पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक - 23 दिसम्बर 2024*
*⛅दिन - सोमवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शिशिर*
*⛅मास - पौष*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - अष्टमी शाम 05:07 तक, तत्पश्चात नवमी*
*⛅नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी प्रातः 09:09 तक तत्पश्चात हस्त*
*⛅योग - सौभाग्य शाम 07:55 तक, तत्पश्चात शोभन*
*⛅राहु काल - प्रातः 08:38 से प्रातः 09:58 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:21*
*⛅सूर्यास्त - 05:56*
*⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:31 से 06:24 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:18 से दोपहर 01:00 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:13 दिसम्बर 24 से रात्रि 01:06 दिसम्बर 24 तक*
*⛅विशेष - अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹ग्रह, वास्तु, अरिष्ट शांति का सरल उपाय – विष्णुसहस्रनाम🔹*
*🔸'विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र' विधिवत अनुष्ठान करने से सभी ग्रह, नक्षत्र, वास्तु दोषों की शांति होती है । विद्याप्राप्ति, स्वास्थ्य एवं नौकरी-व्यवसाय में खूब लाभ होता है । कोर्ट-कचहरी तथा अन्य शत्रुपीड़ा की समस्याओं में भी खूब लाभ होता है । इस अनुष्ठान को करके गर्भाधान करने पर घर में पुण्यात्माएँ आती हैं । सगर्भावस्था के दौरान पति-पत्नी तथा कुटुम्बीजनों को इसका पाठ करना चाहिए ।*
*🔸अनुष्ठान-विधिः सर्वप्रथम एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाएँ । उस पर थोड़े चावल रख दें । उसके ऊपर ताँबे का छोटा कलश पानी भर के रखें । उसमें कमल का फूल रखें । कमल का फूल बिल्कुल ही अनुपलब्ध हो तो उसमें अडूसे का फूल रखें । कलश के समीप एक फल रखें । तत्पश्चात ताँबे के कलश पर मानसिक रूप से चारों वेदों की स्थापना कर 'विष्णुसहस्रनाम' स्तोत्र का सात बार पाठ सम्भव हो तो प्रातः काल एक ही बैठक में करें तथा एक बार उसकी फलप्राप्ति पढ़ें । इस प्रकार सात या इक्कीस दिन तक करें । रोज फूल एवं फल बदलें और पिछले दिन वाला फूल चौबीस घंटे तक अपनी पुस्तकों, दफ्तर, तिजोरी अथवा अन्य महत्त्वपूर्ण जगहों पर रखें व बाद में जमीन में गाड़ दें । चावल के दाने रोज एक पात्र में एकत्र करें तथा अनुष्ठान के अंत में उन्हें पकाकर गाय को खिला दें या प्रसाद रूप में बाँट दें । अनुष्ठान के अंतिम दिन भगवान को हलवे का भोग लगायें ।*
*🔸यह अनुष्ठान हो सके तो शुक्ल पक्ष में शुरू करें । संकटकाल में कभी भी शुरू कर सकते हैं । स्त्रियों को यदि अनुष्ठान के बीच में मासिक धर्म के दिन आते हों तो उन दिनों में अनुष्ठान बंद करके बाद में फिर से शुरू करना चाहिए । जितने दिन अनुष्ठान हुआ था, उससे आगे के दिन गिनें ।*
*🔹टिप्पणीः शास्त्र कहते हैं कि प्रदोषकाल (निषिद्धकाल) में मैथुन नहीं करना चाहिए । जिन लोगों का गर्भाधान जानकारी के अभाव में अनुचित काल में हुआ है, उन्हें अपनी संतान की ग्रहशांति के लिए यह अनुष्ठान करना चाहिए ।*
*🔸गर्भाधान के लिए अनुचित कालः संध्या का समय, जन्मदिन, पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, प्रदोष (त्रयोदशी के दिन सूर्यास्त के निकट का काल), चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, उत्तरायण, जन्माष्टमी, रामनवमी, होली, शिवरात्रि, नवरात्रि आदि पर्वों (दो तिथियों का समन्वय काल) एवं मासिक धर्म के प्रथम पाँच दिनों में तो मैथुन सर्वथा वर्जित है ।*
*🔸शास्त्रवर्णित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, नहीं तो आसुरी, कुसंस्कारी अथवा विकलांग संतान उत्पन्न होती है । यदि संतान नहीं हुई तो दम्पत्ति को कोई खतरनाक बीमारी हो जाती है ।*
*📖 लोक कल्याण सेतु, सितम्बर 2010*
*⛅दिनांक - 23 दिसम्बर 2024*
*⛅दिन - सोमवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शिशिर*
*⛅मास - पौष*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - अष्टमी शाम 05:07 तक, तत्पश्चात नवमी*
*⛅नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी प्रातः 09:09 तक तत्पश्चात हस्त*
*⛅योग - सौभाग्य शाम 07:55 तक, तत्पश्चात शोभन*
*⛅राहु काल - प्रातः 08:38 से प्रातः 09:58 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:21*
*⛅सूर्यास्त - 05:56*
*⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:31 से 06:24 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:18 से दोपहर 01:00 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:13 दिसम्बर 24 से रात्रि 01:06 दिसम्बर 24 तक*
*⛅विशेष - अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹ग्रह, वास्तु, अरिष्ट शांति का सरल उपाय – विष्णुसहस्रनाम🔹*
*🔸'विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र' विधिवत अनुष्ठान करने से सभी ग्रह, नक्षत्र, वास्तु दोषों की शांति होती है । विद्याप्राप्ति, स्वास्थ्य एवं नौकरी-व्यवसाय में खूब लाभ होता है । कोर्ट-कचहरी तथा अन्य शत्रुपीड़ा की समस्याओं में भी खूब लाभ होता है । इस अनुष्ठान को करके गर्भाधान करने पर घर में पुण्यात्माएँ आती हैं । सगर्भावस्था के दौरान पति-पत्नी तथा कुटुम्बीजनों को इसका पाठ करना चाहिए ।*
*🔸अनुष्ठान-विधिः सर्वप्रथम एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाएँ । उस पर थोड़े चावल रख दें । उसके ऊपर ताँबे का छोटा कलश पानी भर के रखें । उसमें कमल का फूल रखें । कमल का फूल बिल्कुल ही अनुपलब्ध हो तो उसमें अडूसे का फूल रखें । कलश के समीप एक फल रखें । तत्पश्चात ताँबे के कलश पर मानसिक रूप से चारों वेदों की स्थापना कर 'विष्णुसहस्रनाम' स्तोत्र का सात बार पाठ सम्भव हो तो प्रातः काल एक ही बैठक में करें तथा एक बार उसकी फलप्राप्ति पढ़ें । इस प्रकार सात या इक्कीस दिन तक करें । रोज फूल एवं फल बदलें और पिछले दिन वाला फूल चौबीस घंटे तक अपनी पुस्तकों, दफ्तर, तिजोरी अथवा अन्य महत्त्वपूर्ण जगहों पर रखें व बाद में जमीन में गाड़ दें । चावल के दाने रोज एक पात्र में एकत्र करें तथा अनुष्ठान के अंत में उन्हें पकाकर गाय को खिला दें या प्रसाद रूप में बाँट दें । अनुष्ठान के अंतिम दिन भगवान को हलवे का भोग लगायें ।*
*🔸यह अनुष्ठान हो सके तो शुक्ल पक्ष में शुरू करें । संकटकाल में कभी भी शुरू कर सकते हैं । स्त्रियों को यदि अनुष्ठान के बीच में मासिक धर्म के दिन आते हों तो उन दिनों में अनुष्ठान बंद करके बाद में फिर से शुरू करना चाहिए । जितने दिन अनुष्ठान हुआ था, उससे आगे के दिन गिनें ।*
*🔹टिप्पणीः शास्त्र कहते हैं कि प्रदोषकाल (निषिद्धकाल) में मैथुन नहीं करना चाहिए । जिन लोगों का गर्भाधान जानकारी के अभाव में अनुचित काल में हुआ है, उन्हें अपनी संतान की ग्रहशांति के लिए यह अनुष्ठान करना चाहिए ।*
*🔸गर्भाधान के लिए अनुचित कालः संध्या का समय, जन्मदिन, पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, प्रदोष (त्रयोदशी के दिन सूर्यास्त के निकट का काल), चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, उत्तरायण, जन्माष्टमी, रामनवमी, होली, शिवरात्रि, नवरात्रि आदि पर्वों (दो तिथियों का समन्वय काल) एवं मासिक धर्म के प्रथम पाँच दिनों में तो मैथुन सर्वथा वर्जित है ।*
*🔸शास्त्रवर्णित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, नहीं तो आसुरी, कुसंस्कारी अथवा विकलांग संतान उत्पन्न होती है । यदि संतान नहीं हुई तो दम्पत्ति को कोई खतरनाक बीमारी हो जाती है ।*
*📖 लोक कल्याण सेतु, सितम्बर 2010*